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भारत में आधुनिक समय की गुलामी के शिकार लोगों की संख्या बढ़ रही है

लखनऊ

 13-01-2023 11:11 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

वैश्विक दासता सूचकांक में भारत को 167 देशों में से 53वे स्थान पर रखा गया है, जिसका सीधा-सीधा अर्थ है कि भारत को अपने स्तर में सुधार करने की आवश्यकता है । हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में आधुनिक समय की गुलामी के शिकार लोगों की संख्या बढ़ रही है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (International Labour Organization (ILO)), इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (International Organization for Migration (IOM)) और इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ग्रुप वॉक फ्री (international human rights group Walk Free) द्वारा प्रकाशित आधुनिक गुलामी के वैश्विक अनुमानों से पता चलता है कि 2021 में लगभग 50 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी में रहते थे। यह आंकड़ा 2016 के आंकड़ों से, जब पिछला अध्ययन किया गया था ,लगभग 10 मिलियन अधिक है । रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 86 प्रतिशत मामलों में जबरन श्रम के ज्यादातर मामले निजी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau (NCRB)) के सबसे वर्तमान उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 में पूरे भारत में मानव तस्करी के 8,132 मामले दर्ज किए गए थे। उसी वर्ष, 15,379 लोगों की तस्करी की गई थी, जिनमें से 9,034 पीड़ित 18 वर्ष से कम उम्र के थे। इसके अलावा, 23,117 लोगों को तस्करी की स्थितियों से बचाया गया, जिनमें से 14,183 लोग 18 वर्ष से कम आयु के थे। छुड़ाए गए पीड़ितों में से अधिकांश ने जबरन श्रम (10,509 पीड़ित), वेश्यावृत्ति के लिए यौन शोषण (4,980 पीड़ित), और अन्य प्रकार के यौन शोषण (2,590 मामले) के उद्देश्य से तस्करी किए जाने की सूचना दी। बंधुआ मजदूरी प्रणाली को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया है और इसे एक अपराध घोषित किया गया है, लेकिन एक शोध से संकेत मिलता है कि भारत में बंधुआ मजदूरी अभी भी प्रचलित है। 2016 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि तमिलनाडु राज्य में, 743 कताई मिलों में से 351 मिल बंधुआ मजदूर योजनाओं का उपयोग करती हैं, जिन्हें अन्यथा सुमंगली योजनाओं के रूप में जाना जाता है। कपटपूर्ण भर्तीकर्ता भारत के आर्थिक रूप से वंचित ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों को लक्षित करते हैं और माता-पिता को उनकी बेटियों को कताई मिलों में भेजने के लिए राजी करते हैं, साथ ही काम करने की अच्छी स्थिति और उनके तीन साल के अनुबंध के अंत में एकमुश्त भुगतान का वादा करते हैं जो उनके दहेज की व्‍यवस्‍था करने में मदद कर सकता है। इन मिलों में युवतियां शोषणकारी श्रम प्रथाओं का शिकार होती हैं, एकमुश्त धन की संभावना के बदले में गतिविधियों पर प्रतिबंध, मोबाइल फोन को हटाने और मजदूरी और अन्य भुगतानों को रोकना शामिल है। वे साल भर प्रति सप्ताह 60 घंटे तक काम करते हैं और अधिक समय के लिए अतिरिक्त कार्य करने से मना नहीं कर सकती हैं । इस प्रकार कर्मचारी अपने नियोक्ता के लिए बाध्य हो जाता है हैं क्योंकि नियोक्ता बदलने का मतलब होगा, अपनी वादा की गई एकमुश्त राशि खोना। हालांकि, उन योजनाओं के तहत कई महिलाओं को कभी भी एकमुश्त भुगतान नहीं मिलता है, जिसका वादा किया जाता है क्योंकि अक्सर बीमारी के कारण वे जल्दी काम छोड़ देती है ।
