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आपने "एक पंथ दो काज" वाली कहावत अवश्य सुनी होगी। लेकिन यदि आपको इसके मायने
समझने हो तो, ई-रिक्शा से बेहतर उदाहरण कुछ भी नहीं हो सकता। क्यों की बिजली से चलने
वाला यह छोटा सा तीन पहिया वाहन न केवल यात्रियों का समय और अपने चालकों का पैसा बचा
रहा है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण के लिए भी अपने समकक्षों की तुलना में न के बराबर हानिकारक
साबित हो रहा है। साथ ही ऐसे कई अन्य कारण भी हैं जिनकी वजह से भारत में ई-रिक्शा (E-
Rickshaw) इलेक्ट्रिक वाहन बाजार के 83 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ा कर चुके हैं।
भारतीय शहरों में गतिशीलता, पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग है। लेकिन पारंपरिक
आंतरिक दहन इंजन (Conventional Internal Combustion Engine (ICE) द्वारा जहरीले
उत्सर्जन से देश का भविष्य एक चिंताजनक स्थिति में हैं। आईसीई-आईपीटी वाहन पर्यावरण
प्रदूषण में अहम् योगदान अदा करते हैं: तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) पर चलने वाला एक
पारंपरिक तिपहिया वाहन, एक वर्ष में लगभग 0.005 टन पार्टिकुलेट मैटर 10 (Particulate
Matter 10 (PM10) और एक वर्ष में लगभग 3.72 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता
है। इन समस्याओं से निपटने के लिए वैकल्पिक ईंधन आधारित गतिशीलता विकल्पों की खोज की
जा रही है, जिसके अंतर्गत इलेक्ट्रिक थ्री-व्हील आधारित आईपीटी सेगमेंट (Electric three-
wheel based IPT segment), विशेष रूप से इलेक्ट्रिक-रिक्शा (ई-रिक्शा), एक विजेता के रूप में
उभर रहे हैं।
वर्तमान में भारत में लगभग 15 लाख ई-रिक्शा हैं जो हर महीने लगभग 11,000 नए ई-रिक्शा की
अतिरिक्त बिक्री के साथ बढ़ रहे हैं। भारतीय बाजार में 2024 तक लगभग 9.25 लाख ई-रिक्शा की
बिक्री होने का अनुमान है।
इस जबरदस्त वृद्धि के पीछे प्रमुख विकास चालक, सहायक सरकारी नीति तथा इसके सामाजिक-
आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ हैं जैसे:
1. सामाजिक-आर्थिक लाभ: ई-रिक्शा की अग्रिम लागत इसके समकक्ष आईसीई-आधारित ऑटो-
रिक्शा की तुलना में काफी कम होती है। ई-रिक्शा की शुरुआती कीमत 0.6-1.1 लाख रुपये है,
जबकि आईसीई आधारित ऑटो-रिक्शा की कीमत 1.5-3 लाख रुपये से शुरू है। साथ ही एक ई-
रिक्शा के लिए चलने की लागत केवल 0.4 रुपये प्रति किलोमीटर है, जबकि आईसीई-आधारित
रिक्शा के लिए यह लागत 2.1-2.3 रुपये प्रति किमी होती है।
ई-रिक्शा के रखरखाव से संबंधित
मुद्दे भी काफी कम हैं, जो इसके रखरखाव की लागत बचाता है। ई-रिक्शा उन साइकिल-रिक्शा
चालकों को भी रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करते हैं, जिनका व्यवसाय तेजी से लुप्त हो रहा है।
2. पर्यावरणीय लाभ: ई-रिक्शा वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं। यदि कंप्रेस्ड
प्राकृतिक गैस ऑटो (compressed natural gas auto) को ई-रिक्शा से बदल दिया जाए तो,
इससे एक दिन में कम से कम 1,036.6 टन CO2 उत्सर्जन (सालाना 378,357 टन CO2) को कम
किया जा सकता है।
3. सहायक नीति: इस तिपहिया वाहन को राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन 2013, प्रधानमंत्री मुद्रा
