एक समय, रेडियो मनोरंजन और सूचना का एक प्रमुख स्रोत था, जो स्थानीय समाचार, संगीत और अपडेट प्रदान करके निवासियों को उनके समुदाय और उससे परे से जोड़े रखता था। हालाँकि, डिजिटल मीडिया और इंटरनेट के उदय के साथ, रेडियो के उपयोग में काफ़ी गिरावट आई है। लोग अब समाचार, सूचना और संगीत तक पहुंचने के लिए इंटरनेट, यूट्यूब और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों की ओर रुख करते हैं। ट्राई की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में हमारे अपने ही जौनपुर में इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या लगभग 366,495 थी। इस बदलाव के बावजूद, रेडियो, इतिहास का एक पुराना हिस्सा है, जहां एक समय यह रोज़मर्रा की ज़िंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। तो आइए, भारत में रेडियो की शुरुआत, इसके पहले प्रसारण से लेकर 1936 में ऑल इंडिया रेडियो के निर्माण तक, के बारे में जानते हैं। इसके बाद, 1952 में आकाशवाणी पर फ़िल्मी गानों पर लगाए गए प्रतिबंध और रेडियो एवं फिल्मों पर इसके प्रभाव के विषय में जानेंगे। अंत में, हम रेडियो के आविष्कार के बारे में बात करेंगे।
भारत में रेडियो की शुरुआत-भारत में रेडियो का प्रसारण, वास्तव में, आकाशवाणी के अस्तित्व में आने से लगभग 13 वर्ष पहले शुरू हुआ था। जून 1923 में 'रेडियो क्लब ऑफ़ बॉम्बे' (Radio Club of Bombay) ने देश में पहला प्रसारण किया। इसके पांच महीने बाद 'कलकत्ता रेडियो क्लब' (Calcutta Radio Club) की स्थापना की गई। 23 जुलाई, 1927 को 'इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी; (The Indian Broadcasting Company (IBC)) अस्तित्व में आई, लेकिन तीन साल से भी कम समय में यह बंद हो गई। अप्रैल 1930 में, उद्योग और श्रम विभाग के तहत 'भारतीय प्रसारण सेवा' ने प्रायोगिक आधार पर अपना परिचालन शुरू किया। अगस्त 1935 में लियोनेल फ़ील्डन को प्रसारण का पहला नियंत्रक नियुक्त किया गया। अगले महीने आकाशवाणी मैसूर में एक निज़ी रेडियो स्टेशन स्थापित किया गया। 8 जून, 1936 को 'भारतीय राज्य प्रसारण सेवा' को 'ऑल इंडिया रेडियो' (All India Radio (AIR)) में बदल दिया गया।
अगस्त, 1937 में 'केंद्रीय समाचार संगठन' (Central News Organisation (CNO)) अस्तित्व में आया। उसी वर्ष, ए आई आर, संचार विभाग के अधीन आ गया और चार साल बाद सूचना और प्रसारण विभाग के अधीन आ गया। स्वतंत्रता के समय, भारत में दिल्ली, बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचिरापल्ली और लखनऊ में छह और पाकिस्तान में तीन (पेशावर, लाहौर और ढाका) रेडियो स्टेशन थे। तब आकाशवाणी का कवरेज केवल 2.5% क्षेत्र और 11% जनसंख्या तक था। अगले वर्ष, केंद्रीय समाचार संगठन को दो प्रभागों - समाचार सेवा प्रभाग (News Services Division (NSD)) और बाहरी सेवा प्रभाग (External Services Division (ESD)) - में विभाजित किया गया। 1956 में राष्ट्रीय प्रसारक के लिए आकाशवाणी नाम अपनाया गया। 1957 में लोकप्रिय फ़िल्म संगीत को मुख्य घटक के रूप में 'विविध भारती सेवा' शुरू की गई थी।
ऑल इंडिया रेडियो द्वारा हासिल की गई अभूतपूर्व वृद्धि ने इसे दुनिया के सबसे बड़े मीडिया संगठनों में से एक बना दिया है। 262 रेडियो स्टेशनों के नेटवर्क के साथ, आकाशवाणी की आज देश की लगभग पूरी आबादी और कुल क्षेत्रफल के लगभग 92% तक पहुँच है। एक प्रसारण दिग्गज के रूप में, ए आई आर, आज सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से विविध आबादी के विशाल स्पेक्ट्रम के लिए 23 भाषाओं और 146 बोलियों में प्रसारण करता है। विदेश सेवा प्रभाग के कार्यक्रम 11 भारतीय और 16 विदेशी भाषाओं में प्रसारित होते हैं जो 100 से अधिक देशों तक पहुंचते हैं। इन बाहरी प्रसारणों का उद्देश्य विदेशी श्रोताओं को देश में विकास के बारे में सूचित रखना और साथ ही भरपूर मनोरंजन प्रदान करना है।
