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विश्व फ़ार्मेसिस्ट दिवस पर लखनऊ में फ़ार्मेसियों की तकनीकी प्रगति को जानिए !

लखनऊ

 25-09-2024 09:21 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्।
भावार्थ: निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
लखनऊ में संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences) और अपोलो अस्पताल (Apollo Hospital) जैसे कई नामी अस्पताल हैं। यहां पर बड़े-बड़े अस्पतालों से निराश हो चुके मरीज़ों को भी पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने घरों को लौटते हुए देखा जा सकता है। हालांकि जब बात अच्छे इलाज की आती है, तो हमारा सारा ध्यान अस्पताल द्वारा मरीज़ों को प्रदान की जा रही आधुनिक सेवाओं और वहां के जाने-माने चिकित्सकों पर ही अटक जाता है। बहुत कम अवसरों पर ही हम अस्पताल के आसपास चौबीसों घंटे खुली रहने वाली फ़ार्मेसी (Pharmacy) की ओर ध्यान दे पाते हैं। लेकिन वास्तव में फ़ार्मेसी हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की रीढ़ के रूप में हर समय तत्पर रहती है। इसलिए आज विश्व फ़ार्मासिस्ट दिवस (World Pharmacist Day) के दिन, हमारा यह लेख स्वास्थ्य सेवा में फ़ार्मेसी की भूमिका को समझने पर समर्पित रहेगा। आज हम देखेंगे कि पिछले कुछ दशकों के दरमियान हमारी फ़ार्मेसी प्रणाली में कौन-कौन सी तकनीकी तब्दीलियां हो चुकी हैं। इसके अलावा, आज हम भारतीय दवा उद्योग की वर्तमान स्थिति के बारे में भी जानेंगे। अंत में हम भारत में दवा उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी प्रकाश डालेंगे।
सबसे पहले हम बिंदुवार रूप से समझेंगे कि, हमारी स्वास्थ्य प्रणाली में फ़ार्मेसी (Pharmacy) क्या भूमिका अदा कर रही है?
नुस्खे (Prescriptions) की प्रक्रिया समझना:
किसी भी दवा का सेवन करने से पहले हमें उस दवा से संबंधित सभी सावधानियों यानी नुस्खों से भली भांति परिचित होना चाहिए। यहीं पर फ़ार्मासिस्ट (Pharmacist), हर नुस्खे की वैधता और सुरक्षा की अच्छी तरह से जांच करते हैं। मरीज़ को भी नुस्खा देने से पहले, वे उसकी दवा से संबंधित सभी जानकारियों का सावधानी से अवलोकन करते हैं।
मरीज़ों की देखभाल और क्लिनिकल फ़ार्मेसी (Clinical Pharmacy): फ़ार्मासिस्ट को मरीज़ को दी जाने वाली दवा के इतिहास का पूरा पता होता है। वह मरीज़ को दी जाने वाली प्रत्येक दवाई की प्रतिक्रिया से भली भांति परिचित होते हैं। फ़ार्मासिस्ट ही मरीज़ को बताते हैं कि दवा कैसे लेनी है और इसके इस्तेमाल में क्या सावधानियाँ बरतनी हैं।
दवा के उपयोग की निगरानी: फ़ार्मासिस्ट, दवाओं के इस्तेमाल के बाद मरीज़ की स्थिति पर भी पैनी नज़र रखते हैं। वह यह भी देखते हैं कि कहीं दवा से कोई हानिकारक प्रतिक्रिया तो नहीं हो रही है।
पारंपरिक और वैकल्पिक दवाएँ: कुछ देशों में, फ़ार्मासिस्ट पारंपरिक दवाएँ और होम्योपैथिक नुस्खे भी देते हैं।
छोटी बीमारियों का समाधान: लोग अक्सर छोटे-मोटे लक्षणों या बीमारियों के बारे में फ़ार्मासिस्ट से ही सलाह लेते हैं। अगर ज़रूरी हो, तो वे इन सवालों को डॉक्टर के पास भेज देते हैं।
स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और जनता को सूचित करना: फ़ार्मासिस्ट, सभी दवाओं, खासकर नई दवाओं के बारे में ज़रूरी जानकारियां इकट्ठा करते हैं। समय-समय पर वह उन दवाओं को अपडेट भी करते हैं, ताकि वे लोगों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों (Healthcare Professionals) को सही दवा और जानकारी दे सकें।
हाल के वर्षों में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में तकनीकी विकास के कारण फ़ार्मेसी क्षेत्र में भी कई बड़े बदलाव आए हैं। आधुनिक तकनीकें न केवल दवाओं के वितरण और प्रबंधन को बेहतर बना रही हैं, साथ ही रोगियों की सुरक्षा और देखभाल में भी सुधार कर रही हैं।
