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जानें कैसे, ओरिगेमी कला से बने, कागज़ के 'सारस', विश्व में शांति का प्रतीक बने

मेरठ

 09-08-2024 09:22 AM
हथियार व खिलौने

हाल के वर्षों में, ओरिगेमी (Origami) को संपूर्ण देश में, विशेष कर उत्तर भारत में, बहुत लोकप्रियता प्राप्त हुई है। चंडीगढ़, आगरा, जयपुर और कई अन्य शहरों में विशेष रूप से ओरिगेमी के लिए समर्पित विद्यालय खोले गए हैं। ' ओरिगेमी ' शब्द, जापानी शब्द "ओरी" और "कामी" से बना है जिनका अर्थ है क्रमशः 'मुड़ा हुआ' (folded) और ' कागज़ ' (paper) है। यह एक ऐसी कला है जिसका उपयोग कागज़ के एक चौकोर टुकड़े को मोड़कर विभिन्न आकृतियाँ बनाने के लिए किया जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में ओरिगेमी कला में कागज़ से बनाए गए 'सारस' (Crane) को आशा और शांति का प्रतीक माना जाता है। इस सारस की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से जुड़ी हुई है। शायद आपको यह पढ़कर थोड़ा आश्चर्य अवश्य हुआ होगा, लेकिन वास्तव में यह कहानी एक लड़की 'सदाको ससाकी ' की है जिनके द्वारा बनाए गए कागज़ के सारस शांति और आशा के प्रतीक बन गए। तो आइए, आज के इस लेख में ओरिगेमी कला को समझते हुए हम सदाको सासाकी की कहानी जानते हैं। इसके साथ ही महान निर्देशक 'अकीरा कुरोसावा' (Akira Kurosawa) द्वारा निर्देशित द्वितीय विश्व युद्ध में नागासाकी पर बमबारी से संबंधित जापानी फ़िल्म 'रैप्सोडी इन अगस्त' (Rhapsody in August), और इसके महत्व के विषय में जानते हैं।
ओरिगेमी, कागज़ कला का एक रूप है जिसमें केवल कागज़ का उपयोग करके जटिल आकार और मॉडल बनाना शामिल है। यह एक लोकप्रिय पारंपरिक जापानी कला है जो सदियों से चली आ रही है। इस कला की विशिष्टता यह है कि इसमें कागज़ के मोड़ों को अपनी जगह पर बनाए रखने के लिए ना तो काटा जाता है और ना ही इसे चिपकाने के लिए गोंद की आवश्यकता होती है। ओरिगामी के इतिहास की शुरुआत छठी शताब्दी के दौरान जापान में हुई थी, जब कागज़ पहली बार पेश किया गया था। शुरुआत में इसका उपयोग धार्मिक समारोहों के दौरान उपहार और धन देने जैसे औपचारिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था। 17वीं शताब्दी तक, कला का यह रूप पूरे जापान में फैल गया और यह मनोरंजन का एक रूप बन गया। इस अवधि के दौरान, विभिन्न रंगों और बनावटों वाला कागज़ पेश किया गया, जिससे और भी अधिक रचनात्मक डिज़ाइन तैयार हुए।
ओरिगामी की विभिन्न शैलियाँ या प्रकार
ओरिगेमी कला में केवल कागज़ को मोड़ने की तकनीक का उपयोग किया जाता है। कागज़ को सीधा, तिरछा या कई अन्य रूपों में मोड़ा जाता है। इस कला की पांच लोकप्रिय शैलियाँ निम्नलिखित हैं:
पारंपरिक ओरिगेमी: पारंपरिक ओरिगेमी में ज्यामितीय पैटर्न और सममित डिजाइनों पर ध्यान केंद्रित करने वाले नियमों के एक सेट का पालन किया जाता है। पारंपरिक ओरिगामी में फूल, जानवर और प्रकृति से संबंधित वस्तुओं आदि के पैटर्न शामिल हैं।
प्रतिरूपक ओरिगेमी: इस शैली में कागज़ की कई शीटों को मोड़ना और उन्हें जोड़कर जटिल डिज़ाइन बनाना शामिल है जो कागज़ की एक शीट से संभव नहीं है। प्रतिरूपक ओरिगामी का उपयोग करके विभिन्न प्रकार के पैटर्न बनाए जा सकते हैं, जिनमें स्पाइकी बॉल, घन, , बक्से, सितारे, पिरामिड, वास्तुशिल्प संरचनाएं आदि शामिल हैं।
वेट- फ़ोल्डिंग ओरिगेमी: यह तकनीक एक प्रमुख ओरिगेमी व्यवसायी 'अकीरा योशिजावा' द्वारा विकसित की गई थी। इस शैली में कागज़ को मोड़ने से पहले उसे पानी से गीला करने की आवश्यकता होती है ताकि आसानी से अधिक प्राकृतिक वक्रों के डिज़ाइन बनाये जा सकें, और तैयार उत्पाद में अधिक गहराई जोड़ी जा सके। इस तकनीक का उपयोग अक्सर पेशेवरों द्वारा जानवरों, मनुष्यों और पौराणिक प्राणियों जैसे गैर-ज्यामितीय ओरिगामी डिज़ाइनों के लिए किया जाता है।
