फ़िल्मों से भी अधिक फ़िल्मी है, असली के जी एफ़ की कहानी

मेरठ

 15-10-2024 09:22 AM
खदान

साल 2018 में हमारे मेरठ के सिनेमाघरों में के जी एफ़ -चैप्टर 1 (KGF Chapter 1) नामक एक फ़िल्म रिलीज़ (Release) हुई थी। जैसे ही यह फ़िल्म पर्दे पर आई, पूरे शहर के सिनेमाघर, दर्शकों से खचाखच भर गए। इस फ़िल्म की कहानी एक सोने की खदान, के जी एफ़, के इर्द-गिर्द घूमती है। दर्शकों ने इस फ़िल्म को दिल से सराहा और फ़िल्म ने खूब प्यार बटोरा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि के जी एफ़ नाम की एक असली सोने की खदान भी है? इसे कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स (Kolar Gold Fields) के नाम से जाना जाता है। यह खदान वास्तव में एक समय में सोने की खदानों का केंद्र हुआ करती थी। हालांकि, इस खदान में आज भी सोना मौजूद है, लेकिन फिर भी 28 फ़रवरी 2001 के दिन इसे बंद कर दिया गया। तो चलिए, आज हम कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स के रोमांचक इतिहास की खोज में निकलते हैं। आज हम जानेंगे कि इस खदान को बंद करने के पीछे क्या कारण थे। साथ ही, हम यहाँ से निकाले गए सोने की मात्रा का आंकलन भी करेंगे।
कोलार गोल्ड फील्ड्स, जिसे हम के जी एफ़ (KGF) के नाम से भी जानते हैं, भारत के दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक में एक ऐतिहासिक खनन क्षेत्र है। यह क्षेत्र, बेंगलुरु (Bengaluru) को बंगारापेट (Bangarapet) से जोड़ने वाली रेलवे लाइन के किनारे बसा हुआ है। यहाँ की अर्थव्यवस्था, मुख्य रूप से सोने के खनन पर निर्भर करती है। यह क्षेत्र, लगभग 40 मील (65 किमी) तक फैला हुआ है। यहां के मुख्य खनन स्थल की लंबाई लगभग 4 मील (6 किमी) है।
के जी एफ़ की कहानी, 1880 में शुरू होती है, जब एक ब्रिटिश कंपनी, जॉन टेलर एंड संस (John Taylor and Sons), ने यहाँ पर खनन कार्य आरंभ किया।
 महज़ तीन साल में, उन्होंने चार प्रमुख सोने की खदानों की खोज कर दी:
⦾ चैंपियन (Champion)
⦾ उर्गम (Urgam)
⦾ नंडीडोरोग (Nandidorog)
⦾ मैसूर (Mysore)
इनमें से चैंपियन खदान सबसे गहरी मानी जाती है, जो समुद्र तल से लगभग 10,500 फ़ीट (3,200 मीटर) नीचे तक जाती है। एक समय था जब भारत का 95 प्रतिशत से अधिक सोना, इन्हीं खदानों से निकाला जाता था।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में यहाँ सोने के उत्पादन में गिरावट आई। खदानों को बंद होने से बचाने के लिए, सरकार ने 1956 में इनका राष्ट्रीयकरण (Nationalization) भी किया, लेकिन अंततः ये खदानें, 2001 में बंद हो गईं। इसके बंद होने से इन खदानों पर निर्भर कई खनिक और उनके परिवार प्रभावित हुए। कुछ ने शहर छोड़ दिया, जबकि अन्य लोगों ने 60 मील (100 किमी) दूर बेंगलुरु (Bengaluru) जाने का निर्णय लिया।
कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स से कुल मिलाकर 800 टन से अधिक सोना निकाला गया। 1884 से 1904 के बीच, यहाँ की उथली खदानों से औसत सोने का ग्रेड 45 ग्राम प्रति टन (जी/टी) (grams per ton) था। पूरे जीवनकाल में, यहाँ का औसत अयस्क ग्रेड, 15 ग्राम/टी रहा, जो दक्षिण अफ़्रीका के विटवॉटरसैंड बेसिन (Witwatersrand Basin) के औसत 9 ग्राम/टी से कहीं अधिक था।
1990 के दशक के अंत तक, सोने के कम ग्रेड और खनन की बढ़ती लागत के कारण, यहाँ खनन करना कम लाभदायक हो गया। 2001 में, खनन कार्य बंद कर दिया गया। उस समय तक, ये खदान, लगभग 3,200 मीटर की गहराई तक पहुँच चुकी थी, जिससे यह दुनिया की सबसे गहरी सोने की खदानों में से एक बन गई। इस खनन क्षेत्र में 7.3 किलोमीटर तक फैले हुए 100 शाफ़्ट (Shafts) और 1,400 किलोमीटर भूमिगत सुरंगें (Underground Tunnels) शामिल थीं।
