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हमारे देश भारत में हर साल रेबीज़ (Rabies) विषाणु के कारण लगभग 18,000-20,000 लोग अपनी जान गंवा देते हैं। भारत में रिपोर्ट किए गए रेबीज के लगभग 30-60% मामले, और मौतें 15 साल से कम उम्र के बच्चों में होती हैं। पूरे विश्व में रेबीज़ से मरने वाले लोगों की संख्या में, अकेले भारत के 36% मामले शामिल है। यद्यपि भारत में रेबीज़ का वास्तविक बोझ पूरी तरह से ज्ञात नहीं है; भारत रेबीज़ के लिए स्थानिक है। रेबीज़ एक घातक पशुजन्य विषाणुजनित बीमारी है, लेकिन इसकी रोकथाम की जा सकती है। यह विषाणु मुख्य रूप से घरेलू और जंगली जानवरों को संक्रमित करता है। यह संक्रमित जानवरों की लार के निकट संपर्क जैसे काटने, खरोंचने, त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली को चाटने के माध्यम से अन्य जानवरों, और मनुष्यों में फैलता है। एक बार बीमारी के लक्षण विकसित होने पर, रेबीज़ जानवरों ,और मनुष्यों दोनों के लिए घातक हो सकता है। रेबीज वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को संक्रमित कर देता है। यदि किसी व्यक्ति को संभावित रेबीज जोखिम के बाद, उचित चिकित्सा देखभाल नहीं मिलती है, तो वायरस से मस्तिष्क में संक्रमण के परिणाम स्वरूप अंततः व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। पालतू जानवरों को टीका लगाने, वन्यजीवों से दूर रहने, और लक्षण शुरू होने से पहले संभावित जोखिम के बाद चिकित्सा देखभाल लेने से रेबीज़ को रोका जा सकता है।
रेबीज़ वायरस के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में फैलने के साथ ही मस्तिष्क में सूजन (encephalitis) आ जाती है, जिसके कारण भोजन या तरल पदार्थ निगलने में कठिनाई होती है, और इसलिए पीने के लिए तरल पदार्थ दिए जाने पर घबराहट, जिसे हाइड्रोफोबिया (hydrophobia) कहते हैं, होने लगती है। तंत्रिका तंत्र की क्षति के कारण सक्रियता और अतिसंवेदनशीलता, भटकाव, मतिभ्रम, दौरे, पक्षाघात और कुछ ही दिनों के भीतर दिल के दौरे जैसे खतरनाक लक्षण देखने को मिलते हैं। हालांकि मनुष्यों में रेबीज से बचाव के लिए दो प्रकार के टीके मौजूद हैं: तंत्रिका ऊतक और कोशिका संवर्धन टीके। तंत्रिका ऊतक रेबीज के वे टीके हैं, जो भेड़, या बकरियों जैसे संक्रमित जानवरों के मस्तिष्क के ऊतकों से प्राप्त होते हैं। इन टीकों के कारण शरीर में अधिक गंभीर प्रतिकूल प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सकती है। इसके साथ ही ये टीके कोशिका संवर्धन टीकों की तुलना में कम प्रतिरक्षाजनक होते हैं, और इसलिए WHO द्वारा उनके उत्पादन और उपयोग की अनुशंसा नहीं की जाती है। आधुनिक कोशिका संवर्धन टीके मानव कोशिका संवर्धन या भ्रूणीय अंडों में बनाए जाते हैं। कोशिका संवर्धन या भ्रूणीय अंडों में वृद्धि के बाद, वायरल कोशिका को केंद्रित, शुद्ध, निष्क्रिय और हिमशुष्क (lyophilized ) किया जाता है। कुछ टीकों में स्टेबलाइज़र के रूप में मानव एल्ब्यूमिन (albumin) या संसाधित जिलेटिन मिलाया जाता है।
WHO द्वारा तंत्रिका ऊतक टीकों के उत्पादन और उपयोग को बंद करने, और आधुनिक कोशिका संवर्धन टीकों द्वारा उनके प्रतिस्थापन की दृढ़ता से सिफारिश की जाती है। इसके साथ ही अंतस्त्वक टीकाकरण के विकल्प के रूप में, अंतः पेशी टीकाकरण की सिफारिश करता है ,क्योंकि यह सुरक्षित, प्रतिरक्षात्मक और अधिक लागत प्रभावी है। ऐसे स्थानों पर जहां रेबीज वायरस के लगातार, बार-बार फैलने की आशंका होती है, वहां लोगों को इसके संपर्क में आने से पहले ही रोगनिरोधी (prophylaxis) लेने की अनुशंसा की जाती है। हालांकि किसी भी कारणवश वायरस के संपर्क में आने के बाद की टीके की अनुशंसा निम्न तीन आधारों पर की जाती है:
श्रेणी I : बाहरी संपर्क जैसे कि जानवरों को छूना या खिलाना, अक्षुण्ण त्वचा को चाटना आदि के लिए, किसी रोगनिरोधी की आवश्यकता नहीं होती है।
श्रेणी II : इस श्रेणी में बिना रक्तस्राव के त्वचा पर मामूली खरोंच की स्थिति में तत्काल टीकाकरण की आवश्यकता होती है।
