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प्राचीन काल से ही विद्वान लोग "सनातन" को केवल "धर्म" की संज्ञा देने के बजाय "जीवन जीने की कला" मानने पर जोर देते आये हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथ और पौराणिक किवदंतियां इस तथ्य को प्रमाणित भी करती हैं। उदाहरण के तौर पर इस तथ्य की प्रामाणिकता "महाभारत" की महागाथा से साबित की जा सकती है, जहाँ पर भगवान् श्री कृष्ण, पांडवों और कौरवों का व्यवहार तथा “कर्म” को विस्तृत रूप से परिभाषित करते हैं। भगवान् हमें यह स्पष्ट रूप से बता देते हैं कि एक मनुष्य को कैसा जीवन जीना चाहिए, और किन कर्मों को करने से बचना चाहिए। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि महाभारत और 10वीं शताब्दी में लिखी गई और फारस/ईरान में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाने वाली पुस्तक "शाहनामेह (Shahnameh)" में कई उल्लेखनीय समानताएं नजर आ जाती हैं।
शाहनामेह ईरान के राजाओं और नायकों से जुड़ी के महाकाव्य की तरह है। इसमें लगभग 50,000 पंक्तियाँ हैं, जो तुकबंदी वाले वाक्यों के जोड़े की तरह हैं। यह कहानी फारस के पुराने समय का वर्णन है। जब सातवीं शताब्दी में मुसलमानों ने वहां सत्ता संभाली थी। यह कहानी इतनी महत्वपूर्ण है कि ईरान, अफगानिस्तान और अजरबैजान जैसे कई देशों में यह खूब पसंद की जाती है। फ़िरदौसी ने इस कहानी को 977 में लिखना शुरू किया और 1010 में इसे समाप्त किया। इसे लिखने के लिए उन्होंने पुरानी कहानियाँ लीं जिन्हें लोग पहले से जानते थे और उन्हें एक सुंदर कविता में बदल दिया। हालांकि इसमें उन्होंने कुछ नये हिस्से भी जोड़े।
शाहनामेह फ़ारसी भाषा और फ़ारसी संस्कृति के लिए एक ख़ज़ाने की तरह है। यह लेखन की उत्कृष्ट कृति है जो दर्शाती है कि अतीत में ईरान कैसा था। यह लोगों को अच्छे समय को याद रखने और उनसे सीखने में मदद करती है। इसीलिए इस कविता को बनाने के लिए फ़िरदौसी ने पुरानी कहानियों और अपने विचारों के मिश्रण का उपयोग किया। वह फ़ारसी साम्राज्य के पतन से दुखी थे और उसकी स्मृति को जीवित रखना चाहते थे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस कहानी को पढ़कर ईरान के युवा अतीत से सीखेंगे और दुनिया को बेहतर बनाएंगे। इन कहानियों के नायक और महाकाव्य के लेखक अबोलकासेम फ़िरदौसी (Abolqasem Firdausi) की जड़ें अफ़ग़ानिस्तान से जुडी हुई हैं।
आज जिस क्षेत्र में अफगानिस्तान स्थित है उसका भी एक समृद्ध इतिहास रहा है। यह स्थान व्यापार मार्गों के लिए एक चौराहा हुआ करता था और अपनी अनूठी संस्कृतियों के लिए जाना जाता था। लेकिन आज अफगानिस्तान कई समस्याओं से जूझ रहा है और लोग उम्मीद खो चुके हैं, हालाँकि, अतीत में, यह एक बहुत अलग और समृद्ध जगह हुआ करती थी।
इन पुरानी कहानियों को पढ़ने से हमें अफगानिस्तान को बेहतर ढंग से समझने और उसके भविष्य के बारे में अधिक जानकारीपूर्ण तरीके से सोचने में मदद मिल सकती है। जिस तरह ग्रीस और भारत की प्राचीन कहानियाँ आज भी मायने रखती हैं, उसी तरह अफ़ग़ानिस्तान के अतीत की कहानियाँ भी हमें बहुमूल्य सबक सिखा सकती हैं। इन कहानियों में, हम साहस, वफादारी और अन्य महत्वपूर्ण मूल्य सीख सकते हैं। शाहनामेह की इस कहानी में, रुदाबेहह (Rudabeh) नाम की एक माँ को बच्चे को जन्म देते समय इतना दर्द होता है कि वह राहत के लिए मर ही जाना पसंद करती है। उसके पति, ज़ाल (Zal), सिमोर्ग (Simorg) नामक एक देवता से मदद मांगते हैं। उनके मार्गदर्शन से, एक पुजारी रुदाबेह को अनोखे तरीके से जन्म देने में मदद करता है।
