Post Viewership from Post Date to 29-Jun-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2402 141 2543

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

‘स्वाद भरे, शक्ति भरे, वर्षों से पारले-जी’! जानिये देश की इस प्रतिष्ठित ब्रांड का इतिहास

लखनऊ

 29-05-2024 09:48 AM
स्वाद- खाद्य का इतिहास

शायद ही ऐसा कोई भारतीय हो, जिसने पारले-जी (Parle – G) ना खाया हो। प्रत्येक भारतीय परिवार के लिए पारले-जी केवल एक बिस्कुट नहीं है; बल्कि यह लगभग प्रत्येक भारतीय के बचपन से ही विकसित हुआ एक ऐसा चिरस्थायी स्वाद है, जिसे शायद ही कभी कोई भुला सके। छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक, चाय से लेकर दूध तक, पारले-जी मानो जैसे सबका साथी है। इस बिस्कुट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका स्वाद बिलकुल बरकरार रहा है - जैसा शुरुआत के वर्षों में था, बिल्कुल वैसा ही आज भी है। और भारत के साथ-साथ दुनिया के किसी भी देश में इसके जैसा स्वाद आपको कहीं नहीं मिलेगा।
भारत के हर घर में मिलने वाले पारले-जी की शुरुआत वर्ष 1929 में मोहन दयाल चौहान के नेतृत्व में मुंबई के विले पार्ले में पहली ‘पारले’ फैक्ट्री की स्थापना के साथ हुई। मूल रूप से एक कन्फेक्शनरी निर्माता के रूप में स्थापित, पारले प्रोडक्ट्स ने एक ऐसी यात्रा शुरू की, जिसमें यह देश के सबसे प्रतिष्ठित ब्रांडों में से एक में परिवर्तित हो गया है। भारतीय वस्तुओं को बढ़ावा देने के आह्वान से प्रेरणा लेते हुए, मोहन दयाल चौहान ने जर्मनी (Germany) में कन्फेक्शनरी व्यवसाय के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया। और फिर अपने ज्ञान एवं कौशल और 60,000 रुपये में जर्मनी से आयातित आवश्यक उपकरणों तथा केवल 12 श्रमिकों के साथ 'हाउस ऑफ पार्ले' (House of Parle) की शुरुआत की। पारले प्रोडक्ट्स द्वारा अपने पहले उत्पाद के रूप में लगभग एक दशक तक 'पारले ऑरेंज कैंडी' (Parle Orange Candy) का निर्माण किया गया। इसके बाद वर्ष 1939 में पारले ने 'पारले ग्लूको’ (Parle Gluco) बिस्कुट की शुरुआत के साथ बिस्कुट की दुनिया में कदम रखा, जिसके स्वाद ने लोगों की जिह्वा की स्वाद कलिकाओं पर अमिट छाप छोड़नी शुरू कर दी। चौहान जी ने शायद इस बात का कभी अंदाज़ा भी नहीं लगाया होगा, कि सिर्फ 12 कर्मचारियों के साथ की गई एक छोटी सी शुरुआत से वह एक ऐसे प्रतिष्ठित ब्रांड की नींव रख रहे हैं, जो समय की कसौटी पर खरा उतरेगा। 1939 से 1947 के वर्षों के दौरान, पारले का ध्यान विशेष रूप से ब्रिटिश सेना के लिए बिस्कुट बनाने की ओर केंद्रित हो गया, जिसके कारण इन तक आम लोगों की पहुंच सीमित हो गई। हालाँकि, 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के साथ ही, पारले ने पुनः अपने उत्पादन को व्यापक बाज़ार की ओर पुनर्निर्देशित कर दिया। दरअसल स्वतंत्रता के बाद के समय में, बिस्कुट को एक विलासिता की वस्तु माना जाता था, जो मुख्य रूप से आयात किया जाता था और अमीरों के आहार से जुड़ा हुआ था। इस परिस्थिति या अवसर का लाभ उठाते हुए, पारले ने खुद को आम भारतीय लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से तैयार किया। पारले बिस्कुट की किफ़ायती कीमत और इसके विशिष्ट स्वाद के कारण, आम भारतियों के बीच इसकी खपत में व्यापक वृद्धि हुई, और यह दिन प्रतिदिन लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों पर चढ़ता गया।
