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आमतौर पर जब भी आप “अग्नि” शब्द सुनते होंगे, तो आपके दिमाग़ में पहला चित्र “आग” का बनता होगा, और जब आप “वायु” शब्द सुनते होंगे तो आपके दिमाग़ में पहला चित्र हवा का बनता होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि अग्नि और वायु शब्दों का दायरा केवल इतने तक ही सीमित नहीं है।
संस्कृत शब्द "अग्नि" का अर्थ आमतौर पर “भौतिक आग” को ही समझा जाता है। हालाँकि, प्राचीन वैदिक विद्वानों ने "अग्नि" को इससे भी ऊपर का स्थान प्रदान किया है। उन्होंने अग्नि को आकांक्षा की शक्ति और आंतरिक प्रेरणा के रूप में देखा। यह प्रेरणा हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। यह "अग्नि" एक शाश्वत लौ की तरह होती है, जो हर किसी के दिल में जलती है, जो सच्चाई तथा महानता की यात्रा में हमारा मार्गदर्शन करती है।
"अग्नि" शब्द मूल ध्वनि "अग" और प्रत्यय "नि" से मिलकर बना है। मूल शब्द "अग", ऊपर की ओर बढ़ने का संकेत देता है, जैसे किसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ना। यह "अग्र" जैसे शब्दों में परिलक्षित होता है, जिसका अर्थ सबसे आगे या शिखर होता है। मूल "अग्" शब्द बल या क्रिया की भावना को भी व्यक्त करता है।
ख़ुद मूल "अग्" शब्द भी दो ध्वनियों "अ" और "ग" से मिलकर बना है। ध्वनि "अ" अपने सबसे बुनियादी रूप में अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है। वहीं ध्वनि "ग" एक सौम्य बल या क्रिया का संदर्भ देती है। इसलिए, जब आप "अ" और "ग" को जोड़ते हैं, तो आपको अस्तित्व का अनुभव होता है जो सक्रिय या सशक्त है। इससे हमें शक्ति, प्रतिभा और उत्कृष्टता का बोध होता है।
अंत में, प्रत्यय "नि" हमें पदार्थ या वास्तविकता का बोध कराता है। इसलिए, जब आप दोनों शब्दों को एक साथ जोड़ते हैं, तब "अग्नि" किसी ऐसी चीज़ का प्रतिनिधित्व करती है, जो मजबूत, शानदार और वास्तविक है। यह आंतरिक प्रेरणा का एक शक्तिशाली प्रतीक है जो हमें हमारे लक्ष्यों की ओर प्रेरित करता है। यह व्याख्या श्री अरबिंदो के वैदिक दर्शनशास्त्र पर आधारित है।
प्राचीन वैदिक विद्वानों की नज़र में "अग्नि" को एक उज्ज्वल, मजबूत और तेजस्वी “अग्नि देवता” के रूप में देखा जाता था। वैदिक संस्कृति में "अग्नि" की अवधारणा खोज और "तपस्या" की प्रक्रिया के साथ गहराई से जुड़ी हुई है, जिसे एक आध्यात्मिक यात्रा या खोज के रूप में माना जा सकता है, जो शुरुआत से शुरू होती है और अंत तक जारी रहती है।
वैदिक संस्कृति में अग्नि की भाँति वायु के भी वृहद् एवं विस्तारित अर्थ निकलते हैं। वायु” वैदिक विचार में एक प्रमुख अवधारणा है, जो योग, आयुर्वेद और वेदांत जैसी प्रथाओं में महत्वपूर्ण मानी जाती है। केवल "वायु" को समझने से हमें हर चीज़ को समझने में मदद मिल सकती है, जिसमें समय, स्थान, कर्म, जीवन, मृत्यु और हमारे गहरे स्वयं जैसी अवधारणाएँ भी शामिल हैं।
बुनियादी स्तर पर, "वायु" को “वायु तत्व” के रूप में देखा जाता है। लेकिन यह सिर्फ हवा को ही संदर्भित नहीं करता है। वैदिक विचार में, "वायु" में अंतरिक्ष, या "आकाश" की अवधारणा भी शामिल है। जब अंतरिक्ष गति में होता है, तब हम उसकी अनुभूति वायु के रूप में ही करते हैं। जब वायु विराम अवस्था में होती है तो हम उसे ईथर के रूप में अनुभव करते हैं। इस प्रकार, "वायु" हवा और आकाश की एकता है, आकाश वह क्षेत्र है जहां "वायु" एक शक्ति के रूप में कार्य करती है।
आधुनिक विज्ञान भी, ब्रह्माण्ड को विभिन्न चैनलों और धाराओं से भरे अंतरिक्ष के एक ताने-बाने के रूप में देखता है, जो गतिशीलता से भरे हुए हैं।
कभी-कभी, "वायु", जो आमतौर पर भौतिक वायु या हवा को संदर्भित करता है, का उपयोग "प्राण" (जीवन शक्ति) के समान अर्थ के लिए किया जाता है।
संक्षेप में "वायु" हवा और अंतरिक्ष के भौतिक तत्वों से कहीं परे है। यह ऊर्जा और स्थान का ब्रह्मांडीय सिद्धांत है, जो हमारे शरीर, जीवन, दिमाग और चेतना सहित हर चीज में व्याप्त है। संपूर्ण ब्रह्मांड अंतरिक्ष और ऊर्जा से उत्पन्न होता है, जो बाहरी स्तर पर "वायु" ही है। आंतरिक स्तर पर, "वायु" दृश्यमान दुनिया के पीछे हवा और अंतरिक्ष के निराकार सिद्धांत, अदृश्य आत्मा या "ब्राह्मण" का प्रतिनिधित्व करती है।
इसे तैत्तिरीयोपनिषद के प्रसिद्ध शांतिपाठ में सुंदरता के साथ व्यक्त किया गया है।
नमस्ते वायुओ, त्वम् एव प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि।
'हे वायु, आप प्रत्यक्ष रूप से समझने योग्य ब्रह्म हैं।'
संदर्भ
http://tinyurl.com/56wvpd9m
http://tinyurl.com/4z6nm45k
http://tinyurl.com/4edxrjs6
चित्र संदर्भ
1. इंसान और अग्नि को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. अग्नि शब्द को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. प्रेरित व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
4. अग्नि देवता को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. प्रकृति के चार तत्वों को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
6. वायु वेग को दर्शाता एक चित्रण (unsplash)
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