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भारत में सबसे बड़े मत्स्य पालन जलाशयों में से एक है, रामपुर के समीप स्थित नानक सागर जलाशय

लखनऊ

 05-12-2022 11:14 AM
मछलियाँ व उभयचर

वर्तमान समय में समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को मानव गतिविधियों से अत्यधिक खतरा बना हुआ है, परंतु यह भी सत्य है कि इसमें सबसे कम प्रभाव मछली पकड़ने से पड़ता है। है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization of the United Nations (FAO)) के अनुसार, 2013 तक वैश्विक मत्स्य पालन की लगभग 90 प्रतिशत या अधिकतम क्षमता तक मछलियों को पकड़ा गया था। जहां जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसे कई अन्य मानवीय प्रभावों के साथ, संयुक्त रूप से मछली पकड़ने से लेकर जंगली मछली के भंडारण पर दबाव ने कई जलीय प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र को खतरे में डाल दिया है।
वहीं मछली पालन को सामान्यतया अत्यधिक मछली पकड़ने से उत्पन्न समस्याओं के निपटने के लिए संभावित हल के रूप में पेश किया जाता है। संरक्षण जीव विज्ञान (Conservation Biology) के एक लेख में, लोंगो एट अल (2019) (Longo et al (2019)) ने जांच की कि क्या जलीय कृषि उत्पादन मत्स्य पालन को विस्थापित करता है। यह अध्ययन 1970 से 2014 तक विभिन्न राष्ट्रों के बीच इस संबंध का आकलन करने के लिए विश्व बैंक (World Bank) और एफएओ (Food and Agricultural Organization (FAO)) के विवरण का उपयोग करता है।अध्ययन के अनुसार, समुद्री खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के निरंतर प्रयास जंगली प्रजातियों के संरक्षण के लिए अनुमानित तकनीकी प्रयासों की तुलना में अधिक उन्नत होते जा रहे हैं। इस प्रकार, निष्कर्ष बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण की तुलना में समुद्री भोजन उत्पादन के समग्र विस्तार को अधिक संरचित किया गया है।
इस विषय के कई स्पष्टीकरण हैं कि मत्स्य पालन उत्पादन ने प्रत्याशित रूप से मात्स्यिकी पालन को विस्थापित क्यों नहीं किया है। अध्ययन के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण वैश्विक कारकों पर विचारकिया जाता है , जैसे कि आर्थिक विकास गतिशीलता, जो समुद्री भोजन के उत्पादन को व्यवस्थित करती है, मांग को बढ़ावा देती है, और सामान्य रूप से खाद्य प्रणालियों के विकास को अत्यधिक प्रभावित करती है। इसके साथ ही, अध्ययन में इस बात पर प्रकाश भी डाला गया है कि कई मत्स्य पालन संचालन सीधे मत्स्य पालन से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, मछलियों को खिलाए जाने वाले खाने में ज्यादातर मछली आधारित उत्पाद और मछली का तेल होता है, जिसको जंगली मछलियों को पकड़ कर प्राप्त किए जाने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, जलीय कृषि के माध्यम से मछली की खपत को बढ़ावा देने से सभी प्रकार के समुद्री भोजन की मांग बढ़ सकती है। इसके साथ ही आजकल लोगों की शुद्ध भोजन (Organic Food) की मांग को पूरा करने के लिए भी किसानों द्वारा जैविक रूप से मछली पालन के तरीके को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। परंतु अब प्रश्न यह है कि वास्तव में, मछलियों पर “जैविक” (Organic) का लेबल लगाने का क्या तात्पर्य है? हालांकि “जैविक” लेबल का उपयोग दिशानिर्देशों के एक सख्त समूह द्वारा नियंत्रित किया जाता है। जैसा कि यह खेती की गई मछलियों पर लागू होता है, इसका तात्पर्य जल पुनर्चक्रण, अपशिष्ट और भोजन के निपटान के संबंध में कई नियमों का पालन करने से भी है। इस लेबल के अनुसार, मछलियों को खिलाए जाने वाले सभी खाद्य पदार्थ प्रमाणित जैविक स्रोतों से ही आने चाहिए।
हालांकि, यह शाकाहारी तिलापिया (Tilapia) जैसी प्रजातियों के लिए समस्या की बात नहीं है क्योंकि उनके लिए शाकाहारी भोजन भारी मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन मांसाहारी मछलियों जैसे सैल्मन (Salmon), के लिए यह समस्या की बात है। क्योंकि उन्हें सामान्य रूप से अन्य ऐसी जंगली मछलियाँ खिलाई जाती हैं, जिनका अपना चारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसलिए खेती की गई सैल्मन को पूर्ण रूप से जैविक नहीं कहा जा सकता है। इस स्थिति से निपटने के लिए CAAQ (क्यूबेक लेबलिंग संगठन) "जैविक" शब्द को केवल तभी लागू करने की अनुमति देता है जब मछलियों का चारा "बिल्कुल साफ या न्यूनतम प्रदूषण" वाले क्षेत्रों से आता है। हालांकि यह विचित्र स्थिति की ओर ले जाता है जिसमें एक जंगली सैल्मन को "जैविक" नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, यह तर्क दिया जा सकता है कि खेती की गई सैल्मन की तुलना में जंगली सैल्मन अधिक "प्राकृतिक" है क्योंकि उनका भी चारा उसी स्थान से आता है