व्हेल एक समुद्री स्तनधारी होती हैं, जो अन्य जानवरों के साथ समुद्र साझा करती हैं। ये जीव बहुत अलग हैं
और समुद्र में जीवित रहने के लिए अनुकूलित हैं। व्हेल हवा में सांस लेती हैं, दूध का उत्पादन करती हैं, जन्म
देती हैं और गर्म रक्त वाली होती हैं। इसके बावजूद कि ये स्तनधारी समुद्र में पाई जाती हैं। व्हेल ताजे पानी
के वातावरण में लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती हैं। वास्तव में व्हेल की सभी ज्ञात प्रजातियाँ ताजे पानी
के बजाय खारे पानी के वातावरण में रहती और पनपती हैं, इसके पीछे भी कई कारण मौजूद हैं। व्हेल तथा
इनके शिकार खारे पानी के प्राकृतिक गुणों से जैविक रूप से अनुकूलित होते हैं, और तथ्य यह है कि खारा
पानी अक्सर मीठे पानी की तुलना में गहरे वातावरण में पाए जाता है। खारे पानी में लवण और खनिज होते हैं
जो संक्रमण को दूर करने में मदद करते हैं और घाव या घाव को ठीक करने में सहायता करते हैं जो एक व्हेल
को शार्क (Shark) या अन्य व्हेल से लड़ने के कारण लगी चोट और घावों से हो सकते हैं। वहीं खारे पानी में
व्हेल को पर्याप्त भोजन प्राप्त हो जाता है, जो आमतौर पर समुद्र में पाया जाता है, न की ताजे पानी में, यह
भी एक आम कारण है कि क्यों व्हेल ताजे पानी में नहीं पाई जाती है। मीठे पानी के वातावरण के विपरीत,
नमकीन महासागर बड़ा और विशाल है, जिससे व्हेल को गहरा गोता लगाने की अनुमति मिलती है, जहां वे
अपनी आहार संबंधी जरूरतों से संबंधित पर्याप्त खाद्य स्रोत पा सकते हैं। वहीं उथले मीठे पानी के वातावरण
में व्हेल जमीन पर फंसने का जोखिम उठाती हैं और निर्जलीकरण का शिकार हो सकती हैं। साथ ही जैसा कि
हम जान चुके हैं कि व्हेल काफी भारी होते हैं, इसलिए जितना संभव हो उतना कम प्रयास करके पानी की
सतह पर तैरना उनके लिए काफी जरूरी होता है, और खारे पानी के गुण व्हेल को पानी में आसानी से तैरने में
मदद करते हैं।
परंतु क्या आप जानते हैं कि लाखों साल पहले व्हेल अन्य चार पैरों वाले जीवों की तरह भूमि पर ही रहा करती
थी।
एक नए अध्ययन के अनुसार, व्हेल जोकि ग्रह पर सबसे बड़ा जानवर है, लगभग 2-3 मिलियन साल पहले
महासागरों में अपने भोजन के वितरण में परिवर्तन के परिणामस्वरूप इसका विशाल आकार विकसित हुआ है।
भोजन की तलाश में ये जीव भूमि से जल में उतरे जिससे इनके पैर पंखों में रूपांतरित हो गये। वहीं कुछ व्हेल
में आज भी पैरों की हड्डियां आंशिक रूप से दिखायी देती हैं। समुद्र में पायी जाने वाली पहली व्हेल पैकिसीटस
(Pakicetus) थी। लेकिन यह परिवर्तन उतना क्रमिक नहीं था जितना आप सोच सकते हैं। आज की ब्लू
(Blue) व्हेल पैकिसीटस की तुलना में 10 हजार गुना अधिक भारी है,और तब पैकिसीटस का आकार छोटा था
तब वे केवल 18 फीट लंबे थे।
आश्चर्य की बात तो यह है कि व्हेल द्वारा ये विशाल आकार कैसे प्राप्त किया गया?शोधकर्ताओं द्वारा पता
लगाया गया कि लगभग 4.5 मिलियन साल पहले व्हेल के शरीर का आकार बढ़ना शुरू हुआ था और, लगभग
उसी समय के आस-पास न केवल 10 मीटर से अधिक लंबे शरीर वाली व्हेल विकसित होने लगीं, बल्कि व्हेल
की छोटी प्रजातियां भी गायब होने लगीं।
वहीं कुछ अन्य शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि हिम युग की शुरुआत में हुई विकासवादी बदलाव, जलवायु
