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प्रसाद, कई धार्मिक परंपराओं में अराध्य देवताओं को चढ़ाए जाने वाला एक विशेष अर्पण होता है, जिसका गहरा महत्व एवं अर्थ होता है। यह सिर्फ भोजन नहीं है; इसे देवताओं का पवित्र उपहार माना जाता है। प्रसाद की अवधारणा सरल होते हुए भी बहुत गहन है, और भक्तों के जीवन पर इसका गहरा प्रभाव होता है। प्रसाद अक्सर मंदिरों और अन्य पूजा स्थलों में अराध्य के प्रति कृतज्ञता और भक्ति के प्रतीक के रूप में अर्पित किया जाता है। इस दिव्यता को महसूस करने के लिए आइए देखते हैं ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद।
जगन्नाथ मंदिर भक्ति, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इस भव्य मंदिर के केंद्र में “महाप्रसाद” की परंपरा है, जो एक पाक कला मात्र से कहीं ऊपर है। महाप्रसाद, भगवान जगन्नाथ का आशीर्वादित अर्पण, विश्वभर में लाखों भक्तों के हृदय में एक पूजनीय स्थान रखता है। महाप्रसाद को 'अन्न ब्रह्म' के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है 'भोजन ही भगवान है'। मंदिर के दो मुख्य महाप्रसाद हैं - संकुड़ी और सुखिला। आइए इसे और गहराई से जानें, साथ ही हम मंदिर के महाप्रसाद की किवदंती और जगन्नाथ मंदिर में प्रसादम बनाने की प्रक्रिया को भी देखेंगे।
जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा का महाप्रसाद
महाप्रसाद दो प्रकार का होता है। एक “संकुड़ी” महाप्रसाद और दूसरा “सुखिला” महाप्रसाद। दोनों प्रकार के महाप्रसाद भव्य जगन्नाथ मंदिर के आनंद बाजार में विक्रय के लिए उपलब्ध होते हैं।
संकुड़ी महाप्रसाद में सादा चावल, घी चावल, मिश्रित चावल, जीरा और हींग-अदरक चावल, नमक के चावल, मीठी दाल, सादी दाल सब्जियों के साथ, विभिन्न प्रकार की मिश्रित सब्जियों की कढ़ी, साग भजा, खट्टा, खिचड़ी आदि जैसे भोग शामिल हैं। ये सभी भोग भगवान को अनुष्ठान के दौरान अर्पित किए जाते हैं। कहा जाता है कि हर दिन पूजा के समय भगवान को 56 प्रकार (छप्पन भोग) के प्रसाद अर्पित किए जाते हैं और ये सभी मंदिर के रसोईघर में तैयार किए जाते हैं। इन प्रसादों को बनाकर सभी भक्तों के लिये आनंद बाजार में बेचा जाता है। इस प्रक्रिया में ‘सुवारा’, जो प्रसाद के निर्माता होते हैं, शामिल होते हैं।
सुखिला महाप्रसाद में सूखे मीठे व्यंजन शामिल होते हैं, जो अधिक समय तक ताज़े रहते हैं और इसलिए इन्हें लंबे समय तक संग्रहित किया जा सकता है। सुखिला महाप्रसाद का भी विशेष महत्व होता है और इसे भी भक्तों में बड़े प्रेम और श्रद्धा से बांटा जाता है।
जगन्नाथ मंदिर में महाप्रसाद की परंपरा न केवल एक धार्मिक अर्पण है, बल्कि यह भक्तों के लिए भगवान से जुड़े रहने का एक माध्यम भी है। महाप्रसाद की यह प्राचीन परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसकी पवित्रता और महत्व में कोई कमी नहीं आई है। मंदिर की रसोई में महाप्रसाद बनाने की पूरी प्रक्रिया भी एक दिव्य अनुभव होती है, जिसमें भक्तजन अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ शामिल होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप के मुख्य बिंदुओं और चारों दिशाओं पर स्थित चार पवित्र मंदिर यानी पुरी, रामेश्वर, द्वारिका और बद्रीनाथ, भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं । किवदंति है कि वह रामेश्वरम में स्नान करते हैं, बद्रीनाथ में ध्यान करते हैं, पुरी में भोजन करते हैं और द्वारिका में विश्राम करते हैं। इसलिए, पुरी में मंदिर के भोजन यानी "महाप्रसाद" को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है।
महाप्रसाद की कहानी: महाप्रसाद के पीछे एक किंवदंती है। त्रेता युग में, श्रीलंका में रावण के वध के बाद, भगवान रामचंद्र, लक्ष्मण और सीता माता के साथ अयोध्या लौट आए थे। युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी ने रावण के पुत्र इंद्रजीत का वध किया था, इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही व्यक्ति कर सकता था जो चौदह वर्षों तक ब्रह्मचर्य रहा हो, इस दौरान वह न सोया हो और न ही उसने भोजन किया हो। अयोध्या के महल में सब लोग इस रहस्य को जानने के लिए विचलित होने लगे, जिसके लिए एक सभा रखी गयी।
