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आदिकाल से ही भारत वसुधैव कुटुम्बकम की विचारधारा का समर्थन करता आया है। जिसका अर्थ होता है की "पूरा विश्व एक परिवार है!" हालांकि आज दुनिया इसके विपरीत अलग-अलग देशों और महाद्वीपों के आधार पर बंटी हुई है, जो कई मायनों में सही भी है। किंतु एक ओर जहां राष्ट्र केंद्रित विचारधारा, अच्छाई और भलाई को अपने देश के नागरिकों तक ही सीमित कर देती है, वहीं आज दुनियां में कई संगठन और लोग एक वैश्विक नागरिकता स्थापित करने के प्रयासों में लगे हुए हैं।
प्रत्येक देश अपने नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना और देशभक्ति जगाने का प्रयास करता है। आमतौर पर ऐसा वह अपनी प्रभावी शिक्षा प्रणाली के माध्यम से करता है। सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम के भीतर, राष्ट्रवाद, देशभक्ति और वैश्विक नागरिकता से संबंधित मामलों को अक्सर अच्छे नागरिक बनने से जोड़कर देखा जाता है। आज की दुनिया में जहां धीरे-धीरे राष्ट्रवाद बढ़ रहा है, ऐसे में एक सवाल जो अवश्य पूछा जाना चाहिए की "क्या हमें बच्चों को देशभक्तों के रूप में बड़ा करना चाहिए, या उन्हें इसके साथ-साथ एक वैश्विक नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए?”
"राष्ट्रवाद" को परिभाषित करने से पहले, "जनता" या "राष्ट्र" की अवधारणाओं पर ध्यान देना उपयोगी होगा।
बुद्धिजीवियों का मानना है की, राष्ट्रीय पहचान एक सामूहिक भावना है जो एक ही राष्ट्र से संबंधित होने के विश्वास पर आधारित है और इसे उन गुणों के साझाकरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो उन्हें अन्य राष्ट्रों से अलग करते हैं। आमतौर पर "राष्ट्र" को एक ऐसे समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है जो भूमि के एक ऐतिहासिक टुकड़े, आम मिथकों, ऐतिहासिक यादों, सार्वजनिक संस्कृति, एक सामान्य संस्कृति, वैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों को साझा करता है। राष्ट्रवाद और देशभक्ति दोनों ही व्यक्ति के अपने समुदाय के लोगों के साथ संबंध को इंगित करते हैं। हालांकि, राष्ट्रवाद और देशभक्ति के बीच बड़ा अंतर भी है। राष्ट्रवाद जहां भाषा और विरासत को शामिल करने के साथ ही सांस्कृतिक एकता पर जोर देता है, वहीं देश भक्ति मूल्यों और विश्वासों पर अधिक जोर देने के साथ लोगों के प्रति प्रेम पर आधारित है।
देशभक्ति में सैन्य और सांस्कृतिक दोनों तरह से रक्षात्मक प्रकृति है। दूसरी ओर, राष्ट्रवाद को शासन की इच्छा से अलग नहीं रखा जा सकता है। प्रत्येक राष्ट्रवादी का अपरिवर्तनीय उद्देश्य स्वयं के बजाय अपने राष्ट्र के लिए अधिक शक्ति और प्रतिष्ठा प्रदान करना है। राष्ट्रवाद ने राष्ट्र के निर्माण के प्रारंभिक चरणों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है, लेकिन इसमें निहित चयनात्मकता के साथ, राष्ट्रवाद विनाशकारी हो सकता है।
सत्तामीमांसा (ontological) के आधार पर देशभक्ति एक सामाजिक संरचना है जो व्यक्ति की सांस्कृतिक गतिविधि के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे विकसित होती है। यह स्वाभाविक है कि लोगों के मन में उनके द्वारा पसंद की जाने वाली जगह के प्रति प्रेम और करुणा की भावनाएँ उत्पन्न हों। यह भी स्वाभाविक है कि वे अपने माता-पिता या उस समुदाय को पसंद करते हैं जिसके वे सदस्य हैं।
