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रामपुर की गलियों में बारिश के बाद कई स्थानों पर गटर (Gutter) और सीवर (Sewers) में कचरा फंसने की समस्या आम हो गई है। हालांकि, आधुनिक मशीनों के उपयोग से इस कचरे को बहुत ही आसानी से साफ़ किया जा सकता है। लेकिन फिर भी भारत जैसे देश में इन जहरीले और बदबूदार सीवर की सफाई के लिए आमतौर पर मशीनों के उपयोग के बजाय इंसानों को ही उतारा जाता है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर, मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) को 1993 में ही अवैध करार दे दिया गया था। लेकिन फिर भी, पूरे देश में, अनुपचारित सीवेज को हाथों से साफ करने का जोखिम उठाया जा रहा है। इतना जोखिम! आखिर क्यों?
भारत में, "मैनुअल स्कैवेंजिंग" के तहत लाखों लोग मामूली वेतन के बदले में जहरीली सीवेज लाइनों और निजी सेप्टिक टैंकों (Private Septic Tanks) को साफ करते हैं। इस गंभीर और खतरनाक काम में ये सफाईकर्मी गंदे, अनुपचारित सीवेज से भरे अंधेरे गड्ढों में उतरते हैं। गड्ढों से न केवल तेज़ दुर्गंध आती है, बल्कि इनमें भरी प्रदूषित और हानिकारक गंदगी कई बार इन लोगों के कंधों तक पहुंच जाती है। इस दौरान उन्हें अक्सर घातक सांपों, मकड़ियों और जहरीली गैसों का भी सामना करना पड़ता है।
इसका नतीजा यह होता है कि हर साल सफाई के दौरान हुई दुर्घटनाओं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण गटर साफ़ करने वाले हजारों लोगों की मौत हो जाती है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि 1993 में मैनुअल स्कैवेंजिंग की इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया गया था। लेकिन, इसके बावजूद, व्यवहार्य विकल्पों की कमी और कानून को सही तरीके से लागू करने में अधिकारियों की विफलता के कारण, आज भी यह जानलेवा प्रथा जारी है। देश की सीवेज प्रणाली में सुधार के अनुरूप लागत भी एक बड़ी बाधा है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इनमें से अधिकांश स्कैवेंजिंग कर्मी (Scavenging Worker), दलित समुदाय से संबंध रखते हैं। आमतौर पर इन्हीं लोगों को ऐसे खतरनाक व्यवसायों में संलिप्त किया जाता है। सामाजिक कलंक और दमनकारी जाति व्यवस्था के कारण उनके लिए भी इस काम से बचना और बेहतर अवसर ढूंढना मुश्किल हो जाता है। ऊपर से गरीबी और सहयोग की कमी इस चक्र को पीढ़ी दर पीढ़ी घुमाती रहती है।
हालांकि, इस संदर्भ में कुछ कार्यकर्ता और संगठन, इन स्कैवेंजिंग कर्मियों की दुर्दशा की ओर आम लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश भी कर रहे हैं। वह बच्चों को इस खतरनाक काम में जाने से रोकने के लिए उन्हें पढ़ाई की पेशकश कर रहे हैं और उनके माता-पिता को कौशल प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहे हैं। साथ ही इस खतरनाक काम में रिश्तेदारों को खोने वाले परिवारों के लिए मुआवजे के प्रयास भी किये जा रहे हैं, लेकिन अभी भी इस काम को पूरा करने में एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि न केवल भारत बल्कि, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश भी, गटर सफाई और स्वच्छता संबंधी चुनौतियों जैसी समान समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हालांकि, इस संदर्भ में भारत, मेक्सिको (Mexico) और पश्चिम के कुछ अन्य देशों से बहुत कुछ सीख सकता है, जिन्होंने सीवेज प्रबंधन के कुछ शानदार, अधिक टिकाऊ और यंत्रीकृत तरीकों को अपनाया है।
यदि बात करें मेक्सिको की, तो यहां की सरकार ने पारिस्थितिक स्वच्छता मॉडल (Ecological Sanitation Model) को अपनाया है। इस मॉडल के तहत मानव मल को कृषि संसाधनों के रूप में मान्यता दी जाती है, और इसे सुरक्षित रूप से एकत्र और उपचारित किया जाता है। इसके अलावा, सीवेज को नियंत्रित करने के लिए, अमेरिका जैसे पश्चिमी देश, श्रमिकों की सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करते हुए, मशीनरी और उचित उपकरणों का प्रयोग करते हैं।
