रामपुर निवासियों, क्या आप जानते हैं कि, पादुका, भारत में जूते का एक प्राचीन रूप है। यह वैदिक काल से प्रचलन में हैं और इनमें एक पद और घुंडी के साथ तल्ला/तलवा शामिल हैं । यह घुंडी, पैर की बड़ी उंगली और अंगूठे के बीच स्थित होती है। इसे ऐतिहासिक रूप से, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में पहना जाता रहा है। पादुका, विभिन्न रूपों और सामग्रियों में मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, वे वास्तविक पैर या मछली के आकार में, लकड़ी, हाथी दांत और चांदी से बने होते हैं। तो चलिए, आज इस प्राचीन भारतीय पदत्राण और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से बात करते हैं। फिर हम, भारत में उनके विकास और सांस्कृतिक महत्व के बारे में भी बात करेंगे। उसके बाद, हम इनके निर्माण में प्रयुक्त विभिन्न सामग्रियों और इसकी प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे। अंत में, हम पूजा और अन्य अनुष्ठानों में, ब्राह्मण पादुकाओं के प्रतीकवाद और महत्व पर कुछ प्रकाश डालेंगे।
‘पादुका’ नाम, संस्कृत के ‘पद’ अर्थात – “पैर” और ‘का’ अर्थात – “छोटा” से लिया गया है। यह एक आधुनिक चप्पल की तरह दिखती है। लेकिन, इसमें मौजूद घुंडी द्वारा पैर को सुरक्षित किया जाता है, और आम तौर पर, पैर की उंगलियों और एड़ी के नीचे तलवों पर, एक लकड़ी द्वारा इसे उठाया जाता है।
योगिक दर्शन के अनुरूप, पादुका का मूल डिज़ाइन, पैर के नीचे नुकसान को कम करने व इसे पहनने वाले व्यक्ति के पृथ्वी पर पदचिह्न को कम करने के लिए था। जबकि, पादुका शब्द हिंदू देवताओं के पैरों के निशान को भी, संदर्भित करता है।
भारत में पादुका का इतिहास:
लगभग वैदिक काल के हिंदू धार्मिक ग्रंथों और साहित्य में पादुका का उल्लेख हैं। पादुका के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री, वैदिक समाज के भीतर एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा से भिन्न थी। उस अवधि के दौरान, उन्हें प्रतिष्ठित दहेज भी माना जाता था, जहां दुल्हन का परिवार, अपनी बेटी के साथ जटिल रूप से सजी हुई पादुकाएं, उसके नए घर में भेजता था।
पूरे भारतीय महाद्वीप में देखी जाने वाली एक परंपरा, जिसका आज भी पालन किया जाता है, वह, अपने घर और पवित्र धार्मिक स्थानों में प्रवेश करने से पहले, अपने जूते उतारना है। इस रिवाज का कारण, भगवान के घर में स्वच्छता बनाए रखने और विनम्रता दिखाने के विचार से आता है। सबसे लंबे समय तक जूते को, धन का प्रतीक माना जाता था, और जब आप उन्हें उतारते हैं, तो आप अपनी जड़ से जुड़ रहे होते हैं, और अपनी विनम्रता दिखा रहे होते हैं।
भारत की संस्कृति में पादुकाओं का इतना महत्व क्यों है?
पादुकाएं, आमतौर पर भारतीय तपस्वी, भिक्षुक, या साधुओं से जुड़ी होती हैं। वे गर्म मौसम , खुले और हवादार भारतीय जलवायु के लिए आदर्श रूप से उपयुक्त हैं।
हिंदू धर्म में, पादुका का महत्व, रामायण से जुड़ा है, जहां भरत (भगवान राम के भाई), भगवान राम से पवित्र और शुद्ध पादुका की मांग करते हैं। उन्हें, राम की अनुपस्थिति में सिंहासन पर रखा गया था। जब तक राम 14 साल के वनवास से वापस नहीं आए, तब तक, भरत द्वारा उनकी सार्वभौमिक रूप से पूजा की जाती थी।
पश्चिम बंगाल में, एक पुरातात्विक उत्खनन के दौरान, 200 ईसा पूर्व के ऊंची एड़ी वाले जूते और पादुका जैसी पुष्प आकृतियां मिलीं हैं। चोल साम्राज्य काल (11 से 12वीं शताब्दी) में, भगवान राम की पादुकाओं की पूजा की जाती थी। महाव्युत्पत्ति (800 से 815 ईसा पूर्व) में, पादुकाओं सहित विभिन्न जूतों का उल्लेख ‘पादवेस्तानिका’ के रूप में किया गया है। साथ ही, अजंता गुफ़ा चित्रों (4 से 5वीं शताब्दी) में भी लोगों को पादुका और जूते पहने हुए चित्रित किया गया है।
6वीं और 7वीं शताब्दी में, हर्षवर्धन राजा के दरबार में‘बाना’ नामक, एक प्रसिद्ध कवि ने, हिंदू व्यापारियों की पोशाक का वर्णन किया है, जो मुख्य रूप से पैरों में पादुका पहनते थे।
पादुकाएं कैसे बनाई गईं थीं?
