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23 अगस्त 2023 के दिन शाम को ठीक 6: 04 मिनट पर चंद्रयान-3 से निकले विक्रम लैंडर (Vikram Lander) के पहियों ने जब पहली बार चाँद के दक्षिणी ध्रुव को स्पर्श किया, उसी पल में धरती से इसे टकटकी लगाए करोड़ों देशवासियों के दिलों में खुशी की लहर दौड़ गई। यह न केवल भारत बल्कि पूरी दुनियां के इतिहास में एक अभूतपूर्व क्षण था। हमारे लिए चंद्रयान-3 के पृथ्वी से चंद्रमा तक पहुंचने के बीच का एक-एक क्षण महत्वपूर्ण था। हालांकि इस बड़ी सफलता का थोड़ा-बहुत श्रेय हमारे जिज्ञासु पूर्वजों को भी दिया जाना चाहिए, जिन्होंने न केवल चांद-तारों में रूचि दिखाई, बल्कि इनकी दशाओं और कलाओं को देखकर समय निर्धारण करना भी सीख लिया। चलिए जानते हैं, कैसे? प्राचीन या वैदिक काल से ही, मानव जाति सूर्य और चंद्रमा को देखकर प्रेरित हुई हैं। मानव ने इन खगोलीय वस्तुओं का उपयोग ब्रह्मांड, जीवन तथा मृत्यु के बारे में, अपने दृष्टिकोण बनाने हेतु किया। वैदिक लोगों ने देखा था कि, चंद्रमा नियमित रूप से घटता एवं बढ़ता रहता है, जबकि, सूर्य स्थिर रहता है। चंद्रमा की इस स्थिति को हम ‘चंद्रमा की दशाएं’ कहते हैं। इस संदर्भ में, उनके लिए सूर्य स्थायित्व और अमरता का प्रतीक था, जबकि चंद्रमा पुनरावृत्ति, पुनर्जन्म और पूर्वजों की दुनिया का प्रतिनिधित्व करता था।
वैसे तो, हिंदू धर्म में चंद्रमा का बहुत महत्व है। यह सृष्टि, जीवन तथा नश्वर अस्तित्व के कई पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह हिंदू धर्म के कई अन्य पहलुओं का भी प्रतीक है, जैसे कि, वैदिक देवता सोम या चंद्र, क्षय, स्वप्न अवस्था, आंख, मन, एक राजा, समय, आदि। चंद्रमा का शिव से भी घनिष्ठ संबंध है। शिव जी के मस्तक को यह सुशोभित करता है।
दूसरी ओर, हिंदू साहित्य एवं लोककथाओं में, चंद्रमा को रोमांच, प्रेम, अकेलेपन, दोस्ती, सुखद रात्रि तथा रिश्तेदारी से जोड़ा जाता है। आपने आपकी बहनें एवं माताओं को करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा करते हुए देखा ही होगा, इस प्रकार की धार्मिक आस्था इसके महत्व को बयां करती है। ऐसा माना जाता है कि, कुछ शुभ अवसरों पर चंद्रमा से पड़ने वाली रोशनी अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु में योगदान करती है। जबकि, कुछ दिनों दौरान इसे बिल्कुल भी नहीं देखना चाहिए।
पूर्णिमा, अर्धचंद्र और अमावस्या के दिन से कई रीति-रिवाज और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। अमावस्या का दिन पारंपरिक रूप से शुभ माना जाता है। उस दिन, भारत के कुछ हिस्सों में लोग अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण करते हैं। आप जानते ही होंगे कि, दिवाली जैसा शुभ त्यौहार भी अमावस्या के दिन ही मनाया जाता है। हिंदू चंद्र दिन-दर्शिका एवं पंचांग में, प्रत्येक माह, अमावस्या से शुरू और समाप्त होता है। हालांकि, कुछ लोग चंद्रमा को अशुभ मानते हैं।
इसके अलावा, चंद्रमा का प्राचीन काल से ही मानव जीवन में काफ़ी महत्त्व रहा है। वैदिक काल से ही, सूर्य की स्थिति प्रत्येक दिन की गति एवं समय निर्धारित करती है, लेकिन, जब शुरुआती मनुष्यों को एक दिन व रात के अलावा, समय ध्यान में रखना था, तो उन्होंने चंद्रमा की दशाओं से मदद पाई। चंद्रमा मानव जाति की पहली, घड़ियों में से एक था। चंद्रमा का दृश्य रात्रि के समय तथा ऋतुओं की नियमितता के साथ बदलता है। इस कारण, यह समय का एक विश्वसनीय मार्गदर्शक बन जाता है।
इस बात के अच्छे सबूत हैं कि, चंद्र के आधार पर समय निर्धारण वर्तमान समय से लगभग 25,000 से 35,000 साल पहले से प्रचलित था। लोगों ने तब चंद्रमा की गति को ध्यान से देखा, इसकी प्राकृतिक स्थिति और इसके चरणों में बदलाव को भी ध्यान से देखा, तथा समय निर्धारित किया।
