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कागज़ी मुद्रा की शुरुआत क्यों की गई, व भारत में कैसा रहा इसका सफ़र?

जौनपुर

 02-02-2024 09:10 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

गुजरते समय के साथ लोगों द्वारा पैसे का उपयोग करने के तरीकों में भी बड़े बदलाव देखे गए हैं। मिट्टी की गोलियों से लेकर धातु के सिक्कों तक और कागजी मुद्रा से लेकर डिजिटल लेनदेन (Digital Transactions) तक, पैसे का रूप समय के साथ बहुत अधिक विकसित हो चुका है। आजकल लोग भौतिक मुद्रा यानी कैश (Cash) की जगह डिजिटल पेमेंट करना अधिक पसंद कर रहे हैं। हालांकि, हम अपनी जेब में जो भौतिक मुद्रा (Physical Currency) रखते हैं, उसका इतिहास भी हमें पता होना चाहिए। क्या आप जानते हैं कि “भारत में हुंडी (Hundi) जैसे वित्तीय साधनों का उपयोग करने का एक लंबा इतिहास रहा है।” हुंडी एक लिखित आदेश होता है, जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से एक निश्चित राशि का भुगतान करने का आदेश देता है। इसे मध्यकालीन भारत में व्यापार और ऋण लेनदेन में उपयोग के लिए विकसित किया गया था। इनका उपयोग स्वदेशी बैंकरों द्वारा जारी किए गए चेक के विकल्प के रूप में किया जाता था।
दुनियां में कागज़ी मुद्रा की शुरुआत से पहले लोग चीज़ें खरीदने के लिए बड़ी मात्रा में सोना, चाँदी या अन्य धातुएँ साथ में लेकर चलते थे। लेकिन यह व्यवस्था बहुत ही असुविधाजनक और जोखिम भरी थी, क्योंकि इसमें धातुओं के खो जाने या चोरी होने का डर बना रहता था। इसलिए, लोगों ने धातुओं के बजाय कागजी मुद्रा का उपयोग करना शुरू कर दिया। पहली कागज़ी मुद्रा का उपयोग 1,000 वर्ष पहले चीन में किया गया था। 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत तक, कागजी मुद्रा और बैंकनोट (Banknote) दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गए थे। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में, फ्रांस बड़े पैमाने पर कागजी मुद्रा जारी करने वाला पहला पश्चिमी देश बन गया।
उत्तर भारत में कागजी मुद्रा की अवधारणा 1760 के दशक के दौरान, बंगाल में ब्रिटिश प्रशासन के तहत अस्थिर आर्थिक स्थितियों के कारण शुरू की गई थी। दरसल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) की विस्तारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप बंगाल में सोने और चांदी की काफी कमी हो गई थी, जिससे संभावित ऋण संकट पैदा हो गया था। इसी के मद्देनजर कागजी मुद्रा की शुरुआत की गई, जिसका प्रमुख उद्देश्य दूर-दराज के क्षेत्रों में कंपनी कर्मियों को भुगतान प्रदान करना था। 1700 के दशक के अंत में, निजी और अर्ध-सार्वजनिक बैंकों ने भारत में कागजी मुद्रा छापना शुरू कर दिया था। 1770 में वारेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) ने बैंक ऑफ हिंदोस्तान (Bank Of Hindostan) की स्थापना की, जिसे बंगाल और बिहार का सामान्य बैंक माना जाता था। पहली बार बैंक नोट (Bank Note) बैंक ऑफ बंगाल (Bank Of Bengal) द्वारा 1784 में जारी किए थे। हालाँकि ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा गठित सरकार ने इन कागजी मुद्राओं को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी थी। ये प्रतिबंधित प्रतिज्ञा मुद्राएँ थीं और केवल निजी उपयोग के लिए वैध मानी जाती थीं। 1861 में कागजी मुद्रा अधिनियम के लागू होने के बाद, 1862 में रानी विक्टोरिया (Queen Victoria) के सम्मान में उनके चित्र के साथ बैंक नोटों और सिक्कों की एक श्रृंखला जारी की गई। 1861 के कागजी मुद्रा अधिनियम (Paper Currency Act) ने बैंक नोटों को मुद्रित करने और प्रसारित करने का विशेष अधिकार, भारत सरकार को दे दिया। इसका मतलब यह था कि अब निजी प्रेसीडेंसी बैंक (Private Presidency Bank), बैंक नोटों को मुद्रित या प्रसारित नहीं कर सकते थे। 