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भारतीय संस्कृति में गुरुओं को ईश्वर से ऊपर का स्थान दिया गया है। “(माता, पिता, गुरु, दैवम)”
लेकिन प्राचीन समय में महान शिक्षकों से समृद्ध इस भूमि के आधुनिक विद्यालय आज शिक्षकों
की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। किंतु शिक्षकों के अभाव को दूर करने के लिए आधुनिक
तकनीकें और मल्टीमीडिया एक बेहतरीन विकल्प के रूप में उभरकर सामने आई हैं!
दरअसल मल्टीमीडिया (multimedia), विभिन्न प्रकार के मीडिया माध्यमों का एकीकरण होता
है। इसमें टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो, ग्राफिक्स (text, audio, video, graphics) और भी बहुत कुछ
शामिल है। मल्टीमीडिया, स्मार्ट क्लासेस, वीडियो प्रोजेक्टर, प्रोजेक्शन स्क्रीन (Smart Classes,
Video Projector, Projection Screen) आदि आज शैक्षिक प्रौद्योगिकीविदों के बीच अक्सर
सुने और चर्चित शब्द बन गए है। मौखिक संचार, सोचने की क्षमता तथा समझने की क्षमता के
विकास में मल्टीमीडिया, प्राथमिक शिक्षा के बच्चों के कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कई शोधों के परिणामों से पता चला कि मल्टीमीडिया में बच्चों की क्षमताओं को सकारात्मक तौर
पर से बदलने की क्षमता होती है। मल्टीमीडिया सामग्री से संबंधित ज्ञान और छात्रों की सोच में भी
वृद्धि देखी गई है। मल्टीमीडिया में महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं जो इसे मीडिया के अन्य रूपों से अलग
बनाती हैं: यह डिजिटल और इंटरैक्टिव (digital and interactive) है। डिजिटल मल्टीमीडिया
मीडिया (पाठ, चित्र, ऑडियो और वीडियो) का एक संयोजन है जिसे डिजिटल रूप से दर्शाया जाता है
और इसलिए इसे कंप्यूटर प्रोग्राम द्वारा डेटा के रूप में माना जा सकता है।
भारत में दुनिया के सभी बच्चों में से सबसे बड़ी आबादी निवास करती है, देश में 0-18 वर्ष के आयु
वर्ग के अनुमानित 43 करोड़ / 430 मिलियन बच्चे हैं। ये बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं, और
इसलिए यह जरूरी है कि उन्हें अपनी क्षमता का एहसास करने के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध
कराए जाएं। इस साधन के रूप में आधुनिक शिक्षा प्रणाली एक अहम योगदान निभा सकती है।
आज हम प्रचलित शिक्षण-संबंधी चिंताओं जैसे कि पुरानी शिक्षण विधियों, योग्य शिक्षकों की कमी,
अत्यधिक अनुपातहीन छात्र-शिक्षक अनुपात, और अपर्याप्त शिक्षण सामग्री जैसे शिक्षा की
गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारकों के आभाव का सामना कर रहे हैं।
हाल के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 97,273 एकल शिक्षक स्कूल हैं, जो देश के कुल स्कूलों का
लगभग 8.8 प्रतिशत है। ऐसी बाधाएं न केवल शिक्षा की खराब गुणवत्ता की ओर ले जाती हैं, बल्कि
ग्रामीण स्कूलों में चौदह वर्ष की आयु तक लगभग 50 प्रतिशत के उच्च ड्रॉपआउट दर (high
dropout rate) में भी योगदान दे रही हैं। आंकड़ों के अनुसार 2016 तक, प्राथमिक विद्यालयों में
शिक्षकों के 9,07,585 पद और माध्यमिक विद्यालयों में 1,06,906 पद रिक्त थे।
इस संबंध में मल्टीमीडिया या प्रौद्योगिकी का उपयोग उपरोक्त चिंताओं को कम करने में मदद
कर सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों को मल्टीमीडिया शिक्षण उपकरण प्रदान करके और छात्रों
को सीखने के तरीकों के माध्यम से शिक्षा का डिजिटलीकरण किया जा सकता है। जहां वह बच्चों
को विभिन्न अवधारणाओं को सिखाने के लिए डिजिटल टूल, जैसे स्मार्ट-बोर्ड, एलसीडी स्क्रीन,
वीडियो (Digital tools, such as smart-boards, LCD screens, video) आदि का उपयोग कर
सकते हैं। इंटरैक्टिव डिजिटल मीडिया एक शिक्षक के लिए दूर रहते हुए भी सूचना देना संभव
बनाकर, इन स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करने में भी मदद करेगा।
हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों को डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने में सीमित प्रशिक्षण,