योजना 2015; स्मार्ट सिटी मिशन 2015; इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण का तेज़ अनुकूलन (FAME I
और II), राज्य की इलेक्ट्रिक वाहन नीति ऋण तथा नियामक ढांचे और प्रत्यक्ष सब्सिडी के रूप में
राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन के माध्यम से निरंतर सरकारी समर्थन भी मिला है।
हालांकि इसके बावजूद, ई-रिक्शा के नियमन से जुड़े कई मुद्दे भी हैं। जैसे उनके कलपुर्जे अभी भी
बाहर से आयात किए जाते हैं, तथा भारत में केवल असेंबल किए जाते हैं। ये आमतौर पर गैर-
मानकीकृत होते हैं और मानकों का पालन किए बिना ही स्थानीय कार्यशालाओं में इकट्ठे किए
जाते हैं। वहीं असंगठित व्यापारी हर महीने 10,000 ई-रिक्शा बेचते हैं, जबकि संगठित खिलाड़ी हर
महीने 1,500-2,000 ई-रिक्शा बेचते हैं। असंगठित क्षेत्र द्वारा बेचे जाने वाले ई-रिक्शा खराब
गुणवत्ता और लेड-एसिड बैटरी (lead acid battery) वाले होते हैं, जिन्हें हर छह-आठ महीने के
बाद बदलना पड़ता है। साथ ही इसके प्रति बैटरी प्रतिस्थापन की लागत 25,000 रुपये से 28,000
रुपये के बीच होती है। लेड-एसिड बैटरी का वजन भी आमतौर पर 80 किलोग्राम के करीब होता है,
जिससे वाहन का माइलेज कम हो जाता है।
भारत में 2021 तक लगभग 15 लाख ई-रिक्शा चल रहे हैं। लेकिन 2019 तक, केवल 1.5 लाख
पंजीकृत थे। उदाहरण के लिए, दिल्ली में 1 लाख से अधिक ई-रिक्शा हैं, लेकिन इनमें से केवल
5,891 ही पंजीकृत हैं। नतीजतन, ड्राइवरों के पास वैध लाइसेंस नहीं होते हैं और इस प्रकार यात्रियों
की सुरक्षा से समझौता किया जाता है।
अधिकृत ई-रिक्शा चार्जिंग सुविधाओं के अभाव में बिजली चोरी भी होती है। दिल्ली में कई
असंगठित संस्थाएं बिजली चोरी करके रात में थोक में चार्जिंग मुहैया कराती हैं। ई-रिक्शा मालिक
पार्किंग और चार्जिंग सुविधाओं के लिए निश्चित पैसे (100-150 रुपये) का भुगतान करते हैं।
अकेले दिल्ली में लगभग 340 ई-रिक्शा निर्माण इकाइयां हैं, लेकिन बहुत कम
एआरएआई/आईसीएटी (ARAI/ICAT) मानकों के अनुरूप हैं। इन इलेक्ट्रिक रिक्शा की लाइफ
मुश्किल से 1-1.5 साल होती है।
भारत बैटरियों के आयात के लिए भी चीन पर बहुत अधिक निर्भर है, जिसके कारण ईवी की लागत
के बड़ने में, बैटरी का एक बड़ा हिस्सा होता है। बैटरी निर्माण के स्थानीयकरण से ईवी की समग्र
लागत को कम करने में मदद मिलेगी, सस्ती लेड-एसिड बैटरी के उपयोग पर रोक लगेगी और
रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। लिथियम-आयन बैटरी के स्थानीयकरण से लोगों को लिथियम-
आयन आधारित ई-रिक्शा खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
बैटरी से चलने वाले ये ऑटो राजधानी में हजारों लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं, साथ ही कई
लोगों को अंतिम मील कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं, सामान वितरित करते हैं और वायु प्रदूषण को
भी कम करते हैं। लेकिन फिर भी, वे दिल्ली में, या भारत में कहीं और सर्वव्यापी होने से बहुत दूर हैं।
अब तक, देश में सड़क परिवहन का विद्युतीकरण, बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक स्कूटर, मोटरबाइक,
छोटे माल वाहक और रिक्शा द्वारा ही संचालित किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के