ऑल इंडिया रेडियो का समाचार सेवा प्रभाग घरेलू, क्षेत्रीय, बाहरी और डी टी एच सेवाओं में लगभग 90 भाषाओं में लगभग 56 घंटे की कुल अवधि के लिए प्रतिदिन 647 बुलेटिन प्रसारित करता है। 41 आकाशवाणी केंद्रों से प्रति घंटे के आधार पर 314 समाचार सुर्खियाँ एफ़ एम मोड पर भी प्रसारित की जा रही हैं। 44 क्षेत्रीय समाचार इकाइयां 75 भाषाओं में 469 दैनिक समाचार बुलेटिन निकालती हैं। दैनिक समाचार बुलेटिनों के अलावा, समाचार सेवा प्रभाग दिल्ली और इसकी क्षेत्रीय समाचार इकाइयों से सामयिक विषयों पर कई समाचार-आधारित कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं।
वर्तमान, में ऑल इंडिया रेडियो, 18 एफ़ एम (FM) स्टीरियो चैनल संचालित करता है, जिन्हें ऐर एफ़ एम (AIR FM) रेनबो कहा जाता है। इसके अलावा, ए आई आर एफ़ एम गोल्ड नाम के चार अन्य एफ़ एम चैनल दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई से समग्र समाचार और मनोरंजन कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। देश भर में एफ़ एम लहर के प्रसार के साथ, आकाशवाणी क्षेत्रीय स्टेशनों पर अतिरिक्त एफ़ एम ट्रांसमीटरों के साथ अपने मीडियम वेव ट्रांसमिशन को बढ़ा रहा है। ट्रांसमिशन के डिजिटल मोड में परिवर्तन के सरकार के फैसले को ध्यान में रखते हुए, ए आई आर चरणबद्ध तरीके से एनालॉग से डिजिटल में स्विच कर रहा है।
ऑल इंडिया रेडियो पर हिंदी फ़िल्मी गानों के प्रसारण पर प्रतिबंध:क्या आप जानते हैं कि 1952 में ऑल इंडिया रेडियो पर हिंदी फ़िल्मी गानों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था I 1952 में नव स्वतंत्र भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री बी. वी केसकर का मानना था कि फ़िल्मी गाने बहुत अधिक पश्चिमी और अश्लील थे, जो उज्ज्वल भविष्य के शिखर पर खड़े युवा राष्ट्र के सांस्कृतिक विकास में बाधा डाल सकते थे, इस कारण, उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर हिंदी फ़िल्मों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बजाय, उन्होंने प्रस्तावित किया कि देश के लोग रेडियो पर बौद्धिक शास्त्रीय संगीत को सुन सकते हैं। केसकर के अनुसार, शास्त्रीय संगीत के लिए देश की सराहना बहुत कम हो गई थी और यह "विलुप्त होने के कगार पर" थी - विशेष रूप से उत्तर भारत में। इसलिए, अपने देशवासियों को शास्त्रीय संगीत से परिचित कराने का दायित्व उन्होंने आकाशवाणी को दिया गया। 'तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले' और 'मुड़ मुड़ के ना देख' जैसे गज़ल और गाने, जिनमें उर्दू के शब्द और ऑर्केस्ट्रा की धुन थी, केसकर की परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाए। वे ऐसे गाने चाहते थे जिनमें बांसुरी, तानपुरा या सितार की धुन शामिल हो। और इसलिए उन्होंने सोचा कि मुख्यतः रेडियो के माध्यम से ही देश की संगीत विरासत को बचाया जा सकता है। इस फ़ैसले से निःसंदेह फ़िल्म उद्योग गुस्से में था। फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका ने केसकर को एक कुटिल व्यक्ति के रूप में चित्रित किया, जिसका निर्णय भारतीय फ़िल्म उद्योग की प्रतिष्ठा पर एक सोचा-समझा झटका था, साथ ही इसका उद्देश्य फ़िल्म संगीत को बाज़ार से बाहर करना था। जैसा कि केसकर ने अनुमान लगाया था, महज़ तीन महीने के भीतर रेडियो से फ़िल्मी संगीत पूरी तरह गायब हो गया। आकाशवाणी द्वारा शास्त्रीय संगीत के प्रसारण से यह कमी पूरी की गई।
वहीं दूसरी ओर, रेडियो सीलोन (Radio Ceylon) ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए, प्रसिद्ध संगीतमय शो जो पूरी तरह से भारतीय फ़िल्मी गीतों को समर्पित था, 'बिनाका गीतमाला' का निर्माण किया। प्रत्येक बुधवार को, भारतीय श्रोता रेडियो सीलोन सुनते थे और अपने पसंदीदा शो होस्ट अमीन सयानी के साथ अपने पसंदीदा गाने सुनते थे।
जैसे-जैसे भारत में रेडियो सीलोन की लोकप्रियता बढ़ी, केसकर का प्रभाव कम होता गया और सरकार को प्रतिबंध हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1957 में, विविध भारती की परिकल्पना आकाशवाणी पर एक ऐसी सेवा के रूप में की गई थी, जो नॉन-स्टॉप फ़िल्म संगीत प्रसारण की पेशकश करती थी। विविध भारती में विरासत और आधुनिकता, परंपरा और प्रगति का उत्कृष्ट मिश्रण किया गया था और यह जल्द ही काफ़ी लोकप्रिय हो गया। 1967 तक, विविध भारती ने व्यावसायिक दृष्टिकोण अपना लिया और यह विज्ञापन स्वीकार करने लगी थी।
