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भारत का समृद्ध एवं गौरवशाली इतिहास हमारे शहर मेरठ के इतिहास के बिना अधूरा है। यहाँ की रणनीतिक स्थिति आठवीं से नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर आज तक असंख्य ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह रही है। मेरठ से सिर्फ 37 किलोमीटर दूर स्थित हस्तिनापुर में प्राचीन महाभारत काल के अवशेष मिले हैं। एक तरफ जहाँ यह ज़िला अशोक साम्राज्य और उसके बाद मौर्य साम्राज्य जैसे हिंदू साम्राज्यों के अधीन रहा, वहीं मध्ययुगीन भारत में यहाँ मुस्लिम शासकों का दबदबा रहा। ब्रिटिश शासन के दौरान मेरठ ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध की शुरुआत मेरठ छावनी में हुई। हमारे मेरठ ज़िले के हर कोने में इतिहास मौजूद है।
यहां बेगम समरू की क़ब्र और शाही ईदगाह भी है। जो अपने आप में एक इतिहास है। और यह इतिहास भी इतना समृद्ध है कि उत्तर भारत में कहीं भी ऐसी ईदगाह नहीं है। तो आइए आज ईद के मौके पर शाही ईदगाह के इतिहास और महत्व के बारे में जानते हैं, जहां ईद की सुबह मुसलमान नमाज़ अदा करने के लिए एकत्र होते हैं। और इस पवित्र त्यौहार के दौरान हमारे शहर के कौन से व्यंजन एवं पकवान लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
मेरठ में 600 साल पुरानी शाही ईदगाह मस्जिद एक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व का स्थल है। इसे दिल्ली सल्तनत के आठवें शासक इल्तुतमिश के सबसे छोटे बेटे नासिर उद दीन महमूद द्वारा बनवाया गया था। शाही ईदगाह शहर के केंद्र से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 'ईदगाह' शब्द दक्षिण एशियाई इस्लामी संस्कृति से लिया गया है जिसका अर्थ ईद सलाह अर्थात ईद-उल-फितर की सुबह नमाज़ के लिए चारो तरफ से घिरा हुआ खुला स्थान है। शाही ईदगाह मेरठ की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है और अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए जानी जाती है।
इस आश्चर्यजनक मस्जिद की दीवारों पर कुछ आकर्षक चित्रकलाएं बनी हुई हैं जो वास्तव में आंखों को सुकून देती हैं। इसके साथ ही ईदगाह की दीवारों पर की गई नक्काशी बीते ज़माने की शिल्पकला को खूबसूरती से दर्शाती है। शाही ईदगाह मेरठ के उन चंद पर्यटक स्थलों में से एक है जिन्हें राष्ट्रीय महत्व के विरासत स्थल का दर्जा दिया गया है। हर साल ईद के मौके पर यहाँ विशेष नमाज़ अदा की जाती है जिसके लिए मुस्लिम समुदाय के लोग यहाँ सुबह एकत्र होते हैं।
ईद-उल-फितर जिसे छोटी ईद के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया भर के मुस्लिम समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्यौहार है। ईद उल फितर आमतौर पर इस्लामिक कैलेंडर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। अरबी में ईद का शाब्दिक अर्थ 'त्यौहार' या 'दावत' है। इस्लामिक कैलेंडर में प्रति वर्ष दो प्रमुख ईदें होती हैं - साल की शुरुआत में ईद-उल-फितर और बाद में ईदउल-अज़हा। ईद-उल-फितर तीन दिनों तक चलने वाला त्यौहार है और इसे ईद अल-अज़हा की तुलना में 'छोटी ईद' के रूप में जाना जाता है, जबकि ईद अल-अज़हा का त्यौहार चार दिनों तक मनाया जाता है और इसलिए इसे 'बड़ी ईद' भी कहते हैं। ईद अल-अज़हा इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने के 10वें दिन मनाया जाता है। ये दोनों ईदें दो अलग-अलग घटनाओं को याद करने के रूप में मनाई जाती हैं जो इस्लाम की कहानी के लिए महत्वपूर्ण हैं। ईद-उल-फितर का अर्थ है "रमज़ान तोड़ने का पर्व।" यह त्यौहार रमज़ान के पवित्र महीने के अंत का प्रतीक है, जिसके दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह से सूर्यास्त तक उपवास करते हैं। इस्लामिक परंपरा के अनुसार, ईद उल फितर का त्यौहार पैगंबर मुहम्मद के मक्का से मदीना में प्रवास के बाद शुरू किया गया था।
