City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1404 | 801 | 2205 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
साइकिल रिक्शा हमारे शहरी जीवन का अभिन्न अंग रहा है। यह केवल अतीत का साधन नहीं है; वरन् आज भी मौजूद है। साइकिल रिक्शा न केवल लाखों लोगों की आजीविका का साधन है, बल्कि यह शहरवासियों को परिवहन का एक सुविधाजनक साधन भी प्रदान करता है तथा वायु और ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन की खपत को भी रोकता है।
रिक्शा की कहानी जापान से शुरू होती है । 1870 में रिक्शा हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे के रूप में जापान की सड़कों पर उतरे । जल्द ही भारत, चीन (China), बांग्लादेश (Bangladesh), म्यांमार (Myanmar), इंडोनेशिया (Indonesia) और वियतनाम (Vietnam) में रिक्शा का इस्तेमाल किया जाने लगा । प्रारंभ में, रिक्शा एक निजी वाहन था लेकिन जल्द ही यह एक सार्वजनिक वाहन बन गया और कुछ ही वर्षों में जापान में लाखों की संख्या में रिक्शा चलने लगे । भारत में, प्रारंभ में रिक्शा का उपयोग अंग्रेजों द्वारा अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में निजी वाहन के रूप में किया जाता था। बाद में, उनका उपयोग अधिकांश भारतीय शहरों में फैल गया। यह हाथ से चलने वाला रिक्शा बाद में साइकिल रिक्शा बन गया । हालांकि रिक्शा की वास्तविक उत्पत्ति जापान में हुई थी, आज रिक्शा ने आधुनिक शहरीकरण में अपना एक विशेष स्थान बना लिया है। आज दुनिया भर के बढ़ते शहरीकरण के कारण रिक्शा को एक गंभीर यातायात समस्या के रूप में देखा जाता है। हालांकि इसके अस्तित्व और उपयोग पर कई लोगों ने सवाल भी उठाए हैं, यह मानव जीवन के सामाजिक ताने-बाने में परिवहन का एक प्रमुख साधन बना हुआ है और आगे भी बना रहेगा।
एक समय था जब एशिया की सड़कों पर रिक्शा का राज था और उसने प्रतिष्ठा भी हासिल की थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, विश्व परिदृश्य में परिवर्तन आया और यूरोपीय (European) तथा अमेरिकी (American)प्रभाव का एक नया अध्याय शुरू हुआ। यूरोप और अमेरिका ने रेल, ट्राम (Tram) और परिवहन के अन्य रूपों जैसी सुविधाओं का विकास किया । नतीजतन, आधुनिकीकरण के पश्चिमी दृष्टिकोण ने जोर पकड़ लिया और इसने साइकिल रिक्शा को देखने के तरीके को प्रभावित किया। साइकिल रिक्शा के खिलाफ संगठित आवाजों में वे परिवर्तनकारी ताकतें भी शामिल थीं जो सक्रिय थीं और समाजवाद के लिए संघर्ष कर रही थीं और मजदूरों का शासन स्थापित कर रही थीं। यही कारण है कि बीजिंग (Beijing) और शंघाई (Shanghai)की सड़कों से रिक्शा हटा दिए गए।
हालांकि, रिक्शा अभी पूरी तरह से गायब नहीं हुआ है और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इसके अलग-अलग संस्करणों का उपयोग जारी है । हाल ही में, रिक्शा को दुनिया के उन हिस्सों में पेश किया गया है जहां यह पहले कभी मौजूद नहीं थे । 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में, ऑक्सफोर्ड, यूनाइटेड किंगडम (Oxford, United Kingdom) की सड़कों पर साइकिल रिक्शा दिखाई दिए । वायु प्रदूषण और ट्रैफिक जाम के कारण शहर की खराब स्थिति के कारण लोग साइकिल रिक्शा के समर्थन में सामने आ रहे हैं और कई क्षेत्रों के नगर निकाय अपने यातायात नियमों को बदलकर उन्हें संचालित करने की अनुमति दे रहे हैं । आज साइकिल रिक्शा अपने नए रूपांतरित रूप में यूरोप और अमेरिका की सड़कों पर देखे जा सकते हैं। वे लंदन (London), एम्स्टर्डम (Amsterdam), बर्लिन (Berlin), फ्रैंकफर्ट (Frankfurt), हैम्बर्ग (Hamburg), न्यूयॉर्क (New York)और दुनिया भर के कई अन्य शहरों में काम कर रहे हैं । हालांकि इन शहरों में परिवहन और यातायात नियम रिक्शा की अनुमति नहीं देते हैं, लेकिन लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। रिक्शा को अलग-अलग शहरों में अलग-अलग नामों जैसे पैडी कैब (Pedi Cab), वेलो टैक्सी (Velo Taxi), गो ग्रीन (Go Green), साइकिल टैक्सी (Cycle Taxi), इको रथ (Eco Rath), कैपिटल इन मोशन (Capital in Motion), आदि से जाना जाता है । इन्हें चलाने वाले लोग एक साथ आ रहे हैं और उन पर डाले जाने वाले दबाव का विरोध करने के लिए संघ बना रहे हैं।
दिल्ली जैसे शहर में मेट्रो की तरह परिवहन के नए साधनों की दक्षता बढ़ाने के लिए साइकिल रिक्शा आवश्यक है। दिल्ली मेट्रो केवल कुछ चुनिंदा मार्गो पर चलती है। साइकिल रिक्शा के अभाव में मेट्रो की उपयोगिता सीमित रह जाती है। इसकी उपयोगिता के बावजूद, मेट्रो स्टेशनों या बस स्टॉप के पास साइकिल रिक्शा पार्क करने की अनुमति नहीं है। ट्रैफिक पुलिस लगातार रिक्शा चालकों को परेशान करती है । फिर भी, रिक्शा लोकप्रिय बने हुए हैं क्योंकि वे आसानी से उपलब्ध हैं और यात्रियों के लिए भीड़भाड़ वाले इलाके में यात्रा के लिए परिवहन का एक सस्ता साधन प्रदान करते हैं।
