भारत के इतिहास में कई कथाओं का समावेश है। इन कथाओं में भगवान श्री कृष्ण की कथाएं या लीलाएं भी शामिल हैं। भगवान कृष्ण द्वारा रचित लीलाओं या प्रसंगों का उल्लेख कई हिंदू ग्रंथो में उपलब्ध है जिनमें प्रसिद्ध गोवर्धन पर्वत को उठाने का प्रसंग भी शामिल है। इस प्रसंग का गहरा अर्थ और नैतिक शिक्षा सभी को एक अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा देती है। सर्वप्रथम जानते हैं इसकी वास्तविक कहानी को।
भगवान कृष्ण के पालक पिता नंद तथा ब्रज गाँव के अन्य सभी लोग एक विशेष पूजा की तैयारी में लगे हुए थे। भगवान कृष्ण इस पूजा के पीछे छुपे हुए कारण को जानने हेतु बहुत उत्सुक थे। तब नंद महाराज ने कृष्ण को समझाया कि यह पूजा हर साल भगवान इंद्र को खुश करने के लिए की जाती है ताकि इंद्र आवश्यकतानुसार ब्रज के लोगों को बारिश प्रदान करते रहें और अपनी कृपा उन पर बनाये रखें। इस प्रकार गांववालों को अच्छी फसल भी प्राप्त हो पायेगी। कृष्ण कर्म में विश्वास करते थे। उन्होंने गांववासियों को समझाया कि उन्हें पूजा या यज्ञ के बजाय अपनी क्षमता के अनुसार खेती पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अपने मवेशियों की रक्षा करनी चाहिए। उनका विचार था कि व्यक्ति को परिणाम की चिंता किये बिना अपना कर्तव्य निभाते रहना चाहिए। कृष्ण द्वारा समझाये जाने पर गांव वालों ने पूजा नहीं करने का फैसला किया। इस बात से इंद्र देव नाराज़ हो गए और उन्होंने अपने इस अपमान का बदला लेने का फैसला किया। इंद्र ने गाँव को नष्ट करने के लिए भयंकर गर्जना के साथ मूसलाधार बारिश की ताकि बाढ़ के साथ पूरा गांव नष्ट हो जाये और ब्रजवासियों को सबक मिले। जब भयंकर बारिश और आंधी ने भूमि को तहस-नहस कर दिया तथा जमीन पानी के नीचे डूबने लगी तो सभी ब्रजवासी भयभीत और असहाय होकर भगवान कृष्ण के समक्ष मदद के लिए पहुंचे। भगवान कृष्ण ने इंद्र के इरादों को भांप कर अपनी छोटी सी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। सभी ग्रामीणों ने मवेशियों और अन्य सामान के साथ गोवर्धन पर्वत की सुरक्षित शरण ली। सात दिनों तक वे पहाड़ी के नीचे भयानक बारिश से सुरक्षित रहे तथा आश्चर्यजनक रूप से भूख या प्यास का कोई भी प्रभाव उन पर नहीं हुआ। कृष्ण की छोटी अंगुली पर पूरी तरह से संतुलित विशाल गोवर्धन पर्वत को देखकर वे भी चकित रह गए।
घटनाओं के क्रम से स्तब्ध राजा इंद्र के पास अब गर्जना और मूसलाधार बारिश को बंद करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। आकाश फिर से साफ हो गया और वृंदावन में सूरज चमकने लगा। सबको निडर होकर वापस भेजते हुए कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को वापस उसी स्थान पर रख दिया जहां पर वह था। चारों तरफ भगवान कृष्ण की जय-जयकार होने लगी और राजा इंद्र का अभिमान टुकड़ों में बिखर गया। शर्मिंदगी के साथ उन्होंने भगवान कृष्ण से माफी मांगी। दिव्य स्वरूप होने के नाते भगवान ने उन्हें क्षमा किया और उन्हें अपने धर्म और कर्तव्यों का अहसास कराया।
इस प्रसंग को कई चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया जिनमें भगवान कृष्ण अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाये हुए दिखाई देते हैं। किंतु इस प्रसंग को लेकर बनाये गये 1609 के चित्र में एक कोने पर ऐरावत हाथी पर सवार राजा इंद्र को भी दर्शाया गया है जो भगवान कृष्ण की लीलाओं को देखकर अचम्भित हो जाते हैं तथा अपनी करनी पर लज्जित होते हैं। यह चित्र 1609 में कलाकार साहिबदीन द्वारा बनाया गया था जिसे वर्तमान में लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम (British Museum) में रखा गया है। साहिबदीन राजस्थान में स्थित चित्रकला की मेवाड़ी शैली के एक भारतीय लघु चित्रकार थे। वे उस युग के प्रमुख चित्रकारों में से एक थे जिनका नाम आज भी प्रमुख चित्रकारों में शामिल है। भले ही वे मुसलमान थे लेकिन अपनी कला में उन्होंने महान हिंदू विषय वाली रचनाओं से कोई भेद नहीं रखा।
चित्र पर उकेरा गया यह प्रसंग सभी को यही सीख देता है कि अहंकार, क्रोध, गर्व और घृणा से जीवन में केवल कष्ट ही उत्पन्न होता है। किसी पर बल आज़मा कर या किसी की मजबूरी का फायदा उठाकर कोई सम्मान और प्रेम प्राप्त नहीं कर सकता। विनम्रता और ईमानदारी ही दो ऐसे गुण हैं जिससे सबका दिल जीता जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2XqdBqT
2. https://bit.ly/2NsaiuR
3. https://krishnabhumi.in/blog/the-story-of-shri-krishna-lifting-govardhan-hill/
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Sahibdin
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