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हम में से सभी ने कभी न कभी,लोकप्रिय गीत “रामपुर का वासी हूं मैं” को गुनगुनाया ही होगा। जो की किशोर कुमार द्वारा गाया गया और मजरूह सुल्तानपुरी द्वारा लिखित ‘रामपुर का लक्ष्मण’ नामक हिंदी फिल्म का गीत है। हालांकि, उस फिल्म का हमारे शहर रामपुर से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन, हिंदी कला और सिनेमा में हमारे शहर का योगदान सराहनीय रहा है। आइए, देखते हैं...
साहिबजादी ज़ोहरा बेगम मुमताजुल्ला खान (जिनका नाम बाद में ‘ज़ोहरा सहगल’ हो गया) का जन्म 27 अप्रैल 1912 को रामपुर के कुलीन परिवार (रोहिला पठान) में, सहारनपुर में हुआ था। इस कुशल महिला ने भारतीय कला एवं फिल्म जगत की एक पूर्ण सदी देखी है, और इसके हर पल को जीया भी है।
अपने पेशे की शुरूआत में, उन्होंने न केवल दादा उदय शंकर (एक प्रसिद्ध नृत्यकार) के साथ नृत्य किया, बल्कि, वह दादा उदय शंकर की मुख्य नृत्य साथी भी थी। वह ज़ोरेश डांस इंस्टीट्यूट (Zoresh Dance Institute) शुरू करने और उसे चलाने के इरादे से लाहौर चली गई।
इसके बीच, ज़ोहरा जी की कामेश्वर से शादी हो गयी , और ये युवा दंपत्ति मुंबई शहर की थिएटर दुनिया में आ गए । और, तब वह पृथ्वी थिएटर्स की एक स्थायी सदस्य बन गई। उन्होंने यहां कई यादगार भूमिकाएं निभाई, और सिनेमा जगत में सफल अदाकारी निभाते हुए कई चुनिंदा फिल्मे करीं जैसे की धरती के लाल (1946), नीचा नगर (1946), अफसर (1950), हीर (1956), इंडियन टेल्स ऑफ रुडयार्ड किपलिंग (1964) और उसके बाद कई टीवी धारावाहिक भी उन्होंने किए।
परंतु, वर्ष 1959 में उनके पति की मृत्यु केउपरान्त ज़ोहरा बहुत अकेली पड़ गयीं जिसके वजह से बाद में, वे इंग्लैंड(England) चली गयीं । ज़ोहरा जी को 1962 में ब्रिटेन(Britain) में थिएटर का अध्ययन करने के लिए, छात्रवृत्ति मिली और इस तरह वह कुछ समय के लिए वहीं रही। वहां वह राम गोपाल जी से मिलीं और इस प्रकार, चेल्सी(Chelsea) में उनके विद्यालय में ज़ोहरा जी नेपढ़ाना शुरू किया । उन्होंने जल्द ही, अपने कौशल के कारण यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में बनी फिल्मों में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया। इस तरह, वह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गई।
ज़ोहरा सहगल ने हमारे देश भारत में अंग्रेजी थिएटर, और यूरोप में भारतीय थिएटर कला को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस अवधि (1964 -74) में डॉक्टर व्हू(Doctor Who), द लॉन्ग ड्यूएल(The Long Duel) और द गुरु(The Guru) जैसे कई टेलीविजन धारावाहिक भी किए।
फिर, लंदन से दिल्ली आने के बाद, वह जल्द ही कई अंतर-सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में शामिल हो गई। साथ ही, उन दिनों बनी लगभग सभी भारत-केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों में उन्हें guest appearance में देखा गया। इसकी शुरुआत, वर्ष 1984 में ज्वेल इन द क्राउन (Jewel in the Crown) से लेकर 1987 में तंदूर नाइट्स(Tandoor Nights); 1992 में भाजी ऑन द बीच (Bhaji on the Beach) और उसके बाद 1996 में अम्मा से हुई।
फिल्मों के साथ यह जुड़ाव, उन्हें अस्सी के दशक में विज्ञापनों की ओर ले आया। जबकि, नब्बे के दशक तक उन्होंने ‘चीनी कम’, ‘दिल से’, ‘कल हो ना हो’, ‘वीर ज़ारा’, ‘मसाले की मालकिन’ और ‘आखिरी सांवरिया’ जैसी कई मुख्यधारा की फिल्में कीं।
