शरणार्थियों के संदर्भ में भारत का महत्वपूर्ण इतिहास

जौनपुर

 23-06-2021 10:14 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

आदिकाल से ही भारत "वसुधैव कुटुंबकम“अर्थात सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है” के मार्ग पर चला है। यही कारण है की आज भी भारत के पड़ोसी देशों के नागरिक अपने देश में हिंसा अथवा भुखमरी जैसे हालातों का सामना होने पर, हमारे देश भारत का रुख करते हैं। ऐसे लोग जो अपने मूल देश में किसी प्रकार की प्रताड़ना अथवा आधारभूत वस्तुओं के आभाव में दूसरे देशों में आधिकारिक अथवा अनाधिकारिक तौर पर प्रवास करने लगते है, वे मेज़बान देशों के शरणार्थी कहलाते हैं। भारत का कानून विभिन्न समूहों को शरणार्थियों के तौर पर स्वीकार करता है। चूँकि भारत अनेक धर्मों की जन्मस्थली भी रहा है, जिस कारण यहाँ प्रमुख रूप से हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और जैन धर्म, जैसे भारतीय मूल के धर्मों के अनुयायियों को सहर्ष स्वीकारा जाता है। इन शरणार्थियों में विशेष तौर पर भारत के विभाजन तथा 1971 में बांग्लादेश के नरसंहार के शिकार शरणार्थी हैं।भारत के विभाजन तथा 1971 में बांग्लादेश के नरसंहार के शिकार शरणार्थी हैं।
बिना किसी वैध वीजा (Valid Visa) के भारत में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को अवैध अप्रवासी (Illegal Immigrants) के तौर पर गिना जाता है, तथा भारत के कानून के तहत उन्हें गिरफ्तार तथा निर्वासित किया जा सकता है। भारत में शरणार्थियों से निपटने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है, इसके बजाय इनसे राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर निपटा जाता है, और इनकी स्थिति 1946 के एक अंतराष्ट्रीय अधिनियम द्वारा नियंत्रित की जाती है। 1955 में पहली बार भारतीय राष्ट्रीयता कानून नागरिकता अधिनियम (Indian nationality law governed by the Citizenship Act) (भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 से 11) पारित किया गया था, जिसके अंतर्गत नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) बनाना शामिल था। इसके अलावा समय-समय पर नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में पारित किए गए। (NRC) रजिस्टर को पहली बार असम राज्य के नागरिकों की प्रासगिक जानकारी को संरक्षित तथा अपडेट करने के लिए बनाया गया, किन्तु 1951 में निर्मित इस रजिस्टर को कभी अपडेट नहीं किया गया। हालाँकि 2013 में कोर्ट के आदेश के पश्चात बड़े पैमाने पर बदलाव देखा गया, और आज भारत की केंद्र और राज्य सरकारें सभी राज्यों और क्षेत्रों में NRC को लागू करने के लिए विभिन्न चरणों में हैं। भारतीय कानून जूस सोलि (jus soli) देश क्षेत्र के भीतर जन्म के आधार पर नागिरकता को नकारता है, और मुख्य रूप से जूस सेंगुइनिस ((jus sanguinis) वंश द्वारा नागरिकता) का समर्थन करता है। सबसे नवीनतम नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के 12 दिसंबर 2019 को भारत की संसद में पारित किया गया। भारत समेत अधिकांश दक्षिण एशियाई देशों में शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्धारित नहीं की गई है। भारत शरणार्थियों को अनिच्छा से स्वीकार करता है, जिसके लिए वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया जिम्मेदार ठहराता है। 1947 में भारत के विभाजन के बाद विश्व इतिहास का सबसे दर्दनाक प्रवासन देखा गया, जहां पड़ोसी मुल्क पकिस्तान से विस्थापित लाखों जनों को दिल्ली, पंजाब और बंगाल सहित देश के विभिन्न शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी सहणार्थी समस्या और बड़ी और 1951 में शरणार्थी सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र '1951 शरणार्थी सम्मेलन आयोजित किया गया। 1951 का कन्वेंशन(Convention) में उन व्यक्तियों को शरणार्थियों का दर्जा दिया गया, जिन्होंने अपना मूल राज्य अथवा नागरिकता खो दी, और जो अपने देश में प्रताड़ित किए जाने पर उत्पीड़ित होकर अन्य देशों में भाग गए थे। 1971 में भी पाकिस्तान में सैन्य दमन अपने चरम पर था जिस कारण लगभग दस मिलियन लोगों को भारत में शरण लेनी पड़ी, और इस समय भारत में भी असाधारण समस्याएं उत्पन्न हो गई। असम, त्रिपुरा और मेघालय में 330 शिविरों में बड़ी संख्या में शरणार्थियों के रहने से समस्या और बढ़ गई थी, विशेष तौर पर त्रिपुरा में 15 लाख की स्वदेशी लोगों के साथ नौ लाख शरणार्थी और जुड़ गए। संकट और भी भयावह हो गया जब इन शिविरों में जानलेवा हैजा कहर बरपाने लगा। भारत में लगभग 8,000 से 11,684 के करीब अफगानी शरणार्थी हैं, (इनमे कुछ पाकिस्तानी शरणार्थियों को भी शामिल किया जा सकता है ) जिनमे से अधिकांश हिन्दू तथा सिख समुदाय से हैं, और 2015 में, भारत सरकार ने 4,300 हिंदू और सिख शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की। हाल ही में पकिस्तान में भी गैर-मुस्लिमों के खिलाफ कई हिंसक घटनाएं देखी गई, जिस कारण भी कई पाकिस्तानी हिन्दुओं और सिखों ने भारत में शरण मांगी है। वर्तमान में विभिन्न भारतीय शहरों में अनुमानतः 400 पाकिस्तान मूल के हिन्दू शरणार्थी हैं।
भारत में लगभग 100,000 से अधिक श्रीलंकाई तमिल भी रहते हैं, और श्रीलंकाई गृहयुद्ध के उदय के साथ ही भारत को सुरक्षित पनाहगाह के रूप देखा गया, इनमे से अधिकांशतः आज तमिलनाडु, चेन्नई, मदुरै, तिरुचिरापल्ली और कोयंबटूर शहरों में), कर्नाटक (बेंगलुरु में), और केरल आदि राज्यों में बसे हैं। 2017 में UNHCR की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत लगभग 2,00,000 शरणार्थियों की मेजबानी कर रहा है। ये शरणार्थी मुख्यतः म्यांमार, अफगानिस्तान, सोमालिया, तिब्बत, श्रीलंका, पाकिस्तान, फिलिस्तीन और बर्मा जैसे असंख्य देशों से हैं। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि भारत पूरे क्षेत्र के लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल रहा है।

संदर्भ

https://bit.ly/3iYLxEG
https://bit.ly/3zJWC2c
https://bit.ly/2Udmbsg

चित्र संदर्भ

1. लद्दाख भारत में तिब्बती शरणार्थी का एक चित्रण (flickr)
2. बांग्लादेश में रायरबाजार हत्या क्षेत्रों की ऐतिहासिक तस्वीर, 1971। यह 1971 के बांग्लादेश नरसंहार के हिस्से के रूप में बुद्धिजीवियों की हत्या को दर्शाता है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत में बंगाली शरणार्थी का एक चित्रण (flickr)



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