चौकोर ओरिगेमी: इस शैली में कागज़ की एक शीट को मोड़कर एक दोहरा पैटर्न बनाया जाता है। इसमें सटीक तह करना शामिल होता है, जिसके लिए अक्सर कागज़ के दोनों किनारों को दिखाई देने की आवश्यकता होती है।
किरिगेमी: ओरिगेमी का एक रूप किरिगेमी है। इस शैली में त्रि-आयामी डिज़ाइन बनाने और गतिशीलता दिखाने के लिए कागज़ को मोड़ने के साथ-साथ काटा भी जाता है। यह एकमात्र शैली है जिसमें कैंची का उपयोग किया जाता है, लेकिन आमतौर पर इसमें भी गोंद का उपयोग नहीं किया जाता है।
ओरिगामी सिर्फ एक रचनात्मक कला का रूप नहीं है। इस कला से जुड़े हुए कई रोचक तथ्य भी है जो यहां दिए गए हैं:
अब तक बनाई गई सबसे बड़ी ओरिगामी मूर्तिकला, 51 फीट ऊंची थी और यह 'उल्मस परविफोलिया' (Ulmus Parvifolia) पेड़ की प्रतिकृति थी, जिसे डिज़ाइन करने में छह महीने और मोड़ने और निर्माण में आठ घंटे लगे थे।
- ओरिगेमी डिज़ाइन को मूल रूप से संग्रहालयों या दीर्घाओं में प्रदर्शित करने के लिए बहुत आम माना जाता था, लेकिन आधुनिक ओरिगेमी कला ने इस दृष्टिकोण को बदल दिया है।
- अब तक मोड़े गए सबसे छोटे ओरिगेमी सारस की लंबाई 0.1 सेमी थी, जबकि सबसे बड़े सारस का वजन 500 किलोग्राम था और इसे पंद्रह लोगों को उठाना पड़ा था।
- इस कला को इतना पसंद किया जाता है कि अब प्रत्येक वर्ष 11 नवंबर को ओरिगेमी' दिवस' के रूप में दुनिया भर में इसका वार्षिक उत्सव मनाया जाता है।
- प्राचीन जापानी विद्या में कहा गया है कि सारस अच्छे भाग्य और दीर्घायु का प्रतीक हैं और यदि कोई एक हज़ार कागज़ के सारस मोड़ता है, तो उसकी इच्छा पूरी हो जाती है।
- ओरिगेमी को स्वास्थ्य और उपचार के लिए भी अच्छा माना जाता है। इसका उपयोग कला चिकित्सा और व्यावसायिक चिकित्सा में किया गया है और यह स्मृति, गैर-मौखिक सोच, एकाग्रता, हाथ-आँख समन्वय आदि को बेहतर करने में मदद करता है।
ओरिगेमी के सिद्धांतों का उपयोग, इंजीनियरिंग और रोबोटिक्स के क्षेत्र में भी किया जाता है। वैज्ञानिक संरचनाओं को विकसित करने के लिए ओरिगेमी की तह तकनीकों का निरीक्षण और अध्ययन करते हैं जिन्हें मोड़ा और खोला जा सकता है। यह कला चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में विशेष रूप से उपयोगी रही है।
अब आइए, सदाको ससाकी (Sadako Sasaki) की कहानी के बारे में जानते हैं, जिन्होंने कागज़ के सारस को शांति और आशा के प्रतीक में बदल दिया। सदाको एक 12 वर्ष की लड़की थीं जो हिरोशिमा (Hiroshima) में, अपने घर के पास बम गिरने के कारण विकिरण प्रेरित ल्यूकेमिया से पीड़ित थी और अंत में दस साल बाद, 1955 में मृत्यु को प्राप्त हो गईं । उनकी कहानी ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया है और उनकी स्मृति ने ओरिगेमी सारस को शांति और आशा के एक अंतरराष्ट्रीय प्रतीक में बदल दिया है।
सदाको केवल दो वर्ष की थीं, जब 6 अगस्त, 1945 की सुबह हिरोशिमा पर बम गिराया गया था। सदाको के भाई मासाहिरो ने एक साक्षात्कार के दौरान उस काली सुबह के बारे में बताया कि वे अपनी बहन सदाको के साथ नाश्ता कर रहे थे जब वह धमाका हुआ। धमाके से वे दीवार पर धकेल दिए गए, लेकिन उनकी बहन घर के बाहर उड़ गई थीं । उनके कपड़े जल और फट गये थे। वह स्तब्ध थीं लेकिन घायल नहीं थीं । उन्होंने कहा, "किसी को समझ नहीं आया कि वे वहां कैसे पहुंचीं । उन्हें नहीं पता था कि क्या हुआ था। नीला आकाश बहुत गहरा और धूसर हो गया था और यह अचानक काफी गर्म हो गया था। उनकी माँ और दादी ने घर छोड़ने और बच्चों को पास की नदी पर ले जाने का फैसला किया। रास्ते में उन्होंने देखा की पूरा शहर जल रहा था। जब वे नदी के किनारे पहुँचे तो उन्होंने देखा कि बहुत सारे शव तैर रहे थे और लोग ठंडक पाने के लिए कूद रहे थे और मर रहे थे। जब वे नदी के किनारे इंतेज़ार कर रहे थे तो भारी बारिश होने लगी। यह "काली बारिश" थी, जो पूरे शहर में भीषण गर्मी और इन प्रचंड आग्नेयास्त्रों के कारण उत्पन्न वायु धाराओं के कारण लगी आग के विकिरणित मलबे के मिश्रण से बनी थी। वे सभी इस अंधेरे, मोटे और खतरनाक रेडियोधर्मी पानी से भारी मात्रा में विकिरण के संपर्क में आ गए थे।
