City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1336 | 964 | 2300 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
नाटक और अभिनय दुनिया की प्रत्येक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। दर्शकों के लिए एक मंच पर प्रदर्शित, रंगमंच कला वास्तविक समय की अभिव्यक्ति है जो उद्देश्यपूर्ण, रोमांचक और मनोरंजक है। कहानी सुनने या पढ़ने की तुलना में, एक मनोरंजक कहानी को प्रतिभाशाली पात्रों के माध्यम से प्रकट होते देखना दर्शकों के मन पर एक स्थायी छाप छोड़ता हैं। परंपरागत रूप से रंगमंच भारत में एक बहुत लोकप्रिय प्रदर्शन कला रूप है और विशेष रूप से हमारे रामपुर में भी।
हालांकि, बॉलीवुड फिल्मों की डिजिटल (Digital) दुनिया और अब नेटफ्लिक्स (Netflix) आदि जैसे ओटीटी (OTT), अतीत के पुराने रंगमंच रूपों को लगभग खत्म कर रहे हैं। अगर डिजिटल दुनिया की ओर लोगों का रुख इसी प्रकार जारी रहा, तो हम अपनी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संस्कृति को जल्द ही खो देंगे। रामपुर की रामलीला और उसका दास्तानगोई रूप रंगमंच और हिंदू-मुस्लिम एकता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसे कला में नए उत्साह और नए निवेश के साथ जारी रखा जाना चाहिए। प्राचीन काल से ही, प्रदर्शन कलाओं को न केवल मनोरंजन के एक रूप में देखा जाता था, बल्कि समुदाय के साथ परस्पर क्रिया करने, उन्हें कुछ नैतिक मूल्यों के बारे में शिक्षित करने या कुछ मुद्दों के बारे में जागरूक करने के साधन के रूप में भी देखा जाता था, जिसके लिए धर्म, पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं जैसे विषयों का उपयोग किया गया था। आइए अब हम आपको भारतीय रंगमंच के विकास के बारे में बताते हैं जिससे कि आप इसकी बेहतर समझ प्राप्त कर सकें कि यह सब कैसे शुरू हुआ और हम कितनी दूर आ गए हैं। भारतीय रंगमंच के निम्नलिखित प्रकार हैं:
पारंपरिक रंगमंच - भारत में रंगमंच की की शुरुआतपारंपरिक रंगमंच के साथ हुई,जो प्राचीन काल से व्यापक था। पारंपरिक रंगमंच की कहानियाँ काफी हद तक रामायण और महाभारत के महाकाव्यों के साथ-साथ उपनिषदों और पुराणों की गाथाओं पर आधारित थीं। 15वीं शताब्दी में संस्कृत नाटकों का उदय हुआ, जहां प्रत्येक कलाकार को राजाओं के दरबार में उचित सम्मान दिया जाता था। कत्थक पारंपरिक रंगमंच का एक ऐसा ही ज्वलंत रूप है। महाकाव्यों की कहानियों से लेकर लोककथाओं तक, पारंपरिक रंगमंच में कई क्षेत्रीय विविधताएँ हैं। कथा का रूप, वेशभूषा का चुनाव, और पात्रों का प्रवेश शानदार और विशद होता है। इसमें कहानी कहने का ताना-बाना गीत, नृत्य और संगीत से बुना गया है, जिसकी जड़ें घटनाओं, त्योहारों और विशिष्ट क्षेत्र के पारंपरिक ग्रंथों, संस्कृति और रीति-रिवाजों से ली गई घटनाओं में निहित हैं।
क्षेत्रीय लोक रंगमंच - पारंपरिक रंगमंच के विपरीत, क्षेत्रीय लोक रंगमंच में सामाजिक घटनाओं से भी सामग्री प्राप्त की जाती है। तमाशा (महाराष्ट्र), भवई (गुजरात), यक्षगान (कर्नाटक), करयाला (हिमाचल), कूडियाट्टम (केरल), सांग (राजस्थान, यूपी), भांड पाथेर (कश्मीर) क्षेत्रीय लोक रंगमंच के कुछ लोकप्रिय उदाहरण हैं।
