पेड़-पोंधे निश्चित ही मानव जीवन के अभिन्न अंग होते हैं। ये न केवल प्राणवायु ऑक्सीज़न प्रदान करते हैं, साथ ही मानवता को आर्थिक रूप से भी बल प्रदान करते हैं। जिस कारण यह अति आवश्यक हो जाता है, की हम मानव विकास की दर को कुदरत के समतुल्य लेकर चलें। इनमे से एक सड़कों का विस्तार भी कई मायनों में अहम हो जाता है। जहां राष्ट्रीय राजमार्गों को बनाने के लिए लाखों पेड़ों को काटा जाना ज़रूरी होता है ,वही इन कटे हुए पेड़ों की भरपाई करने हेतु नए पेड़-पोंधो को लगाना भी बेहद ज़रूरी हो जाता है। हालांकि यह एक चुनौतीपूर्ण काम है, परन्तु सरकार प्रकृति की अहमियत को समझते हुए आर्थिक विकास कर रही हैं। एक उदाहरण से यह तथ्य बेहतर समझा जा सकता है।
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे (DME) परियोजना के अंतर्गत फेज-4 पर 40,000 हरे भरे पेड़ों को रोपित करने का लक्ष्य तय किया गया है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने 32 किमी स्ट्रेच पर लगभग 40,000 पेड़ इस मानसून के अंतरगत लगाने का निश्चय किया है। DME में चार चरण शामिल हैं। जिनमे से पहले (अक्षरधाम से यूपी गेट) और तीसरे चरण (डासना से हापुड़) पर काम चल रहा है। एनएचएआई (NHAI) ने चौथे चरण के लिए एक्सप्रेसवे के किनारों पर नीम, आंवला, अमलतास जैसी विभिन्न प्रजातियों के 40000 से अधिक पेड़ों को लगाना प्रस्तावित किया है। साथ ही नए पोंधों का उचित रखरखाव करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में पानी के टैंकरों की भी व्यवस्था की गयी है। इस परियोजना के सफलता पूर्वक पूरा हो जाने के बाद दिल्ली और मेरठ के बीच लगने वाले यात्रा समय को, और ट्रैफिक को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। और साथ ही यह पड़ोसी राज्य उत्तराखंड की लम्बी दूरी की यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए भी लाभकारी साबित होगा।
सड़को का निर्माण यदि प्रकृति की महत्ता को ख्याल में रखकर किया जाय तो यह हमारे समय को बचाने के परिपेक्ष्य में वरदान साबित हो सकती हैं। क्यों की सड़क किनारे पेड़ वाहनों से निकलने वाले जहरीले धुएं से हानिकारक कणों को अवशोषित कर देते हैं, जो की कई प्रकार वायु जनित त्वचा रोग, और स्वांस जनित रोगों से लड़ने में बेहद सहायक साबित हो सकते हैं। साथ ही वृक्ष ध्वनि प्रदुषण के स्तर को काफी हद तक कम कर सकते हैं। निश्चित ही इस तरह की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं सफल होती हैं। और आज जबकि पूरी दुनिया महामरियों की चपेट में है, इस कारण भी प्रकृति के अनुरुप निर्माण कार्य करना ज़रूरी हो जाता है।
अधिकतर मामलों में बात केवल वाहनों से होने वाले प्रदूषण की की जाती है। परन्तु वायुयान, हवाई जहाजों के आवागमन से भी हमारा वायुमंडल प्रभावित होता है। मेरठ की हवाई पट्टी का विस्तार करके उसे हवाई अड्डे का रूप देने के लिए जो भी बाधाएं थी सभी अब ख़त्म हो चुकी हैं। शीघ्र ही मेरठ वासियों को नए हवाई अड्डे की सौगात मिल सकती है। इस हवाई पट्टी के विस्तार के लिए अब केवल पर्याप्त जमीन की आवश्य्कता है। एएआइ ने उत्तर प्रदेश सरकार को कहा है, कि यदि उन्हें हवाई पट्टी के विस्तार के लिए पर्याप्त जमीन उपलब्ध करा दी जाय, तो 72 सीटों की क्षमता वाला हवाई जहाज यहाँ से उड़ान भर सकता है। ज़मीन की व्यवस्था करने में लगभग 362 करोड़ रुपयों का अनुमानित खर्च आ सकता है। इस तरह की परियोजनाएं निश्चित ही हमारे यात्रा समय को काफी हद तक कम कर सकती हैं। संतुलित विकास इसलिये भी आवश्यक है क्यों की यह कई मायनों में प्रकृति के अनुरूप कार्य करता है। जैसे सड़कों के निर्माण के समय यदि कम से कम पेड़ों को काटा जाय तथा किनारों पर अधिक मात्रा में पेड़ लगाए जाए तो यह निश्चित रूप से शहर के निवासियों के लिए कुछ नयी सम्बावना लेकर आएगा। आज जबकि प्रकृति को इतनी महत्ता दी जा रही है, तब इस तरह का वृक्ष रोपण नए सैलानियों को भी आकर्षित कर सकता है। साथ ही वातारवण में ओज़ोन परत के विस्तार को कम करेगा। और वातावरण को ठंडा और अनुकूल भी रख सकता है। आधुनिक विकास के परिपेक्ष्य में सरकार प्रकर्ति और पेड़ों का संरक्षण तथा उन्हें लगाने की योजना को शामिल करे। जैसा कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे (DME) परियोजना के अंतर्गत किया गया है। तो यह संतुलित विकास का एक बेजोड़ उदाहरण साबित हो सकता है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.