कला एवं फिल्म जगत में उनके इस योगदान के लिए, उन्हें 2010 में ‘पद्म विभूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
आइए, अब साहिबजादी ज़ोहरा के अलावा, हमारे रामपुर शहर से फिल्मी दुनिया में अपना रास्ता खोजने वाले अन्य कलाकारों के बारे में पढ़ते हैं।
1.रुखसार रहमान का जन्म 29 अक्टूबर,1975 को रामपुर में हुआ था। वह एक अभिनेत्री हैं, जिन्हें पीके (2014), उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक (2019) और द गॉन गेम (2020) जैसी चर्चित फिल्मों के लिए जाना जाता है।
2.रज़ा मुराद का जन्म 23 नवंबर 1950 को रामपुर में हुआ था। वह एक चर्चित हिंदी फिल्म अभिनेता हैं, जिन्हें अनेकों हिंदी फिल्मों के जाना जाता है। जिनमे उनकी हाल की फिल्में -पद्मावत (2018), बाजीराव मस्तानी (2015) और जोधा अकबर (2008) हैं ।
3. ज़ेबा मुहम्मद अली, रामपुर में जन्मे एक अन्य कलाकार–जो 1947 में हमारे देश के विभाजन के तुरंत बाद पाकिस्तान चले गए। वहां उन्हें तत्कालीन महानिदेशक रेडियो पाकिस्तान जेड. ए. बुखारी द्वारा, रेडियो पाकिस्तान से परिचित कराया गया। फिर 1962 में उन्हें ‘चिराग जलता रहा’ नामक फिल्म में नायक की भूमिका दी गई। उनकी आखिरी फिल्म 1980 के दशक के अंत में प्रदर्शित हुई थी। इसके बाद, अली ने एकांत जीवन व्यतीत किया और अली-ज़ेब फाउंडेशन का कारोबार संभाला।
4.अतहर शाह खान का जन्म 26 जुलाई 1943 को ब्रिटिश भारत के रामपुर राज्य में हुआ था। वह एक लेखक और अभिनेता थे, जिन्हें ‘बा अदब बा मुलाहिज़ा होशियार (1990)’ और ‘एरियल मदर्स उर्फ एरियल मां (2000)’ के लिए जाना जाता है।
5.उस्ताद मोहम्मद वज़ीर खान (1860-1926) ने, रामपुर के नवाब हामिद अली खान के काल में, ‘अरबाब-ए-निशात’ (रामपुर राज्य का संगीत विभाग) के प्रमुख के रूप में कार्य किया था। वह एक उत्कृष्ट नाटककार भी थे, जिन्होंने रामपुर की क्लब घर इमारत में, रामपुर थिएटर की स्थापना की।
वज़ीर खान का जन्म पूर्व रामपुर राज्य में, अमीर खान बीनकर के यहां हुआ था। संगीत के अलावा, वज़ीर खान की रुचि कई क्षेत्रों में थी। वह एक पेशेवर नाटककार, कवि, लेखक, चित्रकार, फोटोग्राफर और एक अच्छे सुलेखक भी थे। वह मुख्य रूप से, अरबी और फ़ारसी में सुलेख करते थे। कविता में वह दाग़ देहलवी के छात्र थे। एक संगीतज्ञ के रूप में उन्होंने रिसाला मौसीबी लिखी थी। इसके अलावा, वज़ीर खान अरबी, फ़ारसी, उर्दू, हिंदी, बांग्ला, मराठी और गुजराती जैसी कई भाषाओं में भी पारंगत थे।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mwaxm9ha
http://tinyurl.com/37d98amn
http://tinyurl.com/57693fmx
चित्र संदर्भ
1. ज़ोहरा सहगल और रज़ा मुराद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. साहिबजादी ज़ोहरा बेगम मुमताजुल्ला खान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ज़ोहरा मुमताज़ सहगल और उज़रा बट जी को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube, wikimedia)
4. रुखसार रहमान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. रज़ा मुराद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ज़ेबा मुहम्मद अली को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
7. अतहर शाह खान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. उस्ताद मोहम्मद वज़ीर खान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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