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हम सभी जानते हैं कि भारतीय पौराणिक कथाएं और इतिहास हमारे नायकों की
बहादुरी की कहानियों से परिपूर्ण हैं, लेकिन थोड़ा और खोजने पर आप देखेंगे
कि उनमें से कुछ नायक उत्कृष्ट रसोइये भी थे। दूसरे पांडव भीमसेन भी पाक
कला में कुशल थे। यह व्यापक रूप से ज्ञात है कि जब पांडव अपने एक वर्ष
अज्ञात वास में रहे थे, तब भीम ने वल्लभ नाम से विराट की रसोई में रसोइए
के रूप में कार्य किया था। क्षेमशर्मा की पुस्तक इस प्रकार के उदाहरणों से भरी
पड़ी है। लेखक क्षेमशर्मा राजा विक्रम सेन, उज्जैन के राजपूत शासक, के
दरबार में एक कवि, विद्वान और चिकित्सक थे, और उन्होंने चरक, सुश्रुत,
वाग्भट्ट, भीम, हरिता के कार्यों का गहन अध्ययन किया था और इसे अपनी
पुस्तक "क्षेमकुटुहलम" में लिखा था। यह पुस्तक संस्कृत में लिखी गयी है जो
कि श्लोकबद्ध है। क्षेमशर्मा की पुस्तक हिन्दू देवताओं से भरी पड़ी है।
क्षेमशर्मा ने अपनी पुस्तक में मुख्यत: स्वास्थ्य लाभों पर ध्यान केंद्रित
किया है। इस पुस्तक में 12 अध्याय हैं जिसमें प्रत्येक अध्याय एक विशेष
मुद्दे पर केंद्रित है, जिसमें शाही रसोई, इसमें प्रयोग होने वाले उपकरण, एक
अच्छे चिकित्सक और रसोइए (इसे एक अच्छा अयुर्वेद का ज्ञाता और
प्रबंधक होना चाहिए) के गुण, स्वस्थ दैनिक दिनचर्या, मौसमी आहार, और
व्यंजनों की विशेषताएं शामिल हैं।
क्षेम शर्मा के अनुसार शाही रसोई का स्वरूप:
शाही रसोई को अल-मीरा से सुसज्जित किया जाना चाहिए, जिसमें लाइन में
आवश्यक स्थान (यानी बक्से/विभाजन/डिवीजन) हों, जो नए सोने से बना हो।
इस उचित स्थान पर, विशेष रूप से राजाओं के उपयोग के लिए, शानदार चांदी
के चमकदार बर्तन होने चाहिए। इसके अलावा जो बर्तन कांसे का बना होता है
वह दर्पण के समान आधा प्रतिबिम्ब दिखाता हो। पलिलिगा वृक्ष (पलाश का
पेड़) से प्राप्त पत्तियों से तैयार थाली भोजन के स्वाद को और अधिक
प्रोत्साहित कर देती है।
क्षेम शर्मा के भोजन से संबंधित कुछ दिशा निर्देश:भोजन के उचित समय पर भी अधिक मात्रा में भोजन करना या अनुचित समय
पर कम या अधिक मात्रा में भोजन करना - दोनों को ही विषमता (अनुचित या
अस्वास्थ्यकर आहार) के रूप में समझा जाना चाहिए। ऐसी
सामग्री/घटकों/वस्तुओं से युक्त भोजन का सेवन (खाना) जो
अनुपयुक्त/प्रतिकूल/मिश्रण/संघ/अस्तित्व के लिए अनुपयुक्त हैं, एक साथ
असमानता के विभिन्न कारकों के कारण (एक स्वस्थ खाद्य पदार्थ के लिए
सादृश्य की कमी) को असंगत भोजन माना जाता है। एक बार भोजन करने के
तुरंत बाद पुनः भोजन करना- अध्यासन कहा जाता है। अनियमित मात्रा में
असमय भोजन करना अर्थात कभी कम तो कभी अधिक मात्रा में भोजन करना
विसामासन कहलाता है।
उदाहरण के लिए, विभिन्न खाद्य पदार्थ/खाद्य और
गैर-शाकाहारी भोजन (अन्न-पान-मांस आदि) को वर्तमान संदर्भ में अनाज के
प्रमुख दो समूहों, असंगति के पेय के रूप में संदर्भित किया जाता है।
उन्होंने विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों को उजागर किया जिनमें कुछ
प्रतिबंध भी लगाए गए थे,हालांकि इन व्यंजनों में सिमित मात्रा में लहसून
अदरक का प्रयोग किया गया है।लेखन ने उल्लेख किया है कि राजा गोमांस
को छोड़कर, सूअर, भेड़ का बच्चा, बधिया बकरी, हिरन का मांस, खरगोश, मोर
आदि के मांस का सेवन करते थे (हालांकि लेखक स्वयं एक ब्राहम्ण थे
जिन्होंने स्वयं कभी मांस का सेवन नहीं किया था इन्होंने केवल दूसरों के
अनुभव के आधार पर इसका वर्णन किया)।
साम्बर:
साम्बर (सावर) मृग मांस के खण्डों को हिंगु भृष्ट कर, सैन्धव-वेसवार-
