Post Viewership from Post Date to 28-Apr-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1998 139 2137

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

प्राचीन भारत के रथों से लेकर आधुनिक रेस तक के घोड़ों का इतिहास

लखनऊ

 31-03-2022 09:11 AM
स्तनधारी

आज जिस प्रकार किसी भी देश की सैन्य शक्ति को, उसके पास उपलब्ध हथियारों की संख्या और गुणवत्ता से मापा जाता है, ठीक उसी प्रकार प्राचीन काल में राजा महाराजाओं की युद्ध शक्ति को उनके हथियारों सहित उनके सेना में शामिल हाथी और घोड़ों की संख्या तथा उन घोड़ों की नस्लों से मापा जाता था। महाभारत के युद्ध में घोड़ो के रथ पर सवार अर्जुन को देखकर, इस तथ्य को समझा जा सकता है। युद्धों में घोड़ो के प्रयोग के साथ ही हमारे देश में घुड़सवारी का लगभग 4,000 वर्षों का पुराना इतिहास रहा है, और ऋग्वेद, अथर्ववेद, आदि जैसे कई महान धार्मिक ग्रंथों में भी "अश्व" अर्थात घोड़े के गुणों का उल्लेख मिलता है।
हड़प्पा (1900-1300 ईसा पूर्व) साइटों में घोड़े के अवशेष और संबंधित कलाकृतियां पाई गई हैं। हालांकि घोड़ों ने हड़प्पा सभ्यता में जरूरी भूमिका नहीं निभाई थी लेकिन यह इस बात का प्रमाण है कि घोड़े वैदिक काल (1500-500 ईसा पूर्व) के विपरीत से हड़प्पा काल में भी मौजूद थे। घोड़े, गैंडे, और टपीर जैसे विषम पंजों वाली उंगलियों या खुर वाले स्तनधारी भारतीय उपमहाद्वीप में अपने विकासवादी मूल के हो सकते हैं। दूसरी सहस्राब्दी से पहले तक घोड़े को पालतू बनाना उसके मूल निवास, ग्रेट स्टेपी (Great Steppe) तक ही सीमित था। हालाँकि साक्ष्य बताते हैं कि लगभग 3500 ईसा पूर्व यूरेशियन स्टेप्स (Eurasian steppes) में घोड़ों को पालतू बनाया गया था। बोटाई संस्कृति (Botai culture) के संदर्भ में हाल की खोजों से पता चलता है कि, कजाकिस्तान के अकमोला प्रांत में बोटाई बस्तियां घोड़े को पालतू बनाने के लिए शुरुआती स्थान थी।
1800 ईसा पूर्व से घोड़ा, मेसोपोटामिया में एक सवारी के जानवर के रूप में सामने आया और रथ के आविष्कार के साथ इसने सैन्य महत्व प्राप्त किया। दक्षिण एशिया में घोड़े के अवशेषों की सबसे पहली निर्विवाद खोज गांधार कब्र संस्कृति से जुडी हुई है , जिसे स्वात संस्कृति (C 1400-800 ईसा पूर्व) के रूप में भी जाना जाता है। इंडो-आर्यों से संबंधित, स्वात घाटी कब्र डीएनए विश्लेषण (Swat Valley tomb DNA analysis)" स्टेपी आबादी और भारत में प्रारंभिक वैदिक संस्कृति के बीच संबंध का प्रमाण प्रदान करता है।
इंडो-यूरोपीय लोगों की जीवन शैली में घोड़ों का विशेष महत्व था। घोड़े के लिए संस्कृत शब्द “अश्व” वेदों और कई हिंदू शास्त्रों में महत्वपूर्ण जानवरों में से एक है , और ऋग्वेद में कई व्यक्तिगत नाम भी घोड़ों पर केंद्रित हैं। 1500-500 ईसा पूर्व), वेदों में घोड़े का बार-बार उल्लेख मिलता है। विशेष रूप से ऋग्वेद में कई घुड़सवारी के दृश्य हैं। साथ ही अश्वमेध या घोड़े की बलि, यजुर्वेद का एक उल्लेखनीय अनुष्ठान भी है। हालाँकि भारतीय जलवायु में बड़ी संख्या में घोड़ों के प्रजनन कराने में कठनाई होती थी जिस कारण उन्हें, आमतौर पर मध्य एशिया से बड़ी संख्या में आयात किया जाता था। अथर्ववेद 2.30.29 में अश्व व्यापारियों का उल्लेख पहले से ही किया गया है। अजंता की एक पेंटिंग में घोड़ों और हाथियों को दिखाया गया है जिन्हें जहाज से ले जाया जा रहा है। माना जाता है कि भारतीय घोड़े, जिसे "देसी-नस्ल" कहा जाता है, को 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रमुखता मिली थी।