परिवर्तन से मेल खाती है, जिसने दुनिया के महासागरों में व्हेल के भोजन की आपूर्ति को नया आकार दिया
होगा। इस परिवर्तनकाल के समय, काफी उच्च मात्रा में क्रिल (krill) प्राप्त होने लगी और बैलेन व्हेल (Baleen
whales), जो समुद्री जल से छोटी मछलियों (जैसे क्रिल) का सेवन करती हैं, ने इस मौके का अच्छी तरह से
लाभ उठाया। बैलेन व्हेल के चयनात्मक आहार प्रणाली (filter-feeding systems), जो लगभग 30 मिलियन
साल पहले विकसित हुई थी, मूल रूप से बड़े आकार वृद्धि के लिए मंच निर्धारित करती है। जैसे-जैसे शिकार
के समृद्ध स्रोत विशेष स्थानों और वर्ष के समय में केंद्रित होते गए, इसने व्हेल की खाद्य आपूर्ति को बढ़ाया
और इस तरह दशकों में उनके शरीर के आकार में क्रमिक विकास हुआ। वास्तव में, सबसे बड़ी ब्लू व्हेल इतनी
विशाल हैं कि वैज्ञानिकों को लगता है कि उन्होंने आकार कि प्राकृतिक सीमा को पार कर लिया है। जब वे
भोजन करने के लिए अपने चौड़े मुंह को खोलते हैं तो वे एक बड़े कमरे जितना पर्याप्त पानी भरते हैं। इसलिए
उन्हें फिर से बंद करने में 10 सेकंड (Seconds) तक का समय लग सकता है।
हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य (Indian Ocean Whale Sanctuary) व्हेल की कई प्रजातियों का घर है, यहां
अक्सर ब्लू व्हेल (Blue Whale), फिन व्हेल (Fin Whale), हम्पबैक व्हेल (Humpback Whale), स्पर्म व्हेल
(Sperm Whale), मिंक व्हेल (Minke Whale), ब्रायड्स व्हेल (Bryde’s Whale ) आदि देखने को मिलती हैं।
इसे भारत में व्हेल के संरक्षण के लिए बनाया गया है। दरसल सेशेल्स (Seychelles) जैसे छोटे द्वीप
राष्ट्रद्वारा लाया गया अभयारण्य प्रस्ताव, 16/3 मतों से पारित हुआ। जापान (Japan), दक्षिण कोरिया (South
Korea) और सोवियत संघ (Soviet Union) इसके खिलाफ मतदान करने वाले देश थे। यह हिंद महासागर का
वह क्षेत्र है जहां अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (International Whaling Commission) द्वारा सभी प्रकार के
वाणिज्यिक व्हेलिंग (whaling) पर प्रतिबंध लगाया है।
हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य की स्थापना 1979 में
हुई थी और प्रत्येक 10 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग द्वारा हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य की स्थिति
की समीक्षा की जाती है।हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य की अब तक 1989, 1992, 2002 और 2012 में चार
बार समीक्षा की जा चुकी है। हिंद महासागर व्हेल अभयारण्य दक्षिण से 55°S अक्षांश तक फैला हुआ है,
जिसकी पश्चिमी सीमा अफ्रीका (Africa) द्वारा 20°E देशांतर और ऑस्ट्रेलिया (Australia) द्वारा 130°E
देशांतर की पूर्वी सीमा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/35J8dRq
https://bit.ly/2KPhKME
https://bit.ly/35IpqKS
https://bit.ly/3gPE9cc
https://nyti.ms/3qeZyQl
चित्र संदर्भ
1. व्हेल मछली का एक चित्रण (unsplash)
2. एक शुक्राणु व्हेल कंकाल की विशेषताएं दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (आईडब्ल्यूसी) के सदस्यों को नीले रंग में दिखाने वाला विश्व मानचित्र (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.