कोलार गोल्ड फील्ड्स जल्द ही एक विशाल संपदा वाली जगह के रूप में प्रसिद्ध हो गई। यहाँ की खदानें न केवल कीमती सोना निकालने के लिए जानी जाती थीं, बल्कि उनकी अविश्वसनीय गहराई और आकार ने भी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया।
कोलार गोल्ड फील्ड्स, एक समय में दुनिया की सबसे गहरी सोने की खदानों में से एक थी। यहाँ की खदानों को मानव कौशल और दृढ़ संकल्प का जीवंत उदाहरण माना जाता था। लेकिन यह खदानें, केवल सोने के लिए ही नहीं जानी जाती थीं। इन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहाँ, वैज्ञानिकों ने कण भौतिकी (Particle Physics) के प्रयोग किए और ब्रह्मांड के रहस्यमय कण वायुमंडलीय न्यूट्रिनो (Atmospheric Neutrino) का अध्ययन किया। इस शोध ने हमें ब्रह्मांड के बारे में नई जानकारियाँ प्रदान की।
2001 में, कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स के बंद होने के बाद, से यहाँ के निवासियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आज यहाँ, लगभग 260,000 लोग रहते हैं। लेकिन उन्हें बिजली और पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ता है। शौचालयों की कमी के कारण, कई लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं।
कोलार में "साइनाइड हिल्स (Cyanide Hills)" नामक विशाल ज़हरीले कचरे के ढेर हैं, जो भूमि, वायु और जल को प्रदूषित कर रहे हैं। इससे स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। पहले के खदान कर्मचारी अब गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं और उन्हें सरकार से भी कोई सहायता नहीं मिल रही है। यहाँ के कई लोग, 100 वर्ग फ़ीट से भी छोटी झुग्गियों में रह रहे हैं, जहाँ रहने की स्थिति अत्यंत खराब है।
खदान के बंद होने से पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बी जी एम एल साइट (BGML Site) के पास, पर्यावरणीय अपशिष्ट रह गया है, जिसमें लगभग 35 मिलियन टन अपशिष्ट शामिल है। इसके कारण स्वास्थ्य संबंधी ख़तरे भी बढ़ गए हैं। कई पूर्व कर्मचारी सिलिकोसिस (Silicosis) जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं। इसके अलावा, साइनाइड डंप से निकलने वाली धूल के कारण त्वचा की एलर्जी और सांस लेने में समस्या हो रही है।
कोलार गोल्ड फील्ड्स में रहने वाले लोग शिक्षित हैं, लेकिन बेरोज़गारी ने उन्हें परेशान कर रखा है। यहाँ के निवासियों को स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर बहुत कम मिलते हैं, जिसके कारण, उन्हें रोज़गार की तलाश में बेंगलूरु (Bengaluru) जाना पड़ता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/ym7u4zoc
https://tinyurl.com/ytyln2nz
https://tinyurl.com/yuujvxjk
https://tinyurl.com/yqen7gkb

चित्र संदर्भ
1. खनन मजदूर को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. 1913 में कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. के जी एफ़ क्लब को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स के मज़दूरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स में बंद पड़ चुकी खदान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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