इसी तरह, ग्रेनाइट खदानों में, मज़दूरी अग्रिम और 24 प्रतिशत से 36 प्रतिशत तक के ब्याज वाले ऋण का उपयोग, श्रमिकों को खदान से बांधे रखने के लिए किया जाता है। राजस्थान में बलुआ पत्थर की खदानों में बंधुआ मजदूरी प्रथाओं पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, श्रमिक आजीवन ऋण बंधन में फंस जाते हैं क्योंकि उनके पास अपने नियोक्ताओं या ठेकेदारों को देने के लिए बड़ी रकम बकाया हो जाती है और जब तक इसे चुकाया नहीं जाता, तब तक उन्हें बहुत कम या बिना वेतन के काम करना पड़ता है। कई बार यह ऋण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता है। भारत के ग्रामीण रोजगार में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 62.7 प्रतिशत है, लेकिन पूर्वी राज्य ओडिशा में बदलते पर्यावरण , जैसे अनियमित वर्षा, बार-बार सूखा और वनों की कटाई, के परिणामस्वरूप पारंपरिक आजीविका अत्यधिक प्रभावित हुई है। रोजगार के अवसरों की कमी और आय के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता लोगों को काम की तलाश में भारत के भीतर अन्य राज्यों में पलायन करने के लिए मजबूर करती है। ओडिशा के लोगों के लिए देश भर के ईंट भट्ठों में काम मांगना एक आम बात हो गई है। इसमें अक्सर श्रम एजेंट शामिल होते हैं जो अग्रिम भुगतान की एक प्रणाली का उपयोग करते हैं। इसमें श्रमिकों को एकमुश्त अग्रिम भुगतान किया जाता है जिसे बाद में उन्हें अपने द्वारा बनाई गई ईंटों के माध्यम से भुगतान करने की आवश्यकता होती है, परिणामस्वरूप उन्हें बंधुआ मजदूरी में तब तक फंसाया जाता है जब तक कि वे अपने कर्ज का भुगतान नहीं कर देते। जबरन श्रम के उदाहरण भारत और विदेशों में स्थानीय और प्रवासी घरेलू कामगारों के बीच भी मौजूद हैं, जो कठिन शारीरिक श्रम करने को मजबूर हैं और दुर्व्यवहार और कारावास जैसी विषम स्थितियों में जीवन यापन करते हैं। घरेलू कामगार विशेष रूप से कमजोर होते हैं क्योंकि वे निजी घरों में काम करते हैं और भोजन और आश्रय जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए अपने नियोक्ताओं पर निर्भर होते हैं।
पूर्वोत्तर भारत में मानव तस्‍करी एक सामान्‍य बात बन गयी है, अपने स्थानीय क्षेत्र के बाहर रोजगार की तलाश करने वाली युवा शिक्षित लड़कियों को जबरन यौन शोषण के लिए धोखा दिया जाता है या मजबूर किया जाता है । करिटस (Caritas) की एक रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों की तस्करी, विशेष रूप से, उत्तर पूर्वी राज्य असम में प्रचलित है, जहां 2016 में कम से कम 129 लड़कियों को तस्करों द्वारा यौन कार्य के लिए मजबूर किया गया था। हाल ही में कोलकाता, पश्चिम बंगाल के साक्षात्कारों से संकेत मिलता है कि पीड़ितों (जिनमें से अधिकांश अपने नियोक्ताओं को जानते थे) को अच्छी नौकरी का झांसा दिया गया था, लेकिन फिर उन्हें यौन कार्यों में धकेल दिया गया। जबरन व्यावसायिक यौन शोषण में पांच में से लगभग चार महिलाएं या लड़कियां होती हैं। जबरन श्रम करने वालों में आठ में से लगभग एक बच्चा (3.3 मिलियन) होता है। भारत में कन्या भ्रूण हत्या एक