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रबिन्द्रनाथ टैगोर, को आदरपूर्वक 'गुरुदेव' के नाम से जाना जाता है! वह एक उल्लेखनीय और व्यापक रूप से प्रसिद्ध व्यक्ति थे। उन्हें कविता, संगीत, साहित्य, गीत, निबंध और दर्शन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महारथ हासिल थी। लेकिन अपनी प्रसिद्धि से परे, टैगोर का हमारे अपने लखनऊ शहर के साथ भी बहुत ख़ास रिश्ता था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चलिए आज हम उनकी 162वीं जयंती के अवसर पर जानें कि टैगोर का संबंध लखनऊ के साथ कैसे स्थापित हुआ और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति पर उनका दृष्टिकोण क्या था?
रबिन्द्रनाथ टैगोर, एक उल्लेखनीय कवि, लेखक, दार्शनिक होने के साथ-साथ चित्रकारी सहित कई गुणों के धनी थे। उनके जन्मदिन, को टैगोर जयंती के रूप में मनाया जाता है! आज का दिन दुनिया भर में, खासकर पश्चिम बंगाल में बहुत महत्व रखता है। बंगाल में उनका जन्मदिन, सांस्कृतिक उत्सव् के रूप में मई की शुरुआत में, बंगाली महीने बोइशाख के 25वें दिन मनाया जाता है।
उनका जन्म रोबिन्द्रनाथ ठाकुर के रूप में हुआ था, लेकिन उन्हें भानु सिंघा ठाकुर, कबिगुरु, और बिस्वाकवि सहित विभिन्न नामों से जाना जाता था। बचपन से ही वह एक प्रतिभाशाली बालक थे और उन्होंने शरीर रचना विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, संस्कृत और अंग्रेजी जैसे कई विषयों में महारत हासिल की। टैगोर न केवल साहित्यिक प्रतिभा के धनी थे बल्कि उन्होंने भारतीय राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
साहित्य जगत में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए 1913 में वह नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले गैर-यूरोपीय बने। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में गीतांजलि, काबुलीवाला, पोस्ट मास्टर और भारत का प्रतिष्ठित राष्ट्रगान, "जन-गण-मन" भी शामिल हैं।
उन्होंने शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की, जहां शिक्षा, कक्षा की दीवारों से मुक्त होकर प्रकृति के बीच फली-फूली। बाद के जीवन में, उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और दुखद जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद नाइटहुड सम्मान को भी लौटा दिया था।
चलिए अब आपको टैगोर से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों से अवगत कराते हैं:
1. बहुमुखी रचनाकार: टैगोर ने कई कविताओं, कहानियों और नाटकों के साथ-साथ 2,000 से अधिक गीतों की रचना की।
2. उन्होंने न केवल भारत का राष्ट्रीय गान, "जन-गण-मन", बल्कि बांग्लादेश ("अमर शोनार बांग्ला") और श्रीलंका ("श्रीलंका मठ") के राष्ट्रीय गान भी लिखे।
3. ट्रेलब्लेज़र (Trailblazer): टैगोर साहित्य जगत में नोबेल पुरस्कार पाने वाले न केवल पहले एशियाई थे, बल्कि वह यह सम्मान हासिल करने वाले पहले गैर-यूरोपीय व्यक्ति भी थे।
3. उन्होंने अपनी नोबेल पुरस्कार राशि का उपयोग विश्व भारती स्कूल की स्थापना के लिए किया, जहाँ से अमर्त्य सेन, सत्यजीत रे और इंदिरा गांधी जैसी विभूतियाँ निकली।
4. उनकी प्रशंसित कृति "गीतांजलि" की प्रस्तावना 20वीं सदी के प्रसिद्ध कवि डब्ल्यू.बी. यीट्स (W.B. Yeats) द्वारा लिखी गई थी।
5. बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि उनका नोबेल पुरस्कार शांति निकेतन से चोरी हो गया, जिसके कारण स्वीडिश अकादमी ने उन्हें सोने और चांदी से बनी प्रतिकृति भेंट की।
6. टैगोर और अल्बर्ट आइंस्टीन ने संयुक्त रूप से "वास्तविकता की प्रकृति पर नोट" (Note on the Nature of Reality) शीर्षक से एक प्रलेखित चार्ट बनाया।
