Post Viewership from Post Date to 05-Sep-2024
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2021 109 2130

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

सल्तनत काल और शर्की साम्राज्य के दौरान, जौनपुर में निर्मित हुईं, कई महत्वपूर्ण संरचनाएं

जौनपुर

 30-09-2024 09:23 AM
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक
शर्की राजाओं के अधीन, हमारा जौनपुर इस्लामी कला, वास्तुकला और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, एक विश्वविद्यालय शहर, जिसे ईरान के शिराज़ शहर के बाद 'शिराज़-ए-हिंद' के नाम से जाना जाता था। जौनपुर में शर्की वास्तुकला के कई उल्लेखनीय स्मारकों के उदाहरण हैं, जो सल्तनत काल की वास्तुकला से प्रभावित थे। सल्तनत काल की वास्तुकला उस स्थापत्य शैली को संदर्भित करती है, जो दिल्ली सल्तनत के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुई थी। तो आइए, आज सल्तनत काल के खिलजी वंश और हमारे जौनपुर के शर्की साम्राज्य के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, शर्की वास्तुकला की विशेषताओं के बारे में समझते हुए, जौनपुर में उस काल के दौरान निर्मित महत्वपूर्ण संरचनाओं और स्मारकों पर चर्चा करेंगे।
खिलजी राजवंश: खिलजी राजवंश दिल्ली सल्तनत और भारत का दूसरा और सबसे प्रमुख राजवंश था। 13वीं सदी के अंत और 14वीं सदी की शुरुआत में भारतीय उपमहाद्वीप के विकास में, इस राजवंश का अहम् योगदान था। इस राजवंश के विकास को, अक्सर, खिलजी क्रांति के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ था, गुलाम वंश/मामलुक वंश को उखाड़ कर खिलजी राजवंश की स्थापना की थी। इसके अलावा, इस क्रांति को शुद्ध तुर्क कुलीन वर्ग से भारत-मुस्लिम कुलीन वर्ग को सत्ता हस्तांतरण के रूप में भी जाना जाता है। इस राजवंश की उत्पत्ति को अवसर के संयोजन के साथ-साथ उस साजिश के रूप में भी देखा जा सकता है, जिसके बारे में कहा जाता है, कि यह बलबन के अंतिम उत्तराधिकारियों के ख़िलाफ़ रची गई थी। इसके साथ ही, खिलजी वंश को जलाल-उद-दीन खिलजी और अलाउद्दीन खिलजी जैसे कुछ महत्वपूर्ण शासकों के साथ-साथ विशेष रूप से अलाउद्दीन खिलजी द्वारा शुरू किए गए बाज़ार सुधारों द्वारा चिह्नित किया जाता है। यह काल, कई मंगोल आक्रमणों और दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए लड़े गए कई महत्वपूर्ण युद्धों को भी दर्शाता है।
मामलुक वंश के अंतर्गत खिलजी मंत्री या जागीरदार के पद पर थे, जो संभवतः बलबन काल के दौरान भारत आए और बाद के सुल्तानों के अधीन एक महत्वपूर्ण पद पर आसीन हुए। खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी था। जलाल-उद-दीन बलबन के बेटे - बुगरा खान की सेवा में था। उसके अधीन, जलाल-उद-दीन उत्तर-पश्चिमी भारत में समाना का सेनापति था। राजा क़ैकाबाद के राज्याभिषेक के तुरंत बाद, जलाल-उद-दीन को समाना से बुलाया गया और आरिज़-ए-मुमालिक के रूप में नियुक्त किया गया और बारां का राज्यपाल बनाया गया था। जैसा कि क़ैकाबाद को लकवा मार गया था, मलिक सुरखा और उनके सहयोगी मलिक कच्छन ने क़ैकाबाद के नवजात पुत्र, कयूमर्स को सुल्तान के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया। इन दोनों ने अन्य सभी प्रतिद्वंद्वी मंत्रियों के ख़िलाफ़ भी साजिश रची और उनकी हत्या की योजना बनाई, जिसमें जलाल-उद-दीन खिलजी भी शामिल था। लेकिन उनकी साजिश विफ़ल हो गई थी, प्रतिद्वंद्वी मंत्री मारे गए और जलाल-उद-दीन को युवा सुल्तान कयूमर्स का शासक बनाया गया। जैसे ही क़ैकाबाद की मृत्यु हुई, कयूमर्स को अलाउद्दीन ने अपदस्थ कर दिया और सिंहासन हासिल कर लिया।

