पवित्रता और स्वच्छता किसी भी समाज का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। सफाई में रहने वाले स्थान ही नहीं अपितु खुद के शरीर की स्वच्छता का अपना एक अलग ही महत्व है। यदि इस्लाम और हिन्दू परंपरा में सफाई आदि को देखा जाए तो ये दोनों काफी हद तक एक ही बात करते हैं तथा एक ही बिंदु पर जोर देते हैं और वो बिंदु है शारीरिक और मानसिक स्वच्छता।
हिन्दू समाज में गंगाष्टकम का एक महत्व है। पूजा करने वाला, एक ताम्बे के बर्तन (जिसे जलपात्र के नाम से भी जाना जाता है) के अन्दर जल रखकर मुँह, दन्त आदि धोता है और ईश्वर की उपासना भी उसी दौरान करते रहता है। इससे शरीर और मन की सारी अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं। आन्तारिक स्वच्छता शरीर की बाह्य स्वच्छता का एक संकेत है जो यह प्रदर्शित करता है कि मानव ने बाह्य शरीर के साथ ही साथ अपने अंतर्मन को भी स्वच्छ कर लिया है। ताम्बे का जलपात्र भी वैज्ञानिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अन्दर रखकर जल का सेवन करने से शरीर के अन्दर के कई रोगों का निवारण इससे हो जाता है।
वहीँ इस्लाम में भी इस परंपरा को देखा जा सकता। इस व्यवस्था को इस्लाम में वुडू नाम से जाना जाता है। वुडू शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ आतंरिक या मानसिक स्वच्छता को दर्शाता है। वुडू करने के बाद ही एक मुस्लिम अपने आप को प्रार्थना के लिए तैयार करता है। वुडू एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है, यह उन समस्त शरीर के अंगों को स्वच्छता प्रदान करता है जो कि खुले में रहते हैं और जिनपर कीटाणुओं का प्रभाव पड़ता है जैसे हाथ, मुँह, पैर, दन्त, नाक इत्यादि। इस्लाम में इसे 5 बार करने का प्रावधान है जो कि दिन की 5 प्रार्थनाओं से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि दोनों धर्मों में किस प्रकार से स्वच्छता की महत्ता है।
1.https://questionsonislam.com/question/what-are-wisdoms-behind-wudu-ablution-what-importance-organs-be-washed
2.https://en.wikisource.org/wiki/The_Sundhya,_or,_the_Daily_Prayers_of_the_Brahmins
3.https://en.wikisource.org/wiki/The_Sundhya,_or,_the_Daily_Prayers_of_the_Brahmins/Plate_2
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