सभा में भगवान राम जी ने लक्ष्मण से पूछा, “तुमने चौदह वर्षों तक लगातार भोजन नहीं किया, तो उन भोजन पात्रों का क्या हुआ जो मैंने तुम्हें पंचवटी में हमारे निवास के दौरान दिए थे?” लक्ष्मण ने धैर्यपूर्वक उत्तर दिया, "प्रभु, मैंने उन सभी भोजन के पात्रों को पंचवटी के समी वृक्ष के छेद में रख दिया था।" इस तथ्य की पुष्टी करने के लिए राम जी ने हनुमान से उन भोजन के पात्रों को लाने के लिए कहा। हनुमान जी इस कार्य के लिए थोड़ा संकोच करने लगे, वे सोचने लगे "भगवान को मेरी शक्ति का पता है। जब लक्ष्मण इंद्रजीत के बाण से बेहोश हो गए थे, तब मैंने गंधमादन पर्वत को एक हाथ में उठाया था।" लेकिन अंततः वे अयोध्या से पंचवटी तक की यात्रा पर निकल गए।
हनुमान ने देखा कि वे भोजन के पात्र ठीक उसी प्रकार सुरक्षित रखे गए थे, लेकिन जब उन्होंने उन पात्रों को उठाने का प्रयास किया, तो वे उन्हें उठा नहीं पाए और अंततः अयोध्या लौट आए। उन्होंने विनम्र शब्दों में अपने स्वामी को बताया कि वे उन पात्रों को उठा ही नहीं पाए। भगवान राम समझ गए कि हनुमान के अहंकार के कारण वे उन पात्रों को उठा नहीं पाए। अंत में लक्ष्मण ने कहा, "मैं स्वयं उन भोजन के पात्रों को पंचवटी से लाऊंगा।
लक्ष्मण अपने शक्तिशाली बाण से उन भोजन के पात्रों को वापस लाए और उन सभी को भगवान राम के समक्ष रख दिया। भगवान राम को आश्चर्य हुआ और उन्होंने हनुमान से यह पता लगाने के लिए कहा कि लक्ष्मण को चौदह वर्षों तक दी गई भोजन सामग्री ज्यों की त्यों गिनती में बराबर है या नहीं? हनुमान ने गिनकर बताया कि सात पात्र उपलब्ध नहीं हैं। भगवान राम ने लक्ष्मण से उन पात्रों के बारे में पुछा, तो लक्ष्मण ने अत्यंत विनम्रतापूर्वक बताया कि कुछ विकट परिस्थितियों में राम जी ने सात बार उन्हें भोजन दिया ही नहीं था!
यह सुनकर भगवान राम, अपने अनुज लक्ष्मण के इस सर्वोच्च त्याग और समर्पण से अभिभूत हो गए। आगे भगवान राम ने उर्मिला के बलिदान की प्रशंसा की, जिन्होंने चौदह वर्ष लक्ष्मण के बिना बिताए। भगवान राम ने कहा कि उर्मिला ने सबसे बड़ा बलिदान दिया और वे हमारे साथ चौथे सिंहासन पर बैठने योग्य हैं। इस पर, उर्मिला ने किसी राजगद्दी की इच्छा नहीं जताई, बल्कि भगवान राम की सेवा करने का अवसर मांगा।
यह सुनकर भगवान राम ने उर्मिला को कोइ भी वरदान मांगने को कहा। उर्मिला ने विनम्रता से कहा कि वह चाहती हैं कि उनके लिए कोई मंदिर या पूजा न हो, बल्कि वह अगरबत्ती बनकर सभी को खुशबू दें और भगवान के चरणों में रहें। राम ने प्रसन्न होकर कहा कि कलियुग में पुरी के जगन्नाथ मंदिर में लक्ष्मी उनके पास स्थापित नहीं होंगी, बल्कि त्रेता युग की उर्मिला कलियुग में देवी विमला बनेंगी। उर्मिला महाप्रसाद बनेंगी, और उनकी सुगंध से प्रसाद पूजनीय होगा। भक्त उन्हें महाप्रसाद के रूप में पूजेंगे, और वह देवी विमला के रूप में प्रतिष्ठित होंगी।
जगन्नाथ मंदिर में महाप्रसाद की तैयारी:
स्कंद पुराण के अनुसार, महाप्रसाद में भाग लेने वाले भक्त जो विभिन्न अनुष्ठान द्वारा भगवान जगन्नाथ की पूजा करते हैं, भगवान उन्हें दर्शन देकर उनका उद्धार करते हैं। मंदिर की रसोई में एक दिन में एक लाख भक्तों के लिए खाना पकाने की क्षमता है। महाप्रसाद केवल मिट्टी के बर्तनों में और चूल्हे पर पकाया जाता है। भाप में पकाए गए भोजन को पहले भगवान जगन्नाथ को अर्पित किया जाता है और फिर देवी विमला को, जिसके बाद यह महाप्रसाद बन जाता है। इस महाप्रसाद को बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों और पंथों के लोग ग्रहण करते हैं।
इस पवित्र प्रक्रिया के कारण महाप्रसाद को अत्यंत शुद्ध और पवित्र माना जाता है, और इसे ग्रहण करने से भक्तों को भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
संदर्भ
https://rb.gy/8rcls9
https://rb.gy/ekm1ya
https://tinyurl.com/3zcbvuxn
चित्र संदर्भ
1. जगन्नाथ पुरी मंदिर के ‘महाप्रसाद बनाने की तैयारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्रसाद वितरण की तैयारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जगन्नाथ मंदिर के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्रभु श्री राम, माता सीता और लक्षमण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. लक्षमण और उर्मिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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