पादुका में, तल्ले/तलवे को पैर से चिपकाए रखने के लिए, किसी भी प्रकार की पट्टियां नहीं होती हैं। इसलिए, इन्हें पहनने वाले व्यक्ति को चलते समय, इसे अपनी जगह पर रखने के लिए, पैर की दो उंगलियों द्वारा सक्रिय रूप से, घुंडी को पकड़ना पड़ता है। पैरों के निशान के आकार में, दो संकीर्ण और घुमावदार पट्टियां, इस सिद्धांत को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन विशिष्ट है कि, हिंदू और जैन धर्मों के संत अनुयायियों द्वारा अपनाई जाने वाली अहिंसा का उल्लंघन, कीड़ों और वनस्पतियों को आकस्मिक रूप से रौंदने से नहीं होता है।
हाथीदांत से बनी पादुकाएं, राजघरानों और संतों के बीच लोकप्रिय थीं। हिंदू धार्मिक लोकाचार की आवश्यकता है कि हाथीदांत को उन हाथियों से लिया जाए, जो स्वाभाविक रूप से मर गए हों या वे पालतू हाथियों से काटे गए हों । इस तरीके से, क्रूरता से बचा जा सकता है। उच्च सामाजिक स्थिति वाले लोग, बढ़िया सागौन, आबनूस और चंदन से बनी और हाथी दांत या तार से जड़ी हुई पादुका पहनते हैं।
विशेष अवसरों पर पहनी जाने वाली अन्य प्रकार की पादुकाएं, चांदी या लकड़ी से बनी होती हैं। वे कभी–कभी चांदी की प्लेटों से ढकी होती हैं, और कभी-कभी, चलने पर बजने वाली घंटियों से सजायी जाती हैं। अनुष्ठान और औपचारिक उपयोग के लिए, कांस्य और पीतल की पादुकाएं भी पहनी जा सकती हैं।
लकड़ी की पादुकाओं की एक अनूठी जोड़ी में, उनके पैर के अंगूठे, हाथी दांत से बने, कमल के फूलों से जड़े हुए हैं, और उन्हें सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है। वे समय सूचक के आकार में, या नक्काशीदार पैर की उंगलियों के साथ भी, बनाए जाते हैं।
अनुष्ठानिक पहनावे के रूप में उपयोग किए जाने वाले, अठारहवीं शताब्दी के जूते, “लोहे की नुकीली कीलों वाली लकड़ी” से बने पाए गए हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि, इनका उपयोग, पहनने वाले को पीड़ा पहुंचाने के लिए किया गया था, ताकि, वह धार्मिक रूप से दर्द सहन करने के प्रति, अपने विश्वास को प्रदर्शित कर सके।
पूजा में ब्राह्मण पादुका का प्रतीक और महत्व:
ब्राह्मण पादुकाएं, प्रतीकात्मकता से समृद्ध हैं:
•गुरु की उपस्थिति: पादुकाएं गुरु की उपस्थिति का प्रतीक हैं, और उनकी पूजा करके, भक्त, आशीर्वाद, मार्गदर्शन और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।
•भक्ति और समर्पण: पादुकाओं को वेदी पर रखना, ईश्वर और गुरु की शिक्षाओं के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह भक्ति और विनम्रता का कार्य है।
•आध्यात्मिक यात्रा: पादुका, किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति, जीवन में गुरु के नक्शेकदम पर चलता है, वैसे ही वो अपने आध्यात्मिक पथ पर पादुकाओं के नक्शेकदम पर चलता है ।
•सुरक्षा: माना जाता है कि पादुकाएं, भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा में नकारात्मक ऊर्जाओं और बाधाओं से बचाती हैं।
ब्राह्मण पादुकाओं के साथ पूजा करने में, कई अनुष्ठान शामिल होते हैं:
•स्थानन: पादुकाएं आम तौर पर, वेदी या निर्दिष्ट पवित्र स्थान पर रखी जाती हैं। उन्हें अक्सर फूलों, धूप और पवित्र वस्तुओं से सजाया जाता है।
•मंत्र: पूजा करते समय, भक्त अक्सर ही, गुरु या किसी विशेष देवता से संबंधित मंत्रों का पाठ करते हैं।
•प्रसाद: भक्त अपनी भक्ति के संकेत के रूप में, पादुकाओं को फल, मिठाइयां और अन्य प्रतीकात्मक प्रसाद चढ़ाते हैं।
•प्रार्थनाएं: पूजा में गुरुओं का आशीर्वाद और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए, हार्दिक प्रार्थना और ध्यान शामिल होता है।
हिंदू अनुष्ठानों में ब्राह्मण पादुकाओं का महत्व:
ब्राह्मण पादुकाएं, हिंदू पूजा में एक विशेष स्थान रखती हैं, जो गुरु की दिव्य उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये, भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन करती हैं। पादुकाएं, भक्ति, समर्पण और सुरक्षा के शक्तिशाली प्रतीक हैं। पादुकाओं के साथ पूजा करके, भक्त परमात्मा के साथ, अपना संबंध मज़बूत करते हैं, और अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शकों के ज्ञान में प्रेरणा पाते हैं। ब्राह्मण पादुकाओं का महत्व, हिंदू पूजा का एक अभिन्न अंग बना हुआ है, जो भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों के बीच मौजूद खाई को पाटता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4fxhd683
https://tinyurl.com/3wkahm22
https://tinyurl.com/3pvmvvzj
https://tinyurl.com/43mv2yam
https://tinyurl.com/bdz9abh8
चित्र संदर्भ
1. ओड़िशा राज्य संग्रहालय, भुवनेश्वर में मूर्तिकला पर पादुका के विवरण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
2. पादुका पहनी हुए महिला की आकृति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
3. संतों और भिक्षुकों द्वारा पहनी जाने वाली साधारण पादुकाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सच्चिदानंद उत्सव के दौरान किये गए पादुका पूजन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. मछली के आकार की पादुकाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)