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कपड़ों, हस्तशिल्प और ललित कलाओं में रूपांकन के रूप में उपयोग की जाने वाली, उभरती हुई शाखाओं वाले एक पेड़ की लोकप्रिय आकृति आपने कभी न कभी तो देखी ही होगी। रूपांकन की इस आकृति को “जीवन का वृक्ष” (Tree Of Life) कहा जाता है। यह प्रतीक एक सीधे खड़े पेड़ को दर्शाता है जिससे अलग-अलग शाखाएं निकलती हैं, ये शाखाएं कभी–कभी अनाच्छादित होती हैं; और कभी–कभी पत्तियों, फलों और फूलों से लदी होती हैं। यह रूपांकन आद्य वृक्ष के प्रतीकवाद से लिया गया है, जो एशिया (Asia), अफ्रीका (Africa), यूरोप (Europe) और ओशिनिया (Oceania) क्षेत्र की संस्कृतियों में मौजूद है। रूपांकन का यह वृक्ष एक आवर्ती पौराणिक प्रतीक है, जो कई रूपों में प्रकट होता है, जैसे कि बरगद, कमल, बोधि और राग के पेड़। यह रूपांकन दर्शाता है कि पेड़ हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना कि हमारे अस्तित्व के लिए चेतना होती है।
इस शैली के प्रारंभिक प्रतिरूप, 17वीं सदी की शुरुआत में, चिंट्ज़ (Chintz) डिज़ाइनों में देखे जा सकते हैं। चिनोइसेरी (Chinoiserie) शैली से आकर्षित, पश्चिमी बाजारों के लिए बनाए गए इन कपड़ों में काल्पनिक पौधों और पेड़ों को दर्शाया गया है। ये रूपांकन चीनी मिट्टी के डिजाइन से प्रेरित थे। पेड़ों और पौधों के रूपों का प्रतिनिधित्व समकालीन फैशन (Fashion) में भी लगातार दिखाई देता है।
प्रत्येक धर्म और संस्कृति में जीवन के वृक्ष को अलग-अलग तरीकों से चित्रित किया गया है। बौद्ध धर्म के अनुसार , बोधि वृक्ष के नीचे ‘बदलती दुनिया का स्थिर बिंदु’ है, जिसके नीचे बैठकर भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। ईसाई धर्म में, पोलैंड (Poland) के टोरून (Torun) में डोमिनिकन चर्च (Dominican church) में, 14वीं शताब्दी की एक मूर्ति ‘क्रक्स फ्लोरिडा’ (Crux Florida) में 12 पत्तेदार शाखाओं के साथ सूली पर लटके हुए ईसा मसीह (Jesus Christ) को दर्शाया गया है। इसकी प्रत्येक शाखा में एक देवदूत और बाइबल (Bible) के उद्धरण हैं। इस्लाम धर्म में यह तुर्की (Turkey), ईरान (Iran) और मध्य पूर्व के अन्य हिस्सों में, लघुचित्रों के साथ-साथ प्रार्थना के गलीचों में भी पाया जाता है।
मिस्र की प्राचीन सभ्यता में भी एक दिव्य वृक्ष की कल्पना की गई थी, जो मृत्यु के बाद के जीवन में शाश्वत नवीनीकरण का प्रतीक था। मुक्ति के वृक्ष और जीवन के वृक्ष के बीच एक रहस्यमय संबंध मौजूद है, जो गार्डन ऑफ़ ईडन (Garden of Eden) में एक दूसरे के बगल में उगे थे। मलेशियाई विद्या में, यह पेड़ सारावाक (Sarawak) के कायन (Kayan) लोगों के मिथक का एक हिस्सा है। इसकी कलात्मक प्रस्तुतियों में, आमतौर पर एक हॉर्नबिल (Hornbill) पक्षी पेड़ के शीर्ष पर बैठा होता है।
हमारे देश भारत में भी, जीवन के वृक्ष का कलात्मक प्रतिनिधित्व मौजूद है। अहमदाबाद में 1573 में बनी सिदी सैय्यद मस्जिद की नक्काशीदार एवं जालीदार खिड़की इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कहा जाता है कि अरबी (Arab) क्षेत्र के खजूर के पेड़ पुष्पलता और पत्तियों के साथ, लाल बलुआ पत्थर में बनी इस प्रतिकृति को 45 कारीगरों द्वारा बनाया गया था, जिसे पूरा करने में छह साल लगे थे। जीवन के वृक्ष का एक शक्तिशाली लोकचित्रण, कर्नाटक राज्य के बेल्लारी जिले की तीन लंबानी महिलाओं द्वारा दीवार पर बनाई गई एक प्रतिकृति भी है। इस पेड़ को अर्धपुरुष एवं अर्धस्त्री के रूप में दिखाया गया है। इस प्रतिकृति में बायां हिस्सा नर है, जिसकी शाखाएं सख्त, ऊबड़-खाबड़ और दृढ़ हैं; जबकि, दाहिना हिस्सा मादा के रूप में, मुलायम और सुडौल, फूलों और फलों से लदा हुआ है।
हमारे देश भारत में बरगद के पेड़ को सबसे पूजनीय पेड़ों में से एक माना जाता है। इस पेड़ को “जीवन के वृक्ष” के रूप में भी जाना जाता है। जीवन के वृक्ष को “अक्षय वट” के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ अमरत्व का पेड़ है। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश की तीर्थनगरी वाराणसी में एक आम कहावत है कि “बरगद का पेड़ कभी मरता नहीं है।”
हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में बरगद का यह पेड़ बेहद महत्वपूर्ण है जिसके प्रतीकात्मक रूप से विभिन्न अर्थ हैं। हिंदू धर्म में, बरगद के पेड़ को त्रिमूर्ति, अर्थात भगवान ब्रह्मा (निर्माता), भगवान विष्णु (रक्षक), और भगवान शिव (विनाशक) का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व माना जाता है। हिंदू परंपराओं के अनुसार, बरगद के पेड़ की जड़ों में भगवान ब्रह्मा, छाल में भगवान विष्णु और आकाशीय जड़ों में भगवान शिव निवास करते हैं। वट वृक्ष को भगवान शिव का निवास भी माना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव अपने लिंग रूप में सदैव इस पेड़ में विद्यमान रहते हैं और वट वृक्ष के नीचे निवास करते हैं। बरगद के पेड़ की अनगिनत शाखाओं को भगवान शिव की दिव्य जटाओं का प्रतीक भी माना जाता है। भगवान शिव के अवतार ‘दक्षिणामूर्ति’ को बरगद के पेड़ के नीचे दक्षिण की ओर मुंह करके बैठे हुए देखा जा सकता है।
दक्षिण दिशा को मृत्यु के देवता यम की दिशा माना जाता है। इसलिए, दक्षिण दिशा में बैठना यह दर्शाता है कि वह मृत्यु और परिवर्तन से नहीं डरता। माना जाता है कि श्रीकृष्ण को भी बरगद के पेड़ की छाया के नीचे सोना पसंद था। भगवान विष्णु को वटपत्र साईं के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है जो बच्चे की तरह वट पत्र (बरगद के पत्ते) पर सोता है। हिंदू धर्म के अनुसार, बरगद का पेड़ ज्ञान का प्रतीक भी है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, ज्ञान दो प्रकार का होता है, एक अस्थायी और दूसरा स्थायी। अस्थायी ज्ञान गृहस्थ से संबंधित है जबकि स्थायी ज्ञान संन्यास से जुड़ा है। माना जाता है कि जो कोई भी बरगद के पेड़ की छाया में आत्मज्ञान की तलाश करता है उसे संन्यास से संबंधित स्थायी ज्ञान का उपहार प्राप्त होता है। यह मान्यता इस बात से और भी दृढ़ हो जाती है कि भगवान बुद्ध को 7 दिनों तक बरगद के पेड़ के नीचे बैठने के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इतिहास में जीवन वृक्ष के इस रूपांकन को कागज, लकड़ी और वस्त्र सहित सभी प्रकार की सामग्रियों पर बनाया गया है। भारत के कोरोमंडल तट पर, जीवन के वृक्ष के रूपांकन के साथ कलमकारी डाई-पेंट (Dye–Paint) कपड़े का उत्पादन और इसका दुनिया भर में निर्यात किया गया था। यह अनूठी कल्पना आज भी कई कारीगरों और डिजाइनरों (Designer) को प्रेरित करती है।
आज, जीवन का वृक्ष बनारसी, चंदेरी और जामदानी जैसे हाथ से बुने हुए कपड़ों में व्यापक तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले रूपांकनों में से एक है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के अन्य परिधानों के अलावा, साड़ियों को सजाने के लिए भी किया जाता है। यह रूपांकन अब बस चित्रण या व्यापार के लिए एक मुद्रा के रूप में ही सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के कपड़ा उद्योग में लोकप्रिय बना हुआ है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/37wu46ss
https://tinyurl.com/4n8um28n
https://tinyurl.com/2du9m2k9
https://tinyurl.com/bb5kvtsy
https://tinyurl.com/2wv6wrhw
चित्र संदर्भ
1. कपड़ा उद्योग में जीवन का वृक्ष डिजाइन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. चिंट्ज़ (Chintz) डिज़ाइनों को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)
3. गार्डन ऑफ़ ईडन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. बरगद के पेड़ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. कलमकारी डाई-पेंट को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
6. जीवन का वृक्ष पैटर्न को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
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