इस धरती में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है जिसे कोई भी नहीं टाल सकता है। जिसने भी इस धरती में जन्म लिया है उसे एक न एक दिन अपने शरीर को छोड़कर जाना ही होता है। वहीं इस्लामी सिद्धांत के अनुसार दुनिया के समाप्त होने के बाद मृत को फिर से जीवित किया जाएगा और प्रत्येक व्यक्ति पर उसके कर्मों के अनुसार फैसला सुनाया जाएगा। इस फैसले के दिन के बारे में कुरान के कई छंदों में भी उल्लेख मिलता है। प्रलय के दिन को हिसाब-किताब का दिन, अंतिम दिन और समय (अल-साहा) के रूप में भी जाना जाता है।
कुरान के विपरीत, हदीस में फैसले के दिन से पहले होने वाली कई घटनाओं का उल्लेख मिलता है, जिन्हें कई छोटे संकेतों और बारह प्रमुख संकेतों के रूप में वर्णित किया गया है। इस अवधि के दौरान, मसीहा एड-दज्जल (इस्लाम में ईसा मसीह के शत्रु) द्वारा पृथ्वी पर भयानक भ्रष्टाचार और अव्यवस्था करी जाएगी, जिसे खत्म करने के लिए फिर से ईसा दिखाई देंगे और दज्जाल को हराकर दुनिया को क्रूरता से मुक्त करेंगे। वहीं अन्य अब्राहमिक धर्मों की तरह, इस्लाम सिखाता है कि नेक और गलत के अंतिम विभाजन के बाद मृतकों का पुनरुत्थान होगा। इसके बाद नेक रूहों को जन्नत (स्वर्ग) के सुखों से पुरस्कृत किया जाता है, जबकि अधर्मियों को जहन्नम (नर्क) में सज़ा दी जाती है। कुछ इस्लामिक स्कूल मानवीय हस्तक्षेप की संभावना से इनकार करते हैं, लेकिन ज्यादातर इसे स्वीकार करते हैं।
प्रारंभिक मुस्लिम काल के दौरान इस्लामिक अल-क़ियामा से संबंधित प्राथमिक मान्यताओं में से एक यह था कि सभी मनुष्य भगवान की दया प्राप्त कर सकते थे और मोक्ष के योग्य थे। ये प्रारंभिक चित्रण यह भी बताते हैं कि कैसे छोटे और तुच्छ कार्य दया के अधिपत्र होते हैं। अल-क़ियामा के अधिकांश प्रारंभिक चित्रण केवल तौहीद (एकेश्वरवाद की अवधारणा) को अस्वीकार करने वाले लोगों को चित्रित करते थे। हालांकि, जैसा की हम लोग जानते ही हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेकिन पुरस्कारों और दंडों की अवधारणाओं को इस दुनिया से परे देखा जाता था, इस अवधारणा को वर्तमान समय में भी स्वीकार किया जाता है।
इब्न अल-नफीस ने थेओलस ऑटोडिडैक्टस (Theologus Autodidactus) (लगभग 1270 ईस्वी) में इस्लामिक अल-क़ियामा बारे में लिखा था, जहां उन्होंने तर्क, विज्ञान और प्रारंभिक इस्लामिक दर्शन का इस्तेमाल यह समझाने के लिए किया था कि उनके विचार से अल-क़ियामा को एक काल्पनिक उपन्यास के रूप में बताया जाएगा। वहीं इमरान नज़र होसिन ने भी कई किताबें लिखीं, जो इस्लामिक अल-क़ियामा से संबंधित हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध “यरूशलेम इन दी कुरान” है।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_eschatology
2. https://www.britannica.com/topic/Islam/Eschatology-doctrine-of-last-things
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