यह कहानी शाहनामेह की कई अद्भुत कहानियों में से एक है। शाहनामेह की एक कहानी के एक प्रमुख किरदार रुस्तम (ज़ाल और रुदाबा का पुत्र), और 'महाभारत' में अर्जुन के किरदार के बीच उल्लेखनीय रूप से समानताएं नजर आती हैं। उनकी कहानियाँ दिखाती हैं कि कैसे भारत और ईरान में प्राचीन काल में भी सांस्कृतिक विचार साझा किए जाते थे। अर्जुन और रुस्तम दोनों अपनी-अपनी कहानियों में महत्वपूर्ण नायक हैं। अर्जुन का जन्म इंद्र नामक देवता से हुआ था, जबकि रुस्तम ज़ाल और रुदाबा का पुत्र होता है। दोनों ही नायको का जन्म असामान्य तरीके से हुआ था।
अर्जुन और रुस्तम दोनों ही विशिष्ट विशेषताओं के साथ पैदा हुए थे। दोनों में कई अन्य समानताएं भी नजर आती हैं। रुस्तम की माँ रुदाबा और अर्जुन की मां कुंती ने उनकी कल्पना भगवान इंद्र से की थी। दोनों ही आकार में बड़े थे, खाने-पीने के शौक़ीन थे, और धनुष लेकर चलते थे। अर्जुन और रुस्तम की कहानियों में अन्य देशों की महिलाओं से विवाह करने के उदाहरण भी शामिल हैं। रुस्तम ने एक राजा की बेटी तहमीना से शादी की और उसका सुहराब नाम का एक बेटा भी हुआ। वहीं अर्जुन ने चित्रांगदा से विवाह किया और उनका बभ्रुवाहन नामक एक पुत्र हुआ। अंततः दोनों के पुत्रों ने अपने पिता से युद्ध किया।
दोनों महाकाव्यों में, नायक अपने एक योद्धा को बचाने के लिए जादुई दवा की खोज करते हैं। शाहनामा में इस औषधि को “नुशदारु” कहा गया है और महाभारत में इसे “सामजियोनी” के नाम से जाना जाता है। एक और समानता इस तथ्य में निहित है कि अर्जुन और रुस्तम दोनों अनजाने में अपने सौतेले भाइयों को मार देते हैं। अर्जुन ने कर्ण को मार डाला, जबकि रुस्तम ने शाघद को मार डाला। ये सौतेले भाई अपने-अपने नायकों के दुश्मनों में शामिल हो जाते हैं। “शाहनामेह/ शाहनामा: 1000 ईस्वी के आसपास ('महाभारत' से बहुत बाद) लिखा गया था। कुछ लोगों का तर्क है कि 'शाहनामा' में मौजूद कहानियाँ प्राचीन हैं और 'महाभारत' जितनी पुरानी या उससे भी पुरानी हो सकती हैं।
कुल मिलाकर, अर्जुन और रुस्तम की कहानियाँ अपने मतभेदों के बावजूद उल्लेखनीय समानताएँ दिखाती हैं। इन साझा तत्वों से पता चलता है कि उनकी कहानियाँ एक ही स्रोत से उत्पन्न हुई होंगी। यह भारत और ईरान के बीच प्राचीन सांस्कृतिक आदान-प्रदान को दर्शाता है। इस समानता को देखते हुए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी उल्लेख किया कि महाभारत और शाहनामा की प्राचीन कहानियां, दुनिया में हमारी मान्यताओं और सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हुए कई समानताएं साझा करती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yvzh6xsn
https://tinyurl.com/3xar53kw
https://tinyurl.com/4yc9hpca
https://tinyurl.com/5n7rvu84
https://tinyurl.com/38yydt85
चित्र संदर्भ
1. "शाहनामेह" और महाभारत के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. शाहनामेह में युद्ध के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. शाहनामेह के योद्धा रुस्तम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. रुस्तम के जन्म के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रुस्तम को एक दानव को मारते हुए संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. महाभारत में युद्ध के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. श्री कृष्ण और अर्जुन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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