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हिंदी साहित्य कई रोमांचक और प्रेरणादाई कहानियों से समृद्ध है, जिनमें से प्रत्येक कहानी पाठक को अनोखे रोमांच पर ले जाती है। भारतीय साहित्य में काल्पनिक उपन्यास बड़ी भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ये कल्पनाओं को वास्तविकता के साथ मिलाते हैं। ये किताबें पाठकों को जादूगरों, योद्धाओं और काल्पनिक प्राणियों से भरी जादुई दुनिया में ले जाती हैं, जिन्हें जीवंत शैली में लिखा गया है। ये साहित्य प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक भारत के विविध भूगोल और सांस्कृतिक विरासत का सार भी प्रस्तुत करते हैं। आज, हम कुछ प्रसिद्ध भारतीय लेखकों द्वारा हिंदी में लिखे गए ऐसे ही तीन बेहद प्रभावशाली काल्पनिक उपन्यासों पर नज़र डालेंगे।
इनमें से पहला काल्पनिक उपन्यास देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित "चंद्रकांता" है, जिसे हिंदी साहित्य की एक अद्वितीय कृति माना जाता है।
अपनी आकर्षक कहानी, जीवंत पात्रों और समृद्ध रूप से वर्णित उल्लेखों के साथ "चंद्रकांता" पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। "चंद्रकांता" देवकी नंदन खत्री द्वारा लिखी गई एक मज़ेदार काल्पनिक पुस्तक है, जो एक सुंदर राजकुमारी, एक बहादुर राजकुमार, चतुर खलनायक, युद्ध, भेस के स्वामी, भूलभुलैया और जादू से भरी हुई है।
1888 में प्रकाशित, यह पुस्तक हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। खत्री, कई भाषाओं का ज्ञान रखते थे, उन्होंने इसे सरल, रोज़मर्रा की हिंदी में लिखा। इससे पुस्तक अधिक लोगों तक पहुँची। उपन्यास में फ़ारसी-अरबी कहानी को भारतीय तत्वों के साथ मिलाया गया है, जिसमें अय्यार (कई कौशल वाले जासूस) और तिलिस्म (जादुई भूलभुलैया) जैसे विचार पेश किए गए हैं। कहानी में अय्यार गुप्त एजेंट होते हैं, जो अपना रूप बदल सकते हैं और उनके पास कई कौशल होते हैं। वे गुप्त रूप से संवाद करने के लिए एक विशेष भाषा का भी उपयोग करते हैं। कहानी में खज़ानों से भरी हुई एक तिलिस्म जादुई भूलभुलैया है जिसे केवल सर्वश्रेष्ठ लोग ही हल कर सकते हैं।
अपने समय में "चंद्रकांता" बहुत लोकप्रिय हुई, इतनी की कई भारतीयों ने इसे पढ़ने के लिए हिंदी भी सीख डाली। इसे कई बार टीवी के लिए रूपांतरित किया गया है, जिसमें 1990 के दशक के मध्य में एक विशेष रूप से लोकप्रिय संस्करण शामिल है।
यह पुस्तक नौगढ़ के राजकुमार बीरेंद्र सिंह से जुड़ी एक रोमांटिक कल्पना है, जो विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता से प्यार करता है। वह भी उससे प्यार करती है। बीरेंद्र के मित्र, ऐयार तेज सिंह और देवी सिंह, उसकी मदद करते हैं, जबकि चंद्रकांता की मदद उसके ऐयार चपला और चंपा करते हैं।
बीरेंद्र और चंद्रकांता के पिता कभी दोस्त थे, लेकिन विजयगढ़ के दुष्ट मुख्यमंत्री कुपथ सिंह और उनके बेटे क्रूर सिंह ने दोनों के बीच में दुश्मनी की दीवार खड़ी कर दी। क्रूर सिंह चंद्रकांता से शादी करके विजयगढ़ पर राज करना चाहता है। जब क्रूर सिंह असफल हो जाता है, तो वह चुनार के शासक महाराज शिवदत्त से मदद मांगता है, जो चंद्रकांता से शादी करना चाहता है। शिवदत्त चंद्रकांता और चपला का अपहरण कर लेता है, लेकिन वे बच निकलते हैं और एक तिलिस्म में फंस जाते हैं। इस प्रकार चंद्रकांता की पूरी कहानी हर पन्ने पर कई दिलचस्प मोड़ लेती है।