प्रसिद्ध कवि और संगीतकार रबिन्द्रनाथ टैगोर के हमारे लखनऊ के साथ अटूट संबंध के बारे में भी कम ही लोग जानते हैं। 1929 में, वह अपने विश्वविद्यालय, विश्व-भारती के लिए एक संगीत शिक्षक खोज रहे थे, जिसके लिए वह अपने मित्र अतुलप्रसाद सेन के पास पहुँचे। दुर्भाग्य से, उस समय वित्तीय समस्याओं के कारण, वे केवल 100 रुपये का मामूली वेतन ही दे सके। टैगोर के महमूदाबाद के राजा के साथ भी अच्छे संबंध थे। राजा ने टैगोर को आश्वस्त किया कि वह बनारस के राजा माधोलाल को विश्वभारती में पढ़ाने के लिए एक संस्कृत विद्वान भेजने के लिए कहेंगे। टैगोर ने विश्वभारती का समर्थन करने के लिए राजा को धन्यवाद दिया।
टैगोर और लखनऊ के बीच का संबंध अतुलप्रसाद जी के कारण स्थापित हुआ। दरअसल 1914 में अतुलप्रसाद के निमंत्रण पर ही टैगोर ने पहली बार लखनऊ की यात्रा की थी। इस यात्रा में टैगोर ने लखनऊ के कई प्रतिष्ठित लोगों से भी मुलाकात की, इसलिए यह यात्रा टैगोर के लिए बहुत यादगार साबित हुई।
जब भी टैगोर लखनऊ आते थे, तब अतुलप्रसाद जी टैगोर के समक्ष प्रदर्शन करने के लिए प्रसिद्ध संगीतकारों को आमंत्रित करते थे। 1923 में टैगोर लखनऊ विश्वविद्यालय के स्नातक समारोह में भाषण देने के लिए एक बार फिर से लखनऊ पधारे। तीन वर्ष बाद वे पुनः लौटे और इस बार अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन के दौरान मोती महल में ठहरे।
1930 में टैगोर अपने करीबी दोस्त और कवि अमिय कुमार चक्रवर्ती के साथ एक बार फिर से लखनऊ आये। बहुत से लोग सोचते हैं कि वह विश्व-भारती के लिए धन जुटाने के लिए लखनऊ आये थे। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि, लखनऊ में टैगोर के कई मित्र बन चुके थे, जिनमें से कुछ ने लखनऊ विश्वविद्यालय में भी काम किया था। चित्रकार असित कुमार हलदर और निर्मल कुमार सिद्धांत, धूर्जतिप्रसाद, राधाकुमुद मुखर्जी और राधाकमल मुखर्जी जैसे विद्वानों सहित उनके कई मित्रों ने विश्व-भारती के लिए धन जुटाने में टैगोर की मदद की। 1914 और 1935 के बीच, टैगोर ने लखनऊ के साथ एक गहरा और अटूट संबंध विकसित किया, जिसकी शुरुआत अतुलप्रसाद जी के साथ हुई थी।
रबिन्द्रनाथ टैगोर ने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह ब्रिटिश शासन की कड़ी आलोचना करते थे, लेकिन उन्होंने गांधी के असहयोग आंदोलन का पूरा समर्थन नहीं किया।
टैगोर ने ब्रिटिश शासन को भारत में एक व्यापक सामाजिक समस्या के संकेत के रूप में देखा। उन्होंने न केवल अंग्रेजों के हिंसक तरीकों का विरोध किया बल्कि 1915 में लॉर्ड हार्डिंग द्वारा उन्हें दी गई नाइटहुड (Knighthood) की उपाधि भी लौटा दी। यह जलियांवाला बाग नरसंहार का विरोध करने का उनका तरीका था जहां अंग्रेजों ने 1,500 से अधिक निहत्थे भारतीयों को मार डाला था।
टैगोर का मानना था कि उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई का अर्थ, ब्रिटिशों की हर चीज या हर व्यवस्था को खारिज कर देना नहीं है। उनका मानना था कि पश्चिमी और भारतीय संस्कृतियों की अच्छी विशेषताओं का मिश्रण होना भी ज़रूरी है।
टैगोर के लिए, आज़ादी का मतलब केवल अंग्रेजों से राजनीतिक आज़ादी नहीं था। वह स्वयं के प्रति ईमानदार और सच्चा होने की स्वतंत्रता में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि इसके बिना स्वतंत्रता अपना मूल्य खो देगी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2dxhk243
https://tinyurl.com/3d3ze7hf
https://tinyurl.com/39cfnj9h
चित्र संदर्भ
1. विल्मोट ए परेरा (Wilmot A Perera) और रबिन्द्रनाथ टैगोर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. किताब पढ़ते रबिन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विश्वभारती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शेर ए बंगाल एवं रबिन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
5. रबिन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. रबिन्द्रनाथ टैगोर की विदेश में स्थापित प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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