स्वतंत्रता पूर्व रंगमंच कला - ब्रिटिश और औपनिवेशिक शासन के साथ ही, भारत में स्वतंत्रता-पूर्व रंगमंच का उदय हुआ और इसने काफी अधिक लोकप्रियता हासिल की। भारत में रंगमंच के अन्य युगों और स्वतंत्रता-पूर्व रंगमंच के बीच प्राथमिक अंतर यह है कि पूर्व-स्वतंत्रता रंगमंच अधिक कथानक और कहानी-आधारित था, जबकि, पारंपरिक और क्षेत्रीय रंगमंच में पौराणिक और वीर चरित्रों के इर्द-गिर्द घूमने वाले नाटक शामिल थे। पूर्व-स्वतंत्रता रंगमंच प्रचलित भारतीय सामाजिक रंगमंच के साथ पश्चिमी रंगमंच प्रारूपों का एक समामेलन था। उदाहरण के लिए, आधुनिक नाट्य शैली के प्रणेता रवींद्रनाथ टैगोर ने पहचान, रिश्ते, आध्यात्मिकता और राष्ट्रवाद जैसे विभिन्न विचारों की खोज की। उनके कुछ प्रसिद्ध नाटक ‘राजा, डाकघर और चित्रा’ थे ।
समकालीन रंगमंच - समकालीन रंगमंच स्वतंत्रता के बाद का आधुनिक भारतीय रंगमंच है, जो वर्तमान समय में भी हमारे समक्ष मौजूद है। इसका उपयोग मनोरंजन, सामाजिक जागरूकता फैलाने और यहां तक कि जरूरत पड़ने पर सरकार की आलोचना करने के साधन के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए, ‘घासीराम कोतवाल’ और ‘सखाराम बिंदर’ 1972 में विजय तेंदुलकर द्वारा लिखे गए दो लोकप्रिय नाटक हैं, जो समाज में एक छोटे से दंगे का लगभग कारण बने। ‘घासीराम कोतवाल’ एक राजनीतिक व्यंग्य था जिसने राजनीतिक हिंसा को आवृत किया, जबकि सखाराम बिंदर ने समाज में महिलाओं द्वारा अनुभव किए जाने वाले भावनात्मक और शारीरिक वर्चस्व के बारे में बताया। आधुनिक या समकालीन भारतीय रंगमंच लगातार विकसित हो रहा है और रंगमंच के नए रूप नुक्कड़ नाटक, तात्कालिक रंगमंच और गतिशील रंगमंच जैसे भावों को खोजते हुए,परिवर्तन की अंतर्धाराओं से गुजर रहा है। भारत में रंगमंच के कुछ अन्य लोकप्रिय रूप भी मौजूद हैं, जैसे -भांड पाथेर (कश्मीर); नौटंकी (उत्तर प्रदेश); रासलीला (गुजरात); भवई (गुजरात); जात्रा (बंगाल); माच (मध्य प्रदेश); भोआना (असम); तमाशा (महाराष्ट्र); दशावतार (महाराष्ट्र और उत्तरी गोवा); कृष्णाट्टम (केरल); मुदियेट्टु (केरल); यक्षगण (कर्नाटक); थेरुकूथु (तमिलनाडु); थेय्यम (केरल); अंकिया नट (असम); रामलीला (उत्तर प्रदेश); भूता (कर्नाटक); राममन (उत्तराखंड); दसकथिया (ओडिशा); गरोडास (गुजरात); स्वांग (पंजाब और हरियाणा); विल्लु पट्टू (डेक्कन) और कूडियाट्टम (केरल)।
वहीं वर्तमान में, रंगमंच कई भारतीय शहरों में व्यावसायिक रूप से लाभप्रद हैं और इन शहरों में रंगमंच परिक्रमा हमेशा गुलजार रहता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में रंगमंच का दृश्य सदैव जीवंत रहता है और कई रंगमंच उत्सवों की मेजबानी के लिए जाना जाता है। महाराष्ट्र में, खासकर मुंबई और पुणे में, मराठी रंगमंच फल-फूल रहा है। मुंबई विभिन्न भाषाओं जैसे गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी में कई नाटकों की मेजबानी करता है।बेंगलुरु , कोलकाता और चेन्नई जैसे अन्य प्रमुख शहरों में भी एक जीवंत रंगमंच दृश्य है और युवा प्रतिभाओं के साथ गुलजार हैं जो अपने अभिनय कौशल को जनता के सामने प्रदर्शित करने के लिए सदैव उत्सुक रहता हैं। कई लोकप्रिय रंगमंच हस्तियों ने जबरदस्त सम्मान हासिल किया है और कई पुरस्कार भी जीते हैं। उदाहरण के लिए, थिएटर में 40 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ एक सम्मानित रंगमंच व्यक्तित्व बी जयश्री ने 2013 में पद्म श्री पुरस्कार जीता। 2015 में, रंगमंच व्यक्तित्व खालिद चौधरी को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