पहली बार प्रौद्योगिकी के संपर्क में आने और शिक्षण के नए तरीकों की आशंका जैसी कुछ
चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, शिक्षकों को भी पर्याप्त तकनीकी प्रशिक्षण
प्रदान करना महत्वपूर्ण है। इस महत्वपूर्ण काम को सरकार के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठनों
(एनजीओ) और कॉरपोरेट्स के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) आर्म्स ((NGO)
and Corporate Social Responsibility (CSR) Arms of Corporates) द्वारा शुरू किए गए
प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किया जा सकता है।
डिजिटाइजेशन द्वारा सुगम इंटरएक्टिव लर्निंग (Easy Interactive Learning), कक्षाओं में
सीखने की प्रक्रिया को दिलचस्प बना सकता है और बदले में, छात्रों को नियमित रूप से स्कूल जाने
के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। केंद्र के साथ-साथ सभी राज्य सरकारें इस दिशा में ठोस प्रयास
कर रही हैं। डिजिटल इंडिया के प्रमुख स्तंभों में से एक 'ई-क्रांति' के तहत, भारत सरकार ने इंटरनेट
सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचागत व्यवस्था के साथ देश के दूरदराज के क्षेत्रों को सशक्त बनाने के
लिए विभिन्न दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग किया है। हालांकि, इस संदर्भ में हमें और
अधिक प्रयासों की आवश्यकता है, क्योंकि केवल 9 प्रतिशत ग्रामीण भारत की ही इंटरनेट तक
पहुँच है।
2018-19 के केंद्रीय बजट से, सरकार का ध्यान प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके शिक्षा की गुणवत्ता
में सुधार लाने पर रहा है। डिजिटल शिक्षा के लिए सरकार द्वारा 456 करोड़ रुपये आवंटित किए
हैं। साथ ही एनजीओ भी ग्रामीण भारत में डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के साथ-साथ प्रयास
कर रहे हैं। इस क्रम में अगला तार्किक कदम दोनों संस्थाओं के संसाधनों को एक साथ लाना और
प्रभाव को अधिकतम करने के लिए इन पहलों को बड़े पैमाने पर लागू करना होगा। ग्रामीण स्कूलों
में छात्रों के लिए डिजिटल शिक्षा उन्हें शहरी क्षेत्रों के छात्रों के बराबर ला सकती है और शिक्षा का
सार्वभौमिकरण कर सकती है, इस प्रकार यह भारत के राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा दे सकती है।
डिजिटल शिक्षा प्रदान करने के संदर्भ में हमारा जौनपुर शहर भी बिल्कुल पीछे नहीं है। आपको
जानकर प्रसन्नता होगी की जौनपुर में परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को ग्रह-नक्षत्र की जानकारी
देने के लिए डिस्कवरी लैब (Discovery Lab) की स्थापना की जा रही है। यद्यपि फिलहाल लैब
ब्लॉक स्तर पर सिकरारा के ताहिरपुर विद्यालय में ही बनी है।
वहीं सुरेरी, शाहगंज और डोभी में भी
डिस्कवरी लैब बनाने का काम शुरू कर दिया गया है। इस अत्याधुनिक डिस्कवरी लैब के माध्यम से
बच्चों या जिज्ञासुओं को तारामंडल की जानकारी, ग्रह नक्षत्र की स्थिति और ग्लोब (Globe) की
संरचना समेत अन्य तमाम तरह की जानकारी परिषदीय विद्यालय के बच्चों को प्रदान की
जाएगी। इसके तहत जौनपुर के 218 न्याय पंचायत के 1-1 विद्यालय में डिस्कवरी लैब की
स्थापना की जाएगी। इस आधुनिक लैब में स्मार्ट गैजेट (smart gadget) इंस्टॉल किए जाएंगे।
कक्ष में टीवी के साथ अन्य उपकरण भी लगाए जाएंगे। तथा दर्शकों को 3D चश्मे भी दिए जाएंगे।
इसके साथ ही विज्ञान विषय के विशेषज्ञ को बैठाकर बच्चों को जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।
संदर्भ
https://bit.ly/3A9229f
https://bit.ly/3d77MY4
https://bit.ly/3zPU2ZI
चित्र संदर्भ
1. ऑनलाइन प्रार्थना करते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कक्षा में बैठे बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. डिजिटल कक्षा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कंप्यूटर सीखते छात्रों को दर्शाता एक चित्रण (New Internationalist)
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