चंद्रकांता प्रकाशित होने से पहले खत्री का खुद का जीवन काफी उतार चढ़ावों से भरा हुआ और लगभग एक उपन्यास जैसा ही था। 1861 में एक अमीर परिवार में जन्मे खत्री आलीशान महलों और छोटे रईसों के दरबार में पले-बढ़े। बाद में वे अपने पिता के आभूषण व्यवसाय में जुड़ गए, और राजघरानों को सोना और आभूषण सप्लाई करने लगे। बहुत सारा पैसा और आज़ादी होने के कारण, उन्होंने एक बार पतंग उड़ाने पर 5,000 रुपये (उस समय एक बड़ी रकम) खर्च कर दिए, जिससे उनके पिता नाराज़ हो गए।
आखिरकार, खत्री को अपने संपर्कों के ज़रिए काशी के राजा के दरबार में नौकरी मिल गई और उन्हें आस-पास के जंगलों का प्रबंधन करने के लिए अनुबंध मिले। वे अपने काम के प्रति उत्साही थे, लेकिन एक दोस्त द्वारा बाघ का शिकार की घटना के कारण उनके अनुबंध समाप्त हो गए और उन्हें अपमानित होकर घर भेज दिया गया। इस अवधि के दौरान, अपने 20 के दशक के मध्य में, उन्होंने चंद्रकांता लिखना शुरू किया और अपने साहित्यिक करियर की शुरुआत की। खत्री के लेखन में फ़ारसी साहित्यिक अवधारणाओं और दास्तान परंपरा को उर्दू जैसी भाषा के साथ मिलाया गया था, फिर भी इसकी संरचना और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पूरी तरह से भारतीय और हिंदू थी। कहानी में जाति के मुद्दों का बार-बार उल्लेख किया गया है, जो उस समय की गहरी जड़ें जमाए हुए जातिगत पहचान और मान्यताओं को दर्शाता है। पुस्तक में कुछ समस्याएँ भी हैं, जिनमें सबसे उल्लेखनीय इसका स्पष्ट इस्लाम विरोधी स्वर है। जहाँ केवल क्रूर सिंह और शिवदत्त जैसे हिंदू पात्रों को धोखेबाज़ के रूप में चित्रित किया गया है, वहीं सभी मुस्लिम पात्रों, जिनमें से अधिकांश ऐयार हैं, को अनैतिक और अविश्वसनीय के रूप में चित्रित किया गया है। इन समस्याओं के बावजूद, चंद्रकांता रोमांच, जादू और आश्चर्य से भरी एक आकर्षक कहानी है, जो आज भी पाठकों को आकर्षित करती है।
आज का हमारा दूसरा काल्पनिक साहित्य, भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखित "चित्रलेखा", 1934 में पहली बार प्रकाशित एक प्रसिद्ध उपन्यास है।
इंसान का स्वभाव, इंसान की बदलती ज़रूरतें और इंसान की इच्छाएँ, ईश्वर के साथ इंसानों का रिश्ता और इंसानों द्वारा परम सत्य तक पहुँचने के लिए अपनाए गए विभिन्न तरीके, हमेशा से ही लोगों को आकर्षित करते रहे हैं। पूरे इतिहास में, मनुष्य ने इन सवालों का शारीरिक और मानसिक दोनों तरह उत्तर खोजने की कोशिश की है। कभी-कभी इंसानों को लगता है कि उन्हें सभी जवाब मिल गए हैं; तो कभी-कभी उन्हें लगता है कि और अधिक खोजबीन की ज़रूरत है। आमतौर पर इंसानों के शिक्षक उनका मार्गदर्शन करते हैं, लेकिन कभी-कभी, छात्र भी अपने शिक्षकों को सिखा देते हैं। "चित्रलेखा" पुस्तक की शुरुआत ही एक ही गुरु के दो शिष्यों से होती है जो पाप की अवधारणा की खोज करते हैं।