इसी संदर्भ में रामलीला उत्तर भारत में सबसे व्यापक रूप से प्रदर्शित पारंपरिक कला रूपों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्रों जैसे दिल्ली, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों में बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है। अपने नाम के शाब्दिक रूप में, इसमें राम जी की 'लीलाओं' को दर्शाया गया है, जिसका अर्थ है भगवान राम के जीवन का चित्रण। कहानी लगभग हम सभी को पता है क्योंकि यह न केवल धार्मिक है बल्कि भारत की संस्कृति का हिस्सा भी है। रामलीला की कहानी तुलसीदास के ‘राम चरित मानस’ के साथ-साथ वाल्मीकि की ‘रामायण’ से ली जाती है। भारतीय पारंपरिक कला रूपों में, नृत्य और संगीत बहुत अभिन्न अंग हैं, हालांकि, रामलीला के साथ, अपने शास्त्रीय रूप में, नृत्य इतना प्रचलित नहीं है। वैसे वास्तव में इसका अभिन्न अंग संगीत है और हर दृश्य से गहराई से जुड़ा हुआ है चाहे वह पृष्ठभूमि हो या काव्य पाठ, गीत या दोहे का हिस्सा हो।
इस बार दशहरे के पावन अवसर पर लखनऊ में एक उर्दू रामलीला, दास्तान-ए-राम, 23 अक्टूबर 2019 को प्रयागराज स्थित रंगमंच समूह द्वारा प्रदर्शित की गई। यह प्रदर्शन हिंदी और उर्दू भाषा का एक आदर्श मिश्रण था और दस्तानगोई, जो छाया कठपुतली, कथक, और भरतनाट्यम की मदद से 13वीं शताब्दी का गीतात्मक कहानी कहने का रूप है, की एक प्राचीन कला के रूप में प्रदर्शित किया गया।
रंगमंच हमें दुनिया को एक अलग नजरिए से देखने में मदद कर सकता है। एक ज्वलंत अधिनियमन को देखकर हम मानवता, प्रेरणा, मानव मनोविज्ञान, संघर्ष और संकल्प की झलक पा सकते हैं। दर्शकों के पास उन कलाकारों को देखने का अवसर होता है जो जीवन के अनूठे दृष्टिकोण को संबोधित करते हुए व्यक्तित्वों की एक श्रृंखला को चित्रित करते हैं। कोई भी दो प्रदर्शन कभी भी एक जैसे नहीं होंगे, और इसमें शामिल प्रत्येक कलाकार का एक अलग अनुभव होगा जिसे दोहराया नहीं जा सकता।कई अध्ययनों ने साबित किया है कि जो छात्र रंगमंच में भाग लेते हैं, वे अपनी शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। प्रदर्शन कलाएं आत्म-प्रस्तुति कौशल, आत्मविश्वास में सुधार, आत्म-जागरूकता को बढ़ावा देने, आत्म-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करने, समस्या सुलझाने के कौशल में सुधार करने और छात्रों और महत्वाकांक्षी अभिनेताओं को सहयोग की कला और आत्मनिर्भरता जैसे अद्भुत लाभ प्रदान करती हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3vQlGnD
https://bit.ly/3W3HEOC
https://bit.ly/3Gxrd7H
https://bit.ly/3Gw5tsM
https://bit.ly/3WUYErA
https://bit.ly/3ipr9i3
चित्र संदर्भ
1. रामलीला को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. "दास्तान-ए-राम" को संदर्भित करता एक चित्रण (facebook)
3. पारंपरिक रंगमंच को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
4. क्षेत्रीय लोक रंगमंच को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. भरतनाट्यम नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
6. एक रामलीला के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.