मुहम्मद अली जौहर का जन्म रामपुर में हुआ था। वे एक बहुमुखी पुरुष थे- कवि, देशभक्त, पत्रकार, वक्ता और राष्ट्रीय प्रसिद्धि के राजनीतिक नेता। भारत की आज़ादी के लिए वे कई बार जेल भी गए। महात्मा गाँधी के प्रोत्साहन के साथ उन्होंने भारत में ख़िलाफ़त आन्दोलन की शुरुआत की। और जहाँ तक बात है उनकी काव्यात्मक प्रतिभा की, तो वे मशहूर उर्दू शायर दाग़ देहलवी के कवि शिष्य थे।
रामपुर में संरक्षित चार बैत की काव्यात्मक संस्कृति के बीच पले बड़े मुहम्मद अली जौहर शब्दों के कारीगर थे। चार बैत 17वीं शताब्दी में मध्य-पूर्व में उत्पन्न हुआ, जहां एक आदिवासी सरदार एक प्रतिभाशाली सेना को गीतात्मक ललकार (चुनौती) लगाता था। एक तरह से यह कवियों के बीच रोमांस से राजनीति तक के मुद्दों पर गठित एक त्वरित हाज़िर जवाबी की प्रतियोगिता होती थी। चार बैत 1870 के दशक में रोहिल्ला के साथ अफगानिस्तान से भारत आया और रामपुर के दरबारों में अपना केंद्र स्थापित किया।
इस कवि परम्परा और अलीगढ़ विश्वविद्यालय (जो भारत के युवा मुसलमानों के लिए बौद्धिक वाद-विवाद का केंद्र बन चुका था) में निखरे मोहम्मद अली जौहर ने अब अंग्रेजी भाषा पर बेमिसाल पकड़ के साथ अंग्रेजी में तीक्ष्ण, उत्तेजक और शक्तिशाली भाषण और लेखन जारी रखा। एच.जी. वेल्स ने उनके बारे में लिखा: "मुहम्मद अली को मैकॉले की कलम, बर्क की जुबान और नेपोलियन का ह्रदय प्राप्त था”।
रद्द-ए-सहर
ताकत-ए-परवाज़ ही जब खो चुके,
फिर हुआ क्या गर हुए भी पर खुले।
चाक कर सीने को, पहलू चीर डाल,
यूंही कुछ हाल-ए-दिल-ए-मुज़तिर खुले।
लो वो आ पहुंचा जुनून का काफ़िला,
पाँव ज़ख़्मी, खाख मुंहपर, सर खुले।
अब तो किश्ती के मुवाफिक है हवा,
ना ख़ुदा, क्या देर है, लंगर खुले।
ये नज़र-बंदी तो निकली रद्द-ए-सहर,
दीदाहे होश अब जा कर खुले।
फैज़ से तेरे ही, ऐ क़ैद-ए-फिरंग,
बाल-ओ-पर निकले, क़फ़स के दर खुले।
जीतेजी तो कुछ ना दिखलाया मगर,
मर के जौहर आपके जौहर खुले।
प्रस्तुत चित्र मुहम्मद अली जौहर के जनाज़े का है। जौहर को जेरूसलम में दफनाया गया था क्योंकि उन्होंने उस भारत में दफन होने से इंकार कर दिया था जहाँ ब्रिटिश ध्वज लहरा रहा हो।
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