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हमारे शहर रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में से एक है। इसमें अरबी, फ़ारसी, पश्तो, संस्कृत, उर्दू, हिंदी और तुर्की भाषाओं की 17000 पांडुलिपियां संग्रहित हैं। इसके अलावा, इसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं के सचित्र व लिखित ताड़ के पत्तों का बेहतरीन संग्रह है। विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में, लगभग 60,000 मुद्रित पुस्तकों का संग्रह भी यहां उपलब्ध है। तो, इस लेख में हम रज़ा पुस्तकालय में पाई गई, कुछ सचित्र और दुर्लभ पांडुलिपियों पर एक नज़र डालेंगे। हम मध्यकालीन युग(12वीं और 17वीं शताब्दी के बीच) की भारतीय चित्रकला, और इस युग के दौरान भारत में मौजूद चित्रकला की विभिन्न शैलियों के बारे में भी चर्चा करेंगे। इसके अलावा, हम मुग़ल पांडुलिपि चित्रों, समाज पर उनके प्रभाव और विरासत के बारे में बात करेंगे।
रज़ा लाइब्रेरी में संग्रहित कुछ दुर्लभ और सचित्र पांडुलिपियां निम्नलिखित हैं:
1.) दीवान-ए-हाफ़िज़: 16वीं शताब्दी के दौरान, हाफ़िज़ शिराज़ी द्वारा निर्मित, यह 26 सेंटीमीटर गुणा 19 सेंटीमीटर की पांडुलिपि फारस भाषा की नस्तालिक लिपि में लिखी गई है। इसमें दीवान के दृश्य को दर्शाया गया है, जो अकबर के शाही दरबार में एक बैठक है।
2.) रामायण: सुमीरचंद द्वारा फ़ारसी में अनुवादित, रामायण की यह सचित्र पांडुलिपि, 1715 ईस्वी में बनाई गई थी और इसका आकार 33 सेंटीमीटर गुणा 22 सेंटीमीटर है। यह भी फ़ारसी भाषा की नस्तालिक लिपि में लिखी गई है।
3.) अल-कुरानुलमजीद: 7वीं शताब्दी के दौरान अरबी भाषा की कुफिक लिपि में, चर्मपत्र पर लिखी गई, यह 28.7 सेंटीमीटर गुणा 20.2 सेंटीमीटर पांडुलिपि, कुरान की एक अमूल्य प्रति के रूप में कार्य करती है।
4.) श्रीमद्भगवतपुराणम: यह 18वीं शताब्दी की 18 सेंटीमीटर गुणा 47 सेंटीमीटर के आकार की पांडुलिपि है।
प्राचीन काल से ही विश्व और भारत में चित्रकला महत्वपूर्ण रही है। भारत में चित्रकला का इतिहास भी काफी रोमांचक है। दरअसल, मध्यकालीन भारत में चित्रकला की निम्नलिखित प्रसिद्ध शैलियां थी:
•मुग़ल शैली: भारतीय चित्रकला के इतिहास में, मुग़ल चित्रकलाशैली की स्थापना को, एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। मुग़ल चित्रकला शैली की शुरुआत 1560 ईसवी में, अकबर के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना के साथ हुई थी। उनके शासनकाल की शुरुआत में, दो फ़ारसी उस्ताद– मीर सैय्यद अली और अब्दुलसमद खान, जो पहले हुमायूं के लिए काम करते थे, के निर्देशन में, एक पेंटिंग स्टूडियो की स्थापना की गई थी । फ़ारसी उस्तादों के साथ काम करने के लिए, पूरे भारत से बड़ी संख्या में भारतीय कलाकारों को सूचीबद्ध किया गया था। फ़ारसी चित्रकला की सफ़ाविद शैली और मूल भारतीय चित्रकला शैली सामंजस्यपूर्ण तरीके से, एक साथ आकर मुग़ल शैली बनी।
•राजस्थानी शैली: अकबर के कलाकारों ने, भारतीय कलाकारों को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने मुग़लों के शाही और रोमांचक जीवन से प्रेरित एक नई विशिष्ट शैली में पेंटिंग बनाईं। राजपूत या राजस्थानी लघुचित्र भारतीय कलाकारों द्वारा बनाई गई लघुचित्र की एक शैली है। इस अवधि के दौरान, चित्रकला की अन्य शैलियां भी उभरी। इनमें मेवाड़ (उदयपुर), बूंदी, कोटा, मारवाड़ (जोधपुर), बीकानेर, जयपुर और किशनगढ़ आदि शैलियां शामिल हैं।
•दक्कन शैली: ये पेटिंग दक्कन सल्तनत की मुस्लिम राजधानियों में बनाई गई थीं, जो मध्य भारत के दक्कन क्षेत्र में 1520 तक बहमनी सल्तनत के भंग के बाद उभरी थीं। उनमें बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर, बीदर और बरार सल्तनत शामिल थे। सोलहवीं शताब्दी के अंत से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक,इस शैली में व्यापक रूप से चित्र बनाए गए। जबकि, अठारहवीं शताब्दी के मध्य में इसमें एक प्रकार का पुनरुद्धार हुआ, जो उस समय तक हैदराबाद पर केंद्रित था। दक्कन पेंटिंग प्रारंभिक मुग़लकला से बेहतर थी।यह रंग की प्रतिभा, उनकी रचना और कलात्मकता व विलासिता के मामले में अनूठी थी। जबकि, इस शैली में छोटे सिर वाली लंबी महिलाओं को साड़ी पहने हुए चित्रित करना शामिल हैं। हालांकि, कई शाही दक्कनी चित्र मौजूद हैं, लेकिन, वे अपने मुग़ल समकक्षों का सटीक चित्रण नहीं करते हैं।