श्रेणी III : एक या अधिक स्थानों पर वायरस से संक्रमित पशु के काटने या खरोंचने, अथवा चाटने से लार के साथ श्लेष्म झिल्ली के संदूषण, खरोंच वाली त्वचा पर चाटने, चमगादड़ के संपर्क के लिए, तत्काल टीकाकरण और रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन की सिफारिश की जाती है।
क्या आप जानते हैं, कि रेबीज़ के टीके की खोज लुई पाश्चर (Louis Pasteur) द्वारा आवश्यकता से उत्पन्न एक प्रसिद्ध प्रयोग के साथ की गई थी। रेबीज़ का टीका पहली बार जुलाई 1885 में जोसेफ मिस्टर (Joseph Meister) नाम के एक लड़के को लगाया गया था, जब उसे एक पागल कुकुर (dog) ने काट लिया था। पाश्चर उस समय रेबीज के टीके पर काम कर रहे थे। जोसेफ की मां के अनुरोध पर जोसेफ को प्रायोगिक रेबीज वैक्सीन के 13 इंजेक्शन लगाए गए। उपचार के अंत में, जोसेफ में रेबीज के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं दिए, और इस प्रकार रेबीज के टीकाकरण का एक नया युग शुरू हुआ। दुनिया भर में इस सफलता के लिए लुई पाश्चर की सराहना की गई क्योंकि उस समय रेबीज का कोई इलाज उपलब्ध नहीं था।
27 दिसंबर 1822 को डोल, जुरा, फ्रांस (Dole, Jura, France) में एक गरीब चर्मकार, कैथलिक परिवार में जन्मे लुई पाश्चर एक फ्रांसीसी रसायनज्ञ, औषधज्ञ और सूक्ष्म जीवविज्ञानी थे। वे टीकाकरण, सूक्ष्मजैविक किण्वन, और पास्चुरीकरण के सिद्धांतों की अपनी खोजों के लिए जाने जाते हैं। पास्चुरीकरण का नाम तो उनके नाम पर ही रखा गया था। उन्होंने जीवाणु संदूषण को रोकने के लिए दूध और वाइन के उपचार की तकनीक का आविष्कार किया, जिसे अब पास्चुरीकरण कहा जाता है। रसायन विज्ञान में उन्होंने बीमारियों के कारणों और रोकथाम की दिशा में उल्लेखनीय शोध किये, जिसके द्वारा उन्होंने स्वच्छता, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और आधुनिक चिकित्सा की नींव रखी। रेबीज के अलावा उन्होंने एंथ्रेक्स (anthrax) के टीके की भी खोज की, जिसके लिए उन्हें लाखों लोगों की जान बचाने का श्रेय दिया जाता है। उन्हें आधुनिक जीवाणु विज्ञान के संस्थापकों में से एक माना जाता है, और उन्हें "जीवाणु विज्ञान के पिता" के रूप में भी सम्मानित किया गया है। पाश्चर ने अपनी खोज के माध्यम से ‘सहज पीढ़ी के सिद्धांत' (Doctrine of spontaneous generation) का भी खंडन किया। फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज (French Academy of Sciences) के तत्वावधान में, उन्होंने अपने प्रयोग के माध्यम से सिद्ध किया, कि निष्कीटित और सीलबंद फ्लास्क में, कभी भी कुछ भी विकसित नहीं हो सकता। इसके विपरीत, निष्कीटित लेकिन खुले फ्लास्क में सूक्ष्मजीव विकसित हो सकते हैं। इस प्रयोग के लिए, अकादमी द्वारा उन्हें 1862 में 'अलहम्बर्ट पुरस्कार' (Alhumbert Prize) से सम्मानित किया गया। उनके कई प्रयोगों से पता चला, कि रोगाणुओं को मारकर या रोककर बीमारियों को रोका जा सकता है। पाश्चर को अपनी खोजों एवं कार्यों के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए। इसके साथ ही उन्हें 1869 में रॉयल सोसाइटी (Royal Society) का एक विदेशी सदस्य नामित किया गया था। 1873 में उन्हें ‘एकेडेमी नेशनेल डी मेडेसीन’ (Académie Nationale de Médecine) के लिए चुना गया। 1883 में ‘रॉयल नीदरलैंड्स एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज’ (The Royal Netherlands Academy of Arts and Sciences) ने उन्हें एक विदेशी सदस्य नामित किया था।
संदर्भ
https://shorturl.at/ejzJU
https://shorturl.at/mvxY5
https://shorturl.at/xBCIV
https://shorturl.at/fpGY6
https://t.ly/QtQ8O
https://t.ly/hppx_
https://t.ly/MnKRA
चित्र संदर्भ
1. लुई पाश्चर एक खरगोश के मस्तिष्क में रेबीज वायरस का इंजेक्शन लगा रहे हैं! के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. रेबीज वायरस से पीड़ित व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
3. एक व्यक्ति को काटते कुत्ते को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
4. लुई पाश्चर को एक कुत्ते के साथ संदर्भित करता एक चित्रण (lookandlearn)
5. रेबीज के मरीजों का निरिक्षण करते लुई पाश्चर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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