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आज दुनिया के लगभग 100 से अधिक देशों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार के लिए होम्योपैथी पद्धति का उपयोग किया जाता है। होम्योपैथी एक प्रभावी चिकित्सा पद्धति है जिसका इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है। होम्योपैथी दवाओं के जहाँ कोई दुष्प्रभाव नहीं होते वहीं इनकी कीमत भी बहुत अधिक नहीं होती। चिकित्सा जगत में होम्योपैथी के योगदान को मनाने के लिए प्रत्येक वर्ष 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस (World Homeopathy Day) के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन होम्योपैथी के संस्थापक, जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन (Dr Christian Friedrich Samuel Hahnemann) के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है। उन्होंने होम्योपैथी के उपयोग के माध्यम से उपचार की एक नई विधि विकसित की। होम्योपैथी को विकसित करने के मार्ग में आने वाली चुनौतियों और भविष्य में इसके प्रसार के लिए रणनीतियों को समझने के उद्देश्य के साथ विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है।इस दिन का उद्देश्य चिकित्सा के एक रूप में होम्योपैथी के बारे में जागरूकता फैलाना और इसकी सफलता दर में सुधार की दिशा में कार्य करना है। तो आइए आज ‘विश्व होम्योपैथी दिवस’ के इस मौके पर होम्योपैथी के इतिहास को समझते हुए जानते हैं कि इस पद्धति की शुरुआत कैसे हुई? इसके साथ ही होम्योपैथी का अर्थ, इसकी विशेषताएं और इस पद्धति की कार्यप्रणाली को भी समझते हैं।
1700 के दशक के अंत में जर्मनी में विकसित होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली इस सिद्धांत पर आधारित है कि शरीर में यदि किसी पदार्थ के अधिक होने पर कोई बीमारी हो जाती है और यदि उसी पदार्थ का कम मात्रा में सेवन किया जाए, तो वह बीमारी ठीक हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि इस छोटी खुराक से शरीर का उपचार तंत्र उत्तेजित हो जाता है। होम्योपैथी दो ग्रीक शब्दों ‘होमियो’ और ‘पैथो’ से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः उपचार और बीमारी है। होम्योपैथी का लक्ष्य शरीर की जन्मजात जीवन शक्ति के प्रवाह में सुधार लाना है जिससे शरीर स्वयं को खुद उपचारित कर सके। होम्योपैथी के तहत उपचार व्यक्ति की विशिष्ट विशेषताओं पर आधारित होता है, जिसमें व्यक्ति की जीवनशैली के साथ-साथ रोग लक्षण और सामान्य स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखा जाता है।
होम्योपैथी चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली दवाएं प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पदार्थों, जैसे पौधों और जानवरों के अर्क और खनिजों से प्राप्त की जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि ये पदार्थ शरीर की उपचार करने की जन्मजात क्षमता को उत्तेजित करते हैं। इन पदार्थों को तनुकृत (बार-बार पतला) करके दवाएं तैयार की जाती हैं। कई होम्योपैथिक दवाओं को इतना पतला कर दिया जाता है कि उनमें से किसी भी मूल पदार्थ का पता नहीं चल पाता है। होम्योपैथिक दवाओं को पतला करने के लिए अल्कोहल का उपयोग भी किया जाता है। होम्योपैथी का उपयोग विभिन्न विकारों, जैसे एलर्जी, श्वसन लक्षण, पाचन समस्याएं, वात रोग, सर्दी और चक्कर के इलाज आदि के लिए किया जाता है।
होम्योपैथिक उपचार प्रत्येक रोगी के लिए अनुकूलित है। यह मूल रूप से तीन सिद्धांतों समानता का नियम, एकल उपचार और न्यूनतम खुराक पर आधारित है। होम्योपैथी का पहला सिद्धांत समानता का नियम इस विचार पर आधारित है कि एक पदार्थ से समान लक्षणों वाले रोगों का उपचार संभव है। जिसका अर्थ यह है कि किसी बीमारी को ऐसे पदार्थ से ठीक किया जा सकता है जिससे स्वस्थ लोगों में समान लक्षण उत्पन्न होते हैं। मूल धारणा यह है कि यदि एक स्वस्थ व्यक्ति पर किसी पदार्थ का कोई विशिष्ट प्रभाव पड़ता है, तो यह पदार्थ बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में उन्हीं लक्षणों को ठीक कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आपको अनिद्रा की समस्या है, तो होम्योपैथिक चिकित्सा में कॉफी युक्त एक तनुकृत समाधान का उपयोग किया जा सकता है। होम्योपैथी चिकित्सकों के अनुसार, रोग पैदा करने वाले पदार्थ की थोड़ी मात्रा आपके शरीर को खुद को ठीक करने के लिए उत्तेजित करती है अतः इस तरह के उपचार प्रभावशाली होते हैं।