रेडियो का आविष्कार: रेडियो के आविष्कार की दिशा में पहले प्रगति विद्युत चुम्बकीय तरंगों और उनकी क्षमता की खोज के रूप में हुई। हंस क्रिस्चियन ओर्स्टेड (Hans Christian Oersted) ने 1820 में सबसे पहले यह घोषणा की कि एक तार के चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र बनाया जाता है जिसके माध्यम से विद्युत धारा प्रवाहित होती है। 1830 में, अंग्रेज़ीभौतिक विज्ञानी माइकल फैराडे ने ओर्स्टेड के सिद्धांत की पुष्टि की, और विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत की स्थापना की। 1864 में, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रायोगिक भौतिकी के प्रोफेसर जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने एक सैद्धांतिक पेपर प्रकाशित किया जिसमें कहा गया कि विद्युत चुम्बकीय धाराओं को दूरी पर भी देखा जा सकता है। मैक्सवेल ने भी यह प्रतिपादित किया कि ऐसी तरंगें प्रकाश की गति से चलती हैं। 1880 के दशक के अंत में, जर्मन भौतिक विज्ञानी हेनरिक हर्ट्ज़ ने मैक्सवेल के सिद्धांत का परीक्षण किया। वह विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न करने में सफ़ल रहे और उनकी गति के बारे में मैक्सवेल की भविष्यवाणी की पुष्टि की। कुछ ही समय बाद, एक इतालवी आविष्कारक, गुग्लिल्मो मार्कोनी ने प्रयोगशाला से बाहर अपने घर के आँगन में ही विद्युत चुम्बकीय तरंगों का कम दूरी में प्रसारण किया। सितंबर, 1899 में, उन्होंने समुद्र में एक जहाज़ से न्यूयॉर्क में एक भूमि-आधारित स्टेशन तक अमेरिका के कप नौका दौड़ के परिणामों को टेलिग्राफ़ करके दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। 1901 के अंत तक, मार्कोनी ने अपनी खुद की वाणिज्यिक वायरलेस कंपनी की स्थापना की और पहला अटलांटिक पार सिग्नल प्रसारित किया।
कुछ समय तक, वायरलेस प्रसारण कोडित बिंदुओं और डैश तक ही सीमित रहे। लेकिन 24 दिसंबर, 1906 को कनाडा में जन्मे भौतिक विज्ञानी रेजिनाल्ड फेसेन्डेन ने मैसाचुसेट्स में अपने स्टेशन से मानव आवाज़ और संगीत का पहला लंबी दूरी का प्रसारण किया। उनका संकेत नॉरफ़ॉक, वर्जीनिया तक प्राप्त किया गया।
आविष्कारों की एक सतत धारा ने रेडियो को आगे बढ़ाया। 1907 में, अमेरिकी आविष्कारक ली डे फॉरेस्ट ने अपना पेटेंटेड ऑडियोन सिग्नल डिटेक्टर पेश किया, जिसने रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल को नाटकीय रूप से बढ़ाने की अनुमति दी। एक अन्य अमेरिकी आविष्कारक, एडविन आर्मस्ट्रांग ने 1918 में सुपरहेटरोडाइन सर्किट विकसित किया और 1933 में पता लगाया कि एफएम प्रसारण कैसे उत्पादित किया जा सकता है। एफ़ एम ने एएम की तुलना में अधिक स्पष्ट प्रसारण संकेत प्रदान किया।
रेडियो की सार्वजनिक मांग तेज़ी से बढ़ने लगी। लगभग 1910 में मनोरंजन प्रसारण शुरू हो गया, और इसमें डी फ़ॉरेस्ट का अपना कार्यक्रम भी शामिल था, जिसे उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में मेट्रोपॉलिटन ओपेरा हाउस से प्रसारित किया था। 1920 के दशक के अंत और 1950 के दशक की शुरुआत के बीच की अवधि को रेडियो का स्वर्ण युग माना जाता है, जिसमें कॉमेडी, नाटक, विविध शो, गेम शो और लोकप्रिय संगीत शो ने पूरे अमेरिका में लाखों श्रोताओं को आकर्षित किया। लेकिन 1950 के दशक में,टेलीविज़न के आगमन के साथ, यह स्वर्ण युग फीका पड़ गया। फिर भी, 1960 के दशक में शुरू हुए स्टीरियोफोनिक प्रसारण जैसे विकास ने रेडियो को अपनी लोकप्रियता बनाए रखने में मदद की।
संदर्भhttps://tinyurl.com/4nw94bbz
https://tinyurl.com/9xjex9em
https://tinyurl.com/yc4tsup2
चित्र संदर्भ1. ऑल इंडिया रेडियो के एक साइन-बोर्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ऑल इंडिया रेडियो, पुणे के प्रवेश द्वार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. आकाशवाणी के प्रतीक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ऑल इंडिया रेडियो के एक कार्यक्रम में प्रस्तुति देते हुए प्रो.आर. पी. हुगर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रेडियो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)