वैवाहिक निष्ठा का प्रतीक, सारस

मेरठ

 25-11-2017 04:32 PM
व्यवहारिक

सारस एक विशाल पक्षी है जो भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। उड़ने वाले पक्षियों में सारस सबसे ऊँचे कद की चिड़िया है। इसका कद 1.8 मीटर (5 फुट 11 इंच) तक जा सकता है। सारस आर्द्र्भूमि में पाए जाने वाले विशिष्ट और प्रतिष्ठित पक्षी हैं। अन्य पक्षियों के बीच सारस को पहचानना बहुत सरल होता है क्योंकि इसकी शारीरिक रचना सबसे हटकर है। इसका पूरा शरीर धूसर रंग का होता है तथा इसका सर और ऊपरी गला लाल रंग का होता है। सारस का एक धूसर मुकुट, लम्बा गला और गुलाबी पैर होते हैं। ये पक्षी आर्द्र्भूमि में इसलिए ज़्यादा पाए जाते हैं क्योंकि वहां इनको पेट भरने के लिये जड़ें, कीट, छोटी-मोटी सब्ज़ियां अदि आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। सारस चिड़िया अपने साथी के साथ एक बहुत ही गहरा और स्थायी रिश्ता निभाती है तथा जीवन भर अपने उसी साथी के साथ प्रजनन करती है। वर्षा ऋतु, सारस के प्रजनन का समय होता है जिसमें वे ईख और घास इकठ्ठा करके एक विशाल घोसला बनाते हैं ताकि वे पानी से कुछ ऊंचाई बनाये रहें। एक दूसरे के प्रति अपना प्रेमालाप प्रदर्शित करने के लिए सारस तेज़ आवाज़ में चिल्लाते हैं, इधर उधर छलांग मारते हैं और नृत्य-रुपी चाल में चलते हैं। भारत में सारस को वैवाहिक निष्ठा का प्रतीक भी माना जाता है। अगर सारस के जोड़े में से एक की किसी कारणवश मृत्यु हो जाती है तो दूसरा सारस इसके ऊपर विलाप करता है तथा भूखा रहकर मरने की हद तक भी चला जाता है। कहा जाता है कि वाल्मीकि ने एक शिकारी को सारस का शिकार करने पर श्राप दिया था जिसके बाद उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा मिली। रामपुर एवं आस पास के तराई क्षेत्र में सारस पाया जाता है तथा ये उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी भी है। भारत को सारस का गढ़ कहा जा सकता है जहाँ सारस को पारंपरिक रूप से श्रद्धेय माना गया है और वो कृषि क्षेत्र में मानव से निकटता में रहता है। किसान जानते हैं कि सारस के खेतों में होने से चावल की खेती में नुकसान होता है, इसके बावजूद उनका रवैय्या सारस के प्रति सकारात्मक है जिसकी बदौलत कृषि क्षेत्रों में सारस का सरक्षण संभव हो पाया है। परन्तु पिछले कुछ वर्षों में इन्हें खोजना बहुत कठिन हो गया है। पिछली एक शताब्दी में सारस की संख्या में भारी गिरावट दिखाई दी है। 2004 की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में केवल 104 सारस बचे हैं। निवास का विनाश, शिकार, बीमारियाँ, प्रदूषण आदि सारस की कम होती संख्या की कुछ वजहें हैं। भारत के इतने महत्वपूर्ण पक्षी का विलुप्त हो जाना हमारे लिए एक बहुत ही शर्मनाक बात होगी, अतः हमें इसे रोकने में अपना पूरा योगदान देना होगा। 1. एशियन जर्नल ऑफ़ कंसर्वेशन बायोलोजी, जुलाई 2014. वॉल्यूम 3 नंबर. 1, पेज 8–18 2. बर्ड्स ऑफ़ द इंडियन सबकोन्टीनेंट- रिचर्ड ग्रिम्मेट, कैरल इन्स्किप्प, टिम इन्स्किप्प

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