शर्की राजवंश: जौनपुर सल्तनत: 1394 से 1479 तक जौनपुर सल्तनत एक अपरंपरागत इस्लामिक राज्य था। जौनपुर सल्तनत पर शर्की वंश का प्रभुत्व था। राजवंश के पहले शासक ख्वाज़ा-ए-जहाँ मलिक सरवर वर्ष 1390 से 1394 तक सुल्तान नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह चतुर्थ तुगलक के अधीन वज़ीर थे। वर्ष 1394 में, दिल्ली सल्तनत के टूटने के बीच, उन्होंने खुद को जौनपुर के एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्थापित किया, इसके बाद अवध और गंगा-यमुना दोआब के एक बड़े हिस्से पर अपना शासन बढ़ाया । दिल्ली सल्तनत के अधिकांश हिस्से को प्रतिस्थापित कर दिया गया । इब्राहिम शाह को इस राजवंश का सबसे प्रमुख शासक माना जाता था। दिल्ली सल्तनत के लोदी वंश के सुल्तान, अफ़ग़ान शासक बहलोल लोदी की सेना ने 1479 में सुल्तान हुसैन खान को हरा दिया, जिससे स्वतंत्र जौनपुर का अचानक अंत हो गया और उसका दिल्ली सल्तनत में पुनः विलय हो गया था।
शर्की राजाओं के अधीन, जौनपुर इस्लामी कला, वास्तुकला और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। जब दिल्ली के सिकंदर लोदी ने जौनपुर पर पुनः कब्ज़ा किया, तो यहां की जौनपुरी शैली की अधिकांश संरचनाएँ नष्ट हो गईं, केवल 5 मस्जिदें बचीं थीं। यह शैली मुख्य रूप से सुल्तान शम्स-उद-दीन इब्राहिम (1402-36) के तहत बनाई गई थी।
जौनपुरी शैली की मुख्य विशेषताएं:
- प्रवेश द्वारों आदि को उभारने के लिए अग्रभाग पर बनाए गए तोरण।
- किनारों के साथ मेहराब।
- इस शैली के निर्माता कभी भी मेहराबों के घुमावों और आकृतियों के बारे में निश्चित नहीं थे, इसलिए बड़ी-बड़ी आकृतियों में ये मेहराब अनियमित आकार के थे।
- मुख्य रूप से हिंदू राजमिस्त्री और कारीगर निर्माण की स्तंभ, बीम और ब्रैकेट (ट्रैबीट) प्रणाली के साथ अधिक सहज थे, जिसका अक्सर उपयोग किया जाता था।
- स्तंभों के बीच म पट्टियों के साथ वर्गाकार अखंड शाफ्ट हैं।
जौनपुर में इस अवधि के दौरान निर्मित महत्वपूर्ण संरचनाएं और स्मारक: जौनपुर के शर्की शासक शिक्षा और वास्तुकला में अपने योगदान के लिए जाने जाते थे। जौनपुर में शर्की शैली की वास्तुकला के सबसे उल्लेखनीय उदाहरणों में से एक अटाला मस्जिद, लाल दरवाज़ा मस्जिद और जामा मस्जिद हैं। हालाँकि, अटाला मस्जिद की नींव फ़िरोज़ शाह तुगलक ने वर्ष 1376 में रखी थी। इसका निर्माण वर्ष 1408 में इब्राहिम शाह के शासनकाल के दौरान ही पूरा हुआ था। एक अन्य मस्जिद, झंझिरी मस्जिद भी इब्राहिम शाह द्वारा वर्ष 1430 में बनाई गई थी। लाल दरवाज़ा मस्जिद (1450) की स्थापना अगले शासक महमूद शाह के शासनकाल के दौरान की गई थी। जामा मस्जिद का निर्माण 1470 में अंतिम शासक हुसैन शाह के शासनकाल के दौरान किया गया था। आइए, इन कुछ मुख्य इमारतों पर एक नज़र डालें:
अटाला मस्जिद: अटाला मस्जिद का निर्माण 1408 ईसवी में शम्स-उद-दीन इब्राहिम द्वारा कराया गया था। हालाँकि, इसकी नींव 30 साल पहले फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा रखी गई थी। यह उल्लेखनीय स्मारक अटाला देवी मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। मस्जिद में 177 फ़ुट का एक वर्गाकार प्रांगण था, जिसके तीन तरफ़ मठ थे और चौथी (पश्चिमी) तरफ़ अभयारण्य था। पूरी मस्जिद 258 फ़ुट का एक वर्गाकार है।
ख़ालिस मुख़लिस मस्जिद: महान महत्व का यह स्मारक 1430 ईसवी में शहर के दो राज्यपालों, मलिक ख़ालिस और मलिक मुख़लिस के आदेश पर बनाया गया था। इसे अटाला मस्जिद के समान सिद्धांतों पर संरचित किया गया था।
झंगीरी मस्जिद: झंगीरी मस्जिद 1430 ईसवी में बनाई गई थी। हालाँकि, अब इसका सामने का केवल मध्य भाग ही खड़ा रह गया है। इसका प्रवेश द्वार धनुषाकार तोरण की डिज़ाइन में, अपने बीम और ब्रैकेट सिद्धांतों के साथ, स्तंभ पर तीन उद्घाटन के साथ एक आर्केड में बनाया गया है।
लाल दरवाज़ा मस्जिद: इसे 1450 ईसवी में बीबी राजा द्वारा बनवाया गया था। इसे लगभग अटाला मस्जिद के समान बनवाया गया था, सिवाय इस तथ्य के कि, यह आकार में लगभग 2/3 था और जनाना कक्ष का स्थान केंद्रीय क्षेत्र में स्थित है, जो मस्जिद से सटा हुआ है। इसका आँगन 132 फुट का वर्गाकार है। छोटे आकार के कारण, अभयारण्य के सामने केवल केंद्रीय तोरण बनाया गया है, छोटे पार्श्व तोरण को छोड़ दिया गया है। इस मस्जिद का नाम इसके लाल दरवाज़े के कारण पड़ा था।
जामी मस्जिद: इसे हुसैन शाह ने 1470 ईसवी में बनवाया था। यह बड़े पैमाने पर अटाला मस्जिद की कई उल्लेखनीय विशेषताओं से प्रभावित है। पूरी वास्तुकला 16′-20′ ऊंचाई के एक चबूतरे पर खड़ी है, जिसमें ऊपर तक खड़ी, लेकिन भव्य सीढ़ियां जाती हैं।