आइए, फ़ार्मेसी क्षेत्र की कुछ प्रमुख तकनीकी उपलब्धियों पर नज़र डालते हैं:
स्वचालित वितरण इकाइयाँ/कैबिनेट (Automated Dispensing Units/Cabinets):
स्वचालित वितरण कैबिनेट, (Automated Dispensing Cabinets) दवाओं के भंडारण और वितरण के लिए प्रयोग होने वाले विशेष उपकरण होते हैं। इनका उपयोग अस्पतालों में किया जाता है। इस तरह के कैबिनेट को रोगियों की देखभाल स्थान के निकट रखा जाता है, जहाँ पर इनमें, दवाओं को संग्रहीत किया जाता है। इस प्रकार दवा वितरण की प्रक्रिया, तेज़ और सुरक्षित हो जाती है। स्वचालित वितरण इकाइयाँ, दवाओं के वितरण को ट्रैक और नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इस तरह से मानवीय गलतियों की संभावना कम होती है। इनके प्रचलन के बाद, फ़ार्मासिस्टों को भी रोगियों के साथ अधिक समय बिताने का अवसर मिलने लगा है।
प्रिस्क्रिप्शन ड्रग मॉनिटरिंग प्रोग्राम (Prescription Drug Monitoring Program): पी डी एम पी (PDMP) एक ऐसी प्रणाली है, जिसकी मदद से प्रत्येक राज्य में नियंत्रित पदार्थों (Controlled Substances) के नुस्खों की जानकारी को एकत्र किया जाता है। प्रिस्क्रिप्शन ड्रग मॉनिटरिंग कार्यक्रम, डॉक्टरों और फ़ार्मासिस्टों को रोगियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है। कई राज्यों में, पी डी एम पी डेटाबेस (PDMP Database) की जांच करना वैकल्पिक है। लेकिन कई राज्यों में दृढ़ता से इसका पालन किया जाता है। यह प्रणाली दवाओं के दुरुपयोग को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मेडिकेशन थेरेपी मैनेजमेंट (Medication Therapy Management): एम टी एम (MTM) एक ऑनलाइन सेवा है जो मरीज़ों की दवाओं के प्रबंधन में मदद करती है। इसमें फ़ार्मासिस्ट, विभिन्न डॉक्टरों द्वारा दी गई दवाओं की जाँच करते हैं। इन दवाओं में ओवर-द-काउंटर दवाएं (Over-the-Counter Drugs) और हर्बल उत्पाद (Herbal Products) भी शामिल होते हैं। इस सेवा का मुख्य उद्देश्य दवा से संबंधित समस्याओं जैसे कि गलत दवा का उपयोग, आवश्यक दवाओं का सेवन और डुप्लिकेट दवाओं की पहचान करना तथा उन्हें हल करना है।
मेडिकेशन रिमाइंडर डिवाइस: आज चिकित्सा क्षेत्र में मरीज़ों को समय-समय पर अपनी दवा लेने की याद दिलाने के लिए कई प्रकार के उपकरण उपलब्ध हैं। ये उपकरण सही खुराक लेने के बाद लॉक हो सकते हैं, अलार्म (Alarm) बजा सकते हैं, या खुराक का समय होने पर लाइट फ्लैश (Light Flash) कर सकते हैं। कुछ उपकरणों में एक डैशबोर्ड (Dashboard) भी होता है, जो मरीज़ को उसकी अगली निर्धारित खुराक दिखाता है। इस प्रकार मरीज़ को दवा देने में कोई चूक नहीं होती।
इन तकनीकी उपलब्धियों के बाद, भारत में न केवल फ़ार्मेसीक्षेत्र की कार्यकुशलता में सुधार हुआ है, बल्कि रोगियों की देखभाल और सुरक्षा में भी वृद्धि हुई है। आज भारतीय दवा उद्योग का कारोबार बढ़कर 50 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। भारत, 200 से अधिक देशों को दवाइयों का निर्यात करता है। भारत अफ़्रीका की जेनेरिक दवा (Generic Drugs) की 50% से अधिक ज़रूरतों को पूरा करता है। अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग 40% जेनेरिक दवाएँ और ब्रिटेन में इस्तेमाल होने वाली लगभग 25% दवाएँ भी भारत ही उपलब्ध कराता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर के लगभग 60% टीके भारत में ही बनते हैं। भारत डी पी टी (DPT), बी सी जी (BCG) और खसरे के टीकों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। डब्ल्यू एच ओ (WHO) के आवश्यक टीकाकरण कार्यक्रम (Vaccination Program) में इस्तेमाल होने वाले 70% टीके, भारत से ही मुहईया कराए जाते हैं।
- भारतीय दवा उद्योग की चुनौतियाँ
हालांकि भारतीय चिकित्सा उद्योग की कामयाबी के साथ साथ, आज भारतीय दवा उद्योग के सामने चुनौतियाँ भी हैं।
इनमें शामिल हैं:

