पिछले कुछ सालों के दरमियान, भारत के दूसरे शहरों की तरह हमारे जौनपुर में भी जीवाश्म ईंधन यानी कच्चे तेल से चलने वाले वाहनों की बिक्री में इजाफ़ा हुआ है। भारतीय सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ने से पेट्रोल और डीज़ल की आवश्यकता भी तेज़ी के साथ बढ़ रही है।
आज, के इस लेख में हम भारत के तेल आयात की वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से जानेंगे। आज हम चर्चा करेंगे कि कच्चे तेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भरता हमारी अर्थव्यवस्था को कैसे नुकसान पहुंचा रही है। इसके बाद, ओपेक देशों (OPEC) पर ध्यान केंद्रित करते हुए हम देखेंगे कि वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों को कैसे नियंत्रित किया जाता है। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि अमेरिका, अपने आप पर्याप्त उत्पादन करने के बावजूद, कच्चे तेल का आयात क्यों करता है।
तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम नियोजन और विश्लेषण सेल (Petroleum Planning and Analysis Cell of the Oil Ministry) द्वारा जारी हालिया डेटा से भारत की तेल आयात
पर निर्भरता का पता चला है:
वित्तीय वर्ष |
तेल आयात पर निर्भरता (%) |
वित्त वर्ष 2024 |
87.80% |
वित्त वर्ष 2023 |
87.40% |
वित्त वर्ष 2022 |
85.50% |
वित्त वर्ष 2021 |
84.40% |
वित्त वर्ष 2020 |
85.00% |
वित्त वर्ष 2019 |
83.80% |
भारत को अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने के लिए, लगभग 85% तेल का आयात करना पड़ता है। आज, भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है। 2021 में, यूक्रेन पर रूसी कार्यवाही से पहले, भारत प्रति दिन, 4.2 मिलियन बैरल (एम एम बी डी) तेल आयात करता था। इसमें से 24% तेल इराक से, 16% सऊदी अरब से, 10% संयुक्त राज्य अमेरिका से, और 2% तेल का आयात रूस से किया गया। 2023 तक, भारत ने अपने आयात को बढ़ाकर 4.6 मिलियन बैरल कच्चा तेल कर दिया।
इस दौरान, रूस से आयातित तेल की मात्रा 2% से लगभग 40% तक बढ़ गई। वहीँ इराक का हिस्सा घटकर, 20% हो गया। भारत द्वारा आयात किए गए तेल में सऊदी अरब का हिस्सा घटकर 15% और संयुक्त राज्य अमेरिका का हिस्सा केवल 4% रह गया। भारत ने रूसी तेल उत्पादों का आयात भी 70,000 बैरल प्रतिदिन से बढ़ाकर 130,000 बैरल प्रतिदिन कर दिया। हालांकि इसके बावजूद, यह रूस के कुल तेल उत्पाद निर्यात का केवल 5% था।
रॉयटर्स (Reuters) की रिपोर्ट से पता चलता है कि मई 2024 तक, रूस ने भारत के कच्चे तेल आयात में 4.8 मिलियन बैरल प्रति दिन (एम एम बी डी) का 41% योगदान दिया। इराक का हिस्सा, 20% पर रहा। सऊदी अरब का हिस्सा केवल 11% था, और अमेरिका का हिस्सा 4% रहा। जुलाई 2024 के लिए, भारत ने रूस से 2 मिलियन बैरल प्रति दिन (एम एम बी डी) तेल अधिक खरीदा।
हालांकि इतनी अधिक मात्रा में तेल का आयात करना हमारे लिए कोई अच्छी ख़बर नहीं है। वास्तव में, कच्चे तेल के आयात पर हमारी अत्यधिक निर्भरता, भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही है। भारत की ईंधन और अन्य तेल उत्पादों की ज़रूरत निरंतर बढ़ रही है। साथ ही, घरेलू तेल के उत्पादन में तेज़ी के साथ गिरावट आ रही है।
इसका नतीजा यह हुआ कि अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच, आयातित कच्चे तेल पर देश की निर्भरता बढ़कर 88.3 प्रतिशत हो गई। आयातित तेल पर यह भारी निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था को कमज़ोर बना रही है। इस निर्भरता के वैश्विक स्तर पर तेल कीमतों में होने वाला छोटा सा बदलाव भी भारत को बहुत अधिक नुकसान पंहुचा सकता है। बड़ी हुई कीमत, भारत के व्यापार घाटे, विदेशी मुद्रा भंडार, रुपये के मूल्य और मुद्रास्फीति को भी प्रभावित करती है।
भारत में पर्याप्त तेल उत्पादन की कमी के कारण कच्चे तेल के आयात की ज़रूरत बढ़ गई है। ऊपर से, समय के साथ, तेल की मांग लगातार बढ़ रही है। साल 2015 में, सरकार ने वर्ष 2022 तक, तेल आयात निर्भरता को 67 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा था। यह लक्ष्य 2013-14 के 77 प्रतिशत से कम था। हालांकि, तब से देश की तेल आयात पर निर्भरता बढ़ती ही जा रही है।
आपके ज़हन में भी यह सवाल अक्सर गूंजा होगा कि पूरी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें कैसे तय होती हैं?
