Post Viewership from Post Date to 12-Nov-2021 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2631 173 2804

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2100 तक पृथ्वी के 23 प्रतिशत प्राकृतिक आवास समाप्त हो सकते हैं

लखनऊ

 13-10-2021 05:51 PM
निवास स्थान

काफी तेजी से हो रहा पर्यावास का नुकसान पहले से ही कमजोर प्रजातियों के तेजी से विलुप्त होने का कारण बन रहा है। एक अध्ययन में पाया गया कि स्तनधारियों, उभयचरों और पक्षियों के लिए घटती पर्वतमाला पहले से ही पिछली प्राकृतिक श्रेणियों के 18 प्रतिशत के नुकसान के लिए जिम्मेदार है, तथा इस सदी के अंत तक इसके 23 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है।जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि वन्यजीव स्वस्थ आवासों पर निर्भर करते हैं।उन्हें अपने बच्चों कापालन-पोषण करने के लिए सही तापमान, ताजे पानी, खाद्य स्रोतों और स्थानों की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन प्रमुख आवास तत्वों को बदल रहा है जो वन्यजीवों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं और प्राकृतिक संसाधनों को खतरे में डाल रहे हैं।
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन तापमान, वर्षा और समुद्र के स्तर को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है साथ ही यह कुछ आवासों को भी नष्ट कर सकता है और पलायन करने वाली कई प्रजातियों की तुलना में विभिन्न प्रजाति तेजी से स्थानांतरण कर सकते हैं।जब तक हम अपने ग्रीनहाउस (Greenhouse) गैस उत्सर्जन में भारी कमी नहीं करते, हम ऐसे कई कारकों के संयोजन की उम्मीद कर सकते हैं जो आने वाले समय को आश्चर्यजनक रूप से गंभीर बना देंगे। धरती के इतिहास में लगभग किसी भी समय की तुलना में वर्तमान में जलवायु तेजी से बदल रही है। इसके अलावा, कई पारिस्थितिक तंत्र पहले से ही मानवीय गतिविधियों जैसे विनाशकारी कटाई, अत्यधिक चराई, अत्यधिक मछली पकड़ने, जहरीले प्रदूषण और इसी तरह की अन्य गतिविधियों से प्रभावित हैं। साथ ही मानव विकास का विस्तार आवासों को नष्ट कर देता है और कई प्रजातियों को पलायन करने से रोकता है, उदाहरण के लिए, बड़े हाइवे (Highway) प्रभावी रूप से भूमि जानवरों को पलायन करने से अवरुद्ध करते हैं। वहीं कुछ अध्ययनों ने संकेत दिया है कि 1.8-2 डिग्री सेल्सियस (3.2-3.6 डिग्री फारेनहाइट) के मध्य-सीमा के तापमान में वृद्धि के साथ, अगले पचास वर्षों में एक लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा होगा। हालांकि अगले कुछ दशकों में उत्सर्जन में तेजी से कमी करके ही इससे बचा जा सकता है। कई प्रजातियों को बचाने के लिए अभी भी समय है, लेकिन यह समय तेजी से खत्म हो रहा है। यदि तापमान और भी अधिक होता जाएगा, तो और अधिक प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी।जोखिम में प्रजातियों और आवासों के कुछ उदाहरण:
1) मूंगे की चट्टानें (Coral Reefs) :प्रवाल विरंजन एक ऐसी स्थिति है जो पूरी प्रवालभित्तियों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है और नष्ट कर सकती है। मूंगे में सूक्ष्म शैवाल होते हैं जिन्हें ज़ोक्सांथेला (Zooxanthellae) कहा जाता है, जो मूंगे को भोजन प्रदान करते हैं और उन्हें उनके जीवंत रंग देते हैं।
समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण मूंगे तनावग्रस्त हो जाते हैं, और वे ज़ोक्सांथेला को बाहर निकाल देते हैं और सफेद हो जाते हैं। यदि ज़ोक्सांथेलाप्रवाल के ऊतक में वापस नहीं आता है, तो मूंगे मर जाते हैं।गर्मियों में अधिकतम तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस (1.8 डिग्री फारेनहाइट) की वृद्धि, मूंगों के सफेद होने का कारण बन सकता है। इस समस्या का एक उदाहरण ऑस्ट्रेलिया (Australia) की विश्व प्रसिद्ध ग्रेट बैरियररीफ (Great Barrier Reef) है। लगभग 2,000 किलोमीटर (1,243 मील) लंबी, यह दुनिया की सबसे बड़ी चट्टान है। लेकिन 2002 में, चट्टान ने मूंगे के सफेद होने के सबसे खराब मामले का अनुभव किया, जिसमें 60% से अधिक चट्टान प्रभावित हुई थी।
