तीन सौ साल और दो भागीरथ प्रयासों की देन है, ये दुर्लभ किताब

लखनऊ

 12-02-2020 02:00 PM
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें

रज़ा पुस्तकालय 60,000 से अधिक मुद्रित पुस्तकों का घर है, जिनमें से कई पुस्तकों के सबसे पुराने प्रकाशनों में से हैं। इसलिए आज हम भारत के पौधों पर मुद्रित प्राचीन पुस्तक हॉर्टस मालाबारिकस (Hortus Malabaricus), इसके महत्व और पुन: खोज पर चर्चा करने जा रहे हैं।

‘अगर इस पौधे को बायें पैर के अंगूठे पर रगड़ा जाये तो मनुष्य की दायीं आंख की रोशनी बढ़ जाती है’
यह कोई जादू या तिलिस्म नहीं है बल्कि एक रोमांचक अनुभव है जिसने प्रोफेसर के. एस. मनीलाल के जीवन की दिशा ही बदल दी। इस गुत्थी को सुलझाने का जुनून उन पर इस कदर हावी हुआ कि अपनी सारी जिंदगी उन्होंने इस विचित्र किंतु सत्य अनुभवों से भरी तीन सौ साल पुरानी दुर्लभ किताब ‘होर्टस मालाबारिकस’ (Hortus Malabaricus) को आज के वैज्ञानिकों तक पहुंचाने में लगा दी।

दरअसल यह एक शुरुआत थी तीन शताब्दी पहले हुए कारनामे के रहस्य से पर्दा उठाने की। होर्टस मालाबारिकस यानि मालाबार का गार्डन (Garden) यह नाम है एक दुर्लभ किताब का जो भारत की वनस्पतियों पर लिखी गई पहली किताब थी। भारत के पश्चिमी घाटों और मालाबार के पेड़- पौधों पर हेन्ड्रिक वैन रीड (Hendrik Van Rheede) ने इस किताब को लिखा था। 12 खण्डों में छपी इस किताब को पूरा होने में 25 साल लगे। अचरज की बात ये थी कि हैन्ड्रिक एक विदेशी सैनिक थे और बॉटनी (Botany) या साइंस (Science) से उनका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था। मूल किताब को 300 वर्ष बाद फिर से चर्चा में लाने का श्रेय कालीकट विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कट्टूंगल सुब्रमणियम मनीलाल को जाता है। 40 वर्ष से अधिक समय लगाकर प्रो. मणिलाल ने इस ऐतिहासिक दुर्लभ किताब का अंग्रेजी और मलयालम भाषा में अनुवाद करके दुनिया के शोधार्थियों के सामने लाकर रखा। इस तरह होर्टस मालाबारिकस को लिखे जाने और इसके दोबारा खोजे जाने के पीछे इन दो शक्सियतों का भागीरथ प्रयास था। 1950 में अपने स्कूली दिनों में प्रो. मणिलाल को अपने पिता द्वारा इकट्ठी की गईं पुराने अखबार की कतरनों के ज़रिए इस किताब के बारे में पता चला। बाद में बॉटनी के पोस्ट ग्रैजुएट (Post Graduate) छात्र के रूप में देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (Forest Research Institute) में इस किताब को उन्होंने देखा। पुरानी लैटिन (Latin) भाषा की किताब में मलयालम भाषा में भी सभी पौधों के नाम देखकर वे हैरान हो गए। तभी उस किताब में एक पौधे के बारे में लिखी पंक्ति ने उन्हें हैरान कर दिया – “अगर इस पौधे को बांये पैर के अंगूठे पर रगड़ा जाए तो उस इंसान की दाईं आंख की रोशनी बढ़ जाती है।”

अब बात करते हैं 17वीं शताब्दी के उस माहौल की जिसमें होरटस मालाबारिकस का जन्म हुआ। इसके लेखक वैन रीड एक डच सैनिक थे। वनस्पति शास्त्र का कोई प्रशिक्षण न होने के बावजूद उन्होंने मालाबार क्षेत्र की वनस्पति पर काम किया। 17वीं शताब्दी के यूरोपीय विस्तार का आधार मसालों और दूसरी व्यापारिक चीजों से होने वाला आर्थिक मुनाफा था। 1663 में डच सैनिकों ने पूर्तगालियों से एक सैनिक कार्रवाई में कोचीन हासिल किया। किले के अंदर डच सेना ने मुख्यालय बनाया और केरल के दक्षिण पश्चिम तट मालाबार पर अपना कब्ज़ा किया। यहां के उष्णकटिबंधी वातावरण में मसालों, औषधीय पौधों और अन्य पौधों की पैदावार होती है। प्राचीन काल से ही ये जगह मसाले के व्यापारियों के लिए आकर्षण और मुनाफे का केंद्र रही है। इसी कारण काली मिर्च की इतनी मांग थी कि उसे ‘काला सोना’ भी कहा जाता था। होरटस मालाबारिकस के लिए वनस्पति संग्रह का काम वैन रीड ने अपनी यात्राओं के दौरान किया। वे अक्सर 200 लोगों के एक गुट को जहाज़ से छुट्टी देकर पौधे इकट्ठे करने जंगल में भेज देते थे। किताब के 12 खण्डों में गोवा से लेकर कन्याकुमारी तक के पौधों पर किया गया शोध उनकी आर्थिक और औषधीय उपयोगिता पर आधारित था।