मासाहिरो ने कहा, "उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था और वे लगभग नग्न थे," क्योंकि विस्फ़ोट से उनके कपड़े जल गए थे। कोई नहीं जानता था कि क्या हुआ है या कहाँ जाना है। लगभग पाँच घंटे तक वहाँ रहने के बाद उन्होंने एक मित्र को नाव में नदी से नीचे आते देखा। वे लगभग चार घंटे तक नौकायन करते रहे और अंततः उन्हें एक सामुदायिक आश्रय मिल गया। हालाँकि हालात सामान्य होने में कई साल लगे। यद्यपि मासाहिरो और उनकी बहन सदाको ने उस दिन की भयावहता को पीछे छोड़ दिया था। लेकिन अक्टूबर 1954 में, बम विस्फ़ोट के दस साल से कम समय बाद सदाको के लिम्फ नोड्स में सूजन आ गई, जिसके निदान के दौरान उन्हें पता चला कि उसे विकिरण के कारण होने वाला ल्यूकेमिया हो गया है। रोग तेज़ी से बढ़ता गया। एक महीने बाद ही उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। यद्यपि सदाको जानती थीं कि उसकी हालत अच्छी नहीं थी, लेकिन वह मरना नहीं चाहती थीं । उनके पिता ने उन्हें एक जापानी किंवदंती सुनाई, जिसमें कहा गया था कि यदि आप एक हज़ार कागज़ के सारस मोड़ेंगे तो आपकी एक इच्छा पूरी हो जाएगी। वह उग्रतापूर्वक सारस मोड़ने लगीं । उनहोंने 1,000 सारसों का एक सेट पूरा कर लिया और दूसरा सेट शुरू कर दिया। उनके सहपाठी , परिवार और दोस्त भी उनकी मदद कर रहे थे। लेकिन दुर्भाग्य से, वह केवल 644 और सारस मोड़ पाई और 25 अक्टूबर, 1955 को उनकी मृत्यु हो गई। उनके अंत तक और अपनी बीमारी से लड़ाई लड़ी और उम्मीद नहीं छोड़ी। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके सहपाठियों ने सारस मोड़ना जारी रखा और 356 और सारस बनाए, ताकि उसे 1,000 सारसों के साथ दफ़नाया जा सके।
मासाहिरो ने कहा, "उनके पास खाने के लि 1945 में नागासाकी पर परमाणु बमबारी से संबंधित एक कहानी पर, निर्माता अकीरा कुरोसावा द्वारा 1991 में "रैप्सोडी इन अगस्त" नामक एक जापानी फ़िल्म भी बनाई गई थी, जो कियोको मुराता (Kiyoko Murata) के उपन्यास, 'नबे नो नाका' (Nabe no naka) पर आधारित है। इस फ़िल्म की कहानी, एक बुज़ुर्ग महिला हिबाकुशा पर केंद्रित है, जिन्होंने 1945 में, नागासाकी पर परमाणु बमबारी में अपने पति को खो दिया था। उन्हें हवाई में रहने वाले, एक लंबे समय से खोए हुए भाई सुज़ुजिरो के बारे में पता चलता है, जो चाहते हैं कि मरने से पहले हिबाकुशा उनसे मिलें । इस फ़िल्म में नागासाकी पर बम गिराए जाने के बाद के कुछ ऐसे दृश्य दिखाए गए हैं जो मानवीय संवेदना को जीवंत कर देते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4z3k75bv
https://tinyurl.com/27r3wu7m
https://tinyurl.com/ydk5erm3
https://tinyurl.com/m9ukt669

चित्र संदर्भ
1. ओरिगेमी कला से बने कागज़ के 'सारस' को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
2. ओरिगेमी कला से बने कागज़ के 'बत्तख' को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. पारंपरिक ओरिगेमी सारस को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
4. वेट- फ़ोल्डिंग ओरिगेमी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. चौकोर ओरिगेमी को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
6. किरिगेमी कला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. जापानी छात्रों के एक समूह द्वारा, हिरोशिमा में, सदाको सासाकी स्मारक पर, अपने हज़ारों ओरिगेमी क्रेन समर्पित करने के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. सदाको ससाकी की प्रतिमा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. कागज़ के 'सारस' से लदी हुई सदाको ससाकी की प्रतिमा को दर्शाता चित्रण (flickr)
10. बमबारी में ध्वस्त नागासाकी को दर्शाता चित्रण (PICRYL)

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