पिछले तीन दशकों में, भारत में रिक्शा के संचालन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया है। हालांकि, उनके लिए समर्थन भी बढ़ रहा है। यह ट्रेड यूनियनों (Trade unions) और साइकिल रिक्शा से जुड़े अन्य समूहों के दबाव का परिणाम था कि राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति ने ,भले ही आधे-अधूरे मन से, साइकिल रिक्शा की प्रशंसा की हो। राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति में इसका उपयोग अब सड़कों पर समान अधिकार के संघर्ष को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है। जब दिल्ली सरकार ने इस संघर्ष पर ध्यान नहीं दिया तो मामला कोर्ट तक पहुंच गया। हालाँकि सरकार साइकिल रिक्शा पर प्रतिबंध लगाने के लिए दृढ़ थी, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2010 में उनके पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया ।इस फैसले के बाद ही दिल्ली सरकार पीछे हटी और उसने साइकिल रिक्शा के खिलाफ शुरू किए गए कड़े कदमों को वापस लेने का फैसला किया। लेकिन अब भी रिक्शा पर प्रतिबंध अलग-अलग तरह से जारी है। यहां तक कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे ने भी सरकार को साइकिल रिक्शा के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर नहीं किया है।
रिक्शा के बिना भारतीय सड़कों की कल्पना करना कठिन है। तीन प्रमुख प्रकार के रिक्शा - हाथ से खींचे जाने वाले, साइकिल और ऑटो - भारतीय शहरों में गतिशीलता के एक अनिवार्य रूप बने हुए हैं। फिर भी, योजनाकार और नीति निर्माता रिक्शा को शहर की सड़कों पर एक बाधा के रूप में देखते हैं, जो या तो उनकी संख्या को नियंत्रित करना चाहते हैं या उन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित करना चाहते हैं। आम तौर पर, नगर नियोजन की प्रक्रिया में, अक्सर दो प्रमुख तर्क दिए जाते हैं । पहला यह है कि रिक्शा धीमा है, जिससे यातायात बाधित होता है और भीड़भाड़ पैदा होती है। दूसरा तर्क दिया जाता है कि रिक्शा गतिशीलता का एक असभ्य रूप है जो स्मार्ट, आधुनिक, वैश्विक शहरों की छवि के अनुरूप नहीं है।
अनिल के. राजवंशी द्वारा 2000 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, लगभग दो मिलियन साइकिल रिक्शा भारतीय सड़कों पर चलते थे, जो हर साल कम से कम 6-8 बिलियन यात्री ले जाते थे । रिक्शा चालकोंकी कुल संख्या (रिक्शा चालकों के परिवार के सदस्यों सहित जो आजीविका के एक प्रमुख स्रोत के रूप में रिक्शा पर निर्भर थे), भारत में शहरी गरीबों का एक बड़ा हिस्सा था । रिक्शा चालक के रूप में कार्यरत बहुत से पुरुष में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में आए प्रवासी थे, जो अक्सर अपने परिवारों को गांवों में छोड़कर आते थे। वे कभी-कभी महीनों तक अपने गाँव नहीं लौटते थे, लेकिन उस अल्प आय पर जीवित रहने के लिए अपने परिवारों को नियमित धन भेजते थे, इनमें से कई आज भी समान रूप से कार्य कर रहे हैं। नतीजतन, शहरी केंद्रों में रिक्शा चालकों के घर होते हैं जो झोंपड़ियों में रहते, खाते और सोते हैं । काफी संख्या में रिक्शा चालक शहर की पगडंडियों या सड़क के किनारे पुरानी इमारतों के खुले बरामदों में भी रात गुजारते हैं।
भारत ऊर्जा के घटते स्रोतों और जलवायु परिवर्तन के खतरे से चिंतित दुनिया को, मानव श्रम पर आधारित एक नया रास्ता दिखा सकता है । विडम्बना यह है कि विकसित देश, जो कभी उच्च गति परिवहन के मोह में थे, आज धीमी गति की वकालत कर रहे हैं और कार मुक्त सड़कों और शहरों की शुरुआत कर रहे हैं। भारत के विभिन्न शहरों और कस्बों में बड़ी संख्या में साइकिल रिक्शा चल रहे हैं। भारत की न्यायपालिका ने साइकिल रिक्शा का समर्थन किया है और हमारी संवैधानिक व्यवस्था भी उनके पक्ष में बोली है। हमारे पास बड़ी संख्या में मानव संसाधन उपलब्ध हैं। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि साइकिल रिक्शा को उचित सम्मान मिले और समान अधिकार के आधार पर उसे बढ़ावा दिया जाए।
संदर्भ:
https://bit.ly/3HO0PZn
https://bit.ly/3BRd8Au
https://bit.ly/3vcpA9S
चित्र संदर्भ
1.रिक्शे को चलाती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. जापान में साइकिल रिक्शे के इतिहास को संदर्भित करता चित्रण (flickr)
3. साइकिल रिक्शे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. साइकिल रिक्शे के साथ खड़े व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.