Post Viewership from Post Date to 01-Jul-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2356 101 2457

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

विश्वविख्यात डिज़ाइनर दंपति, चार्ल्स व रे ईम्स, भारत में 'लोटे' से क्यों प्रभावित हुए?

मेरठ

 31-05-2024 09:33 AM
घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ

आज इंसानों की मौजूदगी वाले हर स्थान में आपको ‘कुर्सियां’ जरूर देखने को मिल जाएँगी! आधुनिक कुर्सियां, लकड़ी, धातु और प्लास्टिक सहित कई पुनर्नवीनीकरण सामग्रियों से भी बनाई जाने लगी हैं। नए ज़माने की कुछ कुर्सियाँ नरम और आरामदायक होती हैं, जबकि कई कुर्सियाँ सख्त और सीधी भी होती हैं, जो काम करने या पढ़ने के लिए बिल्कुल उपयुक्त होती हैं। आधुनिक फर्नीचर या ख़ासतौर पर कुर्सियों के डिज़ाइन के क्षेत्र में चार्ल्स और रे ईम्स (Charles and Ray Eames) नामक एक दंपति का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। उन्होंने आधुनिक सामग्रियों का उपयोग करके, कुर्सियों को डिज़ाइन करने के तरीके को ही बदल दिया और डिज़ाइन की दुनिया पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है। उनकी अनूठी कृतियों में से एक “ईम्स चेयर” (Eames Chair) भी है, और आज हम इसी की अनूठी विशेषताओं के बारे में जानेंगे। ईम्स चेयर का आविष्कार करने वाले चार्ल्स और रे एम्स, नामक दंपति ने 20वीं सदी के कुछ सबसे महत्वपूर्ण वास्तुकला और औद्योगिक डिज़ाइन तैयार किए। उन दोनों की मुलाकात क्रैनब्रुक एकेडमी ऑफ आर्ट (Cranbrook Academy of Art) में हुई थी और शादी के बाद उन्होंने कई परियोजनाओं पर एक साथ काम किया। उनके प्रसिद्ध वास्तुशिल्प कार्यों में से एक कैलिफ़ोर्निया में उनका घर भी है, जिसे ईम्स हाउस (Eames House) के नाम से जाना जाता है। हालाँकि, उनका सबसे स्थायी और प्रभावी योगदान मध्य-शताब्दी के आधुनिक बैठने के साधनों के डिज़ाइन के संदर्भ में माना जाता है।
उनका मार्गदर्शक सिद्धांत सरल लेकिन बहुत गहरा था, जो कहता था कि "फर्नीचर ऐसा बनाएं, जिसमें सुंदरता के साथ-साथ व्यावहारिकता का सहज मिश्रण हो।" चार्ल्स और रे एम्स की अनूठी विशेषता यह थी कि उन्हें विविध सामग्रियों का उपयोग करना बखूबी आता था। उन्होंने मोल्डेड प्लाइवुड, प्लास्टिक और फाइबरग्लास जैसे पदार्थों का प्रयोग किया जो कि बहुमुखी होने के साथ-साथ लागत प्रभावी यानी सस्ते भी थे। इन सामग्रियों ने उन्हें बड़े पैमाने पर कुर्सियाँ बनाने की अनुमति दी, जिससे अच्छे डिज़ाइन अधिक लोगों के लिए सुलभ हो गए।
उनके द्वारा निर्मित आरामदायक लाउंज कुर्सी (lounge chair) आज भी बहुत लोकप्रिय हैं और कई आधुनिक डिज़ाइनरों को प्रेरित करती हैं। ईम्स लाउंज कुर्सी (Eames lounge chair) को पहली बार 1956 में पेश किया गया था, और तब से ही यह लोगों की पसंदीदा रही है। इसकी सुंदरता इसके मूल डिज़ाइन और नवीन विनिर्माण तकनीकों में निहित है।
ईम्स लाउंज कुर्सी, फर्नीचर का एक क्लासिक उदाहरण है, जो अपने अनूठे स्कैंडिनेवियाई (उत्तरी यूरोप) डिज़ाइन (scandinavian design) के कारण प्रसिद्ध है, जो अपने समय के अन्य डिज़ाइनों से काफी अलग था। इसे बनाने के लिए इसके रचनाकारों, चार्ल्स और रे ईम्स ने एक लोकप्रिय प्रकार की कुर्सी से प्रेरणा ली, जिसे शेज़ लाउंज (Chaise lounge) कहा जाता है। वे कुछ ऐसा बनाना चाहते थे जो देखने में भी शानदार हो और अधिक किफायती भी हो। उनका डिज़ाइन इतना नवीन था कि अब इसे 20वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण फ़र्निचर डिज़ाइनों में से एक माना जाता है। ईम्स लाउंज कुर्सी एक विशेष तकनीक का उपयोग करके बनाई गई है। पहले के समय में इस तरह की कुर्सियों को बनाने के लिए केवल ब्राज़ीलियाई शीशम लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। मूल ईम्स कुर्सी भी इसी लकड़ी से बनी थी। लेकिन आधुनिक समय में इसे अखरोट, आबनूस और शीशम जैसे कई विकल्पों से बनाया जा सकता है। चार्ल्स ईम्स चाहते थे कि उनकी कुर्सियाँ "लिव-इन" लुक वाली हों। ईम्स लाउंज कुर्सियों के पीछे पट्टियाँ और फुटस्टूल के लिए एक आधार भी दिये गए हैं, दोनों एल्यूमीनियम से बने हैं। इसके अलावा, कुर्सी एक घूमने वाले फ़ंक्शन के साथ आती है, लेकिन यह आगे-पीछे नहीं हिलती है। ईम्स लाउंज कुर्सी का डिज़ाइन बहुमुखी होता है, और विभिन्न सेटिंग्स और शैलियों में फिट हो सकता है। यह एक क्लब कुर्सी की तरह होती है, लेकिन हल्की होने के बावजूद भी यह काफ़ी आरामदायक होती है। इस डिज़ाइन को इतना पसंद किया गया कि इसकी कई प्रतियां बनाई गईं। चूँकि मूल कुर्सी काफी महंगी है, और इसकी माँग भी बहुत अधिक है, इसलिए अब कई उच्च गुणवत्ता वाली, किफायती प्रतिकृतियाँ उपलब्ध हो गई हैं। ईम्स जोड का लक्ष्य एक ऐसी कुर्सी बनाना था जो शानदार और व्यावहारिक होने के साथ-साथ औसत व्यक्ति के लिए सस्ती भी हो। ईम्स लाउंज कुर्सी का मूल डिज़ाइन इतना सफल रहा था कि इसे बोस्टन के हेनरी फ़ोर्ड संग्रहालय (Henry Ford Museum) में ललित कला संग्रहालय और आधुनिक कला संग्रहालय में भी प्रदर्शित किया गया है।