जापान, सिंगापुर और मलेशिया (Singapore And Malaysia) जैसे कुछ एशियाई देशों ने भी अपनी सीवरेज प्रबंधन प्रणालियों को सफलतापूर्वक उन्नत कर दिया है। उदाहरण के तौर पर, पिछले कुछ वर्षों में मलेशिया में आदिम (प्राचीन) प्रणालियों के बजाय, अधिक उन्नत यांत्रिक और स्वचालित तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। ये देश सीवेज प्लांट के निर्माण और रखरखाव पर भारी सब्सिडी (Subsidy) देने के साथ ही नागरिकों को नियमित रूप से सेप्टिक टैंक सफाई के महत्व के बारे में शिक्षित भी कर रहे हैं।
हालांकि, तकनीकी समाधान उपलब्ध होने के बावजूद, भारत में मैन्युअल रूप से सीवेज सफाई के खिलाफ कार्रवाई करने की दर काफी धीमी रही है। साथ ही सदन में इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी नजर आती है। इस समस्या को दूर करने के लिए, भारत को अपने श्रमिकों की सुरक्षा और सम्मान को प्राथमिकता देने और अपनी सीवरेज प्रबंधन प्रणालियों को आधुनिक बनाने में निवेश करने की आवश्यकता है। अन्य देशों के सफल उदाहरणों से सीखते हुए, भारत को अपने श्रमिकों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ और मशीनीकृत दृष्टिकोण अपना कर इस जानलेवा प्रथा को समाप्त करना चाहिए।
हालांकि, इस संदर्भ में भविष्य की स्थिति आशाजनक नजर आ रही है। हाल ही में भारत में बायोमैन (Bioman) तकनीक का प्रचलन भी बड़ा है, जिसे एक उन्नत सीवेज उपचार समाधान माना जा रहा है। इसके तहत एनारोबिक बायोडिग्रडेशन रिएक्टर टेक्नोलॉजी (Anaerobic Biodegradation Reactor Technology (ABRT) का उपयोग करके, घरेलू सीवेज पानी को साफ और गंधहीन पानी में बदल दिया जाता है। उपचारित जल का उपयोग बागवानी या भूजल पुनर्भरण के लिए किया जा सकता है। बायोमैन अपशिष्ट जल के उपचार को पर्यावरण-अनुकूल और लागत प्रभावी तरीका माना जाता है।
यहां हम आपको बायोमैन के कुछ फायदों के बारें में बता रहे हैं:
-यह गुरुत्वाकर्षण प्रवाह पर चलता है, और इसे बिजली की आवश्यकता नहीं होती है।
- इसके संचालन हेतु किसी कुशल ऑपरेटर की जरूरत नहीं होती।
- इसे किसी बैकअप जनरेटर (Backup Generator) या डीजल की आवश्यकता नहीं होती है।
- यह मोटर और ब्लोअर (Blower) के बिना काम करता है।
- एग्जॉस्ट पंखे (Exhaust Fans) बंद होने पर भी कोई खतरा नहीं होता।
-यह 100% रसायन-मुक्त होता है।
- इसमें कीचड़ रोगजनकों का कोई खतरा नहीं होता।
- हर 3 महीने में केवल एक बार बैक्टीरिया (Bacteria) डालने की आवश्यकता होती है।
- यह पूरी तरह से गंध रहित होता है।
- केवल एक शौचालय के उपयोग के साथ भी संचालन शुरू किया जा सकता है।
हमारे रामपुर शहर में मौजूदा समय में लगभग 18 बड़े नाले हैं। लोगों द्वारा डाले गए कूड़े की वजह से इन नालों में बारिश के समय अक्सर कचरा फंस जाता है, जो लोगों और जानवरों के लिए मुसीबत खड़ी कर देता है। इसलिए, रामपुर में भी बारिश के बाद साफ-सफाई की व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए शहर के कार्यकारी अधिकारी अवनीश कुमार ने सभी सफाई कर्मचारियों को निर्देश दे दिए हैं। आदेश के तहत सभी सफाई कर्मी अपने-अपने वार्डों में सफाई व्यवस्था दुरुस्त रखेंगे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4k9uzyey
https://tinyurl.com/4sc9z47p
https://tinyurl.com/5n8hp4cb
https://bioman.co.in/
चित्र संदर्भ
1. सीवर की सफाई करते व्यक्ति को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. बस्ती के बीच में बह रहे गंदे नाले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सीवर पाइप बिछाते श्रमिकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सभी सुरक्षा उपकरणों के साथ सीवर में घुसे सफाईकर्मी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. मशीन से सीवर की सफाई को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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