कलकत्ता में अरब घोड़े अच्छे धावक बन गए और "बंगाल का डर्बी" युवतियों के बीच खासा लोकप्रिय बन गया था। भारत के अधिकांश क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन आने से, भारत में घोड़ों की संख्या बढ़ रही थी और रेसकोर्स (racecourse) भी बढ़ रहे थे। अतः भारत ने विभिन्न देशों से ब्रिटिश शासन के तहत घोड़ों का आयात करना शुरू कर दिया और 1862 तक घुड़दौड़ के खेल की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती गई। द नेशनल हॉर्स ब्रीडिंग एंड शो सोसाइटी ऑफ इंडिया (The National Horse Breeding and Show Society of India) ने 1927 में इंडियन स्टड बुक (Indian Stud Book) का खंड 1 प्रकाशित किया। इस पुस्तक में विभिन्न नस्लों के घोड़े जैसे इंग्लिश थोरब्रेड्स, ऑस्ट्रेलियन थोरब्रेड्स, ट्रॉटर्स (English Thoroughbreds, Australian Thoroughbreds, Trotters), मारवाड़ी, काठियावाड़ी, डेजर्ट अरेबियन, हाफ-ब्रेड (Desert Arabian, Half-bred), आदि शामिल थे।
घुड़दौड़ का खेल ग्रेट ब्रिटेन में 17वीं शताब्दी में किंग चार्ल्स द्वितीय (King Charles II) के शासनकाल में शुरू हुआ, और 200 साल पहले अंग्रेजों द्वारा भारत में पेश किया गया। जिसके बाद पहला रेसकोर्स मद्रास (अब चेन्नई) 1777 में स्थापित किया गया था।
चूंकि कोई भी घुड़दौड़ एक अच्छे घोड़े के बिना पूरी नहीं की जा सकती, इसलिए 20 वीं शताब्दी में पंजाब और अविभाजित भारत के बॉम्बे प्रांत में घुड़ प्रजनन केंद्र (horse breeding center) स्थपित किया गया। आज घुड़ प्रजनन केंद्र सौ साल बाद भी देश में एक अच्छी तरह से स्थापित प्रजनन उद्योग है, जो नौ राज्यों में फैला है और आकार में इटली और जर्मनी को टक्कर दे रहा है। 1988-1997 के दशक में बछेड़े के उत्पादन (Colt production) में 76 प्रतिशत की शानदार वृद्धि देखी गई, साथ ही 2002-2011 के बीच 38 प्रतिशत की प्रभावशाली प्रगति देखी गई। दुर्भाग्य से, दांव लगाने पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगाने के कारण में वर्ष 2019 में घोड़ों के उत्पादन में 30 साल के निचले स्तर पर गिरावट देखी गई है। विदेशों में रेस हेतु भारतीय नस्ल के परीक्षण शिपमेंट (trial shipment) से पता चला है कि वे विश्व स्तर पर मामूली से सभ्य घोड़े भी अच्छे प्रतिस्पर्धी साबित हो सकते हैं। पश्चिम में कुवैत, बहरीन, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान और पूर्व में सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग और मकाऊ जैसे रेसिंग स्थान सामूहिक रूप से हर साल हजारों घोड़े आयात करते हैं, और कोई भी भारत से बेहतर इन बाजारों की पूर्ती करने की स्थिति में नहीं है। हमारी जलवायु परिस्थितियाँ समान हैं, और शिपिंग दूरी भी कई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कम है। अतः भारत में दौड़ हेतु शानदार घोड़े तैयार करने की प्रबल क्षमता है।
भारत को इन देशों को अपने देसी घोड़े निर्यात करने के लिए केवल कुछ उपाय करने की आवश्यकता है जैसे:
1. पुराने आयात लाइसेंस को समाप्त करना, और केवल स्वास्थ्य के आधार पर आयात परमिट की विकेन्द्रीकृत प्रणाली के साथ इसका प्रतिस्थापन
2. शुद्ध लाइन पर 48.96 प्रतिशत आयात शुल्क और जीएसटी के पेराई बोझ को हटाना।

संदर्भ
https://bit.ly/3LsE7Vj
https://bit.ly/3Lp0bQq
http://indianstudbook.com/history.php

चित्र संदर्भ
1. घोड़ों की रेस को दर्शाता एक चित्रण (pixabay)
2. घोड़े से खींचे गए रथ दारासुरम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. घोड़े की देसी नस्ल को दर्शाता एक चित्रण (pixnio)
4. मद्रास रेस क्लब को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आइए, आनंद लें, साइंस फ़िक्शन एक्शन फ़िल्म, ‘कोमा’ का
    द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

     24-11-2024 09:20 AM


  • विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र व प्रादेशिक जल, देशों के विकास में होते हैं महत्वपूर्ण
    समुद्र

     23-11-2024 09:29 AM


  • क्या शादियों की रौनक बढ़ाने के लिए, हाथियों या घोड़ों का उपयोग सही है ?
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:25 AM


  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id