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भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology), पृथ्वी की सतह या उसके नीचे संचालित होने वाली भौतिक, रासायनिक या जैविक प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतिक और बाथिमेट्रिक(Bathymetric) विशेषताओं की उत्पत्ति और विकास का वैज्ञानिक अध्ययन है। बाथिमेट्रिक विशेषता से तात्पर्य, महासागरों, नदियों या झीलों में पानी की गहराई है।
भू-आकृति विज्ञानी यह समझने का प्रयास करते हैं कि,पृथ्वी का भू-दृश्य इस तरह क्यों दिखता हैं। वे भू-आकृति और भू-भाग के इतिहास और गतिशीलता को समझते हैं और क्षेत्र अवलोकन, भौतिक प्रयोग और संख्यात्मक मॉडलिंग(Numerical modelling) के संयोजन के माध्यम से परिवर्तनों की भविष्यवाणी करते हैं।
क्या आपके मन में, प्रश्न उठा है कि, भू-आकृति विज्ञान का महत्त्व क्या हैं? आइए जानते हैं। लंबे भूवैज्ञानिक समयावधि में, प्लेट टेक्टोनिक्स(Plate tectonics) ने महाद्वीपों को आकार दिया है। क्योंकि, हमारे ग्रह पृथ्वी की सतह, टेक्टोनिक प्लेटों से ही बनी है, जो प्रति वर्ष, 2 से 15 सेंटीमीटर की अलग-अलग दरों पर एक-दूसरे के सापेक्ष चलती हैं। भूकंप और ज्वालामुखी की गतिविधियां इस सक्रिय परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो प्लेट टेक्टोनिक से संबंधित हैं ।जबकि, नदी या समुन्द्र के पानी से जुड़े परिवर्तन सबसे महत्वपूर्ण भौतिक कारकों में से एक हैं, जो आम तौर पर छोटे पैमाने पर पृथ्वी को आकार देते हैं।
भौतिक भूगोलवेत्ताओं के लिए भू-आकृति विज्ञान का महत्व न केवल पृथ्वी के भौतिक परिवर्तनों को समझने में है, बल्कि, भौतिक खतरों के लिए तैयार रहने में भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, वनों की कटाई, मिट्टी के गुणों और मौसमी वर्षा के मुद्दों को समझने से बाढ़ की घटनाओं की आवृत्ति और उनके संभावित खतरे का बेहतर आकलन किया जा सकता है।हालांकि, आज भूमि उपयोग में परिवर्तन, जैसे कि, फुटपाथ का बढ़ता निर्माण, जो पानी के अवशोषण को रोकता है, ने उन स्थानों पर भौतिक परिवर्तनों को तेज़ कर दिया है। जहां खले मैदान और पानी को अवशोषित करने वाली वनस्पति की कमी के कारण अपवाह बढ़ गया है।
शहरी वातावरण अक्सर प्राकृतिक आपदाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि, वे देशी वनस्पति को हटाने और भूमि पर निर्माण के माध्यम से परिदृश्य को तेज़ी से बदलते रहते हैं। अतः आज, शहरी नियोजन में प्राकृतिक भू-आकृतिक घटनाओं को ध्यान में रखने की आवश्यकता है। इसका फायदा यह होगा कि, जैसे ही नए शहरी क्षेत्र विकसित होंगे,उन्हें प्रभावित करने वाले भू-आकृतिक कारकों को उचित जल निकासी या निर्माण सामग्री के उपयोग के माध्यम से दोहराया जा सकेगा।जो स्थानीय पर्यावरण के लिए सर्वोत्तम रूप से अनुकूलित हो, जिसमें आर्द्रता, वर्षा, और तापमान जैसे कारक शामिल हों।
अनौपचारिक या मलिन बस्तियां, और भू-आकृति विज्ञान सिद्धांतों का उपयोग करके भूमि उपयोग परिवर्तन की पहचान करना न केवल खतरों, या उन क्षेत्रों की पहचान करने में महत्वपूर्ण है, जहां के स्थान अस्थिर है और आपदाओं के लिए अतिसंवेदनशील हो सकते हैं।
क्या आप जानते हैं कि, वैश्विक आबादी का एक तिहाई हिस्सा, आज भी, झुग्गियों में रहता हैं। उनका ऐसे कई इलाकों पर कब्ज़ा है, जो बाढ़, भूकंप, या खराब जल निकासी के प्रति संवेदनशील हैं और जो दूषित जल आपूर्ति का कारण बन सकते हैं।अतः भौतिक भूगोल के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में भू-आकृति विज्ञान, प्राकृतिक भू-आकृति परिवर्तन और आबादी के लिए संभावित खतरों को समझने के लिए आवश्यक है।
