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विश्व में चीन, अर्जेंटीना, संयुक्त राज्य अमेरिका, चिली, मैक्सिको, कंबोडिया, थाईलैंड इत्यादि जैसे कई देशों में आज भू-जल संदूषण एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। भारत में भी यह स्थिति अत्यंत संवेदनशील हो रही है, क्योंकि देश की अधिकांश जनता पीने के पानी के लिए भू-जल पर निर्भर है। चट्टानों और मिट्टी के माध्यम से रिसकर ज़मीन के भीतर एकत्रित हुए पानी को भू-जल कहा जाता है। जिसमें कुछ संदूषकों की मात्रा आवश्यकता से अधिक होती जा रही है, जो पीने योग्य पानी को प्रदूषित कर रहे हैं। इन संदूषकों में मुख्यतः आर्सेनिक (Arsenic), फ्लोराइड (Fluoride), नाइट्रेट (Nitrate) और आयरन (Iron) शामिल हैं, जो प्रकृति में भू-जनित हैं। अन्य पदार्थों में बैक्टीरिया (Bacteria), फॉस्फेट (Phosphate) और भारी धातु शामिल हैं, जो घरेलू नालियों, कृषि में प्रयोग होने वाले रसायनों और औद्योगिक प्रभाव सहित मानव गतिविधियों का परिणाम हैं।
2014-15 में भारत की प्राक्कलन समिति ने भूजल में उच्च आर्सेनिक सामग्री की समीक्षा की और उन्होंने पाया कि 10 राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम, मणिपुर और कर्नाटक के 68 जिले भूजल में उच्च आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है जो पीने के पानी के लिए हैंड पंप (Hand pump) या नलकूप पर निर्भर हैं। आर्सेनिक के संपर्क में आने से लोगों में त्वचा पर घाव, त्वचा का कैंसर (Skin Cancer), मूत्राशय, फेफड़े और हृदय संबंधी बीमारियों के साथ-साथ बच्चों की बौद्धिक क्षमता में भी कमी होने लगती है।
एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि उत्तर प्रदेश में लगभग 2.34 करोड़ लोग, भूजल में आर्सेनिक के उच्च स्तर से प्रभावित हैं। हालांकि रामपुर अब तक इससे सुरक्षित है, किंतु भू-जल की समस्या यहां भी उत्पन्न होने लगी है, जिसका विवरण हम अपनी पिछली पोस्ट (https://rampur.prarang.in/posts/3033/Rampur-needs-to-understand-ground-water-problems-and-be-prepared-for-the-future) में दे चुके हैं। राज्य की आबादी का लगभग 78% ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है और सिंचाई, पीने, खाना पकाने आदि के लिए भूजल पर निर्भर है । ग्रामीण इलाकों में आर्सेनिक के संपर्क में आने का जोखिम बहुत अधिक है, क्योंकि अधिकांश गांवों में पाइप (Pipe) के पानी की आपूर्ति की सुविधा उपलब्ध नहीं है। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र बलिया, बाराबंकी, गोरखपुर, गाजीपुर, गोंडा, फैजाबाद और लखीमपुर खीरी हैं। अधिकांश प्रभावित जिले गंगा, राप्ती और घाघरा नदियों के मैदानी क्षेत्रों में हैं।
राज्य से लिए गए 1,680 भूजल नमूनों पर आधारित टीईआरआई स्कूल ऑफ एडवांस स्टडीज़ (TERI School of Advanced Studies) के शोधकर्ताओं द्वारा एक संकट नक्शा बनाया गया है, जो प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के दीर्घकालिक जोखिम को कम करने में सहायक हो सकता है। चूंकि अधिकांश लोग अपने क्षेत्र में आर्सेनिक संदूषण की मात्रा से अनजान हैं, इसलिए लोगों में जल स्रोतों के परीक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
वर्तमान में पश्चिम बंगाल ने अपने भूजल को उपभोग के लायक बनाने की योजना पर उल्लेखनीय कार्य किया है, जिसके माध्यम से उत्तर प्रदेश भी राज्य में कुछ सुधार कर सकता है। पश्चिम बंगाल के 8 जिलों के 79 ब्लॉकों में भूजल में आर्सेनिक संदूषण का पता चला था। राज्य में आर्सेनिक से प्रभावित लोगों की संख्या में गिरावट लाने के लिए 2009 में, राज्य सरकार ने अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग (PHED) को आर्सेनिक निष्कासन इकाई के निर्माण, संचालन और रखरखाव का काम सौंपा। गांवों में, पंचायतों को जल वितरण को संभालने के लिए कहा गया।
50 पार्ट्स प्रति बिलियन (Parts Per Billion) आर्सेनिक से कम और 1 मिली ग्राम प्रति लीटर आयरन से कम वाले पानी, को बिना उपचार के सुरक्षित माना जाता है। इससे अधिक मात्रा में पानी को शुद्ध करने की आवश्यकता होती है। आर्सेनिक निष्कासन इकाई पानी से आर्सेनिक हटाने की सबसे प्रभावी विधि है, जिसके माध्यम से आर्सेनिक प्रभावित जल पीने योग्य हो जाता है। ऐसी एक इकाई की लागत लगभग 70 लाख रुपये है और चलने की लागत केवल 10 रुपये प्रति किलो लीटर है। इस तरह के साफ पानी में 10 पार्ट्स प्रति बिलियन से कम आर्सेनिक होता है, जो डब्ल्यूएचओ (WHO) और भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार सुरक्षित है।
पश्चिम बंगाल में, कई घरों में ऐसी इकाइयों के छोटे और सस्ते संस्करण भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जो ब्लीचिंग पाउडर (Bleaching Powder) और फिटकरी का उपयोग करते हैं। ब्लीचिंग पाउडर आर्सेनिक का ऑक्सीकरण (Oxidation) करता है और फिटकिरी जमावट एजेंट (Agent) के रूप में काम करती है। पानी को एक रेत के फिल्टर (Filter) से पारित किया जाता है, जो शेष आर्सेनिक को सोख लेता है। फ़िल्टर को हर तीन साल में एक बार बदलने की आवश्यकता होती है और यदि फ़िल्टर समाप्ति से पहले बदल दिए जाते हैं, तो ये बहुत प्रभावी होते हैं।
एक सरल विकल्प सिंगल स्टेज फिल्टर (Single stage filter) है, जिसे कोलकाता में अखिल भारतीय स्वच्छता और जन स्वास्थ्य संस्थान के स्वच्छता अभियान्त्रिकी विभाग द्वारा विकसित किया गया है। एक अन्य विधि में ब्लीचिंग पाउडर, एल्यूमीनियम सल्फेट (Aluminum sulphate) और सक्रिय एल्यूमिना (Alumina) का उपयोग करके पानी का उपचार किया जाता है। जहाँ पश्चिम बंगाल ने आर्सेनिक को नियंत्रित करने की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं, वहीं बिहार भी इस समस्या के प्रति जागरूक होते हुए योजनाएं बना रहा है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/District_Institute_of_Education_and_Training
2. https://www.dietdeoria.org/establishment
3. https://www.dietdeoria.org/training-centers
4. https://www.dietdeoria.org/contact-us-1