संदर्भ

https://tinyurl.com/5b2yx6c4
https://tinyurl.com/3r7spdur
https://tinyurl.com/ycwre2hs
https://tinyurl.com/58dsrhbm

चित्र संदर्भ
1. गोमती नदी के किनारे जौनपुर के किले को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. महमूद खिलजी के मकबरे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जौनपुर के शाही किले के दुर्लभ चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. जौनपुर की अटाला मस्ज़िद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ख़ालिस मुख़लिस मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
6. जौनपुर की झंझरी मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
7. जौनपुर की जामा मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)


***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • हमारे पड़ोसी शहर वाराणसी के कारीगरों ने, जीवित रखी है, उत्कृष्ट ज़रदोज़ी कढ़ाई
    स्पर्शः रचना व कपड़े

     18-10-2024 09:18 AM


  • मनुष्यों की बढ़ती जनसंख्या के कारण, अपने ही द्वीप से विलुप्त होना पड़ा जावन बाघ को
    स्तनधारी

     17-10-2024 09:19 AM


  • निश्चित नियमों का पालन करके रखे जाते हैं पौधों और जानवरों के वैज्ञानिक नाम
    कोशिका के आधार पर

     16-10-2024 09:22 AM


  • खनन कार्यों से प्रभावित हुआ है, आदिवासी समुदाय और हमारा पारिस्थितिकी तंत्र
    खदान

     15-10-2024 09:17 AM


  • मूल पौधें का भाग होते हुए भी, विविपैरी के माध्यम से, फल करते हैं, नए जीवन की शुरुआत
    व्यवहारिक

     14-10-2024 09:24 AM


  • आइए देखें, कैसे बनती है चीज़
    वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

     13-10-2024 09:10 AM


  • दशहरा विशेष: बियोवुल्फ़ नामक कृति में, पश्चिम के रावण ग्रेंडल का अंत कैसे होता है?
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-10-2024 09:21 AM


  • जानें जौनपुर के बाज़ारों व व्यवसायों के विकास में, कागज़ी मुद्रा की भूमिका
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     11-10-2024 09:13 AM


  • आइए जानें, मंदिर वास्तुकला की नागर शैली की विशेषताएँ और इसके विभिन्न प्रकार
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     10-10-2024 09:10 AM


  • बनारस के श्याम-श्वेत इतिहास से लेकर, आधुनिक रंगीन भारत को दर्शाते हैं पोस्टकार्ड
    संचार एवं संचार यन्त्र

     09-10-2024 09:06 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id