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आज हम सभी पवित्र ईस्टर (Easter) का त्योहार मना रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि प्रभु ईसा मसीह सूली पर चढ़ाए जाने के तीसरे दिन बाद फिर से जीवित हो उठे थे, तथा इसलिए इस दिन को ईस्टर के रूप में मनाया जाता है। अभी तक जो रिकॉर्ड प्राप्त हुए हैं, उनके अनुसार ईस्टर का उत्सव दूसरी शताब्दी से मनाया जा रहा है। हालाँकि यीशु के पुनः जीवित होने के उत्सव को शायद उससे पहले से ही मनाया जा रहा है। ईसाई कैलेंडर के अनुसार, ईस्टर का पर्व लेंट (Lent) का अनुसरण करता है। लेंट, ईस्टर से पहले के 40 दिनों की अवधि (रविवार को छोड़कर) है, जिसमें प्रायः पारंपरिक तौर पर उपवास किया जाता है। साहित्यिक रूप से, ईस्टर, ग्रेट विजिल (Great Vigil – रात की प्रार्थना) के बाद आता है, जो मूल रूप से ईस्टर शनिवार को सूर्यास्त और ईस्टर रविवार को सूर्योदय के बीच की अवधि है। बाद में इसे पश्चिमी चर्चों में शनिवार की शाम को, फिर शनिवार की दोपहर और अंत में रविवार की सुबह में मनाया जाने लगा। यह परंपरा अंतत: मिशनरियों के माध्यम से भारत में आई। तो आइए लखनऊ में ईस्टर विजिल सेवा के दौरान गाये जाने वाले “ज्योति का गुणगान” और वेटिकन (Vatican) में सेंट पीटर्स बेसिलिका (St. Peter's basilica) के विजिल को सुनें।
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