यू.एस.एफ.डी.ए. निरीक्षणों (USFDA Inspections) में वृद्धि: हाल के वर्षों में यू.एस. खाद्य एवं औषधि प्रशासन (USFDA) ने भारतीय दवा क्षेत्र पर निगरानी के दायरे को बढ़ा दिया है। 2018 में, भारतीय दवा कंपनियों पर 174 निरीक्षण किए गए। अमेरिका को दवाएँ आपूर्ति कराने वाली कुल विनिर्माण इकाइयों में भारत का हिस्सा 12% है। साथ ही भारतीय फ़र्मों के लिए संक्षिप्त नई दवा आवेदन (ANDA) अनुमोदनों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। 2013 और 2018 के बीच, 60 ड्रग गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) चेतावनी पत्र जारी किए गए। इनमें से अकेले 2018 में 14 चेतावनी पत्र जारी किए गए। इसीलिए आज भारत के दवा उद्योग को चल रही अनुपालन चुनौतियों के कारण जांच का सामना करना पड़ रहा है।
दवा मूल्य निर्धारण पर सरकारी विनियमन: भारत सरकार, दवा मूल्य निर्धारण पर सख्त नियंत्रण रखती है। इस प्रकार, सरकार यह सुनिश्चित करती है कि नागरिकों को सस्ती दवाएँ उपलब्ध हों। हालांकि, यह विनियमन दवा कंपनियों को नए प्रयोग करने से रोकता है। अनुसंधान और विकास (R&D) पर अधिक खर्च किए बिना, कंपनियां नई दवा की खोज और नवाचार के लिए पर्याप्त धन आवंटित करने से हिचक रही हैं।
नकली दवाओं का प्रचलन: भारत के घरेलू दवा बाज़ार में लगभग 25% दवाइयां, नकली हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया की 35% नकली दवाएँ भारत में बनती हैं। यह आँकड़ा चिंताजनक है और एक बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य जोख़िम को उजागर करता है। साथ ही यह दवा क्षेत्र की अखंडता को कमज़ोर करता है।
कुशल कार्यबल की कमी: हर साल, भारतीय नौकरी बाज़ार में लगभग 400,000 फ़ार्मेसी स्नातक प्रवेश करते हैं। इनमें बी. फ़ार्मा (B.Pharm), एम. फ़ार्मा (M.Pharm), फ़ार्म. डी. (Pharm.D) और फ़ार्मास्युटिकल एम बी ए (Pharmaceutical MBA) की डिग्री वाले लोग शामिल हैं। हालाँकि आज भी शैक्षणिक प्रशिक्षण और वास्तविक उद्योग की ज़रूरतों के बीच एक बड़ा अंतर है। इस प्रकार, हमारे पास उपलब्ध प्रतिभा का उपयोग भी कम हो पाता है।
सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients) के लिए चीन पर निर्भरता: आज भी भारतीय दवा उद्योग, अपनी ए पी आई आवश्यकताओं के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भारत की लगभग 80% ए पी आई ज़रूरतें, चीनी आपूर्तिकर्ताओं द्वारा पूरी की जाती हैं। भविष्य में कोई भी भू-राजनीतिक तनाव या नीतिगत परिवर्तनों के कारण ए पी आई मूल्य निर्धारण में उतार-चढ़ाव, भारत में दवा की आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर सकता है।
इस तरह की कई चुनौतियाँ भारत के फ़ार्मास्युटिकल क्षेत्र में रणनीतिक सुधारों और पहलों की आवश्यकता को उजागर करती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/27xbaro5
https://tinyurl.com/2y7zu87d
https://tinyurl.com/yz4lueml
https://tinyurl.com/yxb7x38y

चित्र संदर्भ
1. अस्पताल में अपनी माँ का हाथ पकड़ी हुई महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. एक सिख फ़ार्मेसिस्ट को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
3. दवाइयों के साथ प्रयोग करती एक महिला फ़ार्मेसिस्ट को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
4. दवाइयों को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)


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