संस्कृति किसी भी जगह के मूल को परिभाषित करती है कि वास्तव में वह जगह कैसी थी, किस तरह के लोग उसमें रहते थे। व्यक्ति की तरह राष्ट्र भी जीवित रहते हैं और मरते हैं, किंतु संस्कृति का कभी पतन नहीं होता।
मैजिनी (Mazzini) मेरठ शहर अपनी संघर्ष गाथा के लिए ज्यादा जाना जाता है, लेकिन इसके पौराणिक संदर्भ जितने महत्वपूर्ण हैं, वे भी किसी से कम नहीं हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है यमुना किनारे स्थित आलमगीरपुर। आलमगीरपुर सिंधु घाटी सभ्यता का एक पुरातात्विक स्थल है, जो यमुना नदी के किनारे फला-फूला। हड़प्पन-बारा bc 3300 से bc 1300 के बीच में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ जिले में स्थित था। इसे सिंधु घाटी सभ्यता की पूर्वी सीमा माना जाता है। ऐतिहासिक महत्व आलमगीरपुर को 'परशुराम का खेड़ा' भी कहा जाता था। इसकी खोज आर एस एस (RSS) के एक कैंप द्वारा 1958 से पहले की गई थी। उत्खनन इसके बाद इस स्थल की खुदाई भारत सरकार के पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा 1958 और 1959 में की गई। कालखंड 1 खुदाई करने पर आलमगीरपुर के चार सांस्कृतिक चरणों का पता चला, जिनमें बीच-बीच में अंतराल भी थे। सबसे पुराने चरण की विशेषता थी 6 फीट की मोटाई वाली दीवार, जो हड़प्पा संस्कृति से जुड़ाव दर्शाती है। प्रमाण के तौर पर भट्टी में पकाई ईट मिली, लेकिन इस काल की कोई इमारत नहीं मिली। शायद सीमित तरीके से की गई खुदाई इसकी वजह हो। ईटों का आकार 11.25 से 11.75 इंच लंबाई, 5.25 से 6.25 इंच चौड़ाई और 2.5 से 2.75 इंच मोटाई का था। बड़ी ईट औसतन 14 इंच की होती थी। जांच पड़ताल के बाद आलमगीरपुर का शुरुआती कालखंड 2600 ईसा पूर्व से 2200 ईसा पूर्व तय किया गया। कलाकृतियां यहाँ हड़प्पा काल के मिट्टी के बर्तन मिले और यह क्षेत्र खुद एक मिट्टी के बर्तनों की कार्यशाला था। चीनी मिट्टी से निर्मित सामग्री मिली, जिसमें छत की टाइल्स, प्लेट, कप , फूलदान, घनाकार पासा, मनके, टेराकोटा केक, कूबड़ वाले बैल और सांप की मूर्तियां शामिल थी। वहां मनके भी थे और आभूषण भी, जो साबुन के पत्थर, कांच, कार्नेलियन, बिल्लौर, गोमेद और काले जैस्पर से बने थे। थोड़े से धातु प्रमाण के रूप में एक टूटी हुई तांबे की पत्ती भी प्राप्त हुई। अन्य प्राप्तियां अलमगीरपुर में एक बर्तन पर ढक्कन की तरह इस्तेमाल किया गया भालू का सिर भी मिला। एक छोटी टेराकोटा की मनका जैसी आकृति सोने से मढ़ी मिली। कपड़े के होने के निशान भी मिले, कपड़े के लिए इस्तेमाल किया गया धागा बहुत अच्छी गुणवत्ता का था और बुनने का तरीका सादी बुनाई का था। कालखंड 2 पहले और दूसरे कालखंड के बीच के अंतर का प्रतिनिधित्व तहों की शाब्दिक रचना और उनके सांस्कृतिक संयोजन में निहित है। कालखंड 1 से जुड़ी जमा सामग्री ठोस और पूरी थी, जबकि कालखंड 2 की सामग्री ढीली और सिलेटी थी तथा उस पर जली हुई राख के घेरे भी दिखाई दे रहे थे। हालांकि प्रमाण के तौर पर भट्टी में पकी ईट थी, लेकिन हड़प्पा काल का कोई निर्माण नहीं मिला, शायद सीमित खुदाई कार्यक्रम के कारण। महत्त्व आलमगीरपुर में हड़प्पा संस्कृति की खोज ने भारत की पूर्वी दिशाओं में सिंधु घाटी सभ्यता के आयामों को खूब विस्तार दिया। आलमगीरपुर के चार कालखंड क्रमानुसार हड़प्पनचित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में आलमगीरपुर के मुख्य स्थल का वर्तमान चित्र है। (Flickr)
2. दूसरे चित्र में सिंधु सभ्यता के मुख्य महानगरों को मानचित्र दर्शाया गया है। (Praramg)
3. तीसरे चित्र में आलमगीरपुर के मुख्य नगरीय अवशेषों को दिखाया गया है। (Flickr)
4. चौथे चित्र में आलमगीरपुर से प्राप्त पशु मूर्ति दिखाई दे रही है। (Wikipedia)
5. अंतिम चित्र में सिंधु सभ्यता से प्राप्त प्रमुख नासाग्र योगी की मूर्ति और धोलावीरा का प्रोजेक्टेड चित्र है। (Prarang)
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