मरिच चूर्ण मिलाते हैं- इस प्रकार मांस को सिद्धकर लेते हैं।
साम्बरमांस के गुण- बल्य, पुष्टिकर, शीतल एवं स्वादुरस-पाक में मधुर,
रक्तपित्त शामक।
चित्तल:
1. चित्तल (विशिष्ट जाति का मृग शाखिश्रृंग) के मांस-खण्डों को वृष्ण
तिल तैल में सैन्धव लवण, हिंग, त्रिकटु, चूर्ण एवं अर्द्रक मिलाकर
पकाया (सिद्ध किया) मांस अति गुणवान् तथा उत्तम (बहुगुणवान्)
होता।
2. द्विजातिशाम्बर (विचित्र-चित्तकावर) मांस शीतल, स्निग्ध, कफवर्धन,
मधुर (रस-विपाक) तथा रक्तपित्त शामक होता है।।
रोज (गवय):
1. रोज (गवय नील गाय)के मांस खण्डों को प्रभूत (पर्याप्त) जल में
उबाल कर, तप्त (गर्म)-तैल में हींग से भृष्ट (भूनकर), सैंधा नमक
मिलाकर विधिवत् पाक कर लेते हैं।
2. रोज-मांस मधुर, उष्णवृष्य, स्निग्ध, वतपित्तजनन, गरिष्ठ
(विष्टाम), विदाही, मलावरोधक तथा सर्वदा विरस हमेशा फी-स्वाद
में हल्का) रहता/होता है।।
वराह (सुअर):
वराह (सुअर) सम्पूर्ण मांस युक्त शरीर की उष्णजल से बहुप्रक्षालित करके
(अथवा तृणाग्नि से वराह के शरीर के अंग को दहन करके) अल्प जल से पुन:
प्रक्षालन करें, शस्त्र से काटकर कूल (रोम) रहित कर लेते है (निलेमिका)।
तदनन्तर तीक्ष्णशस्त्र से उचित टुकड़े कर लेते हैं (पाटन)। इस मांस द्रव्य
से विविध प्रकार के कल्प (पाक) निर्माण किए जा सकते हैं, यथा- प्रलेह, तलन
आदि (पाक विधि के अनुसार) बनाते हैं, मांस का सुपाक
(रंधनेद्धहुआब्रघ्नम्)।।
विभिन्न जानवरों से प्राप्त मांस के विभिन्न समूह यदि संयोजन में पकाए जाते
हैं तो परस्पर असंगत हो जाते हैं।मधु (शहद) के संयोजन में पकाए जाने पर
विभिन्न जानवरों से प्राप्त मांस के विभिन्न समूह; सरपी (घी), वसा (वसा),
तेल (तेल) और पनिया (पानी/पेय) ये अगले क्रम में असंगत हो जाते हैं।
जल के गुण:
भोजन करते समय लिए गए पानी को कपूर से सुगन्धित किया जाना चाहिए,
यह एक बर्तन में भरा हुआ होना चाहिए जो भोजन लेने के लिए तैयार व्यक्ति
के दक्षिण की ओर होना चाहिए।कुपा (गहरे कुएं), वापी (सीढ़ियों के साथ कृत्रिम
टैंक) और निर्झरा (झरने/धारा/झरना) के पानी में क्षारीय स्वाद के गुण होते हैं,
और यह सामान्य रूप से पित्त को बढ़ाता है। पानी के इन स्रोतों में गहरे कुएं
का पानी विशेष रूप से पानी को शान्त करता है, जबकि झरनों/झरनों से गिरने
वाला पानी साफ और अच्छा रहता है।कुपा (गहरा कुएं) और दिव्या धारा या
मूसलाधार बारिश, ओलों से उपलब्ध जल , ओस/नम वाष्प और हेम (या
हिमपात) या वायुमंडलीय स्रोत से पानी अगर गर्म / उबल जाए तो यह तीनों
दोषों को शांत करता है। गहरे कुओं का पानी वात दोसा को कम करता है,
जबकि दिव्य जल (विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त / उत्पादित वायुमंडलीय
पानी जैसे मूसलाधार बारिश, ओलों का पिघलना, नम वाष्प या ओस और बर्फ)
में सामान्य रूप से तीनों दोषों को वश में करने का गुण होता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3KaSpun
https://bit.ly/3Kc6l72
https://bit.ly/3PAtj97
चित्र संदर्भ
1. क्षेमशर्मा की पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (exoticindiaart)
2. क्षेमकुटुहलम के प्रथम पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (exoticindiaart)
3. पलिलिगा वृक्ष (पलाश का पेड़) से प्राप्त पत्तियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक भारतीय भोज थाल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. शुद्ध प्राकृतिक जल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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