अनुसार, "विद्युतीकृत दुपहिया और तिपहिया वाहनों की संख्या में 2015 के बाद से हर साल
औसतन 60% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है, और 2019 में ऐसे 1.8 मिलियन वाहन बिके
थे।"
इस क्रांतिकारी अवसर को भुनाने के लिए पूंजी जुटाने के संदर्भ में, NITI Aayog और RMI India,
थिंक टैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक EVs के लिए वार्षिक ऋण बाजार 3.7 लाख करोड़
रुपये तक बढ़ने का अनुमान है। इसमें से, दुपहिया और तिपहिया वाहन केवल 10% से कम लेंगे,
लेकिन सार्थक कार्य प्रदान करने और उप-राष्ट्रीय सरकारों को वायु प्रदूषण को कम करने जैसे
प्रमुख जलवायु-संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में एक बड़ी भूमिका निभाएंगे।
हाल ही में पारित एक आदेश में, परिवहन विभाग ने निर्देश दिया है कि ई-रिक्शा की बिक्री औरपंजीकरण के लिए, दिल्ली के परिवहन विभाग द्वारा ई-रिक्शा चलाने के लिए मालिक के नाम पर
जारी वैध ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए। जिला परिवहन कार्यालयों को आदेश का अनुपालन
सुनिश्चित करने को कहा गया है। हालिया आदेश 30 अप्रैल, 2015 को जारी एक सर्कुलर का स्थान
लेता है, जिसमें कहा गया था कि ई-रिक्शा की बिक्री और पंजीकरण की अनुमति केवल उन्हीं
व्यक्तियों को दी जाएगी, जिनके पास ई-रिक्शा चलाने के लिए लर्नर लाइसेंस है।
दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने कहा कि कई मामलों में, ई-रिक्शा चालकों को कभी भी स्थायी
ड्राइविंग लाइसेंस नहीं मिलता है, और वे लर्नर लाइसेंस के साथ ही गाड़ी चलाते रहते हैं। अब उनके
लिए लाइसेंस लेने और फिर ई-रिक्शा चलाने के लिए ड्राइविंग स्किल टेस्ट (driving skill test)
पास करना अनिवार्य होगा। अधिकारियों के अनुसार ई-रिक्शा मानदंडों के अनुसार मोटर वाहन हैं
और इन्हें गैर-मोटर चालित वाहनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। जानकारों के
अनुसार ऑटो रिक्शा जैसे अन्य पीएसवी पर लागू होने वाले सुरक्षा दिशानिर्देश ई-रिक्शा के लिए
भी लागू होते हैं। वर्तमान में विभाग की प्रवर्तन टीमें ई-रिक्शा चलाने वालों के लाइसेंस की जांच कर
रही हैं। वैध ड्राइविंग लाइसेंस के कब्जे में नहीं पाए जाने वालों के ई-वाहन को जब्त किया जा रहा
है।
संदर्भ
https://bit.ly/3cv8oa6
https://bit.ly/3TmBvNs
https://bit.ly/3wC97Nz
चित्र संदर्भ
1. कतार में खड़े ई-रिक्शा को दर्शाता एक चित्रण (Pexels)
2. दिल्ली की धुंध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. इलेक्ट्रिक-रिक्शा (ई-रिक्शा), को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ई-रिक्शा, बैटरी चालित तिपहिया वाहन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बिक्री हेतु खड़े ई-रिक्शा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ई-ट्राइक चार्जिंग स्टेशन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. 2015-16 से 2017-18 तक भारत में ई-रिक्शा की बिक्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. अनुकूलित इलेक्ट्रिक रिक्शा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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