वैन रीड ने 15-16 स्थानीय वैद्यों का एक समूह बनाया था जो कि पौधों की औषधीय गुणवत्ता की जांच करता था। इस काम में खासकर इट्टी अच्युदन नाम के वैद्य का काफी बड़ा योगदान कहा जाता है। होरटस मालाबारिकस में पौधों के विवरण में उसकी प्रजाति, पत्ते, फूल, फल, रंग, गंध, स्वाद और उनके व्यावहारिक मूल्य का वर्णन मलयालम में भी दिया गया है। किताब के 12 भागों में न सिर्फ औषधीय ज्ञान बल्कि 17वीं शताब्दी के मालाबार की सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों से जुड़ी महत्वूर्ण जानकारियां भी शामिल हैं। 17वीं शताब्दी में तकनीक का विकास नहीं हुआ था। लिखित सामग्री मलयालम में तांबे की प्लेट्स (Plates) पर अंकित की गई थी। इनसे ही बाद में प्रकाशन हुआ। जिन प्लेट्स पर रेखांकन अंकित किए गए हैं उनमें लैटिन, मलयालम और अरबी लिपियों का प्रयोग हुआ है।

वैन रीड का होरटस मालाबारिकस लिखने का एक कारण राजनीतिक भी था। उनके वरिष्ठ अधिकारी एडमिरल रिजक्लॉफ वोल्कर्ट्ज़ वैन गोएन्स बहुत इच्छुक थे कि कोलंबो (Columbo) को डच शासन की दूसरी पूर्वी राजधानी बनाया जाए। वैन रीड इसके खिलाफ थे और वे यह दर्जा कोचीन को दिलवाना चाहते थे। उनके द्वारा पेश की गई कोचीन की दवा, लकड़ी, और खाद्य पदार्थों की प्रचुरता की दलील उनके उच्चाधिकारियों की समझ में आ गई और कोचीन को डच साम्राज्य की दूसरी राजधानी बना दिया गया। तीन शताब्दी पुराने काम पर फिर से शोध शुरू करने में प्रो. मणिलाल के सामने बहुत सी चुनौतियां थीं। इनमें लैटिन सीखना सबसे मुश्किल था, वहीं रेखांकन के सहारे पौधों की पहचान करना भी खासा कठिन था। इतनी शताब्दियां गुज़र जाने के बाद जगहों के नाम भी बदल गए थे। मूल किताब में जिन स्थानों पर पेड़ होने की बात कही गई थी वहां अब वो पेड़ नहीं थे। ऐसे में प्रो. मणीलाल ने कसारगोड से लेकर त्रिवेंद्रम के उत्तरी सिरे तक लगभग 500 किलोमीटर की यात्रा करके 741 पौधे खोजे। 2003 में होरटस मालाबारिकस की 325वीं सालगिरह पर केरल विश्वविद्यालय ने किताब के 12 खण्डों के अंग्रेज़ी अनुवाद को प्रकाशित करने की अनुमति दी।

2006 में प्रो. मणिलाल को स्ट्रोक (Stroke) हो गया जिससे उनके शरीर का दाहिना हिस्सा ख़राब हो गया। तब उन्होंने हिम्मत बनाए रखते हुए अपने बायें हाथ से टाइपिंग (Typing) करके यह काम पूरा किया। प्रो. मणीलाल के इस भागीरथ प्रयास के लिए डच सरकार ने 1 मई 2012 को उन्हें ऑफीसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ ऑरेंज – नसाऊ (Officer of the Order of Orange - Nassau) से सम्मानित किया। भारत सरकार ने 2020 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा भी की।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2SjpeM2
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Hortus_Malabaricus
3. https://hortusmalabaricus.net/
4. https://www.livehistoryindia.com/snapshort-histories/2017/08/09/the-secrets-of-malabar
5. https://bit.ly/2vm49HX
6. https://www.livehistoryindia.com/snapshort-histories/2017/08/09/the-secrets-of-malabar
7. https://bit.ly/39qQP3D



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id