1950 में, रे और चार्ल्स ईम्स ने एक और मोल्डेड फाइबरग्लास आर्मचेयर (Molded Fiberglass Armchair) पेश की। उन्होंने इसे आधुनिक कला संग्रहालय (MOMA, एमओएमए) द्वारा प्रायोजित कम लागत वाले फर्नीचर डिज़ाइन के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता हेतु बनाया था। इस कुर्सी को ख़ासतौर पर किफायती यानी सस्ती बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैसा और सामग्री सीमित थी। इस कुर्सी का मूल संस्करण कपड़े के कुशन के साथ एल्यूमीनियम बेस पर ढाले हुए प्लास्टिक से बना था। हालाँकि समय के साथ, विभिन्न फ़िनिश, बेस और असबाब विकल्पों को शामिल करके इस डिज़ाइन का विस्तार किया गया। देखते ही देखते ये कुर्सियाँ बहुत लोकप्रिय हो गईं और आज इन्हें दुनियाँ के कई प्रसिद्ध खेल स्टेडियमों और कॉलेज लाउंज जैसी विभिन्न जगहों पर देखा जा सकता है।
1956 में, ईम्स लाउंज चेयर और ईम्स ओटोमन चेयर को हरमन मिलर कंपनी द्वारा जारी किया गया था, और वे आज भी बेचे जाते हैं। अन्य डिज़ाइनों के विपरीत, यह कुर्सी बहुत आरामदायक थी। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि चार्ल्स और रे ईम्स, को भारतीय उपभोक्ता वस्तुओं के डिज़ाइन और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए भारत में भी बुलाया गया था। इस दौरान भारत में उन्होंने कई स्थानों का दौरा किया और बहुत से लोगों से बात की। उन्हें एहसास हुआ कि वास्तविक बदलाव लाने के लिए उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि भारतीय संस्कृति में क्या महत्वपूर्ण और अनोखा है। वे यह पता लगाना चाहते थे कि भारत में अच्छे जीवन स्तर का क्या मतलब है और वे उन मूल्यों का उपयोग करके भारत में एक मज़बूत डिज़ाइन संस्कृति का निर्माण करना चाहते थे। जब चार्ल्स और रे ने भारत का दौरा किया, तो यहाँ वे एक साधारण रोजमर्रा के बर्तन यानी “लोटे” से बहुत प्रभावित हुए। भारतीय महिलाएँ लोटे को इमली और राख का उपयोग करके चमकाए हुए रखती थी। लेकिन दिलचस्प बात यह है, कि लोटे को केवल एक व्यक्ति द्वारा डिज़ाइन नहीं किया गया था। समय के साथ, कई लोगों ने उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा करने के लिए इसे कई बार नया रूप दिया और इसमें कई बदलाव किए हैं। अतः चार्ल्स और रे ने अपनी रिपोर्ट में लिखा: "भारत में देखी और प्रशंसित सभी वस्तुओं में से, लोटा, जो रोजमर्रा के उपयोग का साधारण बर्तन है, शायद सबसे महान, सबसे सुंदर है। आधुनिक भारत के लिए नए डिज़ाइनों को लोटे की भाँती सेवा, गरिमा और स्नेह जैसे मूल्यों को अपने में समेटना होगा। विभिन्न विषयों जैसे समाजशास्त्र, इंजीनियरिंग, दर्शनशास्त्र, वास्तुकला, अर्थशास्त्र, भौतिकी, मनोविज्ञान, इतिहास, चित्रकला, मानवविज्ञान आदि को एक साथ लाकर, और परिचित समस्याओं के प्रश्नों को दोबारा दोहरा कर, उन्हें सुलझाया जा सकता है। जमीनी स्तर पर शुरू होने वाले समाधानों की स्पष्ट दिशा, गुणवत्ता और मूल्य परिभाषित होने चाहिए।

संदर्भ
https://tinyurl.com/54h4yzpa
https://tinyurl.com/2n8t72dm
https://tinyurl.com/5a64ndc6

चित्र संदर्भ
1. चार्ल्स व रे ईम्स और लोटे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, flickr)
2. चार्ल्स और रे ईम्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ईम्स चेयर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कमरे में रखी गई आरामदायक ईम्स चेयर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ईम्स चेयर के आरेख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. सामने से देखने पर ईम्स चेयर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. एक नक़्क़शीदार लोटे को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. तांबे के लोटे को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आइए जानें, देवउठनी एकादशी के अवसर पर, दिल्ली में 50000 शादियां क्यों हुईं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:23 AM


  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id