यदि "देशभक्ति" शब्द की लैटिन जड़ों की जांच की जाए, तो इसे शासक के प्रति वफादारी के रूप में वर्णित किया जा सकता है। देशभक्ति की परिभाषा, सामग्री और विशिष्ट गुणों के संबंध में लेखकों की अलग-अलग राय है। देशभक्ति पर किए गए शोध अलग-अलग परिभाषाएं जैसे कि राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति प्रेम, किसी देश की श्रेष्ठता के रूप में विशिष्ट विश्वास, लोगों के एक परिपक्व समुदाय के नागरिक बंधनों को मजबूत करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक और राष्ट्रीय वफादारी की भावना आदि प्रकट करते हैं।
वही दूसरी और वैश्वीकरण की शिक्षा का उद्देश्य उन लोगों को एकसाथ लाना है, जो अलग-अलग वातावरण में अंतर-सांस्कृतिक बातचीत के माध्यम से आसानी से रह सकते हैं। वैश्विक विकास ने नागरिकता के आयामों को एक और स्तर तक विविधतापूर्ण बना दिया है। इसके तहत केवल अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक होना ही पर्याप्त नहीं है। ऐसे नागरिक जो खुद को मानवता की संपूर्णता के प्रति जिम्मेदार महसूस करते हैं और जिनके पास एक सार्वभौमिक चेतना है, वहीँ वास्तविक वेश्विक नागरिक है, और उन्हें प्रोत्साहित करना होगा। एक नागरिक जिसके पास ऐसी विशिष्टताएँ हैं, उसे ही संबंधित साहित्य में "वैश्विक नागरिक" कहा जाता है।
वैश्विक नागरिकता एक अवधारणा है जो वैज्ञानिक विमर्श के भीतर चर्चा का विषय है और वैश्विक नागरिकता के अर्थ के रूप में कई परिभाषाएं भी मौजूद हैं। कुछ शोधकर्ता इसे "सीमाओं से परे नागरिकता" या "राष्ट्र-राज्य से परे नागरिकता" नाम भी देते हैं।
वैश्वीकरण के पर्यायवाची शब्दों में विकास, और परिपक्वता भी शामिल हैं। बहुराष्ट्रीय अधिकारियों को वैश्विक मानसिकता रखने के लिए नियमित रूप से प्रोत्साहित किया जाता है। वर्षों से, सरकारी अधिकारियों, बिजनेस स्कूल के प्रोफेसरों और सामूहिक अधिकारियों ने वैश्वीकरण के लाभों की पुष्टि की है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र ने बताया है कि वैश्वीकरण और राष्ट्रों के बीच आर्थिक परस्पर निर्भरता ने, विश्व जीडीपी (GDP) को 2000 में $50 ट्रिलियन से 2016 में $75 ट्रिलियन तक बढ़ने में काफी मदद की है।
हालांकि, हाल के वर्षों में, राष्ट्रवादी भावनाएं बढ़ रही हैं। वर्तमान महामारी और आर्थिक मंदी के दौरान, राजनीतिक नेताओं को एक वैश्विक समाधान खोजने के प्रयासों के संयोजन के बजाय अपने स्वयं के नागरिकों के लिए समाधान खोजना अधिक समीचीन लग रहा है। यद्दपि राष्ट्रवाद को अक्सर कट्टरता, संरक्षणवाद और जेनोफोबिया (Xenophobia) जैसी नकारात्मक चीज़ों से जोड़ा जाता है। लेकिन यह देशभक्ति और अच्छी नागरिकता जैसे सकारात्मक अर्थ भी रखता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3V08dEd
https://bit.ly/3TW9pI5
https://bit.ly/3AlH7j8
चित्र संदर्भ
1. ब्रिक्स प्रमुखों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. वैश्विक परिवार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. वैश्विक नेताओं को एक साथ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. विश्व कप विजेता भारतीय टीम को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. विश्व मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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