गुरु, अपने शिष्यों को पाप और पुण्य के बीच अंतर सीखने के लिए एक साल के लिए दो अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों के पास भेजते हैं। एक शिष्य एक धनी, प्रसिद्ध व्यक्ति के पास जाता है जो एक सुंदर नर्तकी के साथ रहता है और जीवन का पूरा आनंद लेने में विश्वास करता है। अपनी भोग-विलास भरी जीवनशैली के बावजूद, यह व्यक्ति उसी गुरु द्वारा प्रशिक्षित होने के कारण बुद्धिमान और ज्ञानी भी है। दूसरा शिष्य एक योगी के पास जाता है, जो गहन ध्यान और सांसारिक सुखों को त्याग कर अपने द्वारा प्राप्त ज्ञान पर गर्व करता है।
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे पात्रों के बीच संबंध भी बदलते रहे हैं। वे सभी अपनी अनियंत्रित परिस्थितियों के कारण उथल-पुथल का अनुभव करते हैं। वे रिश्तों और उनकी प्रकृति के बारे में सीखते हैं। यह पुस्तक अच्छे और बुरे, नैतिक और अनैतिक, प्रेम और वासना, सत्य और झूठ, परिवर्तन और स्थिरता, योगी (आध्यात्मिक) और भोगी (सांसारिक) पर गंभीर बहस प्रस्तुत करती है। ये बहस पाठकों को अपने स्वयं के मूल्यों और स्थितियों पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
"चित्रलेखा" एक दार्शनिक कथा है जो बुनियादी मानव स्वभाव पर सवाल उठाती है। यह दिखाता है कि हमारे अनुभव कैसे अच्छे और बुरे, सही और गलत के बारे में हमारी समझ को आकार देते हैं। यह किताब इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि किसी और की तो बात ही छोड़िए, हम अपनी खुद की भावनाओं और व्यवहार की भी भविष्यवाणी नहीं कर सकते। इस कहानी में महिलाओं के पास स्वतंत्र इच्छा है, वे बहस में शामिल होती हैं और आवश्यकता पड़ने पर अपनी स्त्री शक्ति का उपयोग करती हैं। पुस्तक की भाषा इस पुस्तक का एक और मज़बूत बिंदु है, जिसमें पात्र अपने सच्चे विचारों और भावनाओं को व्यक्त करते हैं। "चित्रलेखा" पठन में रूचि रखने वाले उन सभी लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए जो दो संतुलित दृष्टिकोणों से मानवीय दुविधाओं को सुलझाने में रुचि रखते हैं।
इस सूची में आज का हमारा तीसरा और अंतिम उपन्यास "गबन", भारतीय साहित्य के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया एक क्लासिक हिंदी उपन्यास है।
गबन, मुशी प्रेमचंद का एक प्रसिद्ध उपन्यास है, जो 1931 में उनकी मृत्यु से ठीक पाँच साल पहले हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओँ में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास में स्वतंत्रता से पहले उत्तर भारतीय समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों और संघर्षों को खूबसूरती से दर्शाया गया है। इसमें जलपा नामक एक काल्पनिक चरित्र की कहानी दिखाई है, जो एक ऐसी महिला है, जिसे गहनों से गहरा लगाव होता है। उसका पति, रमानाथ उसकी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है, लेकिन इसके चक्कर में वह कर्ज़, घपले और उधार के चक्र में फंस जाता है।
नैतिक रूप से कमज़ोर होने के कारण, रमानाथ अपने कर्मों के परिणामों का सामना करने से डरता है और जलपा को समस्याओं से जूझने के लिए अकेला छोड़कर कलकत्ता भाग जाता है। कलकत्ता में, वह और अधिक मुसीबत में पड़ जाता है। हालाँकि आखिरकार, जलपा की सदाचारिता और साहस के कारण रमानाथ इन जालों से बाहर निकल जाता है।