•मधुबनी या मिथिला शैली: इस शैली का नाम मिथिला, प्राचीन विदेह और माता सीता की जन्मस्थल से लिया गया है। माना जाता है कि, औपचारिक अवसरों, विशेषकर शादियों के लिए, इस क्षेत्र की महिलाएं सदियों से अपने मिट्टी के घरों की दीवारों पर आकृतियां और पैटर्न बनाती रही हैं। इस क्षेत्र के लोग इस कला की उत्पत्ति उस समय का मानते हैं, जब राजकुमारी सीता का विवाह भगवान राम से होता है। ये पेंटिंग, जो अपने ज्वलंत रंगों के लिए जानी जाती हैं, मुख्य रूप से घर के तीन क्षेत्रों में पाई जाती हैं: मध्य या बाहरी आंगन, पूर्वी भाग या देवी काली का निवास स्थान और दक्षिणी कमरा। जबकि, बाहरी केंद्रीय प्रांगण को कई सशस्त्र देवताओं और जानवरों के साथ-साथ, अन्य चित्रों को पानी के बर्तन या अनाज बीनने वाली महिलाओं की छवियों से सजाया गया है।
एक तरफ, मुग़ल पांडुलिपि चित्रों में फ़ारस(वर्तमान ईरान – Iran) और इटली(Italy) से आयातित अच्छी गुणवत्ता वाले कागज़ के साथ-साथ, दुर्लभ और महंगे खनिजों से प्राप्त रंगों का उपयोग किया गया था। इसकी शैली और विषयवस्तु में, मुग़ल लघु चित्रकला के समकालिक प्रभाव शामिल थे। फ़ारसी लघुचित्रों, दक्षिण एशिया में पहले से मौजूद पांडुलिपि चित्रों और यूरोपीय पुनर्जागरण छवियों जैसी विविध शैलियों से वे प्रेरित थे। इन चित्रों ने ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, कहानीकारों के लिए दृश्य सहायता, महत्वपूर्ण साहित्यिक ग्रंथों के लिए चित्रण, अनुष्ठान वस्तुओं, शास्त्र और वैज्ञानिक साहित्य में काम किया। जैसे-जैसे उपमहाद्वीप में मुग़लों की शक्ति और प्रभाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे दक्षिण एशिया में कई छोटे क्षेत्रों के लिए, इस चित्रकला शैली की लोकप्रियता और आकांक्षात्मक मूल्य भी बढ़ा।
इसके परिणामस्वरूप, मुग़ल पांडुलिपि चित्रों को विद्वान दो अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं: पहली, शाही मुग़ल पेंटिंग, जिसे मुग़ल चित्रालय द्वारा निष्पादित और दरबार द्वारा कमीशन किया गया था, और दूसरी, मुग़ल पेंटिंग का एक उप-शाही या लोकप्रिय रूप, जिसे शाही संरक्षण के बिना छोटे चित्रालयों में बनाया गया था। इन शैलियों के बीच का अंतर चित्रों की विषय वस्तु, शैली की जटिलता और प्रकृतिवाद और उपयोग की गई सामग्रियों की गुणवत्ता में दिखाई देता है। जबकि, इनकी समानताएं पुराने और अधिक प्रशंसित शाही चित्रालय द्वारा निर्धारित मानकों से उत्पन्न होती हैं।
अकबर के शासनकाल के दौरान शाही चित्रालय का आकार, 1557 में लगभग तीस कलाकारों से बढ़कर 1590 के दशक में सौ से अधिक हो गया। और, इसमें चित्रकार, रंगकर्मी, सुलेखक, पुस्तक जिल्दसाज़ और अन्य विशेषज्ञ शामिल थे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/daetrdyz
https://tinyurl.com/4bhfhfne
https://tinyurl.com/55awrf3h
चित्र संदर्भ
1. रज़ा पुस्तकालय और बहादुर शाह ज़फ़र के चित्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. रज़ा लाइब्रेरी में संग्रहित पांडुलिपि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मुग़ल कालीन पेंटिंग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. एक तोता हाथ में लिए महिला की पेंटिंग को दर्शाता एक चित्र (wikimedia)
5. दक्कन शैली की पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. मधुबनी या मिथिला शैली की पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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