1 अप्रैल, 1935 के दिन भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank Of India) की स्थापना तक बैंक नोटों की छपाई और जारी करने का जिम्मा भारत सरकार ने ही उठाया। जनवरी 1936 में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने पहली बार किंग जॉर्ज VI (King George VI) के चित्र वाले पाँच रुपये के नोट जारी किए। फिर फरवरी में 10 रुपए के नोट, मार्च में 100 रुपए के नोट और जून 1938 में 1000 और 10,000 रुपए के नोट जारी किए गए।
किंग जॉर्ज VI के चित्र वाले नोटों के जाने के बाद, अशोक स्तंभ की तस्वीर वाले नोट जारी किए गए। 1969 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 100 रुपये का एक स्मारक नोट जारी किया था, जिसमें महात्मा गांधी को सेवाग्राम आश्रम के सामने बैठे हुए दिखाया गया था। 1987 में मुस्कुराते हुए गांधीजी की तस्वीर वाले 500 रुपये के नोटों को पेश किया गया था। तब से लेकर आज तक गांधीजी का चित्र विभिन्न मूल्यवर्ग के मुद्रा नोटों पर एक नियमित विशेषता बन गया है। महात्मा गांधी को चित्रित करने से पहले, भारतीय मुद्रा नोटों में विभिन्न डिज़ाइन और चित्र प्रदर्शित होते थे। इनमें से उल्लेखनीय अशोक स्तंभ वाला एक रुपये का नोट भी था, जिसे 1949 में पेश किया गया था। 1953 में नए नोटों पर हिन्दी को प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाने लगा। रुपैया के हिंदी बहुवचन पर बहस रुपिये के पक्ष में हल हो गई। 1954 में, उच्च मूल्यवर्ग के नोट (1,000 रुपये, 5,000 रुपये, 10,000 रुपये) फिर से शुरू किए गए। 1,000 रुपये के नोट पर तंजौर मंदिर, 5,000 रुपये के नोट पर गेटवे ऑफ इंडिया (Gateway Of India) और 10,000 रुपये के नोट पर अशोक स्तंभ दर्शाया गया था। हालाँकि, इन उच्च मूल्य वाले नोटों को 1978 में बंद कर दिया गया था।
हालांकि जैसे-जैसे मुद्रण और नकल प्रौद्योगिकियों में सुधार हुआ, मुद्रा नोटों पर पुराने सुरक्षा उपाय अब पर्याप्त नहीं रहे। समय के साथ नकली नोटों के चलन का खतरा भी बढ़ गया। इसके जवाब में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1996 में 'महात्मा गांधी श्रृंखला' की शुरुआत की।
इस नई श्रृंखला में उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ जैसे संशोधित वॉटरमार्क (Watermark), सुरक्षा धागे, गुप्त छवियां और विशेष रूप से दृष्टिबाधित लोगों के लिए डिज़ाइन की गई इंटैग्लियो सुविधाएँ (Intaglio Features) भी दी गई थीं। यह सुविधाएँ कागज़ के आधुनिक नोटों पर भी जारी हैं।

संदर्भ
http://tinyurl.com/343cjszp
http://tinyurl.com/3bdaydst
http://tinyurl.com/2cabxwvz
http://tinyurl.com/yc2r97f4

चित्र संदर्भ
1. 1858 में भारत सरकार द्वारा जारी 5 रुपये के नोट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अफ़ीम की एक राशि के लिए हुंडी (या व्यापार वाउचर), दिनांक 9 अप्रैल 1903 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. स्वतंत्र भारत के पहले बैंकनोट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हैदराबाद सरकार द्वारा जारी दस रुपये के नोट का एक चित्रण (wikimedia)
5. ‘आरबीआई संग्रहालय कोलकाता में भारतीय मुद्रा नोट रूपांकनों के कोलाज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. अशोक स्तंभ के चार मुखी शेरो के साथ दस रूपए के नोट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. भारत गणराज्य में प्रचलित बैंक नोटों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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