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वर्तमान समय में सड़क सुरक्षा राष्ट्रीय चिंता का एक प्रमुख मुद्दा बन गई है।सड़कों पर भारी
यातायात,तेज गति से वाहन चलाना आदि कारकों की वजह से आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती
रहती हैं।भारत में सड़क दुर्घटना दर बहुत अधिक है।हमारे 29 राज्यों में से तमिलनाडु और उत्तर
प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं,जो सड़क दुर्घटना के मामले में सबसे खराब स्थिति में हैं।भारत में,
मलेरिया, तपेदिक या एचआईवी की तुलना में हर साल सड़क दुर्घटनाओं से अधिक लोगों की
मृत्यु होती है। अकेले 2019 में, सड़क दुर्घटनाओं से लगी चोट के कारण 1.51 लाख से अधिक
लोगों की मौत हुई।यदि उपरोक्त तीनों बीमारियों से हुई मौतों की कुल संख्या को देखा जाए, तो
भी सड़क दुर्घटनाओं के कारण हुई मौतों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। उदाहरण के लिए2019
में, मलेरिया से 7,700 लोगों की मौत हुई थी, ह्यूमन इम्युनो डेफिशिएंसी (Human
immunodeficiency) वायरस ने 58,960 लोगों की जान ली थी, जबकि तपेदिक ने 79,144
लोगों की जान ली थी।वहीं सड़क दुर्घटनाओं के कारण मरने वाले लोगों की संख्या इनकी कुल
संख्या से भी अधिक है।
हालांकि सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति में पहले से कुछ सुधार होता दिख रहा है। 2018 और
2020 के बीच भारत में सड़क यातायात से सम्बंधित दुर्घटनाओं में गिरावट देखी गई है। 2018
में राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे में 1,40,843 सड़क दुर्घटनाएं हुईं थी, जो 2019 में गिरकर
1,37,191 हुई और 2020 में फिर से घटकर1,16,496 हुई। 2020 के अनंतिम आंकड़ों के
अनुसार, सड़क यातायात से सम्बंधित कुल दुर्घटनाएं 1,16,496 थी,जिसमें 41.6 प्रतिशत
योगदान दक्षिण भारत (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और गोवा, अंडमान
और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और पुडुचेरी सहित) का था। 2018 में ये आंकड़े 59,280
और 2019 में 57,457 थे।
भारत में सड़क यातायात से सम्बंधित दुर्घटनाओं को कम करने के लिए एक इंजीनियरिंग
संचालित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।भारत में 50 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं सड़क इंजीनियरिंग
समस्याओं के कारण होती हैं। यदि पहले ही ब्लैक स्पॉट (Black spot) की पहचान कर ली जाए
और उनमें सुधार किया जाए तो सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है।परिवहन में, एक
ब्लैक स्पॉट से तात्पर्य सड़क के उस छोटे हिस्से से है, जो आमतौर पर लगभग 500 मीटर लंबा
होता है, तथा वहां पर किसी दुर्घटना के होने का खतरा बना रहता है।सड़क के एक हिस्से को
ब्लैक स्पॉट तब कहा जाता है, जब पिछले तीन वर्षों के दौरान ऐसी पांच दुर्घटनाएं हुई हों,
जिसमें लोगों को गंभीर चोटें आयी हों या अनेकों लोगों की मौतें हुई हों।राष्ट्रीय राजमार्गों और
राज्य राजमार्गों पर ब्लैक स्पॉट की पहचान और उनमें सुधार सड़क यातायात दुर्घटनाओं को कम
करने के लिए भारत की नीतियों के आयामों में से एक रहा है। ब्लैक स्पॉट का सुधार
अल्पकालिक उपायों का उपयोग करके किया जाता है,जैसे सड़क पर सतर्क संकेतों और चिह्नों
को स्थापित करना, ट्रांसवर्स बार मार्किंग (Transverse bar marking), रंबल स्ट्रिप्स (Rumble
strips) और सोलर ब्लिंकर (Solar blinkers)आदि। इसके अलावा जहां आवश्यक हो वहां
दीर्घकालिक उपचार जैसे कि फ्लाईओवर, अंडरपास, फुट-ओवर ब्रिज, सर्विस रोड आदि का भी