जबकि ईद-उल-अज़हा के दिन पैगंबर इब्राहिम के ईश्वर की आज्ञाकारिता के रूप में अपने बेटे की बलि देने के साहस और कुर्बानी को याद किया जाता है। दोनों उत्सव मुस्लिम समुदाय के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं। ईद-उल-फितर, क्योंकि यह रमज़ान के महीने के बाद आती है, इसे अल्लाह द्वारा लोगों को दी गई शक्ति और सहनशक्ति के प्रावधान के आध्यात्मिक उत्सव के रूप में भी देखा जाता है। ईद-उल-फितर को दान का समय माना जाता है, जिसे ज़कात अल-फितर कहते हैं। पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए ईद खुशी और आशीर्वाद का समय है। इस्लाम में गरीबों को दान देना अत्यधिक महत्वपूर्ण मूल्य माना गया है। कुरान में कहा गया है:
“अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उस (पदार्थ) में से दान करो जिसका अल्लाह ने तुम्हें वारिस बनाया है। तुम में से जो लोग ईमान लाए और दान दिया, उनके लिए बड़ा इनाम रखा गया है।"
ईद-उल-फितर का जश्न दो से तीन दिनों तक मनाया जाता है जिसमें सुबह की विशेष नमाज़ शामिल होती हैं। लोग एक-दूसरे को "ईद मुबारक" कहकर और गले मिलकर बधाई देते हैं। घरों में मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं और बच्चों तथा ज़रूरतमंदो को उपहार दिए जाते हैं। इसके अलावा, मुसलमानों को क्षमा करने और माफ़ी मांगने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हालांकि अलग-अलग देशों और क्षेत्रों में से संबंधित भिन्न-भिन्न प्रथाएँ भी होती हैं। बड़ी मुस्लिम आबादी वाले कई देशों में, ईद-उल-फितर पर राष्ट्रीय अवकाश होता है। स्कूल, कार्यालय और व्यवसाय सभी बंद रहते हैं इसलिए लोग अपने परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों के साथ एक साथ उत्सव का आनंद लेते हैं।
हमारा मेरठ शहर न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हिंदू मुस्लिम एकता की एक मिसाल भी कायम करता है। मुस्लिम समुदाय का त्यौहार छोटी ईद और हिंदू समुदाय का नवरात्र का त्यौहार लगभग एक साथ ही पड़ते हैं। इस दौरान यहाँ पर नौचंदी मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला जिस स्थान पर लगता है वहाँ हज़रत वाले मियां की दरगाह और चंडी देवी का मंदिर दोनों पास में ही स्थित हैं। एक तरफ मंदिर में जहाँ भजन कीर्तन गाए जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर दरगाह पर कव्वालियों का आयोजन होता है।
इस मेले में बिकने वाले व्यंजनों के लिए, न केवल मेरठ से, बल्कि आसपास के शहरों से भी लोग खिंचे चले आते हैं। चाहे वह स्वादिष्ट रेवड़ी गजक हो या मुंह में पानी ला देने वाली नानखताई, मेरठ हमेशा से अपने व्यंजनों के लिए जाना जाता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शहर का सबसे बड़ा और भव्य मेला - नौचंदी मेला - इतने स्वादिष्ट भोजन बेचने वाली अस्थायी दुकानों के लिए जाना जाता है। नौचंदी मेले का सबसे विशिष्ट व्यंजन यहाँ मिलने वाला हलवा पराठा है। जब मेला चल रहा होता है तो आस-पास के शहरों से लोग इस मिठाई का स्वाद लेने के लिए मेरठ आते हैं। हलवा पराठा दो फुट व्यास वाला एक परांठा होता है जिसे पारंपरिक सूजी के हलवे के साथ परोसा जाता है। हालांकि इसे टुकड़ों में भी खरीदा जा सकता है। वही यहाँ सीख कबाब, मुर्ग मुसल्लम और मटन कोरमा जैसे व्यंजनों की मांग भी खूब होती है। ये व्यंजन आपको बड़े बड़े होटलों से लेकर छोटे छोटे स्टॉलों पर भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। मेले में दही बड़े, आलू टिक्की और पापड़ी बेचने वाले स्टालों पर सबसे ज्यादा भीड़ होती है। सभी मसालेदार और स्वादिष्ट भोजन के साथ, यहाँ मुँह को मीठा करने के लिए जलेबी, गुलाब जामुन जैसी पारंपरिक मिठाइयों के साथ साथ आइसक्रीम और चुस्की सबसे ज़्यादा पसंद की जाती है। वास्तव में नौचंदी मेले के सभी व्यंजन अपने अनोखे स्वाद के लिए जाने जाते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/prye4pxu
https://tinyurl.com/239na75z
https://tinyurl.com/kvxejd4t
चित्र संदर्भ
1. अमीनाबाद मोहन बाजार को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. नमाज़ पढ़ते मुस्लिम युवकों को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
3. मक्का में घुटनों के बल बैठकर नमाज़ पढ़ते मुस्लिम युवक को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. रमजान के भोज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. लखनऊ के हजरतगंज बाजार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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