जब प्राचीन मानव ने, चित्र बनाना शुरू किया था, तब उन चित्रों में दो सामान्य रूपांकन, जानवर और रात्रि का आकाश थे। लगभग 37,000 साल पहले की एक यूरोपीय गुफा कला में जंगली मवेशियों के साथ-साथ ज्यामितीय आकृतियों को दर्शाया गया है। कुछ शोधकर्ताओं का अनुमान है कि, ये आकृतियां तारों के समूह तथा चंद्रमा हैं।
1960 के दशक में, अलेक्जेंडर मार्शेक (Alexander Marshack) यह तर्क देने वाले पहले व्यक्ति थे कि, प्रागैतिहासिक काल से ही लोग, चंद्रमा को समय के साथ जोड़ रहे थे। फ्रांस (France) में अब्री ब्लैंचर्ड (Abri Blanchard) नामक एक प्रागैतिहासिक बस्ती से प्राप्त, 28,000 साल पुराने हड्डी के एक टुकड़े पर, उन्हें गड्ढों की एक कृति मिली थी। उन्होंने इसे, चंद्र की दशाओं के अभिलेख के रूप में वर्णित किया था।
दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं द्वारा हजारों वर्षों से, चंद्रमा का उपयोग एक दिनदर्शिका अथवा कैलेंडर (Calender) के रूप में किया गया है। इसकी दशाओं और चक्रों के अवलोकन एवं अध्ययन से लोगों को समय का पता लगाने और उसके अनुसार अपनी गतिविधियों की योजना बनाने में मदद मिलती है। उन लोगों के लिए, सूर्य ने दिनों को चिह्नित करने में मदद की, जबकि, चंद्रमा ने हफ्तों, महीनों और मौसमों को चिह्नित करने में मदद की होगी।
प्राचीन मिस्रवासी (Egyptians) और प्राचीन बेबीलोनियाई (Babylonians) चंद्रमा का उपयोग समय सूचक के रूप में करने वाले पहले लोगों में से थे। उदाहरण के लिए, बेबीलोनियाई लोगों ने 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चंद्र कैलेंडर का उपयोग किया था। उनके चंद्र कैलेंडर में, 29 या 30 दिनों के 12 महीने शामिल थे। मिस्र में चंद्र कैलेंडर का उपयोग, नील नदी (Nile river) की वार्षिक बाढ़ पर नज़र रखने और धार्मिक त्योहारों और समारोहों की तारीखों को निर्धारित करने के लिए किया जाता था। प्राचीन यूरोप (Europe) के सेल्टिक (Celtic) लोग भी चंद्रमा का कैलेंडर के रूप में उपयोग करने के लिए जाने जाते थे। उनका चंद्र कैलेंडर प्राकृतिक दुनिया और मौसम के बदलाव से निकटता से जुड़ा हुआ था। हालांकि, आज अंततः चंद्र कैलेंडर को सौर कैलेंडर द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है। परंतु, यह आज भी सेल्टिक पौराणिक कथाओं और लोककथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।
वर्तमान समय में भी चंद्र कैलेंडर का उपयोग, कुछ लोगों द्वारा धार्मिक या सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, इस्लामिक कैलेंडर चंद्रमा के चरणों पर आधारित है और इसका उपयोग इस्लामिक त्यौहार तथा रमज़ान एवं ईद-उल-फितर जैसे त्योहारों की तारीखें निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
जैसा कि हम देख सकते हैं, कैलेंडर के रूप में चंद्रमा का उपयोग हजारों वर्षों से मानव इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक समय के धर्मों और सांस्कृतिक प्रथाओं तक चंद्रमा ने समय का पता लगाने और महत्वपूर्ण घटनाओं को चिह्नित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अतः आज भी हमारी सामूहिक मानव विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/wvjesbhk
https://tinyurl.com/2yrmb7uc
https://tinyurl.com/3t9tt72p
चित्र संदर्भ
1. चंद्रमा के परिवर्तन को दर्शाता चित्रण (Wikimedia, youtube)
2. पत्नी और परिचारक के साथ अपने रथ पर भगवान चंद्रमा को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. चन्द्रमा की स्थिति को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. एज़्टेक चंद्रमा देवता और कैलेंडर पत्थर को दर्शाता चित्रण (flickr)
5. एथेनियन कैलेंडर को दर्शाता चित्रण (World History Encyclopedia)
6. चंद्रमा के अनुसार बदलते समय को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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