उपयोग किया जाता है।ब्लैक स्पॉट की सघनता मुख्य रूप से पांच क्षेत्रों - दक्षिण, पूर्व, उत्तर-
पश्चिम, उत्तर और मध्य में स्थित है, तथा इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सड़क हादसों की सूचना
प्राप्त होती है।
भारत की सबसे अधिक दुर्घटना संभावित सड़कें दिल्ली-कोलकाता राजमार्ग, दिल्ली-मुंबई
हाईवे,नोंगस्टोइन - सबरूम (Nongstoin – Sabroom)हाईवे, ठाणे-चेन्नई हाईवे, चेन्नई - थेनी
हाईवे आदि हैं।हमारे जौनपुर में भी हर महीनें कुछ बड़े हादसे होते रहते हैं।सड़क क्षति निवारण
के लिए सड़क नेटवर्क को आकार देना अत्यधिक आवश्यक है।सड़क क्षति निवारण के लिए कई
सड़क सुरक्षा अभियान भी शुरू किए गए हैं।इन पहलों में दुर्घटना संभावित स्थलों की पहचान
और सुधारात्मक उपाय तथा विभिन्न जागरूकता अभियान शामिल हैं।सड़क सुरक्षा को बनाए
रखने के लिए समाज को इस सम्बंध में मौलिक जानकारी दी जानी चाहिए।वाहनों के लिए सीट
बेल्ट, पावर-स्टीयरिंग, एंटीलॉक ब्रेकिंग सिस्टम आदि जैसे सुरक्षा मानकों का सख्ती से उपयोग
करवाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय राजमार्ग दुर्घटना राहत सेवा योजना के तहत विभिन्न राज्य
सरकारों को राष्ट्रीय राजमार्गों पर क्रेन और एम्बुलेंस जैसी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।सभी
शहरों को कुशल रिंग रोड सिस्टम के साथ-साथ बाय पास सिस्टम से जोड़ना चाहिए। इसी तरह,
भारी यातायात को पूरा करने वाले सभी प्रमुख जंक्शनों पर यातायात की निर्बाध आवाजाही
प्रदान करने के लिए फ्लाई ओवर या अंडरपास होने चाहिए।यातायात प्रवाह और सुरक्षा में सुधार
के लिए एक बहुत ही लागत प्रभावी विकल्प प्रदान करने के अलावा वाहन परिचालन लागत को
बचाने के लिए सड़क का रखरखाव बहुत आवश्यक है। यदि समय पर रखरखाव नहीं किया जाता
है, तो परिसंपत्ति कम अवधि तक ही सेवा प्रदान कर पाएगी।कीमती सड़क संपत्तियों को बनाए
रखने के लिए सरकार को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।पार्किंग स्थल और सड़क किनारे
पार्किंग की सुविधा नहीं होने के कारण लोग कैरिजवे और यहां तक कि पैदल रास्तों पर भी
वाहन पार्क करते थे, जिससे ट्रैफिक जाम और दुर्घटनाएं होती हैं।इसलिए यातायात की मांग काविश्लेषण करने और भविष्य में यातायात की मांग को ध्यान में रखते हुए सभी सड़कों पर
पर्याप्त पार्किंग सुविधाएं प्रदान करने के लिए नीतियां तैयार की जानी चाहिए।
जल निकासी की पर्याप्त सुविधा का अभाव भी अक्सर सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनता है।
इस समस्या के समाधान के लिए कम से कम शहरी क्षेत्रों में नालियों की उचित व्यवस्था की
जानी चाहिए।सड़कों के दुर्घटना संभावित हिस्सों को ठीक करने के अनेकों उपाय हैं। सड़क सुरक्षा
में सरकार की सहायता करके इन्हें ठीक करने पर काम किया जाना चाहिए, ताकि सड़क
दुर्घटनाओं को कम किया जा सके।
संदर्भ:
https://bit.ly/33x9Pju
https://bit.ly/3oW5lLF
https://bit.ly/3DQojaA
https://bit.ly/3ITbCiO
https://bit.ly/3yvYJ9Y
https://bit.ly/3IT9iZt
चित्र संदर्भ
1. सड़क दुर्घटना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 2001 से 2010 तक सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए और घायल हुए व्यक्तियों की कुल संख्या को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हैदराबाद आउटर रिंग रोड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सड़क पर जल भराव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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