होम्योपैथी चिकित्सा एकल उपचार के सिद्धांत पर आधारित है। होम्योपैथिक दवाएं प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट रूप से आंतरिक उपचार तंत्र को उत्तेजित करने के लिए डिज़ाइन की जाती हैं। और एक समय में केवल एक ही दवा दी जाती है। चिकित्सक किसी दूसरी दवा को देने से पहले यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतीक्षा करते हैं कि थेरेपी काम कर रही है या नहीं। इसका कारण यह है कि दो दवाएं एक साथ देने पर एक दवा दूसरी दवा को रद्द कर सकती है, और यदि एक समय में एक से अधिक दवाएं दी जाती हैं, तो यह बताना मुश्किल होता है कि कौन सी दवा कार्य कर रही है। हालाँकि, कभी-कभी, होम्योपैथिक उपचार के दौरान शुरू में सुधार दिखने से पहले रोग के लक्षण अधिक बढ़ सकते हैं। होम्योपैथी के समर्थकों का कहना है कि शुरुआत में स्थिति का थोड़ा बिगड़ना सामान्य है और यह एक संकेत है कि दवा शरीर को खुद को ठीक करने के लिए प्रेरित कर रही है।
न्यूनतम खुराक के सिद्धांत का अर्थ है कि दवाओं में शुरुआत में केवल थोड़ी मात्रा में पदार्थ का उपयोग किया जाता है, उसके बाद समय के साथ इसकी मात्रा थोड़ी थोड़ी बढ़ाई जाती है। होम्योपैथिक उपचारों को प्रबलता के सिद्धांत के आधार पर तैयार किया जाता है। प्रारंभिक सामग्री को बार-बार तनुकृत करके मिलाया जाता है। चिकित्सकों का मानना है कि इस प्रकार पदार्थ की रासायनिक विषाक्तता समाप्त हो जाती है और चिकित्सकीय प्रभाव उत्पन्न होता है। होम्योपैथिक समाधानों में प्रबलता का निर्धारण निम्न माध्यमों का उपयोग करके किया जाता है।
X या D (डेसीमल तनुकरण स्केल (X or D (the decimal dilution scale): एक घटक को 1:10 के अनुपात में अल्कोहल या आसुत जल के साथ मिलाया जाता है। उदाहरण के लिए, एक भाग कॉफी (या अन्य उपचारात्मक सामग्री) को 10 भाग पानी के साथ।
C (सेंटीसिमल तनुकरण स्केल (C (the centesimal dilution scale): एक घटक को 1:100 के अनुपात में, या एक भाग को 100 भाग पानी/अल्कोहल के साथ एक भाग मिलाया जाता है।
होम्योपैथिक उपचार देने से पहले तनुकरण की प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। उदाहरण के लिए, 3C समाधान को C स्केल (1:100) पर एक बार तनुकृत किया जाता है, फिर हिलाया जाता है। फिर इसे दूसरी बार (1:100) तनुकृत किया जाता है और हिलाया जाता है, फिर तीसरी बार। इस प्रकार परिणामी समाधान में मूल घटक के केवल कुछ ही अणु शेष बचते हैं। होम्योपैथिक समाधानों को आम तौर पर शर्करा गोलियों के साथ मिलाकर दिया जाता है।
कुछ प्रकार के कैंसर के लिए, पशुओं पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि होम्योपैथिक उपचार को जब पारंपरिक उपचार के साथ उपयोग किया जाता है, तो यह कैंसर के विकास को रोक सकता है, लक्षणों को कम कर सकता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है। हालाँकि, वर्तमान समय में, विशेषज्ञ इस बात को लेकर निश्चित नहीं हैं कि जानवरों के अध्ययन के परिणाम मनुष्यों पर लागू किए जा सकते हैं या नहीं, इस पर अधिक शोध करने की आवश्यकता है। होम्योपैथिक उपचार आम तौर पर सुरक्षित होते हैं और इनके कोई महत्वपूर्ण दुष्प्रभाव नहीं होते हैं क्योंकि इनमें अत्यधिक तनुकृत पदार्थ की केवल थोड़ी मात्रा का उपयोग किया जाता है। हालाँकि, होम्योपैथिक उत्पाद किसी भी बीमारी या स्थिति के निदान, उपचार, इलाज, रोकथाम या कम करने में सुरक्षा या प्रभावशीलता के लिए 'खाद्य एवं औषधि प्रशासन' (Food and Drug Administration (FDA) द्वारा मानकीकृत नहीं हैं। इसके अलावा, चूंकि होम्योपैथिक उपचार FDA-अनुमोदित नहीं हैं, इसलिए वे सुरक्षा, प्रभावशीलता और गुणवत्ता के लिए आधुनिक मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
संदर्भ
https://rb.gy/f9benm
https://rb.gy/l0kqbl
https://rb.gy/2w8u5k
चित्र संदर्भ
1. भारत में एक होम्योपैथिक फार्मेसी में होम्योपैथिक दवाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन को संदर्भित करता एक चित्रण (Look and Learn)
3. कल्याणी राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. होम्योपैथिक गोलियों या ग्लोब्युल (globules) को दर्शाता एक चित्रण
5. हैनीमैन अस्पताल और होम्योपैथिक औषधालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. होम्योपैथी चिकित्सा छवि को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
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