दूसरी ओर, वैश्विक स्तर पर सतही जल अपवाह द्वारा जल निकासी लाइनों के किनारे से मिट्टी हटाना, या
अवनालिका अपक्षरण(Gully erosion), एक भयानक भूमि क्षरण प्रक्रिया है। यह हमारे पूरे भारत में भी सर्वव्यापी है। साथ ही, देश में दुनिया के दो सबसे बड़े अनुपयुक्त भूमि या बैडलैंड(Badland) क्षेत्र भी मौजूद हैं। हालांकि, अवनालन से बड़े पैमाने पर प्रभावित होने के बावजूद, भारत में अवनालिका क्षरण अनुसंधान काफी सीमित रहा है। देश में, नालिका निर्माण, उनके आकृति विज्ञान और गतिशीलता के प्रमुख पहलू अज्ञात बने हुए हैं।
हमारे देश के कई क्षेत्रों में अवनालिका अपक्षरण की शुरुआत वनों की कटाई और अत्यधिक चराई के परिणामस्वरूप हुई है। इसके विपरीत, मध्य और पश्चिमी भारत के बैडलैंड क्षेत्र, मुख्य रूप से नियोटेक्टोनिक्स(Neotectonics) या पृथ्वी की सतह की समकालीन गतियाँ और विकृतियाँ
और वर्त्तमान होलोसीन जलवायु परिवर्तन(Holocene climate change) जैसे प्राकृतिक कारकों की प्रतिक्रिया में विकसित हुए हैं।
हालांकि, बैडलैंड्स के भू-आकृति विज्ञान को चित्रित करने के लिए, फ्रैक्टल ज्यामिति(Fractal geometry) की अवधारणाओं को लागू करने वाले कुछ अध्ययन अद्वितीय हैं। लेकिन, जो सबसे महत्वपूर्ण अनुसंधान अंतराल मौजूद है, वह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अवनालिका भू-आकृति विज्ञान और कटाव गतिशीलता की समझ और मात्रा निर्धारण से संबंधित है।प्रायद्वीपीय भारत की नालियों का सबसे कम अध्ययन किया गया है, उसके बाद हिमालय और उप-हिमालयी क्षेत्र का स्थान है।
मौजूदा ज्ञान एवं अध्ययन, बैडलैंड विकास और परिदृश्य के व्यापक भू-आकृतिक विकास के बीच संबंधों के दिलचस्प उदाहरण प्रदान करता है।लेकिन, भारत के बैडलैंड में परिदृश्य परिवर्तन के प्राकृतिक और मानवजनित चालकों के सापेक्ष महत्व को समझने के लिए, हमें बेहतर कालानुक्रमिक समझ की आवश्यकता है। नालिका की विशेषताओं का बड़े पैमाने पर मानचित्रण, उनकी आकृति विज्ञान की मात्रा का निर्धारण, नालिका के कटाव की दर और देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों या नदी घाटियों में जलग्रहण तलछट बजट में इसकी हिस्सेदारी, भविष्य के अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। और, इस अनुसंधान में, भू-आकृति विज्ञान बेबदल है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/44232mmc
http://tinyurl.com/5bwhenuy
http://tinyurl.com/fkkzu7ma
चित्र संदर्भ
1. भारत के मानचित्र और कंपन को संदर्भित करता एक चित्रण (Free Vectors, wikimedia)
2. तरंग समीकरणों को हल करने के लिए सुपरकंप्यूटर का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर भूकंपीय तरंग प्रसार के अनुकरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक क्रॉस-सेक्शन जो किसी फॉल्ट की गति से उत्पन्न क्रस्ट के थर्मल और उत्खनन पैटर्न को दर्शाता है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अवनालिका अपक्षरण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. विश्व के भौतिक मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
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