जहां से खेती की हुई मछलियों का आता है । जैविक खेती मुख्य रूप से इसी बात पर निर्भर करती है कि मछलियों को क्या खिलाया जाता है। खेतों में पाली जाने वाली मछलियों को 30x40 फीट के छोटे-छोटे गड्ढों में पाला जाता है, जिन पर चूने का लेप किया जाता है और मछलियों को कम समय में अधिकतम वजन बढ़ाने के लिए रासायनिक युक्त आहार खिलाया जाता है। यदि मछलियों को केवल जैविक आहार खिलाया जाए, तो मछली की कई किस्मों को मात्र 250 ग्राम वजन प्राप्त करने में छह महीने से अधिक का समय लगता है। लेकिन रासायनिक चारे के कारण, कार्प्स (Carps), म्यूरल (Murrel) और सॉ फिश (Saw fish) जैसी मछलियां भी केवल तीन महीनों में आधा किलो से अधिक वजन प्राप्त कर लेती हैं।
जर्नल ऑफ एंटोमोलॉजी एंड जूलॉजी स्टडीज ( Journal of Entomology and Zoology Studies) के एक अध्ययन के अनुसार, हमारे शहर रामपुर के पास ‘नानक सागर जलाशय’ में व्यावसायिक मछलियों को पकड़ने के लिए पारंपरिक प्रकार के गियर जैसे गिल नेट (Gill net), त्रिकोणीय नेट (Triangular net), ड्रैग नेट (Drag net), हुक और लाइन (Hooks and lines), कास्ट नेट (Cast net) और रॉड और लाइन (Rod and line)। का उपयोग किया जाता है।
नानक सागर भारत में सबसे बड़ी मत्स्य पालन स्थानों में से एक है। नानक सागर जलाशय के मछली जीवों में मुख्य रूप से भोजन की तलाश करने वाली मछलियों, कैट फिश (Cat fish), माइनर कार्प (Minor carps), विदेशी कार्प और कुछ मात्रा में प्रमुख कार्प का एक समृद्ध संयोजन होता है। मछलियों में, गडूसिया छपरा (Gadusiachapra) 44.14% के औसत वार्षिक योगदान के साथ पकड़ी जाने वाली मछलियों की सबसे प्रमुख प्रजाति थी। इस अध्ययन अवधि के दौरान 15.95% के योगदान के साथ लेबियो गोनियस (Labeogonius) एक अन्य मात्रात्मक रूप से प्रमुख प्रजाति थी। भारतीय प्रमुख मछली ‘कार्प’ में सिरिहिनस मृगला (Cirrhinusmrigala) सबसे प्रचुर मात्रा में थी। नानक सागर जलाशय के मत्स्य पालन में कैट फिश और माइनर कार्प भी प्रचुर संख्या में उपलब्ध थी । यहां से अधिकतम और न्यूनतम मछली पकड़ क्रमशः फरवरी, 2017 और सितंबर, 2016 के महीने में प्राप्त की गई थी। उत्तराखंड राज्य नदियों, झीलों, जलाशयों आदि के रूप में ताजे पानी के संसाधनों से संपन्न है। राज्य के तराई क्षेत्र में धौरा, हरिपुरा, बेगुल, बौर, तुमरिया, नानक सागर और सरदा सागर जैसे कई छोटे और मध्यम आकार के जलाशय हैं।ये जल निकाय मूल्यवान मछली विविधता का समर्थन करते हैं। मत्स्य पालन के विकास के लिए इन जलाशयों के पारिस्थितिकी तंत्र की उचित समझ आवश्यक है। इन जलाशयों का मुख्य रूप से सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन और मछली उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है। यहां उपस्थित अधिकांश मछलियों को खपत के लिए पकड़ा जाता है। लेकिन यदि किसी प्रजाति को खपत के लिए नहीं पकड़ा जाता है तो यह जलाशय से उसकी अनुपस्थिति का संकेत नहीं देती है। परंतु कभी-कभी इस बात की संभावना भी होती है कि ये मछलियां, मछलियों पकड़ने के लिए फेंके गए जाल में नहीं भी फंसती हैं या, अंततः उनका जीवन नष्ट हो जाता है और उन्हें वापस जल में फेंक दिया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप हमारे परिस्थितिक तंत्र पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। जलाशय में मछली पकड़ने और इनकी जनसंख्या घनत्व का विवरण दस नावों से दर्ज किया गया था।
जलाशय में सात महीने में कुल 2,20,867.42 किलोग्राम मछलियों को पकड़ा गया। जांच अवधि के दौरान नानकसागर जलाशय से भारतीय प्रमुख कार्प, माइनर कार्प, कैट फिश, वीड फिश (Weed fish) और अन्य मछलियों सहित 30 मछली प्रजातियों के कुल 22 वंश दर्ज किए गए। वहीं भारतीय प्रमुख कार्पों में कैटला कैटला (Catlacatla), लेबियो रोहिता (Labeorohita), एल कैलबासु (L. calbasu) और सी मृगाला (C. mrigala), लेबियो गोनियस (Labeogonius) के मध्यम कार्प्स, लेबियो डाइओसिलस (Labeodyocheilus), एल. बाटा (L. bata) और सिरहिनस रेबा (Cirhhinusreba), कैट फिश, आदि शामिल थे।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3B73NnE
https://bit.ly/3UB1kc8
https://nyti.ms/3imvphV
https://bit.ly/3VuYo1G

चित्र संदर्भ

1. रामपुर के समीप स्थित नानक सागर जलाशय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. झुण्ड में मछली पकड़ते मछुआरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia.)
3. शाकाहारी तिलापिया को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कैट फिश पालकों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. मछली पकड़ते मछुआरे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia.)



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