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कैसे दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों की आजीविका और आर्थिक कल्याण को मिल सकता है बढ़ावा?

लखनऊ

 30-04-2024 10:13 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

1.4 अरब की आबादी वाला हमारा देश भारत एक बड़ी, विविध और 'उभरती अर्थव्यवस्था' है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में लगभग 80% से अधिक गैर-कृषि रोज़गार अनौपचारिक क्षेत्र में आते हैं, जो देश के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। देश में इस अनौपचारिक कार्यस्थल के सबसे निचले पायदान पर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि वे नौकरी के संबंध में दैनिक अनिश्चितताओं का सामना करने के साथ साथ न्यूनतम दैनिक आजीविका के साथ अपना भरण पोषण करते हैं। इस प्रकार की कमज़ोर आर्थिक स्थितियाँ न केवल इस क्षेत्र के लिए बल्कि संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। इस संदर्भ में आइए आज के अपने इस लेख में दैनिक वेतन के विषय में जानते हैं और हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों के सामने आने वाली नौकरी की असुरक्षा और आय में उतार-चढ़ाव जैसी चुनौतियों के विषय में जानते हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी जाने वाली न्यूनतम दैनिक मजदूरी के बारे में भी जानते हैं और यह समझते हैं कि मनरेगा योजना द्वारा इन श्रमिकों की आजीविका और आर्थिक कल्याण को बढ़ाने के लिए स्थायी समाधान कैसे किया जा सकता है।
"दैनिक वेतन" को तीन रूपों में परिभाषित किया जाता है:
1. दैनिक वेतन का अर्थ है किसी कर्मचारी के साप्ताहिक वेतन को उस सप्ताह के भीतर कर्मचारी द्वारा आम तौर पर काम करने की उम्मीद किए जाने वाले दिनों की संख्या से विभाजित किया जाता है।
2. दैनिक वेतन का अर्थ वह मुआवज़ा है जो एक कर्मचारी को व्यावसायिक दिन के दौरान की गई सेवाओं के लिए वेतन के रूप में मिलता है। इसकी गणना एक वर्ष के भीतर व्यावसायिक दिनों की कुल संख्या को ध्यान में रखकर की जाती है।
3. दैनिक वेतन का अर्थ एक कर्मचारी की, प्रति घंटा आमदनी की दर को एक दिन में कर्मचारी के सामान्य काम के घंटों से गुणा करके प्राप्त किया जाता है। राजस्थान स्थित गैर-लाभकारी संस्था आजीविका ब्यूरो (Aajeevika Bureau) के एक अंग “प्रवासन और श्रम समाधान केंद्र” (Centre for Migration and Labour Solutions) के अनुसार देश में आर्थिक मंदी के कारण प्रवासी श्रमिकों को एक महीने में से केवल 15 दिन ही काम मिल पाता है। इन दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रोज़गार की अनिश्चितता है। क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें प्रत्येक दिन काम मिल जाएगा। आजीविका ब्यूरो एक विशेष सार्वजनिक सेवा पहल है जो भारत के अनौपचारिक और प्रवासी श्रमिकों के लिए सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करती है। पुणे शहर में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर इसी संस्था के अनुसार, "अकेले पुणे में लगभग 2,000 कर्मचारी हर दिन सुबह नौकरी की तलाश में सड़क स्थलों और फ्लाईओवरों पर इकट्ठा होते हैं, और ठेकेदारों या श्रमिक आपूर्तिकर्ताओं या बिचौलिए द्वारा उन्हें काम पर रखने का इंतज़ार करते हैं। वेतन दरें, काम के घंटे, कार्य की प्रकृति, इन सभी पर बिना किसी लिखित दस्तावेज के बातचीत की जाती है। और जब दिन के अंत में भुगतान होता है, और इनमें से किसी भी शर्त का उल्लंघन होता है, तब भी नियोक्ता या ठेकेदार को जवाबदेह ठहराने का कोई साधन नहीं है।“ एक अकुशल श्रमिक या सहायक की औसत मज़दूरी दर लगभग 500-600 रुपये है। ऐसे मज़दूरों के घरों की औसत मासिक आय आज देश में निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी बहुत कम है। इसके अलावा महिलाओं को कभी भी पुरुष श्रमिकों के बराबर भुगतान नहीं किया जाता है, भले ही वे एक ही तरह का काम करती हों। ये श्रमिक किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, जैसे ESIC, भविष्य निधि, या यहां तक कि अनौपचारिक श्रमिकों के नए लॉन्च किए गए पोर्टल, ई-श्रम के लाभों से भी वंचित रहते हैं।
श्रमिकों की इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा 1 अक्टूबर, 2023 से प्रभावी न्यूनतम वेतन में वृद्धि की गई है। इसका उद्देश्य सभी के लिए समान मुआवज़ा प्रदान करना है। हालांकि अभी भी आधिकारिक तौर पर, उत्तर प्रदेश में न्यूनतम वेतन सबसे कम वेतन है। यह वेतन समायोजन राज्य भर के सभी कौशल स्तरों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों - कुशल, अर्ध-कुशल और अकुशल पर लागू होता है। मासिक वेतन की गणना साप्ताहिक दर को 4.33 से गुणा करके की जाती है। कुशल, अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए व्यापक वेतन संरचना, जो उत्तर प्रदेश में हाल ही में लागू न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी देती हैं, निम्न प्रकार है:
उत्तर प्रदेश में कुशल, अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी:

