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भारतीय संस्कृति झलकती हैं हमारे कैलेंडरों में, तो अब उनकी छवियों में गुणवत्ता व सौन्दर्य का अभाव क्यों

लखनऊ

 17-12-2022 12:38 PM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

भारतीय संस्कृति ने कैलेंडर की जड़ों में अत्यंत गहराई तक पहुंच बनाई हैं। विशेषतौर पर अस्सी या नब्बे के दशक का कोई भी व्यक्ति, कागज़ के इन विशाल टुकड़ों से विशेष भावनात्मक लगाव रखता है। लगभग एक दशक पहले कैलेंडर में छपने वाले चित्र न केवल मनमोहक होते थे, साथ ही इनमें कोई न कोई गूढ संदेश भी छिपा रहता था। तब आप किसी भी कैलेंडर (Calendar) को घंटों तक एकटक निहार सकते थे। लेकिन अब समय थोड़ा बदल गया है। वर्तमान में कैलेंडरों में छपने वाली निम्न स्तर की छवियां, यह स्पष्टतौर पर बता रही हैं कि पहले सुंदर “ललित कला” का प्रदर्शन करने वाले इन कैलेंडरों का आज तेज़ी से व्यवसायीकरण हो चला है। कैलेंडरों के शोध पर आधारित पुस्तक, “गॉड्स इन द बाज़ार (Gods in the Bazaar)” के लेखक कजरी जैन (Kajri Jain) द्वारा कैलेंडर कला उद्योग, विशेष रूप से इनके लिए चित्र बनाने या उन्हें रंगने वाले कलाकारों और प्रकाशकों, के साथ-साथ कई उपभोक्ताओं (कैलेंडर खरीदारों) के साक्षात्कार किए गए। इनमें से प्रकाशकों के साथ-साथ अधिकांश लोग भी समय के साथ कैलेंडरों की छवियों में गुणवत्ता और सौन्दर्य की अभाव की स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ थे।
उपरोक्त पुस्तक के लेखक के द्वारा किये गए एक साक्षात्कार में प्रकाशकों ने यह तर्क दिया कि “वह केवल उन्हीं चित्रों को बना रहे है, जिनकी मांग बाज़ार या खरीदार कर रहे हैं। ” जबकि कलाकार इस बात पर अधिक जोर दे रहे थे कि “वे बाज़ार की मांग द्वारा प्रतिबंधित महसूस करते हैं और केवल वित्तीय बाधाओं यानी आर्थिक परेशानियों से उभरने के लिए कैलेंडर निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं।”
मुंबई के एक कैलेंडर कलाकार एस.एस.शेख (S.S Sheikh), परिदृश्य और अन्य धर्मनिरपेक्ष विषयों के कैलेंडर बनाने में माहिर हैं। उन्होंने जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स (J. J School Of Arts) से ललित कला (Fine Arts) भी सीखी है। उनके अनुसार, अब कैलेंडर कला को ललित कला के बजाय व्यावसायिक कला के रूप में गिना जाने लगा है। शेख के अनुसार ' “हमारी लाइन (कैलेंडर निर्माण क्षेत्र) में, ललित कलाकारों के बीच कैलेंडर कला को बहुत हीन (निम्न स्तर का कार्य ) समझा जाता है।” इसके विपरीत कई कैलेंडर निर्माता यह तर्क देते है कि कैलेंडर अल्पकालिक और अस्थायी होते हैं। इसके विपरीत ललित कला में काफी समय और ध्यान देने की आवश्यकता होती है, जिसमें आंखों और ह्रदय के बीच एक सीधा संबंध जुड़ जाता है। वहीँ जिन लोगों से भी लेखक (कजरी जैन) ने बात की उनमें से लगभग सभी ने चमकीले, गहरे रंगों का उपयोग करने की अनिवार्यता को व्यावसायिक कैलेंडर कला की पहचान बताया।
हालाँकि, मुंबई और चेन्नई के कला विद्यालयों में प्रशिक्षित कलाकारों के माध्यम से कैलेंडर बाज़ार में छवियों का समानांतर क्षेत्र 'ललित' कला के संस्थागत दायरे और शर्तों के साथ स्थिर रहा है। इनमें से अधिकांश कलाकार, विशेष रूप से कोंडियाह राजू (Kondiah Raju) और एस. एम. पंडित (S. M. Pandit) ने अपने शानदार काम के माध्यम से दूसरों को भी प्रेरित किया है। ऐसे ही कई अन्य लोगों (जो कला विद्यालय में नहीं गए थे, लेकिन जिन्होंने कला के बारे में व्यापक रूप से पढ़ा है और राष्ट्रीय कला परिदृश्य से अच्छी तरह परिचित हैं।) के माध्यम से, कैलेंडर कला के दायरे में कला प्रणाली की शैलीगत और मौखिक शब्दावली प्रसारित हुई हैं। कैलेंडर कला के कलाकार राम कुमार शर्मा के अनुसार “धर्म से कोई भी वंचित नहीं रह सकता, चाहे वह कितना भी विकसित क्यों न हो गया हो।” आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) से लेकर धार्मिक विषयों जैसे श्री राम और मां वैष्णो देवी सहित अन्य देवताओं के कैलेंडर, विशाल बहुमत द्वारा किसी भी वर्ग या शिक्षा की परवाह किए बिना बहुतायत में उपयोग किए जाते हैं। आपको श्री रामचंद्रजी का चित्र पौराणिक व्यक्ति के घर के साथ-साथ आधुनिक प्रगतिशील व्यक्ति के घर में दिखाई देगा ।
हालांकि धार्मिक कैलेंडर प्रतीक, वास्तव में, सार्वभौमिक रूप से उपयोग किए जाते थे, लेकिन कर्मकांड दर्शन के मामले में कोई भी 'कलात्मक मूल्यांकन' नहीं किया जा रहा था । कैलेंडर कला के गिरते स्तर के लिए आम जनताऔर कलाकारों ने प्रिंटर और प्रकाशकों को समान रूप से दोषी बताया जिनके अनुसार प्रकाशक, वास्तव में, कला के प्रेमी नहीं हैं, बल्कि वे केवल व्यापारी हैं। उदाहरण के तौर पर, आज एक ही कैलेंडर पर बीड़ी (उत्पाद) निर्माता के साथ-साथ श्री गणेश, माता लक्ष्मी, या माता वैष्णो देवी की छवि का प्रयोग एक ही सतह में एक साथ किया जा रहा है। जो लोग उन्हें खरीदते हैं, उनमें से कोई भी इन चित्रों की आलोचना नहीं करता है। लोग सोचते हैं कि यह भगवान ही है, और हम भगवान के चित्र की क्या आलोचना करेंगे! वास्तव में, आज धार्मिक चिह्नों को चुनते, उपयोग करते या प्रसारित करते समय सौंदर्य मानदंड शायद ही कभी ध्यान में रखे जाते हैं। और इस प्रकार बड़े पैमाने पर उत्पादित त्रुटिपूर्ण छवियां पूरे जन समूह के बीच बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रसारित की जा रही हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3W6rFAb

चित्र संदर्भ
1. समय के साथ कैलेंडर कला में आए बदलावों को दर्शाता एक चित्रण (pilxer)
2. “गॉड्स इन द बाज़ार" पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
3. राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित सुन्दर ललित चित्र को दर्शाता एक चित्रण (Creazilla)
4. राष्ट्र प्रेम को समर्पित कैलेंडर को दर्शाता एक चित्रण (twitter)
5. एक बेहद साधारण कैलेंडर को दर्शाता एक चित्रण ( Public Domain Pictures)



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