वास्तव में 'पार्ले' नाम का भी अपने आप में एक भौगोलिक महत्व है। मोहनलाल दयाल द्वारा 1928 में स्थापित पहली फैक्ट्री मुंबई के 'विले पार्ले' क्षेत्र में स्थित थी। और यह स्थान ब्रांड के नामकरण के लिए प्रेरणा बन गया। ऐसा माना जाता है कि इसके संस्थापक शुरुआत में इसको चलाने में इतने अधिक व्यस्त थे कि उन्होंने इसके नाम पर कोई ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप, देश में पहली भारतीय स्वामित्व वाली कन्फेक्शनरी कंपनी को अंततः अपना ‘पारले’ नाम उस स्थान के नाम पर प्राप्त हुआ, जहां इसकी स्थापना हुई थी। हालांकि 1938 में, भारत के इस सबसे प्रिय बिस्कुट की शुरुआत "पारले ग्लूको" (Parle Gluco) के रूप में हुई थी, लेकिन 1985 में, कंपनी ने बिस्कुट बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए उत्पाद का नाम बदलकर "पार्ले-जी" करने का निर्णय लिया। बाज़ार में मिलते-जुलते नामों वाले अन्य ग्लूकोज़ ब्रांडों से खुद को अलग करने के लिए, पारले ने एक विशिष्ट पहचान बनाने का निर्णय लिया। प्रारंभ में, पारले-जी में 'जी' 'ग्लूकोज़' का प्रतिनिधित्व करता था, जो बाद में एक ब्रांड नारे के अनुसार 'जीनियस' (genius) में बदल गया। इसके साथ ही पारले ने एक नया पैकेजिंग डिज़ाइन अपनाया, जिसमें एक छोटी लड़की की प्यारी छवि के साथ पीले रंग का मोम-पेपर रैपर, कंपनी के लाल रंग के लोगो और "पी" नाम के साथ सजाया गया था। यह निर्णय महत्वपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि 'पार्ले-जी' दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्कुट ब्रांड बन गया। तब से पारले-जी बिस्कुट की पैकेजिंग और स्वाद में कोई बदलाव नहीं हुआ है। 1980 के दशक में, इन बिस्कुटों ने सभी उम्र के लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की। इस रीब्रांडिंग से पारले जी को लेकर न केवल लोगों का भ्रम दूर हुआ, बल्कि भारत के प्रिय बिस्कुट के रूप में पारले-जी की स्थिति और भी अधिक मजबूत हो गई। क्या आप जानते हैं कि दशकों तक लोगों के मन में पार्ले-जी पैकेजिंग पर मौजूद छोटी सी लड़की की छवि को लेकर जिज्ञासा रही। कई लोगों का मानना था कि यह इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति की बचपन की तस्वीर है। आख़िरकार, पारले प्रोडक्ट्स के ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर मयंक शाह ने बताया कि पैकेजिंग पर मौजूद लड़की कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं, बल्कि 1960 के दशक में एक एक प्रतिभाशाली कलाकार मगनलाल दहिया द्वारा बनाया गया एक चित्रण था। दिल को छूने वाले और पीढ़ियों को जोड़ने वाले स्वाद के साथ, पारले-जी की लोकप्रियता आज भी लगातार बढ़ रही है। 2022 में, पारले-जी द्वारा प्रति माह 100 करोड़ से अधिक पैकेट के आश्चर्यजनक उत्पादन का दावा किया गया, जो इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है। वास्तव में पारले-जी की लोकप्रियता सीमाओं से परे है। भारत के अलावा अन्य छह देशों - अमेरिका (America), ब्रिटेन (Britain), कनाडा (Canada), न्यूजीलैंड (New Zealand), मध्य पूर्व (Middle East) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) में विनिर्माण इकाइयों के साथ, इस बिस्कुट ने दुनिया भर में लोगों का दिल जीता है। वहीं चीन (China) में भी पारले-जी किसी भी अन्य ब्रांड के बिस्कुट से ज्यादा बिकता है। बाजार अनुसंधान फर्म 'नील्सन' (Nielsen) के एक अध्ययन के अनुसार, 2013 में पारले-जी खुदरा बिक्री में 5,000 करोड़ रुपये को पार करने वाला पहला भारतीय एफएमसीजी (FMCG) ब्रांड बन गया था। आज बिक्री का आंकड़ा बढ़कर 16000 करोड़ रुपये हो गया है। इसके अलावा, सर्वेक्षण का यह भी अनुमान है कि भारत में प्रत्येक क्षण 4551 पारले-जी बिस्कुट खाए जाते हैं। 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान, लोगों द्वारा पारले-जी का, आसानी से उपलब्ध और आवश्यक खाद्य पदार्थ के रूप में, भरपूर भंडारण भी किया गया। इसके अलावा, कई गैर सरकारी संगठनों और सरकारी संगठनों द्वारा भी सहायता आपूर्ति के वितरण के लिए बड़ी मात्रा में पारले-जी पैकेट खरीदे गए।