अनुसूचित रोज़गार मूल राशि (प्रति माह) वीडीए (प्रति माह) कुल (प्रति दिन) कुल (प्रति माह)
अकुशल रु. 5,750.00 रु. 4,525.00 रु. 395.19 रु. 10,275.00
अर्द्ध कुशल रु. 6,325.00 रु. 4,978.00 रु. 434.73 रु. 11,303.00
कुशल रु. 7,085.00 रु. 5,576.00 रु. 486.96 रु. 12,661.00
उत्तर प्रदेश में कुशल, अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए वेतन संरचना:
1 भत्ता बेसिक + डीए
2 HRA ₹12,500
3 LTA ₹1,250
4 SP ₹11,250
5 सकल वेतन ₹50,000
6 तदर्थ भत्ता मासिक बोनस
7 अनिवार्य भुगतान कर्मचारी PF: ₹ 1,800; कर्मचारी ESI: ₹ 0; कर्मचारी LWF: ₹ 6
8 कटौती कर्मचारी PF: ₹ 1,800; कर्मचारी ESI: ₹ 0; कर्मचारी LWF: ₹ 12; PF एडमिन चार्ज: ₹ 150; PT: ₹ 200
9 प्राप्त वेतन ₹ 46,032
ऐसा ही एक भारतीय श्रम कानून जो 'काम के अधिकार' की गारंटी के साथ सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है,"महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम", (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA) है। इस कानून की शुरुआत 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के रूप में हुई थी। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का वेतन रोज़गार प्रदान करके आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। यह अधिनियम पहली बार 1991 में पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा प्रस्तावित किया गया था। 2006 में, इसे अंततः संसद में स्वीकार कर लिया गया और भारत के 625 जिलों में इसका कार्यान्वयन शुरू हुआ। इस पायलट अनुभव के आधार पर, 1 अप्रैल 2008 से मनरेगा का दायरा भारत के सभी जिलों को कवर करने के लिए बढ़ाया गया था। इस क़ानून को सरकार द्वारा "दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे महत्वाकांक्षी सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक कार्य परियोजना" के रूप में सराहा गया है।
अपनी विश्व विकास रिपोर्ट 2014 में, विश्व बैंक (World Bank) द्वारा भी इसे "ग्रामीण विकास का एक शानदार उदाहरण" क़रार दिया गया है। मनरेगा का एक अन्य उद्देश्य टिकाऊ संपत्ति जैसे सड़क, नहर, तालाब, कुएं आदि का निर्माण करना है। इस परियोजना के तहत आवेदक के निवास के 5 किलोमीटर के भीतर रोज़गार प्रदान किया जाता है, और न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान किया जाता है। यदि आवेदन करने के 15 दिनों के भीतर काम उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो आवेदक बेरोजगारी भत्ते के हकदार होते हैं। इस प्रकार, मनरेगा के तहत रोजगार एक कानूनी अधिकार है। मनरेगा को मुख्य रूप से ग्राम पंचायतों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने और ग्रामीण संपत्ति के निर्माण के अलावा, मनरेगा परियोजना पर्यावरण की रक्षा करने, ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने, ग्रामीण-शहरी प्रवास को कम करने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने में भी सहायक है।
मनरेगा योजना के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
1. रोजगार सृजन: मनरेगा योजना का एक प्रमुख लाभ ग्रामीण परिवारों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करना है। यह योजना सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक ग्रामीण परिवार जिसके परिवार के सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक कार्य करना चाहते हैं, उन्हें एक वर्ष के भीतर 100 दिनों का गारंटीकृत रोज़गार मिलना चाहिए।