2) ध्रुवीय भालू (Polar Bears) :आर्कटिक (Arctic) समुद्री बर्फ इस सदी में गायब हो सकती है, और इसके साथ जंगली ध्रुवीय भालू। ध्रुवीय भालू, दुनिया के सबसे बड़े भूमि शिकारी हैं। वे लंबे समय तक, यहां तक कि महीनों तक बिना खाए रह सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें वसा जमा करने की आवश्यकता होती है। ध्रुवीय भालू ज्यादातर ऐसा, बर्फ पर पकड़ी गई सील (Seal) को खाकर करते हैं।
साथ ही बर्फ के बिना वे अपने शिकार तक नहीं पहुंच सकते।वास्तव में, समुद्री बर्फ के बिना, आर्कटिक पारिस्थितिकी तंत्र का अधिकांश भाग बदल जाएगा या ढह जाएगा। वहीं ध्रुवीय भालू भी यात्रा के लिए तैरते समुद्री बर्फ के सतह का उपयोग करते हैं, और गर्भवती ध्रुवीय भालू जन्म देने के लिए बर्फ की गुफा बनाते हैं। ध्रुवीय भालुओं को भी अपनी शिकार यात्राओं पर बर्फ खोजने के लिए समुद्री पानी पर तैरना होता है, जिससे उन्हें भूख और थकावट से मौत का खतरा होता है।
3) पौधे :जानवरों और कीड़ों की तरह, पौधों की प्रजातियों को विशिष्ट जलवायु की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, आपको सगुआरो कैक्टस (Saguaro Cactus) के बगल में पीले बर्च (Yellow birch) के पेड़ नहीं उगे हुए दिखेंगे। वहीं वर्षा और तापमान में परिवर्तन का मतलब यह होगा कि कुछ प्रजातियां अपने पर्यावास में अब जीवित नहीं रह सकतीं हैं। साथ ही, जानवरों की तरह, पौधे भी प्रतिस्पर्धा के प्रति संवेदनशील होते हैं। जैसे- जैसे गर्मी बढ़ती है, वैसे प्रजातियां जो ठंडी जलवायु में रहने के लिए अनुकूलित हो गई हैं, उन्हें नए तापमान के अनुकूल नए लोगों द्वारा अस्तित्व से बाहर किया जा सकता है।
अधिकांश पौधे जानवरों और कीड़ों की तुलना में बहुत जल्दी पलायन नहीं कर सकते। क्योंकि उनके बीज या पराग एक सीमित दूरी तक ही जा सकते हैं। इस प्रकार, यदि मौजूदा रुझान जारी रहे तो पौधों के प्रवास के लिए जलवायु बहुत तेजी से बदल रहा है। कई जानवरों और कीड़ों को अपने आवास के हिस्से के रूप में विशिष्ट पौधों, या पौधों के प्रकार की आवश्यकता होती है। तो पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने का मतलब है की उन पर निर्भर होने वाले जानवरों और कीड़ों का विलुप्त होना, जिसके बाद यह शृंखला चलती रहेगी।
साक्ष्य बताते हैं कि पिछली शताब्दी के गर्म होने से पहले से ही उल्लेखनीय पारिस्थितिक परिवर्तन हुए हैं, जिसमें बढ़ते मौसम, प्रजातियों की श्रेणियों और मौसमी प्रजनन के स्वरूप में बदलाव शामिल हैं।वहीं तेजी से गर्म हो रही दुनिया में कई प्रजातियों का भाग्य संभवतः उनकी भौतिक, जैविक और जलवायु आवश्यकताओं को पूरा करने वाले नए क्षेत्रों में तेजी से पलायन करने की उनकी क्षमता पर निर्भर करेगा। हालांकि कई प्रजातियां आने वाले परिवर्तनों के साथ खुद को इतनी तेजी से पुनर्वितरित करने में सक्षम नहीं होंगी।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3mSA5e0
https://bit.ly/3lBzDS9
https://bit.ly/3v6vNnd
https://bit.ly/3AAFTxO/

चित्र संदर्भ
1. पेड़ों को काटते दो व्यक्तियों का एक चित्रण (unsplash)
2. मूंगे की चट्टानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ध्रुवीय भालू (Polar Bears) का एक चित्रण (BBC Wildlife Magazine)
5. पीले बर्च (Yellow birch) के पेड़ का एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id