बहुत बड़ी कुरीति है जिससे महिलाओं की संख्‍या में अत्यधिक कमी आई है। उदाहरण के लिए हरियाणा राज्य में, प्रति 1,000 लड़कों के लिए केवल 830 लड़कियां हैं। सबूत बताते हैं कि देश के गरीब पूर्वी या दक्षिणी हिस्सों से उत्तर में अधिक समृद्ध क्षेत्रों में जाने के लिए दुल्हनों की प्रवृत्ति बढ़ रही है जहां पुरुषों की तुलना में महिला लिंगानुपात अधिक है। भारत के कुछ क्षेत्रों में विषम लिंगानुपात भारत के भीतर दुल्हनों की तस्करी और बिक्री को बढ़ावा दे रहा है। महिलाओं को कथित तौर पर उनके परिवारों द्वारा कभी-कभी कम उम्र में ही शादी के लिए बेच दिया जाता है, इन बच्चियों को अपने पतियों द्वारा गंभीर दुर्व्यवहार, बलात्कार और शोषण को सहन करना पड़ता है। गरीब पृष्ठभूमि की भारतीय महिलाओं और लड़कियों को कथित तौर पर शहरी क्षेत्रों के युवा पुरुषों द्वारा शादी के वादों का लालच दिया जाता है, लेकिन फिर अपने पति से शादी करने के बाद उन्हें यौन कार्यों में धकेल दिया जाता है। 2016 के बाद से जबरन विवाह की संख्या में 6.6 मिलियन की वृद्धि हुई है। यद्यपि वैश्विक स्तर पर जबरन विवाह के दो-तिहाई मामले (लगभग 65 प्रतिशत) एशिया और प्रशांत क्षेत्र में पाए जाते हैं। यदि क्षेत्रीय जनसंख्या आकार पर विचार किया जाए, तो अरब राज्यों में जबरन विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है, इस क्षेत्र में प्रत्येक 1,000 में से 4.8 लोग जबरन विवाह करते हैं।
इसके अतिरिक्त भारत में जहां गुर्दे और यकृत रोग की दर बढ़ रही है वहीं अंग निकालने के लिए मानव तस्करी पूरे भारत में जारी हो गयी है। भारत के कुछ हिस्सों में, गरीब लोग साहूकारों के लिए संपार्श्विक के रूप में अपने गुर्दे का उपयोग करते हैं। शोधकर्ताओं ने "किडनी बेल्ट" “kidney belt” के नाम से जाने जाने वाले दक्षिणी भारत के क्षेत्रों से प्राप्त गुर्दों को श्रीलंका, खाड़ी राज्यों, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States America) में ग्राहकों को बेचे जाने का दस्तावेजीकरण किया है।
भारत द्वारा अपनी दंड संहिता में तस्करी, गुलामी, जबरन श्रम और बाल यौन शोषण सहित आधुनिक गुलामी के अधिकांश रूपों को अपराध घोषित किया गया है। हालांकि, दंड संहिता की धारा 366 के तहत, जबरन शादी अपहरण की स्थिति में ही अपराध मानी जाती है । वर्तमान में सशस्त्र संघर्ष में बच्चों के उपयोग को अपराध ठहराने वाला कोई कानून नहीं है। घरेलू कामगारों के लिए राष्ट्रीय मंच द्वारा तैयार किया गया घरेलू कामगार विनियमन कार्य और सामाजिक सुरक्षा विधेयक 2016 का मसौदा विचारार्थ भारत सरकार को प्रस्तुत किया गया है। आधुनिक गुलामी से निपटने के उद्देश्य से बने कानून और योजनाओं के अस्तित्व के बावजूद, सरकार की नीतिगत प्रतिबद्धताओं और कार्यान्वयन के बीच गंभीर अंतर देखा गया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/2P52fk5
https://bit.ly/3jL5am6
https://bit.ly/3GzgcTp

चित्र संदर्भ
1. ईंट भट्टे के मजदूरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बाल बुनकर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. परिश्रमी महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (PIXNIO)
4. दुकान पर काम कर रहे छोटे बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



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