शुरुआत में रमानाथ को लगा कि उसने सरकारी पैसा लिया है और वह उसे वापस नहीं कर सकता। लेकिन बाद में जलपा, अपने गहने बेचकर कर्ज़ उतार देती है। हालांकि, पूरा उपन्यास पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि रमानाथ गबन के डर से भाग गया और उसने बार-बार झूठ बोला था। वास्तविक गबन के बिना भी, कहानी इसी डर के इर्द-गिर्द घूमती है, जो शीर्षक को उपयुक्त बनाती है।
प्रेमचंद की खासियत यह है कि उनके उपन्यासों में कोई "नायक" या दोषरहित चरित्र नहीं होता। वे पात्रों को वैसे ही चित्रित करते हैं जैसे वे हैं। उदाहरण के लिए, रमानाथ अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए झूठ बोलता है, और यह आदत उसे दुख पहुँचाती है और उसके परिवार की प्रतिष्ठा को बर्बाद करती है।
वास्तव में देखा जाए तो इस कहानी की असली नायक जलपा होती है। शुरू में, वह एक लालची लड़की लगती है, जिसे केवल गहनों की परवाह है। लेकिन, समय के साथ, रमानाथ के लिए उसका प्यार बढ़ता जाता है, और उसे एहसास होता है कि गहने ही सब कुछ नहीं होते। अपने पति की परेशानी को समझते हुए वह उसकी मदद करने के लिए अपने गहने भी बेच देती है। जलपा सरकार का पैसा लौटाकर रमानाथ को बचाती है और उसे बचाने के लिए कलकत्ता जाने का भी साहस दिखाती है। वह दूसरे ज़रूरतमंद परिवार की भी मदद करती है। इन कार्यों के ज़रिए, जलपा एक सच्चे नायक के गुणों को प्रदर्शित करती है। प्रेमचंद के एक अन्य उपन्यास गोदान की तुलना में, गबन की कहानी सरल और अधिक रोचक है। जहाँ गोदान में कई पात्र शामिल हैं, वहीं गबन मुख्य रूप से रमानाथ और जलपा पर केंद्रित है। मतभेदों के बावजूद, दोनों उपन्यासों में प्रेमचंद की बहुमुखी प्रतिभा झलकती है। प्रेमचंद सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, ज़मींदारी, कर्ज़ और गरीबी जैसे समय के वास्तविक मुद्दों के बारे में लिखते हैं। उनके उपन्यासों का एक महत्वपूर्ण पहलू महिला नायकों की केंद्रीय और प्रमुख भूमिका है, जो समाज में उनके महत्व में उनके विश्वास को दर्शाता है। कुल मिलाकर गबन प्रेमचंद के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक है। हालाँकि पश्चिमी पाठकों को कुछ कठिन हिंदी शब्द चुनौतीपूर्ण लग सकते हैं, लेकिन क्षेत्रीय भारतीय साहित्य में रुचि रखने वालों द्वारा इसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4d64zu3d
https://tinyurl.com/f3mx7n8s
https://tinyurl.com/mrx6vxph
चित्र संदर्भ
1. ‘चंद्रकांता’ ,’चित्रलेखा’ और ‘गबन’’ पुस्तकों को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
2. चंद्रकांता पुस्तक के कवर पृष्ठ को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
3. चंद्रकांता की तर्ज पर बनी फिल्म के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
4. चंद्रकांता धारावाहिक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. देवकीनंदन खत्री को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. चित्रलेखा पुस्तक के कवर को संदर्भित करता एक चित्रण (flipkart)
7. गबन पुस्तक के कवर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. एक भारतीय महिला की पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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