2. गरीबी से राहत: रोज़गार के अवसर प्रदान करके, मनरेगा योजना ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीबी को कम करने में सहायक है। यह सुनिश्चित करती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को नियमित आय मिलनी चाहिए, जिससे उनके जीवन स्तर में सीधे सुधार हो और अनियमित आय पर निर्भरता कम हो।
3. कौशल संवर्धन: मनरेगा योजना अकुशल श्रमिकों के लिए अवसर प्रदान करने पर केंद्रित है, जो उन्हें अपने कौशल को विकसित करने और बढ़ाने की अनुमति देती है। वनीकरण, जल संरक्षण और सड़क निर्माण जैसी विभिन्न परियोजनाओं में भागीदारी से श्रमिकों को व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होता है। इससे श्रमिक नए कौशल सीख सकते हैं जिनका उपयोग मनरेगा द्वारा प्रदान किए जाने वाले भविष्य के रोज़गार अवसरों के लिए किया जा सकता है।
4. बुनियादी ढांचा विकास: महात्मा गांधी नरेगा योजना ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास में योगदान देती है। मनरेगा योजना सड़कों, नहरों, तालाबों और सिंचाई सुविधाओं जैसी संपत्तियों के विकास का समर्थन करती है। मनरेगा योजना रोज़गार प्रदान करने के साथ साथ संयोजकता और कृषि उत्पादकता बढ़ाती है और समग्र विकास को बढ़ावा देती है।
5. महिला सशक्तिकरण: मनरेगा योजना ग्रामीण विकास में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करके उन्हें सशक्त बनाने पर भी केंद्रित है। मनरेगा यह अनिवार्य करके लैंगिक समानता को बढ़ावा देती है कि कम से कम एक तिहाई लाभार्थी महिलाएं हों। मनरेगा महिलाओं की आर्थिक स्थिति और घरों में निर्णय लेने की उनकी शक्ति को बढ़ाने में सहायता करती है।
6. पर्यावरण संरक्षण: मनरेगा योजना मृदा कटाव नियंत्रण, जल संरक्षण और वनीकरण जैसी परियोजनाओं पर केंद्रित है। ये पहल प्राकृतिक संसाधनों को बचाने, पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायता करती है।
7. सामाजिक समावेशन: मनरेगा योजना सुनिश्चित करती है कि समाज के कमजोर समूहों को रोज़गार तक समान पहुंच मिले और उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव न हो।
अंततः, मनरेगा योजना ग्रामीण विकास, ग़रीबीउन्मूलन, कौशल वृद्धि और पर्यावरणीय स्थिरता में महत्वपूर्ण है। यह ग्रामीण परिवारों को सशक्त बनाती है और भारत में ग्रामीण क्षेत्रों के व्यापक विकास में योगदान देती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/ycxzy9ms
https://tinyurl.com/4u8ynm45
https://tinyurl.com/3muymvs8
https://tinyurl.com/5csda5hn

चित्र संदर्भ
1. ईंटों के भट्टे में काम करते श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
2. निर्माण श्रमिकों को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
3. डामरीकरण करते श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
4. एक दुखी भारतीय महिला को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
5. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. मनरेगा में काम करते दो युवाओ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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