दुनिया के कई सबसे बड़े तेल उत्पादक देश पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (Organization of Petroleum Exporting Countries) या संक्षिप्त रूप से ओपेक (OPEC) नामक समूह से जुड़े हुए हैं। 2016 में, ओपेक ने उन अन्य प्रमुख तेल निर्यातक देशों के साथ मिलकर भी काम किया जो ओपेक में शामिल नहीं थे । इस नए समूह को ओपेक+ या “ओपेक प्लस (OPEC Plus)” कहा जाता है।
इस समूह का मुख्य लक्ष्य, मूल्यवान जीवाश्म ईंधन यानी कच्चे तेल की कीमत को नियंत्रित करना है। ओपेक दुनिया की लगभग 40% तेल आपूर्ति का प्रबंधन करता है और 80% से अधिक सिद्ध तेल भंडार (proven oil reserves) रखता है।
इस मजबूत स्थिति के कारण, बहुत कम समय में भी ओपेक + तेल की कीमतों पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, समय के साथ, कीमतों को प्रभावित करने की इसकी शक्ति कम हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अलग-अलग देशों के लक्ष्य, ओपेक + के लक्ष्यों से अलग होते हैं।
सभी ओपेक + देश मिलकर ही यह तय करते हैं कि कितने तेल का उत्पादन करना है। इस निर्णय से सीधे तौर पर वैश्विक बाज़ार में कच्चे तेल की उपलब्धता प्रभावित होती है। आमतौर पर, यह ज़्यादा पैसे कमाने के लिए कीमतों को ऊंचा रखने की कोशिश करता है। सऊदी अरब और रूस दो सबसे बड़े तेल निर्यातक देश हैं। वे अपना तेल उत्पादन बढ़ा सकते हैं, इसलिए वे अपनी आय बढ़ाने के लिए तेल की आपूर्ति बढ़ाने का समर्थन करते हैं। दूसरी ओर, कुछ देश उत्पादन नहीं बढ़ा सकते हैं। ऐसे देश, आपूर्ति बढ़ाने का समर्थन नहीं करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के पास पहले से ही कच्चे तेल का पर्याप्त भंडार है, लेकिन इसके बावजूद, वह दूसरे देशों से कच्चे तेल का आयात करता है।
चलिए जानते हैं, आखिर क्यों?
अमेरिका, अर्थशास्त्र और रसायन विज्ञान से संबंधित कुछ कारणों से कच्चे तेल का आयात करता है। इनमें सबसे बड़ा कारण यह है कि शिपिंग लागत जोड़ने के बावजूद विदेशों में उत्पादित तेल, आमतौर पर अमेरिका में उत्पादित तेल की तुलना में सस्ता होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि ज़मीन से तेल निकालने की लागत, जिसे "उठाने की लागत " के रूप में जाना जाता है, कुछ अन्य देशों में बहुत कम है। इस अंतर में कई कारक योगदान करते हैं। कच्चे तेल का आयात करने से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण कारकों में भूमि और पट्टे की कीमतें, साथ ही श्रम लागत शामिल हैं। रूस सहित, कई देश तेल निर्यात को अपनी रणनीति और शक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखते हैं। ये देश, अक्सर अपने तेल को अधिक प्रभावी ढंग से बेचने के लिए, कम कीमतों की पेशकश करते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/24p38qe4
https://tinyurl.com/24lc4oe5
https://tinyurl.com/27warvoh
https://tinyurl.com/y9nqy78c
चित्र संदर्भ
1. कच्चा तेल ले जाती ट्रेन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपनी मोटरसाइकिल में पेट्रोल भराते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. हल्दिया, पश्चिम बंगाल में एक तेल रिफ़ाइनरी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ओपेक (OPEC) देशों की बैठक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)