इन सबके चलते पारले-जी की बिक्री में जबरदस्त उछाल हुआ। यहां तक कि स्वयं व्यवसाय द्वारा जरूरतमंदों को मानवीय आपूर्ति के रूप में 3 करोड़ पैकेट दान किए गए। आज दुनिया के अग्रणी बिस्कुट ब्रांड के रूप में, पारले-जी सिर्फ एक उत्पाद से कहीं अधिक बन गया है; यह पोषित यादों और एक ऐसे स्वाद का प्रतिनिधित्व करता है जो पीढ़ियों से परे है। वास्तव में पारले-जी ने इतिहास में एक बिस्कुट से भी ज्यादा अपनी जगह बना ली है। यह एकता, प्रेम और संजोयी यादों का प्रतीक है। जैसे ही हम पारले-जी को चाय, दूध या यहां तक ​​कि सिर्फ पानी में डुबोते हैं, हम पुरानी यादों के स्वाद के सागर में डूब जाते हैं। आपने अक्सर लोगों को ‘बिस्कुट’ या ‘बिस्किट’ और इससे संबंधित विभिन्न शब्दों को लेकर बहस करते हुए सुना होगा। कुछ लोग इसे बिस्कुट कहते हैं तो कुछ बिस्किट, तो कुछ कुकीज़। आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि बिस्कुट हिंदी भाषा का शब्द है जबकि बिस्किट अंग्रेजी भाषा का। क्या आप जानते हैं कि अंग्रेजी भाषा में "बिस्किट" शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई और इसको लेकर क्या भ्रम हैं। मूल रूप से बिस्किट शब्द की उत्पत्ति मध्य युगीन फ़्रेंच (French) शब्द 'बेस्किट' (bescuit) से हुई है, जो दो लैटिन शब्दों 'बिस' ('bis' (जिसका अर्थ है दो बार) और 'कोक्वेर' ('coquere', जिसका अर्थ है पकाना) से हुई है, और इसलिए, इसका अर्थ है "दो बार पकाया गया"। ऐसा इसलिए है क्योंकि मूल रूप से बिस्कुट को दोहरी प्रक्रिया में पकाया जाता था: पहले इसे पकाया जाता था, और फिर धीमी गति से ओवन में सुखाया जाता था। इस शब्द से 14वीं शताब्दी में मध्य युग के दौरान, अंग्रेजी शब्द ' बिस्किट' (bisquite) की उत्पत्ति हुई। हालाँकि, 1703 के आसपास डच भाषा में समान रूप से कठोर, पके हुए उत्पाद के लिए 'कोकेजे' (koekje) शब्द को अपनाया।
डच शब्द और लैटिन मूल के शब्द के बीच अंतर यह है कि, जबकि कोकेजे एक केक है जो बेकिंग के दौरान ऊपर उठता है, बिस्किट में कोई फुलाने वाला एजेंट नहीं होता है। 18 वीं शताब्दी में संयुक्त राज्य अमेरिका में लोगों में एक कठोर, दो बार पके हुए उत्पाद के लिए ‘कुकी’ शब्द अधिक लोकप्रिय हो गया। हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका में कम खमीर वाली ब्रेड के लिए बिस्किट शब्द को अपनाने से और भी भ्रम पैदा हो गया है। आज, अमेरिकी अंग्रेजी शब्दकोश मरियम-वेबस्टर के अनुसार, कुकी एक "छोटा चपटा या थोड़ा उभरा हुआ केक" है, जबकि बिस्किट का अर्थ "कठोर या कुरकुरा सूखा पका हुआ उत्पाद" है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2jnrmnfn
https://tinyurl.com/mpet6mcf
https://tinyurl.com/msxvjura

चित्र संदर्भ
1. बाढ़ राहत कार्यों के लिए जाते पारले-जी बिस्कुट के डिब्बों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1947 के पारले-जी के विज्ञापन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. चाय में डूब रहे पारले-जी बिस्कुट को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
4. पारले-जी बिस्कुट के पैकेट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. चाय के साथ रखे गए बिस्कुटों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नदियों के संरक्षण में, लखनऊ का इतिहास गौरवपूर्ण लेकिन वर्तमान लज्जापूर्ण है
    नदियाँ

     18-09-2024 09:20 AM


  • कई रंगों और बनावटों के फूल खिल सकते हैं एक ही पौधे पर
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:18 AM


  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM


  • खनिजों के वर्गीकरण में सबसे प्रचलित है डाना खनिज विज्ञान प्रणाली
    खनिज

     09-09-2024 09:45 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id