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आज भी कई लोग यह नहीं जानते हैं कि, शतरंज का आविष्कार प्राचीन भारत में ही हुआ था। प्राचीन काल में इसे चतुरंग के नाम से जाना जाता था। भारत के प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद ने शतरंज के खेल से प्रभावित होकर "शतरंज के खिलाड़ी" नामक एक छोटी सी कहानी भी लिखी! साल 1977 में सत्यजीत रे (Satyajit Ray) द्वारा इस कहानी को एक कालजई फिल्म के रूप में रूपांतरित कर दिया गया। प्रेमचन्द की यह कहानी 1856 के दौर से शुरू होती है, जब भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था। यह कहानी दो अमीर दोस्तों, मिर्जा सज्जाद अली तथा मीर रोशन अली पर केंद्रित है, जिन्हें शतरंज खेलने का खूब शौक होता है। उन्हें शतरंज से इतना अधिक लगाव हो जाता है कि वह इसे खेलने के चक्कर में अपनी जिम्मेदारियों और अपने आसपास हो रही राजनीतिक उथल-पुथल को भी अनदेखा करने लगे। इसी बीच ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) ने उनके राज्य पर कब्जा करने की धमकी दे दी, लेकिन अवध के ये दो नवाब और उनके दरबारी भी इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लेते हैं और शतरंज खेलने में मस्त रहते हैं। इस फिल्म में दिखाया गया है कि, जब किसी शासक का अंत निकट होता है तो वह कैसे अपने राज्य में बदलती राजनीतिक स्थिति के प्रति अंधा हो जाता है। यह कहानी वास्तव में 1857 के भारतीय विद्रोह के बड़े ऐतिहासिक संदर्भ का प्रतिनिधित्व करती है।
"शतरंज
के
खिलाड़ी" न केवल मनोरंजक
है
बल्कि
सांस्कृतिक
रूप
से
भी
महत्वपूर्ण
मानी
जाती
है, क्योंकि
यह
राजनीतिक
माहौल
की
गंभीरता
को
समझने
में
सत्तारूढ़
अभिजात
वर्ग
की
विफलता
को
उजागर
करती
है।
सत्यजीत
रे
के
उत्कृष्ट
निर्देशन
और
संजीव
कुमार, सईद जाफरी
और
अमजद
खान
जैसे
अभिनेताओं
के
शानदार
अभिनय
ने
इस
कहानी
के पात्रों
में
जान
फूंकने
का
काम
किया
है।
यह
फिल्म
हमें
उदासीनता
और
शालीनता
के
विषयों
को
संबोधित
करते
हुए
सामाजिक
जागरूकता
और
जिम्मेदार
शासन
के
महत्व
के
बारे
में
जागरूक
करती है। इस
फिल्म
के
एक
महत्वपूर्ण
दृश्य
में, अवध
के
नवाब
को
अंग्रेजों
द्वारा
अपनी
गद्दी
छीन
लिए
जाने
के
बारे
में
पता
चलता
है, जिसके
बाद
वह
एक
उदास
गीत
गाता
है। यह
गीत
एक
शासक
के
रूप
में
उनके
दर्द, हानि
और
उनकी
अपनी
कमियों
को
दर्शाता
है।
इस
फिल्म
के
उस
खास
दृश्य
और
यहां
तक
की
पूरी
फिल्म
को
भी
आप
ऊपर
दिए
गए
वीडियो
में
देख
सकते
हैं।
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